ओडिशा भगवान श्री जगन्नाथ की भूमि है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री हरि रामेश्वरम में स्नान करते हैं, द्वारका में श्रृंगार करते हैं, पुरी में भोजन करते हैं तथा बद्रीनाथ में साधना करते हैं। चूँकि भगवान जगन्नाथ पुरी में भोजन करते हैं, ओडिशा का खाना और यहाँ के व्यंजनों पर मंदिर की भोजन शैली का गहन प्रभाव है।
सामान्यतः यहाँ के व्यंजनों में हल्के मसाले होते हैं तथा उनमें स्वाद एवं सुगंध भी कोमल होते हैं। किन्तु इसके ठीक विपरीत, ओडिशा की गलियों में बिकने वाले व्यंजन अपने चटपटे स्वाद एवं मसालों के लिए लोकप्रिय हैं। यूँ कहिये उनमें स्वाद का धमाका होता है। यूँ तो ओडिशा की गलियों के व्यंजन शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार के खवय्यों की जिव्हा को संतुष्ट करते हैं, इस संस्करण में मैं ओडिशा की गलियों के शाकाहारी व्यंजनों पर चर्चा कर रही हूँ।
ओडिशा राज्य के बाहर रहने वालों को तनिक भी भनक नहीं है कि इसकी गलियों में इतने चटपटे व्यंजन बिकते हैं। ओडिशा की गलियों के व्यंजन अखिल भारतीय स्तर पर अब तक अपनी पहचान स्थापित नहीं कर पाए हैं, जैसे मुंबई, वाराणसी, दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता, इंदौर इत्यादि की गलियों में उपलब्ध व्यंजनों ने स्थापित किये हैं। ओडिशा के व्यंजन इन स्थानों के व्यंजनों की तुलना में किसी भी मापदंड में न्यून नहीं हैं। आईये मैं आपको ओडिशा की गलियों में ले चलती हूँ जहां ऐसे चटपटे शाकाहारी व्यंजन मिलते हैं कि उनके विषय में जानकार आपके मुंह में पानी आ जाएगा तथा आप तुरंत ओडिशा की यात्रा की योजना बना लेंगे।
ओडिशा राज्य प्राथमिक रूप से चार प्रमुख क्षेत्रों में बंटा हुआ है, तटीय, उत्तरी, पश्चिमी तथा दक्षिणी। प्रत्येक क्षेत्र के अपने स्वयं के क्षेत्रीय व्यंजन हैं जिनमें क्षेत्र-विशेष स्वाद व सुगंध होता है। पश्चिमी क्षेत्र के व्यंजनों में आंध्र प्रदेश के व्यंजनों का प्रभाव झलकता है। वहीं, उत्तरी क्षेत्र के व्यंजनों में पश्चिम बंगाल की निकटता का प्रभाव पड़ा है।
ओडिशा का खाना – गलियों के शाकाहारी व्यंजन
दही बड़ा आलू दम
दही-बड़ा-आलू-दम, इस व्यंजन की उत्पत्ति कटक में हुई है। यह दही बड़ा का ही एक प्रकार है। उड़द डाल एवं चावल को भिगोकर व पीसकर गर्म तेल में उसके बड़े तले जाते हैं। इन बड़ों को दही के मट्ठे में भिगोया जाता है। इस मट्ठे को राई, कढ़ी पत्ते व सूखी लाल मिर्ची का तड़का लगाया जाता है। इसके पश्चात उस पर आलू दम (आलू की सब्जी) तथा घुगनी (मटर का स्सा) डाला जाता है। कटे प्याज व सेव भुजिया से सजाकर परोसा जाता है।
यह व्यंजन कटक की पहचान है। सम्पूर्ण कटक नगरी में इसकी बिक्री करने वाले अनेक विक्रेता हैं। यह व्यंजन एवं इसके प्रकार अब राज्य के अन्य भागों में भी अपना स्थान बना रहे हैं। इस व्यंजन को घर घर में लोकप्रिय करने वाले व्यक्तित्व का नाम रघु है। उन्होंने दिल्ली में आयोजित ओडिशा परब के एक आयोजन में यह व्यंजन बनाया था तथा प्रथम पुरस्कार जीता था। इसके पश्चात उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
दही बड़ा आलू दम के विक्रेता प्रातः ६ बजे से ही इसकी बिक्री आरम्भ कर देते हैं जो रात्रि १० बजे तक चलती रहती है। अतः आप दिन के किसी भी समय इसका आस्वाद ले सकते हैं। यह व्यंजन भले ही पेट के लिए भारी हो सकता है किन्तु जेब के लिए कदापि नहीं।
यदि आप असली दही बड़ा आलू दम का स्वाद चखना चाहते है तो ‘रघु दही बड़ा, बिदानासी कटक’ में अवश्य जाएँ। दुकान खुलने से पूर्व ही वहां खवय्यों की लंबी कतार लग जाती है, इसलिए कुछ क्षण प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। रघु सायंकाल ४.३० बजे मिष्टान भण्डार खोलते हैं तथा ५.३० बजे बंद भी कर देते हैं। एक अन्य उत्तम विक्रेता हैं, इश्वर, जिन्होंने लोगों की रूचि के अनुसार व्यंजन के स्वाद में परिवर्तन भी किये हैं।
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सिंघाड़ा घुघनी / तरकारी
ओडिशा की गलियों का एक अन्य स्वादिष्ट व्यंजन है ओडिया समोसा, जो सम्पूर्ण राज्य में उपलब्ध होता है। सिंघाड़े के आकार से समानता रखने के कारण इसे सिंघाड़ा कहते हैं। इसे सामान्यतः आलू मटर के रस्से के साथ परोसा जाता है जिसे यहाँ घुघनी कहते हैं। कहीं कहीं इसे सादे आलू के रस्से के साथ भी खाया जाता है।
सिंघाड़ा एवं समोसा में अंतर उसके भरावन के कारण है। ओडिशा के समोसे अथवा सिंघाड़ा में कटे आलू की सब्जी का भरावन होता है, ना कि किसे हुए आलू की सब्जी का भरावन, जैसा कि सामान्यतः भारत के अन्य स्थानों में किया जाता है। भरावन को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए उस में मूंगफली के दाने एवं नारियल के टुकड़े डाले जाते हैं।
आलू चॉप/ पियाजी/ अन्य पकोड़े
पकोड़े अथवा भजिये ओडिशा का सर्वसामान्य नाश्ता है जो सम्पूर्ण राज्य में दिन के किसी भी समय उपलब्ध हो जाता है। आलू चॉप उत्तर भारत के आलू बोंडा का ही एक रूप है जिसमें घिसा हुआ आलू, हरे मटर, मूंगफली के दाने एवं नारियल के टुकड़ों में मसाले इत्यादि डालकर स्वादिष्ट भरावन बनाया जाता है। इसके पश्चात उसके गोले बनाकर बेसन व चावल के आटे के घोल में डुबोकर गर्म तेल में तला जाता है। इसमें बेसन की परत आलू बोंडे के बेसन की परत से अपेक्षाकृत पतली होती है। इसी प्रकार प्याज, बैंगन, पत्ता गोभी, आलू के कतले, भावनगरी मिर्ची आदि को भी इसी घोल में डुबोकर गर्म तेल में तल कर भजिये बनाए जाते हैं।
भजिये के लिए उपरोक्त भाजियों का चुनाव मौसम, ग्राहकों की रूचि तथा लोकप्रियता के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। उत्तरी ओडिशा में बैंगन के भजिये अधिक लोकप्रिय हैं जिसे बेगुनी कहा जाता है। दक्षिणी ओडिशा के बेरहामपुर में पत्ता गोभी के भजिये अधिक खाए जाते हैं। अधिकतर इन भजियों को घुघनी अथवा आलू के सादे रस्से के साथ खाया जाता है। कुछ स्थानों में इन भाजियों पर केवल काला नमक छिड़ककर प्याज के टुकड़े के साथ परोसा जाता है।
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वड़ा घुघनी/तरकारी
दक्षिण भारत का मेदुवड़ा भी ओडिशा की गलियों का लोकप्रिय नाश्ता है किन्तु यहाँ वह अपने स्थानिक अवतार में उपलब्ध होता है। उड़द दाल को भिगोकर एवं पीसकर उसके वड़े तले जाते हैं। इन वड़ों को घुघनी अथवा आलू के सादे रस्से के साथ खाया जाता है। कहीं कहीं इसे दालमा के साथ भी खाया जाता है। दालमा को अरहर अथवा चने की दाल में विभिन्न भाजियों को डालकर बनाया जाता है। दालमा भी ओडिशा का एक लोकप्रिय व्यंजन है।
पूरी तरकारी/ दालमा
यह व्यंजन भी सम्पूर्ण ओडिशा राज्य में उपलब्ध है। पूरी के साथ घुघनी, आलू का रस्सा अथवा दालमा परोसा जाता है। बेरहामपुर एवं कोरापुट जैसे दक्षिणी भागों में पूरी तरकारी के साथ उपमा व चटनी भी दी जाती है।
गुपचुप
गोलगप्पे अथवा पानी पूरी को ओडिशा में गुपचुप कहा जता है। गोल, कुरकुरी, खोखली, छोटी छोटी पूरियों में मसालेदार मसले हुए उबले आलू, उबले काबुली चने, प्याज एवं अन्य मसाले भरे जाते हैं। उसमें चटपटा खट्टा पुदीना इमली का पानी भरा जाता है। यहाँ के पानी में नमकीन बूंदी नहीं होती है। ओडिशा के प्रत्येक छोटे-बड़े नगर की लगभग सभी गलियों में गुपचुप के ठेले होते हैं। यहाँ के गुपचुप की विशेषता पूरियों के भरावन तथा पानी की खटास है।
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चाट
पारंपरिक ओड़िया चाट में तवे पर कुरकुरी सिकी आलू टिक्की होती है जिस के ऊपर घुघनी डालकर, उस पर कटे प्याज, गाजर, चुकंदर, दही, सेव, भुजिया व पापड़ी का चूरा बुरककर परोसा जाता है। इसकी विशेषता उस पर बुरके मसालों का उत्तम सम्मिश्रण है। चाट के अन्य प्रकार हैं, पापड़ी चाट, दही पुरी आदि।
चाउल बरा
यह पश्चिमी ओडिशा की गलियों का अत्यन्त ही लोकप्रिय नाश्ता है। चावल एवं उड़द डाल को ८०:२० के माप में लेकर भिगोया जाता है तथा उसे पीसकर घोल बनाया जाता है। गर्म तेल में इसके छोटे छोटे पकोड़े तले जाते हैं। इसे मिर्ची की चटनी अथवा रस्से के साथ खाया जाता है।
दही आलू
यह उत्तरी ओडिशा का व्यंजन है जिसमें उबले आलू के टुकड़ों को दही, विभिन्न चटनियाँ, कटे प्याज, मिर्ची आदि के मिश्रण में लपेटा जाता है। इसे पत्ते के दोनों में परोसा जाता है।
मुरी/मुढ़ी आलू दम
मुरमुरा उत्तरी ओडिशा के व्यंजनों का प्रमुख भाग है। इस नाश्ते में मुरमुरे में आलू दम मिलाकर आलू चॉप जैसे पकोड़ों के साथ परोसा जाता है। आलू दम के रस्से के कारण यह मिश्रण कुछ गीला होता है।
मसाला मुरी/मुढ़ी
यह व्यंजन झाल मुढ़ी का ही एक संबंधी है। इसमें मुरमुरे में उबले आलू, उबले मटर अथवा उबले चने, मिर्च, कटे प्याज, मूंगफली के दाने आदि मिलाकर उस पर सरसों का तेल डाला जाता है। यह मुढ़ी आलू दम जैसा गीला नहीं होता है, अपितु सूखा होता है।
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चनाचूर मिक्सचर
उबले काबुली चने को दबाकर चपटा किया जाता है। तत्पश्चात उसे भूनकर सुखाया जाता है। इसे चनाचूर कहते हैं। कटे प्याज, कटे टमाटर, मिर्च तथा मसाले डालकर इसका चटपटा मिश्रण बनाया जाता है। यह एक लोकप्रिय व्यंजन है। खोमचे वाले अधिकतर बाजार तथा समुद्रतट पर इसे बेचते दिखाई पड़ते हैं। कटक में चनाचूर के अतिरिक्त खोमचेवाले सेव भुजिया तथा तले हुए चना दाल के मिश्रण में प्याज, टमाटर तथा मसाले डालकर उसका भी चटपटा भेल बनाते हैं।
इडली घुघनी
आपको आश्चर्य होगा किन्तु ओडिशा के दक्षिणी भागों में प्रातःकालीन जलपान के रूप में इडली भी खाई जाती है। कदाचित आन्ध्र प्रदेश से समीपता के कारण इन भागों के खानपान में आन्ध्र का भी कुछ प्रभाव है। यद्यपि इन भागों में स्थित दक्षिण भारतीय टिफिन केन्द्रों में इडली के साथ सांभर व चटनी दी जाती है, तथापि सड़क के किनारे स्थित खोमचों में इडली की साथ घुघनी परोसी जाती है। यह एक लोकप्रिय प्रातःकालीन नाश्ता है।
चकुली घुघनी
चकुली पीठा अथवा डोसा ओडिशा का महत्वपूर्ण व्यंजन है। अनेक ओड़िया उत्सवों एवं पूजा अनुष्ठानों में पीठा का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। इडली के समान इसे भी घुघनी के साथ खाया जाता है।
थुंका पूरी
यह एक मौसमी व्यंजन है जिसे सामान्यतः कटक में बाली जात्रा के समय बनाया जाता है। बाली जात्रा, कार्तिक पूर्णिमा या नवम्बर-दिसंबर मास में आयोजित एक मुक्त व्यापारिक मेला है। यह एशिया का विशालतम व्यापारिक मेला होता है जिसे ओडिशा राज्य के प्राचीन समुद्री व्यापारियों के सम्मान में आयोजित किया जाता है। थुंका पुरी एक बहुत बड़े आकार की पुरी होती है, भटूरे से भी बड़ी। इसे सदा छेना तरकारी के साथ खाया जाता है। पनीर के मुलायम गोलों को आलू के टुकड़ों के साथ पकाकर रस्सा बनाया जाता है।
ओडिशा का खाना – गलियों की मिठास
रसगोल्ला/रसगुल्ला
इसे छेने से बनाया जाता है। ओडिशा स्वयं को रसगोल्ला का मूल स्थान मानते हुए गौरान्वित होता है। छेने के गोलों को शक्कर की चाशनी में पकाया जाता है। इसका एक अन्य रूप है, खीरमोहन। दोनों प्रकार अत्यंत लोकप्रिय हैं तथा सम्पूर्ण ओडिशा की गलियों में उपलब्ध हैं। रसगोल्ला का आस्वाद लेने के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय दुकानें हैं, कटक के समीप सालेपुर में बिकलनंदा कार तथा कटक एवं भुवनेश्वर के मध्य राष्ट्रीय महामार्ग पर स्थित पहल।
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छेना पोड़ा – ओडिशा का खाना
यह मिष्टान्न ओडिशा की पहचान है, अथवा यूँ कहिये कि छेना पोड़ा ओडिशा की संस्कृति का पर्यायवाची शब्द है। इस नाम का शाब्दिक अर्थ है, जला हुआ छेना। इसकी रचना अकस्मात् ही हुई थी जब कुछ छेना रात्र भर चूल्हे पर ही छूट गया।
छेना अथवा पनीर में सूजी एवं शर्करा मिलाई जाती है। तत्पश्चात उसे केले अथवा सागौन के पत्ते में बाँधकर तंदूर या चूल्हे की आंच में भूना जाता है। मिष्टान्न के रूप में छेना पोड़ा की उत्पत्ति सर्वप्रथम नयागढ़ जिले में हुई थी। अब यह दक्षिणी भागों को छोड़, सम्पूर्ण ओडिशा में बहुतायत में उपलब्ध है। ओडिशा के दक्षिणी भागों में यह थोक में उपलब्ध नहीं है। पुरी एवं नयागढ़ में उपलब्ध छेना पोड़ा के स्वाद सर्वोत्तम होता है।
रसाबली
यह केन्द्रापड़ा जिले की प्रसिद्ध मिठाई है। छेना या पनीर के गोलों को घी में तल कर गाढ़े दूध में भिगाया जाता है। यह मिष्टान्न ओडिशा के समुद्रतटीय भागों के सभी मिष्टान्न भंडारों में उपलब्ध है।
छेना झिल्ली
भुवनेश्वर-कोणार्क महामार्ग पर स्थित निमपारा में उपलब्ध छेना झिल्ली राज्य की सर्वोत्तम झिल्ली मानी जाती है। इसमें छेना या पनीर के गोलों को घी में तल कर शक्कर की चाशनी में डुबाया जाता है। ये गोले जिव्हा पर रखते ही मुंह में घुलने लगते हैं।
छेना गाजा
यह रसगुल्ला का ही एक प्रकार है जिसमें पनीर व सूजी को मसल कर उसे छोटे छोटे चौकोर टुकड़ों में विभाजित किया जाता है। तत्पश्चात उन्हें शक्कर की चाशनी में डालकर उबाला जाता है। उन्हें तब तक उबालते हैं जब तक चाशनी सूखकर शक्कर वापिस टुकड़ों पर जमने न लगे।
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छेना रबड़ी
छेना या पनीर को रबड़ी में मिलकर यह व्यंजन बनाया जाता है। यह ओडिशा के सभी महत्वपूर्ण नगरों के विभिन्न प्रमुख मार्गों में बिकता है।
खाजा
खाजा ओडिशा का एक महत्वपूर्ण मिष्टान्न है जिसे मंदिरों में प्रसाद के रूप में अर्पण किया जाता है। इसे बनाने में आटा, घी एवं शक्कर की चाशनी का प्रयोग किया जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के निकट स्थित मिष्टान्न भंडारों में सर्वोत्तम खाजे बिकते हैं।
छेना मुरगी
छेना के छोटे छोटे चौकोर टुकड़ों पर शक्कर की गाढ़ी चाशनी चढ़ाई जाती है। यद्यपि ओडिशा का भद्रक क्षेत्र छेना मुरगी के लिए प्रसिद्ध है, तथापि अब यह सम्पूर्ण ओडिशा में उपलब्ध है।
ओडिशा का खाना – गलियों के मीठे शीतल पेय
लस्सी शरबत
उमस भरी गर्मी के मौसम में मीठी शीतल लस्सी अत्यंत आनंददायक प्रतीत होती है। यह भारत के अन्य भागों में उपलब्ध लस्सी के ही समान होती है किन्तु इसे बनाने की विधि में किंचित भिन्नता है। दही को मथकर उसमें शक्कर की चाशनी मिलाई जाती है। तत्पश्चात उस पर रबड़ी डाली जाती है। काजू एवं नारियल के टुकड़ों से सजाकर परोसा जाता है। यह लस्सी अनेक मिष्टान्न भंडारों में उपलब्ध है, किन्तु भुवनेश्वर के लिंगराज लस्सी की लस्सी सर्वोत्तम है।
बेल पना/ बेल शरबत
बेल पना भी ग्रीष्म ऋतु में उपलब्ध होता है। बेल फल के गूदे में पानी, काली मिर्च एवं गुड़ या शक्कर मिलाकर यह शीतल पेय बनाया जाता है। बैशाख मास के प्रथम दिवस पर ओडिया नूतन वर्ष होता है। इस अवसर पर बनाए जाने वाले बेल पना में बेल फल के गूदे में दूध, केला, शहद अथवा गुड़, काली मिर्च तथा छेना मिलाकर पेय तैयार किया जाता है। उसे काजू व नारियल के टुकड़ों से सजाकर परोसा जाता है। उमस भरे उष्ण वातावरण में यह पेय शीतलता प्रदान करता है।
उपरोक्त बताये ओडिशा का खाना, यहाँ की गलियों के सामान्य शाकाहारी व्यंजन हैं जिनमें अधिकतर मिष्टान्न वर्ष भर उपलब्ध होते हैं। ओडिशा के विभिन्न भागों के स्थानिक प्रभावों के कारण स्वाद एवं सजावट में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। किन्तु उन सब में एक समानता है, वे सभी अत्यंत स्वादिष्ट व चवदार हैं। साथ ही उनका मूल्य भी अधिक नहीं है। आप जब भी ओडिशा जाएँ, वहां की समृद्ध संस्कृति व धरोहर के अवश्य दर्शन करें, साथ ही वहां की गलियों के ये स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजन भी अवश्य चखें। इनके बिना ओडिशा का अनुभव पूर्ण नहीं हो सकता।
यह संस्करण अतिथि संस्करण है जिसे श्रुति मिश्रा ने इंडिटेल इंटर्नशिप आयोजन के अंतर्गत प्रेषित किया है।
श्रुति मिश्रा व्यावसायिक रूप से बैंक में कार्यरत हैं। उन्हे यात्राएं करना, विभिन्न स्थानों के समृद्ध धरोहरों के विषय में जानकारी एकत्र करना तथा विभिन्न स्थलों के विशेष व्यंजन चखना अत्यंत प्रिय हैं। उन्हे पुस्तकों से भी अत्यंत लगाव है। वे पाककला में भी विशेष रुचि रखती हैं। वर्तमान में वे बंगलुरु की निवासी हैं। उनका यह स्वप्न है कि वे समृद्ध धरोहर के धनी भारत की विस्तृत यात्रा करें तथा अपने अनुभवों पर आधारित एक पुस्तक भी प्रकाशित करें।
बहुत सुंदर जानकारी