पुरी, बंगाल की खाड़ी पर स्थित, भारत के पूर्वी तट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। भारत के चार दिशाओं पर स्थित चार धामों में से यह पूर्वी धाम है। आदि शंकराचार्यजी ने अपने ऋग्वेद मठ की स्थापना के लिए ओडिशा का चुनाव किया जिसके पश्चात शंकराचार्यजी की गद्दी यहाँ स्थापित की गयी।
पुरी वस्तुतः जगन्नाथ मंदिर के लिए जग प्रसिद्ध है जो इस पुरुषोत्तम क्षेत्र का मुकुट मणि है। जगन्नाथ मंदिर के विषय में एक संस्करण मैं पूर्व में ही लिख चुकी हूँ।
पुरी के अन्य दर्शनीय स्थल – मंदिर, तीर्थ, मठ, समुद्र तट
इस संस्करण में हम जगन्नाथ मंदिर के अतिरिक्त, ओडिशा के अन्य दर्शनीय स्थलों के विषय में चर्चा करेंगे।
पुरी के पंचतीर्थ
आप जब भी भारत के किसी प्राचीन तीर्थस्थल के दर्शन करने जायेंगे , वहां कम से कम एक पवित्र तीर्थ अर्थात एक जल-स्त्रोत अवश्य पायेंगे। ये जल-स्त्रोत सरोवर, जलकुंड, बावड़ियां, नदियाँ, यहाँ तक कि समुद्र तट भी हो सकते हैं। ये स्त्रोत भारत भूभाग के प्राचीनतम जीवंत तथा वन्दित भाग हैं। समुद्र तट के किनारे बसे पुरी में पांच महत्वपूर्ण एवं प्राचीन तीर्थ हैं जिनमें एक समुद्र भी है।
आईये हम पावन नगरी पुरी के इन पांच तीर्थों के विषय में जानने की चेष्टा करते हैं।
इंद्रद्युम्न सरोवर
कहा जाता है कि जब सम्राट इंद्रद्युम्न ने अश्वमेध यज्ञ किया था तब उन्होंने सहस्त्र गऊओं का दान किया था। मान्यताओं के अनुसार, उन्ही गायों ने अपने खुरों द्वारा यह सरोवर निर्मित किया है। इस सरोवर के जल का प्रयोग अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है जिनमें श्राद्ध संस्कार भी सम्मिलित है।
इस सरोवर के निकट नीलकंठ महादेव मंदिर है जिसके प्रवेश द्वार के दोनों ओर ओडिशा की ठेठ शैली में निर्मित दो विशाल सिंह रक्षण करते खड़े हैं।
मार्कंड सरोवर
मार्कंड सरोवर पुरी के पांच तीर्थों में से सर्वप्रथम तीर्थ है। इसे खोजना मेरे लिए सबसे कठिन कार्य था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इस सरोवर के दर्शन के लिए अधिक लोग नहीं आते हैं। सरोवर के मध्य में एक यज्ञ वेदी है। इस सरोवर का प्रयोग अंतिम क्रिया अथवा श्राद्ध संस्कारों के लिए किया जाता है। जगन्नाथ के नबकलेबर के पश्चात पुरोहित, जिन्हें यहाँ सेवायत कहा जाता है, स्नान के लिए यहाँ आते हैं।
मार्कंडेश्वर मंदिर
सरोवर के किनारे एक विशाल शिव मंदिर है जिसके भीतर एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर को मार्कंडेश्वर मंदिर कहते हैं। कलिंग तीर्थ शैली में निर्मित यह मंदिर अत्यंत सुन्दर है। इसे स्वच्छ भी रखा जाता तो इसकी सुन्दरता दुगुनी हो जाती।
इस मंदिर की स्थापना ऋषि मार्कंडेय द्वारा हुई थी। इसका अर्थ है कि यह मंदिर रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है। शिवलिंग पर चटकने का चिन्ह है जो उस समय उत्पन्न हुआ था जब भगवान् शिव अपने भक्त मार्कंडेय के रक्षण हेतु शिवलिंग से प्रकट हुए थे। ८वीं सदी में निर्मित यह मंदिर वर्तमान में सड़क की सतह से नीचे स्थित है। यह मंदिर इस पावन नगरी के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक है। यह नगर का रक्षण करते अष्टशंभू में से एक है।
शिवरात्रि, अशोकाष्टमी तथा शीतलाषष्ठी इस मंदिर के उत्सव हैं। मार्कंडेश्वर जगन्नाथ के चन्दन यात्रा में भी भाग लेते हैं। दुर्गा पूजा के समय भक्तगण यहाँ बालू से शिवलिंग की रचना करते हैं तथा उसे पूजते हैं।
कुरुक्षेत्र में भी मार्कंड नामक एक स्थान है। यहाँ भी एक मार्कंडेय मंदिर है।
सप्तमातृका मंदिर
मार्केंडेय सरोवर के किनारे स्थित सप्तमातृका मंदिर इस क्षेत्र के शक्ति आराधकों की विरासत है जिसे उड्डयान पीठ कहते हैं। इसका निर्माण केसरी वंश के राजा भीमकेसरी ने करवाया था। एक विशाल काली शिला पर नन्हे शिशुओं को गोद में लिए सात मातृकाओं की प्रतिमाएं उत्कीर्णित हैं। साथ ही वीरभद्र, शिव एवं गणेश की भी प्रतिमाएं हैं। जाजपुर में एक विशाल सप्तमातृका मंदिर के दर्शन के उपरान्त यह मेरा दूसरा सप्तमातृका मंदिर था जिसके मैंने दर्शन किये।
इन दोनों मंदिरों के मध्य एक लघु जगन्नाथ मंदिर है जो इस क्षेत्र में सर्वव्यापी है।
श्वेत गंगा सरोवर
जगन्नाथ मंदिर की ओर जाती संकरी गली में, गंगा मठ के समक्ष एक स्वच्छ बावड़ी स्थित है जिसके चारों ओर छोटे छोटे मंदिर हैं। इस सरोवर को पुरी में गंगा की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। यह सरोवर बारह मास जल से भरा रहता है।
सरोवर के चारों ओर स्थित छोटे छोटे मंदिरों में श्वेत माधब तथा मत्स्य माधब उल्लेखनीय हैं। नवग्रह एवं मुक्ति शीला की भी मूर्तियाँ हैं। यदि आप यहाँ प्रातःकाल के समय आयें तो आपको श्वेत गंगा सरोवर के चारों ओर स्थित मार्गों पर स्वादिष्ट रसगुल्ले मिलेंगे जिन्हें हलवाई वहीं ताजा बनाते हैं।
पुरी का नरेन्द्र सरोवर अथवा चन्दन तालाब
यह एक विशाल जलकुंड है जिसके मध्य में एक सुन्दर मंदिर है। यह मंदिर जगन्नाथ की चन्दन यात्रा के आयोजन स्थल के रूप में लोकप्रिय है। अक्षय तृतीया से आरम्भ होकर आगामी २१ दिनों तक जगन्नाथ यहाँ प्रत्येक संध्या के समय आते हैं। भू देवी एवं श्री देवी के संग जगन्नाथ की उत्सव मूर्तियों को यहाँ नौका लीला उत्सव के लिए लाया जाता है। यहाँ लाने से पूर्व उन्हें चन्दन के जल से स्नान कराया जाता है। इसी कारण इस यात्रा को चन्दन यात्रा कहा जाने लगा। वापिस लौटने से पूर्व, तीनों भगवान सरोवर के मध्य स्थित मंदिर में कुछ समय व्यतीत करते हैं।
नरेन्द्र सरोवर का निर्माण गंग वंश के राजा नरसिंह देव ने करवाया था तथा इसका नामकरण अपने गुरु के नाम पर किया था। कार्यात्मक रूप से इसका सम्बन्ध भी जगन्नाथ मंदिर से है। सरोवर के मध्य श्वेत रंग में एक छोटा सा मंदिर है। सरोवर के चारों ओर भी अनेक छोटे छोटे मंदिर हैं। सरोवर के जल पर पड़ते उनके प्रतिबिम्ब अत्यंत मनोहर प्रतीत होते हैं।
रोहिणी कुण्ड
यह कुण्ड जगन्नाथ मंदिर के भीतर स्थित है।
समुद्र को पांचवां व सर्वाधिक विशाल तीर्थ माना जाता है जिसे महोदधि कहा जाता है। स्वर्गद्वार क्षेत्र के समीप समुद्र की आरती की जाती है।
पुरी का समुद्र तट पर बालू द्वारा कलाकृतियाँ
आप सब ने सुदर्शन पट्टनायक के विषय में सुना ही होगा जो समुद्र तट पर, बालू का प्रयोग कर सामयिक विषयों पर आधारित सुन्दर कलाकृतियाँ बनाते हैं। मैंने गोवा के मिरामार समुद्र तट पर उनके द्वारा बनाई गयी कलाकृतियाँ देखी हैं। पुरी के समुद्र तट पर भी बालू का प्रयोग कर अनेक कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं। वहां ऐसी कलाकृतियाँ बनाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अतः आप उनसे प्रशिक्षण लेकर अपनी स्वयं की कलाकृति भी रच सकते हैं।
बालू से निर्मित ये अद्भुत कलाकृतियाँ इस क्षेत्र के सांस्कृतिक दृष्टी से धनी ताने-बाने को एक नवीन समकालीन आयाम प्रदान करती है। इस क्षेत्र में प्रचलित कला के अन्य रूपों में रघुराजपुर के पट्टचित्र तथा पिपली की एप्लीक कला सम्मिलित है जिन्हें आप देख एवं क्रय कर सकते हैं।
बाट मंगला
बाट मंगला अथवा वाट मंगला एक छोटा सा मंदिर है जो मंगला देवी को समर्पित है। पुरी नगरी में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम इसी मंदिर के दर्शन होते हैं। सड़क से ही देवी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
मंगला देवी कमल पर विराजमान वैष्णवी ठाकुर्नी का चतुर्भुज एवं त्रिनेत्री रूप हैं। उनके ऊपरी हस्तों में शंख एवं त्रिशूल हैं। जगन्नाथ की भूमि के प्रवेशद्वार पर वे एक रक्षक के समान विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ के दर्शन से पूर्व मंगला देवी के दर्शन आवश्यक हैं।
किवदंतियों के अनुसार सृष्टि की रचना से पूर्व ब्रह्माजी जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए धरती पर आये थे। मार्ग भटकने पर उन्हें बाट मंगला ने ही जगन्नाथजी तक पहुँचने का मार्ग बताया था। यह चैत्र मास के मंगलवार के दिन हुआ था। इसीलिए स्त्रियाँ इस दिन उस स्थान पर पूजा करती हैं जहां एक से अधिक मार्गों का संगम होता है।
साक्षी गोपाल भी ऐसा ही एक मंदिर है जहां पुरी नगरी में प्रवेश से पूर्व अपनी उपस्थिति दर्शाना आवश्यक है। मैं इस मंदिर के दर्शन करने से चूक गयी थी। अतः मैंने अनुमान लगाया है कि मुझे पुनः पुरी नगरी की यात्रा नियोजित करनी पड़ेगी। मैं एक बार फिर पुरी नगरी जाने के लिए आतुर हो रही हूँ।
प्राचीन अठारनाला
यह एक सूखी नदी मूसा के ऊपर स्थित प्राचीन सेतु का नाम है। इस सेतु की मूल जड़ें सम्राट इंद्रद्युम्न की कथा से निकलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस सेतु के निर्माण के लिए इंद्रद्युम्न के १८ पुत्रों की बलि चढ़ गयी थी। वर्तमान में उपस्थित सेतु १८वीं शताब्दी में बनाया गया था। अठार नाला का अर्थ है अठारह नालों अथवा प्रवाहों का जल। जगन्नाथ की यात्रा पर आधारित गानों में भी इस सेतु का उल्लेख किया गया है।
चक्र तीर्थ
चक्र तीर्थ मार्ग के अंत में चक्र तीर्थ स्थित है। भारत के ऐसे अनेक तीर्थस्थान जो भगवान विष्णु से सम्बंधित हैं, वहां चक्र तीर्थ अवश्य दृष्टिगोचर होता है। द्वारका एवं अयोध्या इसके उदहारण हैं। चक्र भगवान विष्णु के अस्त्रों में से एक है। इस चक्र तीर्थ में एक प्राचीन कुआं है। जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है। वे लक्ष्मी नरसिंह, अभय नरसिंह तथा चक्र नरसिंह के प्रतीक हैं। चक्र तीर्थ के समीप अनेक अच्छे होटल एवं विश्रामगृह हैं।
इस स्थान का मुख्य आकर्षण भूमि पर जड़ा एक चक्र है जिसे काली शिला में उत्कीर्णित किया गया है।
इस चक्र से सम्बंधित किवदंतियों के अनुसार, जिस दारु अथवा वृक्ष के तने द्वारा तीन बंधू-भगिनी की प्रतिमाओं को बनाया गया था, उस तने को जब समुद्र से लाया गया था, तब इस चक्र से ही उस का सर्वप्रथम स्पर्श हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार, किसी चक्रवात के समय जगन्नाथ मंदिर का नील चक्र यहाँ गिर गया था। यह कथा इस स्थान के पावित्र्य को दर्शाती है। इस स्थान के समीप रामकृष्ण मंदिर भी स्थित है।
चक्र नृसिंह
यह भगवान जगन्नाथ के श्वसुर अथवा देवी लक्ष्मी के पिताश्री अर्थात् समुद्र देव को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। यह मंदिर चक्र तीर्थ की ओर जाते मुख्य मार्ग पर स्थित है।
शंकराचार्य मठ तथा बिमला देवी मंदिर
आदि शंकराचार्य ने अपना प्रथम मठ, पूर्व दिशा में, पुरी में ही स्थापित किया था। इस मठ का निर्दिष्ट वेद ऋग्वेद है तथा मूल मंत्र ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ है। स्वामी पद्मपदाचार्य इस मठ के प्रथम प्रमुख थे। जब मैं यहाँ दर्शन के लिए गयी थी, उस समय शंकराचार्य जी पुरी से बाहर गए हुए थे। अतः मैं उनका आशीष नहीं ले पायी थी।
मठ में बिमला देवी को समर्पित एक बड़ा मंदिर है। उस समय मंदिर में केवल मैं इकलौती दर्शनार्थी उपस्थित थी। अतः इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी के संग मुझे शान्ति व आनंद के कुछ बहुमूल्य क्षण प्राप्त हुए थे।
बेड़ी हनुमान मंदिर
चक्र तीर्थ के समक्ष स्थित यह एक छोटा हनुमान मंदिर है जिसकी एक अत्यंत रोचक कथा है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ समुद्र के तट पर बैठे हनुमानजी इस पावन नगरी का रक्षण करते हैं। किन्तु एक समय, किसी सनक के अधीन, वे अयोध्या चले गए। उनकी अनुपस्थिति देख कर समुद्र के जल ने नगर में प्रवेश करने का साहस कर लिया। तभी से जगन्नाथजी ने हनुमान को बेड़ियों में बांधकर यहाँ बैठा दिया ताकि वे नगर का रक्षण कर सकें। इसी कारण उन्हें बेड़ी हनुमान कहते हैं। हनुमानजी को यहाँ बेड़ियों में बाँधा जाता है।
यह मंदिर छोटा तथा अपेक्षाकृत नवीन है।
गुंडिचा मंदिर
जगन्नाथ जी की वार्षिक रथ यात्रा में इसका अत्यंत महत्वपूर्ण भाग होने के कारण यह मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। इसका निर्माण गंग वंश के राजा नरसिंह देव द्वारा किया गया था। इस मंदिर का नामकरण भी रानी के नाम, गुंडिचा पर किया गया था। मूल मंदिर पूर्णतः लकड़ी द्वारा निर्मित था। जब जगन्नाथजी एवं उनके बंधु-भगिनी इस मंदिर में सप्ताह भर के लिए आते हैं तब यहाँ के क्रियाकलाप आकाश छूने लगते हैं।
यह एक विशाल मंदिर संकुल है। परिसर के भीतर पगडंडियाँ ऐसी बनायी गयी हैं कि आप एक मंदिर से दूसरे मंदिर तथा एक मूर्ति से दूसरे मूर्ति तक जाएँ तथा दान-दक्षिणा करें।
नृसिंह मंदिर
गुंडिचा मंदिर एवं इंद्रद्युम्न सरोवर के मध्य स्थित यह मंदिर नृसिंह के दो रूपों को समर्पित है। एक शांत तो दूसरा उग्र। इसे यज्ञ नृसिंह के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न से स्वयं एक काली शिला को उकेरकर इस मूर्ति को उत्कीर्णित किया था तथा इसके समक्ष अपना अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया था।
एक अन्य कथा कहती है कि जब काला पहाड़ इस क्षेत्र के सभी मंदिरों को ध्वस्त कर रहा था तब वह इस मंदिर को नष्ट नहीं कर पाया था।
मौसी का मंदिर
यह मंदिर देवी अर्धनाशिनी को समर्पित है जो पुरी में उपस्थित आठ शक्ति रूपों में से एक है। जगन्नाथ मंदिर एवं गुंडिचा मंदिर के ठीक मध्य, यह मंदिर ब ड़ा डंडा पर स्थित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि रथ यात्रा के समय जगन्नाथजी अपने बंधू-भगिनी के संग पोडपिठा खाने के लिए यहाँ कुछ क्षण ठहरते हैं।
कथाओं के अनुसार, एक समय महालक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ एवं श्री मंदिर को त्याग कर चली गयी थीं। जब दोनों बंधू उनकी खोज करने निकले तब सुभद्रा जी उनके स्थान पर देवी रूप में यहाँ स्थित थीं। इसी लिए यहाँ उन्हें मौसी माँ कहा जाता है।
पुरी का समुद्र तट
पावन नगरी पुरी का समुद्र तट पर्यटकों में अत्यंत लोकप्रिय है। वे यहाँ आकर समुद्र के जल में मन भरकर खेलते व आनंद उठाते हैं। मेरा गाइड भी मुझे जल में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। मैंने समुद्र तट का दर्शन अवश्य किया किन्तु जल में प्रवेश करने की मेरी उत्सुकता कदापि नहीं थी। गोवा के समुद्र तट के अत्यंत समीप रहने के कारण समुद्र के जल में अठखेलियाँ करना मेरे लिए नवीन नहीं है।
पुरी के लिए यात्रा सुझाव
- यह एक अत्यंत लोकप्रिय तीर्थस्थल है। अतः यहाँ सभी प्रकार के यात्रियों के लिए लगभग सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जैसे ठहरने की उत्तम सुविधाएं, उत्तम भोजन, आवश्यक जानकरियां इत्यादि।
- यह स्थान भारत के अन्य स्थानों से रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा सुनियोजित रूप से जुड़ा हुआ है। निकटतम विमानतल भुवनेश्वर है।
- अधिकतर मंदिरों के भीतर छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं है।
- प्रत्येक मंदिर एवं प्रत्येक मूर्ति के समक्ष आपके द्वारा दान-दक्षिणा की अपेक्षा रहती है।
- प्रत्येक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल एवं स्मारिकाओं के निकट उनसे सम्बंधित जानकारी दर्शाते सूचना पटल उपस्थित हैं। यह पर्यटकों के लिए अत्यंत सहायक होते हैं।
- पुरी में ठहरते हुए आप कोणार्क सूर्य मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं।
- ओडिशा के विशेष खाद्य पदार्थों का आस्वाद भी अवश्य लीजिये।
- पुरी यात्रा के अपने अनुभवों की स्मृति में यदि आप यहाँ की स्मारिकाएं क्रय करना चाहें तो यहाँ ऐसी स्मारिकाओं की अनेक दुकानें हैं।
अनुराधा जी,
विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुरी के विभिन्न दर्शनीय स्थानों की जानकारी प्रदान करता सुंदर आलेख । विशेषकर पुरी के प्राचीन पंचतीर्थो, प्रमुख मंदिरों तथा उनसे संबंधित किंवदंतियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई ।पुरी का विशाल समुद्र तट तो दर्शनीय है ही साथ ही इसके पर्याय बन चुके श्री सुदर्शन पटनायक द्वारा बालु से निर्मित कलाकृतियाँ भी इसमें चार चाँद लगाती हैं । सम सामयिक विषयों पर श्री सुदर्शन द्वारा बनाईं गईं अद्भुत कलाकृतियाँ देखते ही बनती हैं । इससे पूर्व एक आलेख में विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर के बारे में भी सुंदर जानकारी प्राप्त हुई थी और अब इस आलेख ने लगभग समूचे तीर्थ क्षेत्र की विशेषता से अवगत करा दिया ।
धन्यवाद !
धन्यवाद