श्री कांची कामाक्षी मंदिर- प्राचीन नगरी कांचीपुरम की आत्मा

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कांची कामाक्षी मंदिर, कांचीपुरम का हृदयस्थल! वस्तुतः संपूर्ण कांचीपुरम नगरी कामाक्षी मंदिर के चारों ओर बसी है। शिव एवं विष्णु जैसे देव- देवता भी कामाक्षी मंदिर को घेरे हुए तथा वहां से उत्सर्जित होते प्रतीत होते हैं। कामाक्षी मंदिर को प्रेम से कामाक्षी अम्मा मंदिर भी कहा जाता है।

कांची कामाक्षी मंदिर का गोपुरम
कांची कामाक्षी मंदिर का गोपुरम

कांची कामाक्षी मंदिर के एक ओर शिव कांची अर्थात् बड़ा कांची स्थित है। यहाँ कुछ विष्णु मंदिरों के साथ अनेक शिव मंदिर स्थापित हैं। कांची कामाक्षी मंदिर के दूसरी ओर विष्णु कांची अर्थात् छोटा कांची स्थित है जहां कई विशाल विष्णु मंदिर तथा कुछ शिव मंदिर भी स्थित हैं।

मान्यताओं के अनुसार यहाँ कामाक्षी मंदिर का अस्तित्व अनंत काल से है। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार, इस मंदिर के श्री चक्र की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ५वी. से ८वी. सदी के मध्य कभी हुई इस स्थापना का सही समय विवादास्पद हो सकता है। पुरातात्विक साहित्यों के अनुसार यह मंदिर लगभग १६०० वर्ष प्राचीन है। अर्थात् जब इस क्षेत्र पर पल्लव सम्राटों का अधिपत्य था एवं कांचीपुरम उनकी राजधानी थी।

आप किसी भी तथ्य को आधार मानें, अंततः कामाक्षी ही कांची की अधिष्ठात्री देवी है, इसमें कोई शंका नहीं है।

कांची कामाक्षी मंदिर की दंतकथाएं

कामाक्षी तीन शब्दों की संधि से बना है, का, मा एवं अक्ष। का अर्थात् सरस्वती, मा अर्थात् लक्ष्मी एवं अक्ष जिसका अर्थ है चक्षु अथवा आँखें। अर्थात् वह देवी, सरस्वती एवं लक्ष्मी जिनके चक्षु हैं।

कामाक्षी अम्मा मंदिर के मनोरम गोपुरम
कामाक्षी अम्मा मंदिर के मनोरम गोपुरम

कांची का कामाक्षी मंदिर भारत देश के ५१ शक्ति पीठों में से एक एवं अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति पीठ है। क्रोध से तपते शिव ने जब देवी सती की देह को उठाये तांडव किया था तब सती की नाभि यहाँ गिरी थी। इस स्थान को धरती के पूर्वार्ध का नाभिस्थान भी माना जाता है।

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ऐसा माना जाता है कि देवी ने असुर भंडासुर का वध करने के लिए कन्या स्वरुप अवतार लिया था एवं वे इसी मंदिर में बैठी थीं। इस मंदिर की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है। अर्थात् यह मूर्ति किसी के द्वारा बनायी गयी नहीं है, अपितु यह स्वयं अवतरित हुई थी। यह भी मान्यता है कि देवी इस मंदिर में तीन स्वरूपों में विराजती हैं, स्थूल, सूक्ष्म एवं शून्य।

कामाक्षी कथा

कांची कामाक्षी मंदिर के स्वर्णिम गोपुरम रात में
कांची कामाक्षी मंदिर के स्वर्णिम गोपुरम रात में

कथा के अनुसार, भगवान् शिव से विवाह की अभिलाषा लिए कामाक्षी अम्मा ने सुई की नोक के ऊपर एक पाँव पर खड़ी होकर तपस्या की थी। उनकी अभिलाषा पूर्ण हुई एवं फाल्गुन मास के उत्तर नक्षत्र में भगवान् शिव से उनका विवाह हुआ। यहाँ देवी कामाक्षी का सोने का एक चित्र भी था जिसमें उन्हें तपस्या की मुद्रा में एक पाँव पर खड़े चित्रित किया गया था। इस चित्र को बंगारू कामाक्षी भी कहा जाता है। मंदिर पर आक्रमण की आशंका में इस चित्र को तंजावुर स्थानांतरित कर दिया था। यह चित्र अब भी तंजावुर में है।

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श्रापित होने के पश्चात ऋषि दुर्वासा ने यहाँ तपस्या की थी। कामाक्षी को प्रसन्न कर उन्होंने श्राप से मुक्ति पायी, तत्पश्चात यहाँ श्री चक्र की स्थापना की। उन्होंने यहाँ सौभाग्य चिंतामणि कल्प की रचना की जिसे दुर्वासा संहिता भी कहा जाता है। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने कामाक्षी की उपासना की विस्तृत विधि निर्धारित की। आज भी यहाँ कामाक्षी की उपासना ठीक वैसे ही की जाती है जैसे उनके ग्रन्थ सौभाग्य चिंतामणि में दर्शाया गया है।

७ गोत्रों के पुजारी कांची कामाक्षी मंदिर में पूजा अर्चना कर सकते हैं। तथापि केवल २ गोत्रों के पुजारी ही यहाँ पूजा करते हैं। अन्य गोत्रों के पुजारी तंजावुर के कामाक्षी मंदिर में आराधना करते हैं। पुजारीजी को यहाँ शास्त्री कहा जाता है।

एक अन्य कथा

एक अन्य कथा के अनुसार देवी पहले यहाँ अपने रौद्र रूप में वास करती थी। उनके क्रोध की अग्नि ने गर्भगृह को अत्यंत ऊष्ण कर दिया था। तब आदि शंकराचार्य ने उनका क्रोध शांत किया था। उसके पश्चात देवी यहाँ करुणा रूप में बसती हैं। आदि शंकराचार्य ने इसी मंदिर में बैठकर सौंदर्य लहरी की रचना की थी।

कांची मठ के शंकरयाचार्य द्वारा रचित दुर्गा पंचरतन स्तोत्र - कामाक्षी मंदिर की दीवार पर
कांची मठ के शंकरयाचार्य द्वारा रचित दुर्गा पंचरतन स्तोत्र – कामाक्षी मंदिर की दीवार पर

कहा जाता है कि अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश के सम्राट एवं भगवान् राम के पिता दशरथ ने यहीं पुत्र कामेच्छा यज्ञ किया था। इसके पश्चात शीघ्र ही उन्हें ४ पुत्ररत्नों की प्राप्ति हुई थी। तभी से लोगों में यह मान्यता उत्पन्न हो गयी है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने पर निःसंतान दम्पति को संतान प्राप्ति होती है। देवी कामाक्षी इक्ष्वाकु वंश की कुलदेवी है। इस कथा का उल्लेख मार्कंडेय पुराण में किया गया है।

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एक किवदंती के अनुसार एक समय एक गूंगे भक्त को इसी मंदिर में स्वर का वरदान प्राप्त हुआ था। भावविभोर होकर उस गूंगे ने ५०० स्त्रोतों की रचना की जिसे मूक पंचशती के नाम से जाना जाता है।

कामाक्षी अम्मा मंदिर में कामाक्षी प्रतिमा

कांची कामाक्षी मंदिर के मुख्य गर्भगृह को गायत्री मंडप कहा जाता है। यहाँ कामाक्षी अम्मा पद्मासन की योग मुद्रा में बैठी हैं। उनका आसन पंच ब्रम्हासन है। कामाक्षी अम्मा की चार भुजाएं हैं। उनके निचले करों में गन्ना एवं पांच पुष्पों का गुच्छा है। वहीं ऊपरी दोनों हाथों में वे शस्त्र, पाश एवं अंकुश धारण किया हुए हैं। समीप ही एक तोता भी है जिस पर सहसा लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती। देवी की प्रतिमा को सदैव चटक रंगीन साड़ी एवं सम्पूर्ण श्रृंगार द्वारा अलंकृत रखा जाता है।

कामाक्षी अम्मा की प्रतिमा - कांची कामकोटी पीठ
कामाक्षी अम्मा की प्रतिमा – कांची कामकोटी पीठ

गर्भगृह के भीतर चांदी से लिपटा एक स्तंभ है। इस पर एक छिद्र है जो देवी की नाभि का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसी मान्यता है कि यही भक्तों को संतान प्राप्ति का वर प्रदान करता है।

श्री चक्र

देवी की प्रतिमा के सम्मुख योनी के आकार की एक संरचना है जिसके भीतर श्री चक्र बना हुआ है। इसी श्री चक्र की यहाँ पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार देवी इस श्री चक्र के शीर्ष बिंदु पर विराजती हैं। श्री चक्र के चारों ओर ८ वाग्देवियां उपस्थित हैं। इस मंदिर के श्री चक्र को सम्पूर्ण रूप से देख पाना संभव नहीं हो पाता क्योंकि यह सदैव गुलाबी रंग के ताजे पुष्पों की परतों से अलंकृत, अतः ढंका रहता है। मुझे बताया गया कि श्री चक्र एक शिला के ऊपर उकेरा गया है। यह वही स्थान है जहां आदि शंकराचार्य ने देवी पर सौंदर्य लहरी की रचना की थी|

गर्भगृह की ४ भित्तियों को ४ वेद एवं गायत्री मंडप के २४ स्तंभों को गायत्री छंद के २४ अक्षर माना जाता है।

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मुख्य प्रतिमा के बाईं ओर वराह एवं अरूप लक्ष्मी हैं। गर्भगृह के भीतर विशेष पूजा अर्चना के समय ही जाने दिया जाता हैं। तब आप अरूप लक्ष्मी को कुमकुम अर्पित कर सकते हैं एवं प्रसाद के रूप में कुमकुम अपने साथ घर ला सकते हैं। यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे कुमकुम के साथ देवी की चूड़ियाँ भी प्रसाद में मिलीं।

कामाक्षी की प्रतिमा के दायीं ओर विष्णु एवं स्वरुप लक्ष्मी की छवि है। मंदिर के गर्भगृह की ओर ले जाते द्वार को बिल्वद्वार कहा जाता है।

कामाक्षी मंदिर के उत्सव

प्रत्येक फाल्गुन मास में यहाँ भगवान् शिव एवं कामाक्षी का विवाहोत्सव मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह उत्सव लगभग फरवरी/मार्च के महीने में पड़ता है। भक्तों की मान्यता है कि विवाह की अभिलाषा रखते नवयुवकों एवं नवयुवतियों को इस उत्सव में अवश्य भाग लेना चाहिए। इस दिन देवी को नौका में बिठाकर घुमाया भी जाता है।

कामाक्षी अम्मा की उत्सव मूर्ति यात्रा पर
कामाक्षी अम्मा की उत्सव मूर्ति यात्रा पर

विवाह की अभिलाषा रखते नवयुवकों एवं नवयुवतियों को एक और मंदिर भी सहायता करता है, वह है द्वारका का रुक्मिणी मंदिर।

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भारत के अन्य देवी मंदिरों के सामान कांची कामाक्षी मंदिर में भी चैत्र एवं शारदा नवरात्री, दोनों धूमधाम से मनाया जाता है।

कामाक्षी मंदिर का ब्रम्होत्सव

जनवरी/फरवरी महीने में अर्थात् हिन्दू पञ्चांग के अनुसार माघ मास में वार्षिक ब्रम्होत्सव मनाया जाता है। इस कालावधि में हर दिन प्रातःकाल एवं संध्या के समय देवी की सवारी निकाली जाती है। उत्सव के चौथे दिवस कामाक्षी अम्मा सोने के शेर की सवारी करती हैं तथा नौवें दिन चांदी के रथ में सवार होकर बाहर निकलती हैं। पूर्णिमा के दिन पड़ते इस उत्सव के दसवें व अंतिम दिन, देवी एवं उनके भक्तगण मंदिर के जलकुण्ड में डुबकी लगाते हैं।

इसी कड़ी में प्रत्येक वर्ष, चैत्र मास के प्रथम दिवस कामाक्षी अम्मा अपने सोने के रथ में सवारी करती हैं। इसी प्रकार की रथ यात्रा हिन्दू पञ्चांग के हर महीने के पहले दिन आयोजित की जाती है। यदि वह शुक्रवार के दिन हो तो उस दिन पूर्णिमा अथवा अमावस्या होती है। कांची के कामाक्षी की इस रथ यात्रा के दर्शन की मेरी तीव्र इच्छा है। आशा है अपने इस जीवन काल में मुझे इसके दर्शन का अवसर अवश्य प्राप्त होगा।

कांचीपुरम के अन्य मंदिरों की रथ यात्रा कांची कामाक्षी मंदिर के चारों ओर घूमती है क्योंकि कामाक्षी देवी मुख्य आराध्य हैं।

कांची कामाक्षी मंदिर में देवी दर्शन

मैं जैसे ही कांचीपुरम पहुंची, निर्धारित अतिथिगृह में अपना समान रखा तथा कामाक्षी मंदिर की ओर चल पड़ी। दर्शनार्थियों की लंबी कतार थी। बिना हिचक के मैं भी उस कतार में खड़ी हो गयी। कतार धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। समय का सदुपयोग करते हुए मैं चारों ओर निहारने लगी। स्तंभों पर की गयी नक्काशी, प्रांगण में स्थित ऊंचा चमकता ध्वजस्तंभ, सुन्दर कांजीवरम साड़ियों एवं गहनों से अलंकृत स्त्रियाँ, सबने मुझे मोह लिया था। दर्शनार्थियों की कतार में धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए मैं मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर चुकी थी। कतार अब मंदिर की भित्तियों का बाहरी घेरा बनी हुई थी। कुछ समय पश्चात मुझे कामाक्षी अम्मा के प्रथम दर्शन प्राप्त हुए।

शिवलिंग को आलिंगन में लिए पारवती अम्मां
शिवलिंग को आलिंगन में लिए पारवती अम्मां

कामाक्षी अम्मा के प्रथम दर्शन मैं आजीवन नहीं भूलूंगी। कुमकुम लाल रंग की साड़ी में लिपटी कामाक्षी अम्मा की वह छवि मेरे मानसपटल में सदा के लिए बस गयी है। अम्मा के दर्शन कर मैं उनके समक्ष बैठ गयी एवं ललिता सहस्त्रनाम का उच्चारण किया। गर्भगृह के सामने लगभग ४० मिनट बैठकर मंदिर के चारों ओर निहारने के लिए वहां से बाहर आ गयी। जो पहला मंदिर मैंने देखा, उस छोटे से मंदिर के भीतर कामाक्षी मंदिर की उत्सव मूर्तियाँ रखी हुई थीं। कांची कामाक्षी की देदीप्यमान प्रतिमा के साथ सरस्वती एवं लक्ष्मी की प्रतिमाएं रखी हुई थीं। मंदिर के पाषाणी संरचना के परिप्रेक्ष्य में चटक रंगीन साड़ियाँ पहनी इन देवियों की आभा अत्यंत दर्शनीय थीं।

सरस्वती, लक्ष्मी एवं अन्य देव-देवियाँ

ललिता त्रिपुरसुन्दरी कांची कामाक्षी के एक स्तम्भ पर
ललिता त्रिपुरसुन्दरी कांची कामाक्षी के एक स्तम्भ पर

मुख्य मंदिर के चारों ओर अनेक छोटे मंदिर थे। इनमें से एक धर्मशास्ता अर्थात् अय्यप्पा स्वामी को समर्पित है। अय्यप्पा स्वामी के दोनों ओर उनकी दो पत्नियां, पूर्णा एवं पुष्कला विराजमान हैं। बिल्वाद्वार के ठीक बाहर अन्नपूर्णा देवी का एक छोटा मंदिर है जिसके भीतर अन्नपूर्णा देवी एक हाथ में भरा घड़ा एवं दूसरे हाथ में कलछी लिये विराजमान हैं। भक्तगण देवी के समक्ष “भिक्षान्न देहि” कहकर प्रार्थना करते हैं तथा अपेक्षा करते हैं कि देवी सदैव उनकी थाली भरी रखे। आपको यह जानकारी दे दूं कि अन्नपूर्णा काशी की अधिष्ठात्री देवी हैं।

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अष्टभुजा सरस्वती देवी यहाँ कामाक्षी अम्मा की मंत्रिणी के रूप में उपस्थित हैं। उन्हें मातंगी अथवा राजश्यामाला भी कहा जाता है। विद्या एवं ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखते भक्त इनकी आराधना करते हैं। एक मंदिर आदि शंकराचार्य को भी समर्पित है। इसके भीतर आठ ऋषियों के नाम गुदे हुए हैं- नारायण, ब्रम्हो, वसिष्ठ, शक्ति, पराशर, व्यास, शुक, गौडपा एवं गोविन्द भागवत। एक मंदिर यहाँ दुर्वासा मुनि का भी है।

स्वर्णिम गोपुरम

मैं मंदिर के चारों ओर घूमकर उसकी सुन्दरता निहारने लगी। वहां का अद्भुत दृश्य, चारों ओर से आती भजन व स्त्रोतों की ध्वनी एवं मुख्यतः वर्षों से पूजे जाने वाले इस सजीव मंदिर की पवित्र ऊर्जा, इन सब ने मुझे भावविभोर कर दिया था। मेरी तन्द्रा तब टूटी जब किसी ने ऊपर की ओर संकेत कर मुझे वहां देखने के लिया कहा। ऊपर जो दृश्य मैंने देखा उससे मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं।

कांची कामाक्षी मंदिर का स्वर्णिम गोपुर
कांची कामाक्षी मंदिर का स्वर्णिम गोपुर

मुख्य गर्भगृह के ऊपर सोने का एक भव्य गोपुरम था। यद्यपि चक चक चमकते इस गोपुरम का कुछ भाग आप बाहर स्थित मंदिर के कुण्ड के समीप से देख सकते हैं। तथापि इस गोपुरम का सर्वोत्तम दृश्य मंदिर के भीतर से प्राप्त होता है। मुख्य गर्भगृह के पृष्ठभाग में एक कांच की छत है। यहाँ से आप इस समृद्ध गोपुरम को इसकी सम्पूर्ण भव्यता से अलंकृत देख सकते हैं। कांची कामाक्षी मंदिर के अपने आगामी यात्रा के समय आप इस विलक्षण गोपुरम के दर्शन कर इसकी भव्यता में सराबोर होना ना भूलें।

कामाक्षी अम्मा की ममता की ऊष्मा ग्रहण करते मैंने कुछ और क्षण वहां बिताये। तत्पश्चात मंदिर से बाहर आकर वहां से मंदिर का अवलोकन करने लगी। चार दिशाओं में चार ऊंचे गोपुरम स्थापित हैं। मुख्य द्वार के सम्मुख एक ऊंचा ध्वजस्तंभ खड़ा है। वहीं मंदिर के पृष्ठभाग में पंचगंगा नामक एक कुण्ड है। रात्री के समय मंदिर का सुनहरा गोपुरम कुण्ड के जल में प्रतिबिम्ब प्रस्तुत कर रहा था तथा उसका झिलमिलाता व चमकता रूप मंत्रमुग्ध कर रहा था।

विष्णु मंदिर, अष्टदुर्गा मंदिर तथा मंडप

पंचगंगा कुण्ड के आसपास एक विष्णु मंदिर एवं एक अष्टदुर्गा मंदिर थे।

मुख्य मंदिर के चारों ओर कई छोटे-बड़े मंडप थे। खुले प्रांगणों में उत्कीर्णित शिला स्तंभों से भरे कांचीपुरम में यहाँ के लोगों का जीवन कैसा होगा! अपने चारों ओर निहारते हुए मैं उस दृश्य की कल्पना करने लगी। सम्पूर्ण कांचीपुरम नगरी में, मुख्यतः सभी बड़े मंदिरों के समीप, कई मंडप स्थापित थे। मेरे अनुमान से कांची कामाक्षी मंदिर परिसर में ही ८ ऐसे खुले प्रांगण थे।

रात्री हो चुकी थी। मैं मंदिर से बाहर आ गयी। किन्तु अपने आप को यह वचन देने के पश्चात, कि कांचीपुरम छोड़ने से पूर्व मंदिर के एक और दर्शन अवश्य करूंगी। अपनी कांचीपुरम यात्रा के अंतिम दिवस प्रातः मैंने अपना वचन पूर्ण किया। मंदिर आकर मैंने एक बार फिर ललिता सहस्त्रनाम का जाप किया, अरूप लक्ष्मी को कुमकुम अर्पित किया तथा कामाक्षी अम्मा का आभार माना कि उन्होंने मेरी कांचीपुरम यात्रा को कई रूपों में आशीर्वाद देकर उसे इतना सफल बनाया।

कुछ वर्षों पूर्व तक कांची के कामाक्षी मंदिर में कई हाथी हुआ करते थे। मंदिर के पुराने विडियो में आपने उन्हें अवश्य देखा होगा।

कांची कामाक्षी मंदिर के आसपास अन्य मंदिर

आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म में ६ पंथों की रचना की थी। ये शिव, शक्ति, विष्णु, गणेश, कार्तिकेय एवं सूर्य के अनुयायियों के लिए थे। कांची कामाक्षी मंदिर में मिली एक पुस्तक के अनुसार कांची कामाक्षी मंदिर के ठीक बाहर इन ६ देव-देवियों को समर्पित ६ मंदिर हैं। इनमें से ५ मंदिरों को ही मैं ढूंढ पायी।

कौशिकेश्वर मंदिर

कौशिकेश्वर मंदिर - कांचीपुरम का प्राचीनतम पाशान मंदिर
कौशिकेश्वर मंदिर – कांचीपुरम का प्राचीनतम पाशान मंदिर

कौशिकेश्वर मंदिर भगवान् शिव को समर्पित मंदिर है जो संभवतः कांचीपुरम का प्राचीनतम पाषाणी देवालय है। यह छोटा सा मंदिर अत्यंत मनोहारी है।

आदि कामाक्षी मंदिर

आदि कामाक्षी मंदिर शक्ति के अनुयायियों का देवालय है। यह भी एक छोटा सा मंदिर है।

कुमार कोट्टम मंदिर

कुमार कोट्टम मंदिर का गोपुर - कांचीपुरम
कुमार कोट्टम मंदिर का गोपुर – कांचीपुरम

कुमार कोट्टम देवालय कार्तिकेय का मंदिर है। कांची कामाक्षी के आसपास के मंदिरों में यह अपेक्षाकृत बड़ा मंदिर है। यह एक सुन्दर मंदिर है जिसके भीतर कार्तिकेय की खड़ी प्रतिमा है। यह मंदिर कांची कामाक्षी मंदिर एवं एकम्बरनाथ मंदिर के बीच इस प्रकार स्थापित है कि ये सोमस्कन्द की आकृति बनाते हैं।

संकुपाणी विनायक मंदिर

गणपति को समर्पित यह एक छोटा मंदिर है।

उलगनंदा पेरूमल मंदिर

उलगनंदा विष्णु मंदिर - कांचीपुरम
उलगनंदा विष्णु मंदिर – कांचीपुरम

कांची कामाक्षी मंदिर के समीप स्थित यह एक विष्णु मंदिर है। यहाँ विष्णु अपना एक पैर सीधा ऊपर उठाये, त्रिविक्रम रूप में स्थापित हैं। उनकी प्रतिमा विशाल है। विष्णु के इस रूप की छवि आप कांचीपुरम के अन्य विष्णु मंदिरों में भी देखेंगे।

यहाँ मिली पुस्तक में एक सूर्य मंदिर का भी उल्लेख था किन्तु मैं उसे ढूँढ नहीं पायी। मुझे एक महांकाल मंदिर अवश्य दिखाई दिया। यह शिव मंदिर है जहां राहू व केतु भी उनके साथ उपस्थित हैं।

एक आश्चर्यजनक तथ्य आपको बताना चाहूंगी कि यदि आप कामाक्षी मंदिर के आसपास स्थित इन मंदिरों के दर्शन करते हुए पदयात्रा करें तो आप वास्तव में कांची कामाक्षी मंदिर की परिक्रमा करते हैं। आपको यह भी बता दूं कि कामाक्षी मंदिर के आसपास हुए अत्यधिक निर्माण-कार्य के कारण यह परिक्रमा आसान नहीं है। यदि आप तमिल भाषा से अनभिज्ञ हैं तो इन मंदिरों को ढूँढने में कष्ट हो सकता है। इसलिए नहीं कि यहाँ के निवासी सहायता नहीं करते, बल्कि इसलिए कि यहाँ मंदिरों के नामों के उच्चारण भिन्न होने के कारण उन्हें समझने में कठिनाई होती है।

कांची कामाक्षी मंदिर के लिए यात्रा सुझाव

कांची कामाक्षी मंदिर का एक मंडप
कांची कामाक्षी मंदिर का एक मंडप

• कांची कामाक्षी मंदिर में दर्शन की समयावधि प्रातः ५:३० बजे से मध्यान्ह १२:३० बजे तक, तत्पश्चात सायं ४:०० बजे से रात्रि ८:३० बजे तक है। शुक्रवार के दिन यह रात्रि ९:३० बजे तक खुला रहता है तथा पूर्णिमा के दिनों में रात्रि १०:३० बजे तक खुला रहता है।
• मैंने इस मंदिर के दो बार दर्शन किये। एक बार प्रातः ८:०० बजे जब भक्तों की कतार नहीं थी। सायं ४:३० बजे जब मैं दर्शन के लिए आयी तब मुझे भक्तों की लंबी कतार में लगभग १ घंटे खड़े होना पड़ा।
• मंदिर में सभ्य एवं शोभायमान वस्त्र धारण करें। मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश करने से पूर्व, बाहर ही जूते-चप्पल रखने पड़ते हैं।
• मंदिर के आसपास स्थित छोटे मंदिरों के दर्शन हेतु कम से कम ४५ मिनट का समय अवश्य रखें।
• मंदिर के भीतर छायाचित्र लेना मना है। तथापि आप मंदिर के बाहर एवं ४ गोपुरम के भीतर छायाचित्र ले सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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    • धन्यवाद अभिषेक. कभी अवसर मिले तो कांचीपुरम अवश्य जाइएगा – बहुत आनंद आएगा

      • काँचीपुरम् कामाक्षी देवी की महिमा अवर्णनीय है, मैं मूर्तिपूजा का पक्षधर नहीं था। परन्तु विगत 3-4 वर्ष से लगभग प्रतिमाह माँ की करूणा मुझे ग्वालियर से कांचीपुरम् खींच ले जाती है। दैवीयकृपा से मुझे श्री शंकराचार्य द्वारा देवी का लगभग वैसा ही विग्रह प्रदान किया है, जैसा कि मंदिर में है।

        • आप बहुत भाग्यशाली हैं प्रवीण जी, जो कांची कामाक्षी की आप पर इतनी कृपा है। मुझे तो अभी एक ही बार माँ के दर्शन प्राप्त हुए हैं, लेकिन अविस्मर्णीय हैं।

  1. कांची का कामाक्षी मंदिर वाकई क्या अद्भुत वर्णन किया है आपने, ऐसा प्रतीत होता है कि स्वयं यात्रा कर रहे हो।
    हमारी धार्मिक स्थलों का दंतकथाओं से गहरा नाता है जैसे आपने लिखा (कथा के अनुसार, भगवान् शिव से विवाह की अभिलाषा लिए कामाक्षी अम्मा ने सुई की नोक के ऊपर एक पाँव पर खड़ी होकर तपस्या की थी। उनकी अभिलाषा पूर्ण हुई एवं फाल्गुन मास के उत्तर नक्षत्र में भगवान् शिव से उनका विवाह हुआ।) मतलब प्रेम त्याग व तपस्या की पराकाष्ठा को प्रतिबिंबित करता है और पवित्रता भी दर्शाता है।
    तीर्थ स्थल की यात्रा व वहाँ के उत्सव, संस्कार वाकई यात्रा के रोमांच को बढ़ा देते है व यह वर्णन पढ़कर भी वही रोमांच होता है। साधुवाद।।

    • धयवाद संजय जी. कांची कामाक्षी एक अत्यंत अध्यात्मिक मंदिर है, वहां जो अनुभूति होती है उसे शब्दों में पिरो पाना असंभव है, बस वहां की कथाएं कही जा सकती हैं। आप कांचीपुरम अवश्य जाइएगा, आनंद आएगा।

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