नेपाल Archives - Inditales https://inditales.com/hindi/category/विश्व-यात्रा/नेपाल/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Fri, 02 Aug 2024 05:44:30 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.4 नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-pad-bhraman/ https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-pad-bhraman/#respond Wed, 08 Jan 2025 02:30:21 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3745

हम प्रातः मुँहअँधेरे ही उठ गए थे। अथवा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में गूँजते कोलाहल ने हमें प्रातः शीघ्र जागने के लिए बाध्य कर दिया था। हमें चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण या पैदल सफारी करने के लिए जाना था। हम जिस ‘बरही वन अतिथिगृह’ (जंगल लॉज) में ठहरे थे, […]

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हम प्रातः मुँहअँधेरे ही उठ गए थे। अथवा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में गूँजते कोलाहल ने हमें प्रातः शीघ्र जागने के लिए बाध्य कर दिया था। हमें चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण या पैदल सफारी करने के लिए जाना था। हम जिस ‘बरही वन अतिथिगृह’ (जंगल लॉज) में ठहरे थे, उसके एक ओर से राप्ती नदी बहती है। उस राप्ती नदी के दूसरी ओर चितवन राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। राप्ती नदी पार करने के लिए हम एक नौका में बैठ गए। नदी पर कोहरे की एक मोटी चादर बिछी थी जो शनैः शनैः ऊपर उठ रही थी। इस कोहरे से भरे वातावरण में चारों ओर का परिदृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो अपनी परतों में अनेक रहस्य छुपाये हुए है। हमारी नौका धीरे धीरे दूसरे तट की ओर बढ़ रही थी। कुछ अन्य पर्यटक नौकाएं भी हमारे साथ हो लिये। अकस्मात सभी नौकाओं के नाविकों ने सावधान होकर नौकाओं की गति धीमी कर दी। हमने देखा कि वे एक गेंडे को नदी पार करने में प्राथमिकता दे रहे थे। नदी पार कर वह गेंडा वन में प्रवेश कर गया।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान नेपाल
चितवन राष्ट्रीय उद्यान नेपाल

जिस स्थान से गेंडे ने वन में प्रवेश किया था, हमारे नाविक ने नौका को उस बिन्दु के समीप ही अँकोड़े से बांध दी। गेंडे का स्मरण कर हम नौका से उतरने के लिए भय से हिचकिचाने लगे। किन्तु हमारे सफारी परिदर्शक ने हमें धीर बंधाया, तब जाकर हमने नौका से उतरकर वन में प्रवेश किया।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण

हम जंगल सफारी कर रहे थे किन्तु पदभ्रमण करते हुए। इससे पूर्व हमने जीप तथा नौका में बैठकर वन का सुरक्षित अवलोकन किया था। अब हम वन के भीतर पैदल भ्रमण करने जा रहे थे।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान की भोर
चितवन राष्ट्रीय उद्यान की भोर

हमें अब भी स्मरण था कि वह गेंडा यहीं से वन के भीतर गया था। यह तथ्य हमें उत्सुकता के साथ भयभीत भी कर रहा था। हमारा परिदर्शक हमें अनवरत स्मरण कर रहा था कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में एक नहीं, अपितु ६०० से अधिक गेंडे हैं। वे हमारे चारों ओर उपस्थित हैं, चाहे हम उन्हे देख पायें अथवा नहीं। उन्होंने हमें आश्वस्त कराया कि गेंडों को मानवों में रुचि नहीं होती। वे तब तक आक्रमण नहीं करते जब तक कि उन्हे हमारी ओर से संकट का आभास ना हो। मैं विचार करने लगी कि गेंडों को यह कैसे ज्ञात होगा कि यहाँ हमें उनसे भय प्रतीत हो रहा है तथा उन्हे हमसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि उन्हे यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है कि मैं उसी प्रजाति का भाग हूँ जो उनका अप्राकृतिक व उनकी प्रजाति के उन्मूलन की सीमा तक वध करने के लिए जाना जाता है।

चितवन का प्राकृतिक सौन्दर्य

जैसे ही हमने पदभ्रमण आरंभ किया। हमारा भय शनैः शनैः लुप्त होने लगा। प्रकृति की सुंदरता नयनों में बसने लगी थी। प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद हृदय में भय का स्थान ग्रहण करने लगा था। वन में छाया कोहरा अब विरल होने लगा था। वन में अनेक छोटे-बड़े सरोवर दृष्टिगोचर होने लगे थे जिनके जल पर ऊँचे ऊँचे वृक्षों का प्रतिबिंब पड़ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोहरे की परत हटाकर सरोवर शनैः शनैः स्वयं को प्रकट करने का प्रयास कर रहा है।

भूमि पर बिखरे सूखे पत्तों पर चलने के कारण सरसराहट हो रही थी। हमारे मस्तिष्क में शंका उठ रही थी, यदि आसपास स्थित गेंडों अथवा उनके अन्य वन्य प्राणी मित्रों ने यह ध्वनि सुनकर कोई अवांछित प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी तो क्या होगा!

चारों ओर अनुपम परिदृश्य था। ऊँचे ऊँचे वृक्ष थे जिनके नीचे सूखी पत्तियों की भूरी चादर बिछी हुई थी। अनेक स्थानों पर ऊँचे वृक्षों की शाखाएं आपस में मिलकर मंडप बना रही थीं, मानो हमारा स्वागत कर रही हों।

वन भ्रमण में हमारा नेतृत्व करने वाला साथी, साकेत लघु वन प्राणियों की ओर हमारा लक्ष्य केंद्रित कर रहा था। मुझे किंचित क्षोभ हुआ कि ये लघु प्राणी बिना किसी संकेत के उसे इतनी सुगमता से कैसे दृष्टिगोचर हो रहे थे! मुझे तो उसके द्वारा संकेतिक दिशा में गहनता से देखने के पश्चात भी प्राणियों को ढूँढने में समय लग रहा था। किन्तु जब हमने वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हमारे पंख वाले मित्रों को देखना आरंभ किया तब मैं भी साकेत को चुनौती देने में सक्षम हो गयी थी। हमने अनेक प्रकार के रंगबिरंगे वन्य पक्षियों को देखा।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में हमारे द्वारा देखे वन्य पक्षियों पर मैंने एक विस्तृत संस्करण प्रकाशित किया है। आप इसे अवश्य पढ़ें: चितवन राष्ट्रीय उद्यान के वन्य पक्षी

वृक्षों की शाखाओं पर विराजमान पक्षी पत्तियों के पीछे छुप कर बैठे थे। हम उन्हे ढूंढ तो पा रहे थे किन्तु उनका स्पष्ट छायाचित्र ले पाना असंभव हो रहा था। मैंने छायाचित्र लेने का प्रयत्न करना ही छोड़ दिया। उसके स्थान पर मैंने पक्षियों के विविध रंगों एवं उनके हाव-भाव का आनंद उठाना आरंभ किया। पक्षियों को चहचहाते तथा एक शाखा से दूसरी शाखा पर उड़ते देखने में मैं रम गयी थी। एक क्षण ऐसा आया जब मुझे चटक लाल रंग का एक पक्षी दृष्टिगोचर हुआ। उसे देख मेरे हाथों ने सहज ही कैमरा उठा लिया। हमने कुछ क्षण लुका-छिपी का खेल खेला। अंततः मैं उसका चित्र लेने में सफल हो पायी तथा अपने दल में पुनः सम्मिलित हो गयी।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवन के विविध चिन्ह

साकेत ने हमें भूमि पर चींटियों के घर, सांप की बाँबी आदि दिखाई। उन्होंने हमें अनेक वन्य प्राणियों के पदचिन्ह दिखाए। वे ना केवल यह जानते थे कि वो किस प्राणी के पदचिन्ह हैं, अपितु वे यह भी जानते थे कि वो प्राणी किस आयुवर्ग का हो सकता है। अद्भुत!

हमने अनेक प्रकार व आकार की मकड़ियाँ अपने जालों में लटकती देखीं। उनके जाले ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे शाखाओं को जोड़ने की चेष्टा कर रही हों। कई कई स्थानों पर वे वृक्षों को जोड़ने का प्रयास करती प्रतीत हुईं।

प्रातः लगभग ८ बजे हम जलपान के लिए रुके। हमारा वन मार्गदर्शक हमें एक खुले स्थान पर ले गया जहाँ एक वृक्ष आड़ा पड़ा हुआ था। उस पर बैठकर हमने साथ लिया हुआ जलपान किया। सम्पूर्ण परिस्थिति हमें गदगद कर रही थी। ऊँचे ऊँचे वृक्षों से परिपूर्ण सघन वन के मध्य एक मुक्ताकाश स्थल, बैठक के रूप में गिरा हुआ विशाल वृक्ष, वन का प्राकृतिक वातावरण तथा प्रातःकालीन शीतल वातावरण में बैठकर जलपान करना, सब कुछ अत्यंत अद्भुत था।

जलपान कर हम जैसे ही उठे, एक मादा गेंडा अपने शावक के साथ हमारे समक्ष उपस्थित हो गयी, केवल  लगभग १०० मीटर दूर!

हम सब एक वृक्ष के पीछे छुप गए तथा मन ही मन प्रार्थना करने लगे कि हम उसकी दृष्टि में ना आयें, ना ही उसके मार्ग में। एक ही धरातल पर, इतने समीप से इस विशाल प्राणी को देखना अत्यंत रोमांचकारी था, भले ही हम छुपकर देख रहे थे। इससे पूर्व मैंने जीप अथवा हाथी की पीठ पर बैठ कर ही गेंडों के दर्शन किये थे।

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कांचीरूवा के दर्शन

चितवन के वन में पदभ्रमण का सर्वाधिक रोमांचकारी वह क्षण था जब हमने अकस्मात ही कांचीरूवा नामक एक गेंडे का कंकाल देखा। एक कान कटा होने के कारण उसे इस नाम से बुलाया जाता था।

कंकाल के विभिन्न भाग यहाँ-वहाँ बिखरे हुए थे। जब हम उसके शीष के निकट गए तब हमें आभास हुआ कि गेंडा वास्तव में कितना विशालकाय प्राणी है। उसकी लंबी लंबी पसलियाँ शाखाओं सी प्रतीत हो रही थीं। उसके दाँत का आकार मानवी चरण का लगभग चौथाई भाग जितना था।

यदि यहाँ जन्तु विज्ञान का कोई विद्यार्थी आ जाता तो इस कंकाल का अध्ययन करते घंटों व्यतीत कर सकता था। चमड़ी व माँसपेशियाँ विहीन होने के पश्चात भी उस कंकाल का विशालकाय आकार मुझे स्तंभित कर रहा था।

वापिस आकार जब मैं उस कंकाल के छायाचित्र देख रही थी तब मुझे वन के अनकहित नियम का साक्षात्कार हुआ। जब तक वह गेंडा जीवित था, उसने कदाचित इस वन में राज किया होगा। मृत्यु के पश्चात वही गेंडा अपने साथी पशुओं का भोजन बना होगा तथा हम जैसे पर्यटकों के लिए प्रदर्शनीय वस्तु। हमें बताया गया कि वन में प्राणियों की मृत्यु होती रहती है किन्तु हमें अन्य कोई कंकाल नहीं दिखा।

ध्यान से देखें

पदभ्रमण करते हुए हम आगे बढ़े। हमने अनेक बहुरंगी तितलियाँ एवं कीट देखे। किन्तु उन्हे देखने के लिए सम्पूर्ण ध्यान की आवश्यकता होती है। गहरे हरे रंग के पत्ते पर बैठे हरे रंग के टिड्डे को देखना, सूखी पत्तियों के बीच छोटे छोटे सुंदर कीटों को देखना, पत्तों के झुरमुट में बैठी तितली को ढूँढना, सब अत्यंत मनोरंजक था। मार्ग में एक सरोवर के पास भ्रमण करते हुए हमने जल के ऊपर लटकती शाखा पर बैठे एक नीलकंठ को देखा।

हमने मोटी बेलें देखी जिन पर बड़े बड़े त्रिकोणाकार कांटे थे। उनका आकार लगभग हमारे हाथों जितना था। कदाचित प्रकृति ने ही उन्हे इन काँटों के द्वारा सक्षम बनाया है कि वे स्वयं का संरक्षण कर सकें।

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यहाँ-वहाँ पड़े मृत वृक्ष के तनों पर भिन्न भिन्न प्रकार के कुकुरमुत्ते उगे हुए थे। क्या वे सभी प्रजातियाँ मानवी उपभोग के लिए सुरक्षित हैं? क्या गेंडे जैसे वन के शाकाहारी प्राणी भी उन्हे खाते होंगे? ऐसे अनेक विचार मस्तिष्क में उभरने लगे। अपने चारों ओर के वनीय प्रदेश के जटिल पारिस्थितिकी तंत्र को जानने व समझने के प्रयास में मस्तिष्क में उभरते प्रश्न श्रंखला में से ये भी कुछ प्रश्न थे।

सेमल के लाल पुष्प

भूमि पर गिरे सेमल के लाल पुष्प बेरंग बालुई भूमि पर रंग भर रहे थे। किन्तु आज का सर्वोत्तम शोध था, छोटे छोटे नारंगी रंग के गोले। उन्हे स्पर्श करते ही हमारे हाथ नारंगी हो रहे थे। गोले हाथों में नारंगी रंग का चूर्ण छोड़ रहे थे। हमें यह स्पष्ट आभास हो रहा था कि ये साधारण गोले नहीं हैं। इसका कुछ ना कुछ महत्वपूर्ण उपयोग अवश्य ही होगा। किन्तु क्या? तभी हमारे वन परिदर्शक ने हमें जानकारी दी कि स्थानीय भाषा में इसे सिंधुरे कहा जाता है। हमारे मस्तिष्क में बिजली कौंधी। इसे नेपाली, हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में भी तो यही कहा जाता है!

वन में पर्याप्त पदभ्रमण करने के पश्चात हम अपने बरही जंगल लॉज में पहुँचे। हमने उनके पुस्तकालय में इस नारंगी रंग के फल के विषय में जानकारी ढूँढी। हमें एक रोचक जानकारी प्राप्त हुई कि प्राचीन काल में इस फल से प्राप्त प्राकृतिक रंग से रेशम को रंगा जाता था।

चितवन वन में लगभग ४-५ घंटे पदभ्रमण कर तथा वन के विविध रंगों व गंधों में सराबोर होने के पश्चात हम वापिस राप्ती नदी के तट पर पहुँचे। वहाँ वृक्ष के एकल तने से निर्मित एक संकरी नौका हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। नौका पर चढ़ने से पूर्व मैंने पीछे मुड़कर इस वन को पुनः निहारा। तत्पश्चात नदी के तट को देखा। मैंने देखा कि नदी के भीतर भी उसका एक स्वयं का वन है। इसके जल के ऊपर तथा भीतर अनेक प्रकार के जलीय पौधे तैर रहे थे मानो एक भिन्न वन बना रहे हों।

मुझे चितवन वन के भीतर किया इस पदभ्रमण का दीर्घ काल तक स्मरण रहेगा। एक ओर शांत व शीतल प्राकृतिक वातावरण था, तो दूसरी ओर अधीरता थी। मन में अनेक प्रकार के भाव उठ रहे थे। कभी विस्मय तो कभी शांति, कभी आनंद तो कभी भय। साथ ही भरपूर्ण शारीरिक व्यायाम।

नेपाल की यात्रा नियोजित करने से पूर्ण मेरे इन यात्रा संस्करणों को अवश्य पढ़ें जो आपको नेपाल, विशेषतः काठमांडू के आसपास के रोचक व अछूते दर्शनीय स्थलों के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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नेपाल के मनभावन पक्षी- चितवन राष्ट्रीय उद्यान https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-ke-pakshi/ https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-ke-pakshi/#respond Wed, 23 Oct 2024 02:30:24 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3705

मुझे पक्षियों को देखना, उनकी चहचहाहट सुनना सदा से प्रिय था। मेरे जीवन में एक काल ऐसा था जब मैं पक्षियों की विविध प्रजातियों से अनभिज्ञ थी। अपने आसपास के पक्षियों को देखकर प्रसन्न हो जाती थी। जैसे जैसे मैंने विविध नभचरों को जानना एवं पहचानना आरंभ किया, मेरे आनंद में कई गुना वृद्धि हो […]

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मुझे पक्षियों को देखना, उनकी चहचहाहट सुनना सदा से प्रिय था। मेरे जीवन में एक काल ऐसा था जब मैं पक्षियों की विविध प्रजातियों से अनभिज्ञ थी। अपने आसपास के पक्षियों को देखकर प्रसन्न हो जाती थी। जैसे जैसे मैंने विविध नभचरों को जानना एवं पहचानना आरंभ किया, मेरे आनंद में कई गुना वृद्धि हो गयी। वनीय प्रदेशों में जाकर उन्हे ढूँढना, उनकी विविध चंचल चालों का आनंद उठाना, उनकी छवियों को अपने कैमरा में उतारना, मुझे लुभाने लगा है। वनीय क्षेत्रों की मेरी गत कुछ यात्राओं में मैंने अपने खग मित्रों के विषय में बहुत कुछ सीखा। वनों में पदभ्रमण करते हुए मैंने इन लुभावने प्राणियों के दुर्लभ दर्शन किये, कुछ दुर्लभ छायाचित्र लिए।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी
चितवन राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी

नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में भी मैंने इन पक्षियों के दर्शन करने के उद्देश्य से पदभ्रमण किया था। वहाँ मैंने विविध मनमोहक पक्षियों के दर्शन किए। अनेक पक्षियों ने मुझे उनके चित्र लेने के अवसर भी प्रदान किए जो सहसा दुर्लभ होते हैं। आईये, उन्ही चित्रों के माध्यम से, नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान के इन चंचल प्राणियों से आपकी भेंट कराती हूँ।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान के लुभावने पक्षी

नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित चितवन राष्ट्रीय उद्यान के भ्रमण के लिए मैं वहाँ के बरही वन विश्राम गृह (Barahi Jungle Lodge) में ठहरी थी। मेरा पक्षी दर्शन वहीं से आरंभ हो गया था। हमने विश्राम गृह में हमारे कक्ष के बाहर अनेक सुंदर पक्षियों को विचरण करते देखा जिन्होंने हमारी यात्रा की सम्पूर्ण थकान मिटा दी थी। राप्ती नदी के तट पर सुस्ताते मगरमच्छों एवं घड़ियालों के मध्य विविध पक्षी यत्र-तत्र फुदक रहे थे। अपनी नौका सफारी में भी हमने अनेक पक्षी देखे। उनमें से अनेक पक्षी गेंडों की पीठ पर बैठे भ्रमण का आनंद ले रहे थे। हाथी की सवारी के लिए जाते हुए भी हमने कई पक्षियों के दर्शन किए। वन में पदभ्रमण करते हुए हमें उनके सर्वोत्तम दर्शन उपलब्ध हुए।

चहचहाते पक्षी

जब हम चितवन पहुँचे, संध्या हो चुकी थी। अतः हमारे इन नभचर मित्रों से हमारी प्रथम भेंट प्रातः ही हो सकी। वो हमारे लिए अद्वितीय क्षण थे जब पक्षियों की चहचहाहट से हमारी प्रातःकाल आरंभ हुई। पक्षियों के कलरव ने हमें प्रातः शीघ्र ही उठा दिया था। बरही विश्राम गृह के निकट स्थित नदी सघन कोहरे से ढँकी हुई थी। जब हम हाथी की पीठ पर चढ़कर भ्रमण करने निकले, कोहरा शनैः शनैः छँटने लगा था। नदी के तट पर विचरण करते राजबक अथवा सारस जैसे बड़े पक्षी दृष्टिगोचर होने लगे थे। किन्तु हमारे कान अनेक पक्षियों की चहचहाहट से गूंज रहे थे जो अब भी हमारी आँखों से ओझल थे।

बुलबुल
बुलबुल

जिस पक्षी के हमने सर्वप्रथम स्पष्ट दर्शन किए, वह था, सेमल के वृक्ष के ऊपर बैठा घोंघिल अथवा Asian openbill Stork जिसे एशियाई चोंचखुला भी कहते हैं। सेमल का यह वृक्ष नारंगी पुष्पों से भरा हुआ था। उस पर एक भी पत्ती नहीं थी। वृक्ष की एक सूखी शाखा पर बैठे इस पक्षी ने मेरे कॅमेरे को प्रसन्न कर दिया था। बिना किसी अवधान के उसने इस पक्षी के अनेक चित्र लिए।

हमने कुछ सारसों को राप्ती नदी के तट पर भी कलोल करते देखा।

प्रातः जलपान के पश्चात हमने राप्ती नदी पार की। जीप पर सवार होकर चितवन राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी के लिए चल दिए। मार्ग में हमने सर्वप्रथम जंगल मैना तथा बुलबुल जैसे कुछ सामान्य पक्षी देखे।

रिऊ नदी के तट

मार्ग में हम रिऊ नदी के तट पर पहुँचे। यह एक संकरी नदी है। इसके चट्टानी तल पर एक छोटा सा पक्षी टहल रहा था। हमने उससे भी भेंट की।

सेमल के पेड़ पर पक्षी
https://www.inditales.com/wp-content/uploads/2017/05/chitwan-bird-asian-openbill-stork.jpg

कुछ काल पश्चात हमें एनहिंगा अथवा Darter पक्षी दृष्टिगोचर हुआ। ये मछलियाँ खाते हैं। लंबी ग्रीवा के कारण इसे Snake Bird भी कहते हैं।

संध्या होते होते सभी लजीले पक्षियों ने वृक्ष की सूखी शाखाओं पर प्रकट होना आरंभ कर दिया। हमें अनेक पक्षियों के दर्शन हुए, जैसे:

मधुया (Grey-headed Fish Eagle)

पुंडरीकाक्ष अथवा White-eyed Buzzard

शिकरा पक्षी

हमने लाल छाती का एक टुइयाँ तोता (Red-breasted Parakeet) देखा जो सेमल के नारंगी पुष्प के साथ खेल रहा था।

जंगली मैना
जंगली मैना

सम्पूर्ण मार्ग में हमने अनेक मोर देखे। कुछ ठाठ से वृक्षों की शाखाओं पर विराजमान थे तो कुछ धरती पर विचरण कर रहे थे। वहीं कुछ मोर अपने मनमोहक नृत्य से मोरनियों को मोह रहे थे।

ऊँचे हाथी घास पर स्वयं को संभालता श्वेत पूंछ का एक गोजा देखा जिसे White-tailed Stonechat भी कहते हैं।

पदभ्रमण सफारी

दूसरे दिवस हम पदभ्रमण करते हुए वन की सफारी करने निकले। हमने एक नीलकंठ को देखा जो नदी के जल के ऊपर लटकती एक शाखा पर बैठकर, नीचे जल के भीतर तैरती मछलियों को पकड़ने की तैयारी कर रहा था।

लाल बुलबुल
लाल बुलबुल

वन में यूँ तो अनेक पक्षी दृष्टिगोचर होते हैं लेकिन कॅमेरे में उनके चित्र ले पाना लगभग असंभव होता है। पक्षियों के छायाचित्र लेने के लिए मार्ग के दोनों ओर के वृक्ष सर्वोत्तम स्थल होते हैं। इसके अतिरिक्त, मैदानी क्षेत्रों में स्थित वृक्षों की सूखी शाखाएं भी चित्रीकरण के लिए उत्तम स्थल होते हैं।

हमें एक वृक्ष के तने पर बैठा धूसर नीले रंग का एक सुंदर पक्षी दिखा जिसकी चोंच नारंगी रंग की थी। मैं अपने कॅमेरे से उसका एक छायाचित्र ही ले पायी थी कि वह वन में कहीं लुप्त हो गया। वही चित्र अब मेरे लिए अमूल्य हो गया है।

अकस्मात ही, ना जाने कहाँ से, एक स्वर्गपक्षी हमारे समक्ष प्रकट हो गया तथा हम उसकी ओर अपने कॅमेरे घुमाएं, उससे पूर्व ही वह अकस्मात कहीं लुप्त भी हो गया।

संध्याकालीन नौका सफारी

संध्याकालीन नौका सफारी में अंततः हमें बतखों (Rhodesian Ducks) को देखने का सुअवसर प्राप्त हो ही गया। जब से हम चितवन राष्ट्रीय उद्यान आए थे, इनका किटकिटाना अनवरत सुन रहे थे किन्तु उन्हे अब तक देख नहीं पाये थे। ये प्रवासी नभचर हैं जो प्रत्येक वर्ष हिमालयीन क्षेत्रों से यहाँ आते हैं।

तोता
तोता

अन्य प्रजातियों की बतखें भी ऊँचे स्वर में किटकिटाते हुए यहाँ-वहाँ विचरण कर रही थीं। उन्हे देख मुझे एक कहावत का स्मरण हुआ, मछली बाजार। मुझे साधित हुआ कि नदी ही तो उनका मछली बाजार है। कुछ क्षणों पश्चात मैंने कुछ स्थानीय नेपालियों को देखा जो छोटे छोटे जालों में मछलियों को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान के बहुरंगी पक्षी

मैंने बरही वन विश्राम गृह के समीप ही अनेक बहुरंगी पक्षियों को देखा। जैसे:

मोरनी
मोरनी

पीले रंग की एक छोटी सी पक्षी, जिसकी पीठ पर धारियाँ थीं। वह सोबिगा पक्षी था जिसे अंग्रेजी में Common Lora कहते हैं। एक वृक्ष पर कुछ क्षण शांत बैठकर उसने मुझे उसका सुंदर छायाचित्र लेने का पूर्ण अवसर प्रदान किया।

हरे हरे पत्तों के मध्य बैठा एक हरे रंग का पक्षी मुझे इतना भ्रमित कर गया कि मैं उसका छायाचित्र लगभग मिटाने ही वाली थी, यह सोचकर कि यहाँ कोई पक्षी नहीं है। समय रहते मुझे आभास हो गया कि यह तो वृक्ष की एक शाखा में आनंद से बैठा बसंत (Lineated Barbet) है।

हमें एक छोटा सा गोलाकार पक्षी दिखाई दिया जिसे गवैया अथवा फुदकी (warbler) कहते हैं। उसकी क्रीड़ाओं को देख आपको यह आभास हो जाएगा कि ‘फुदकना’, यह शब्द कहाँ से आया होगा!

चितवन राष्ट्रीय उद्यान अवलोकन के अंतिम चरण में हम अपना भ्रमण समाप्त करने ही वाले थे कि हमारे समक्ष कुछ गिद्ध प्रकट हो गए। मानो हमें यह आभास करा रहे हों कि यहाँ हम भी हैं! सही भी था! इन ३-४ दिवसों में हमने उन्हे देखा ही नहीं था!

इस भ्रमण में अंतिम दर्शन हुए, राप्ती नदी के ऊपर उड़ते बगुलों के।

वनाग्नि एवं चितवन राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी

हमने जब जब भी वन्य जीवन दर्शन के लिए यात्राएँ  की हैं, इन नभचरों से भेंट अवश्य हुई है। किन्तु यह यात्रा विशेष है क्योंकि हमें इन खगों के विचित्र हावभावों को देखने का सौभाग्य मिला। वन के एक भाग में ऊँचे हाथी घास को जलाया जा रहा था ताकि उनके स्थान पर नवीन कोंपलें जन्म लें जो गेंडों का प्रिय भोजन है।

सारस पक्षी
सारस पक्षी

उस अग्नि के चारों ओर बुलबुल एवं ड्रोन्गो जैसे अनेक छोटे पक्षी एकत्र हो रहे थे. वहाँ उनके लिए भोजन स्थल जो बन गया था। अग्नि की उष्णता से बचने के लिए सभी कीड़े-मकोड़े भूमि से बाहर आ रहे थे तथा इन पक्षियों का भोजन बन रहे थे।

विशेष दृश्य था। जिन्होंने वनाग्नि देखी है, उनके लिए भले ही यह एक सामान्य घटना होगी किन्तु मेरे लिए वह एक विशेष घटना थी। इससे पूर्व मैंने ऐसा अद्वितीय दृश्य नहीं देखा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे भूल से पक्षी अग्नि के भीतर आकर्षित हो रहे हों। किन्तु सभी पक्षी एक साथ एक ही भूल कैसे कर सकते हैं? हमारे लिए यह एक अनोखा क्षण था जब हमें इतने सारे पक्षियों को एक साथ देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

चितवन में पक्षी दर्शन

चितवन में हम जहाँ भी गए, हमें विविध पक्षियों के दर्शन हुए। यहाँ तक कि बरही वन विश्राम गृह, जहाँ हम ठहरे थे, वहाँ के परिसर में भी हमें अनेक सुंदर पक्षियों के दर्शन हुए। एक के पश्चात एक पक्षी हमें ऐसे दर्शन दे रहा था मानो हमें स्मरण कर रहा था कि मुझे विस्मृत नहीं करना!

मैं उन्हे कभी नहीं भूल सकती!

मैंने अपने जीवन में अनेक पक्षी दर्शन यात्राएँ की हैं। उनमें से कुछ के संस्करण आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूँ। वे इस प्रकार हैं:

नवाबगंज पक्षी अभयारण्य- लखनऊ कानपुर महामार्ग पर

ओडिशा की मंगलाजोड़ी आद्रभूमि: जलपक्षियों के स्वर्ग में नौकाविहार

Birds of Pench National Park, Madhya Pradesh

Bird Photography at Satpura National Park

Bharatpur Bird Sanctuary

Wooly-necked Stork

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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तराई की थारु जनजाति उत्तरी भारत एवं दक्षिणी नेपाल के मूल निवासी https://inditales.com/hindi/tharu-janjati-tarai-nepal/ https://inditales.com/hindi/tharu-janjati-tarai-nepal/#respond Wed, 26 Jun 2024 02:30:52 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3633

नेपाल की थारु जनजाति से मेरा प्रथम साक्षात्कार तब हुआ जब मैं नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में स्थित बरही जंगल लॉज में उनके द्वारा आयोजित नृत्य प्रदर्शन का आनंद ले रही थी। हम नेपाल यात्रा के इस पड़ाव में बरही जंगल लॉज में ठहरे थे। वहाँ पहुँचने के लिए हम वायुमार्ग द्वारा नेपाल के […]

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नेपाल की थारु जनजाति से मेरा प्रथम साक्षात्कार तब हुआ जब मैं नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में स्थित बरही जंगल लॉज में उनके द्वारा आयोजित नृत्य प्रदर्शन का आनंद ले रही थी। हम नेपाल यात्रा के इस पड़ाव में बरही जंगल लॉज में ठहरे थे। वहाँ पहुँचने के लिए हम वायुमार्ग द्वारा नेपाल के भरतपुर विमानतल पर पहुँचे थे। मेरे अनुभव में आया वह तब तक का सबसे लघु आकार का विमानतल था।

थारू जनजाति के घर
थारू जनजाति के घर

हम वहाँ से बरही जंगल लॉज पहुँचे। हमारे पहुँचने तक सूर्यास्त हो चुका था। लॉज में आगमन की औपचारिकताएं पूर्ण करने के पश्चात हम राप्ती नदी के तट पर बैठ गए। रात्रि के मंद प्रकाश में राप्ती नदी लगभग अदृश्य प्रतीत हो रही थी।

थारु जनजाति – नृत्य एवं संगीत

लॉज के कर्मचारी शिविराग्नि जलाने में व्यस्त हो गए थे। नृत्य एवं संगीत प्रदर्शन के लिए कलाकार प्रस्तुत होने लगे थे। सभी कलाकारों ने श्वेत-श्याम परिधान धारण किया हुआ था। मुझे उनके परिधान कुछ असामान्य प्रतीत हुए। मेरा यात्रा अनुभव यह कहता है कि हम किसी भी क्षेत्र के जितना भीतर जाते हैं, वहाँ के निवासियों के परिधान उतने ही विविध रंगों से परिपूर्ण होते जाते हैं। सम्पूर्ण प्रदर्शन दल के परिधानों में श्वेत-श्याम के अतिरिक्त कोई भी अन्य रंग उपस्थित नहीं था। केवल कमरपट्टे से रंगीन वस्त्र का एक छोटा टुकड़ा लटक रहा था तथा केश में लाल फीते थे। स्त्रियों ने सिक्कों का आभूषण धारण किया था। कहा जाता है कि सम्पूर्ण विश्व के सभी जनजाति क्षेत्रों की स्त्रियों में सिक्कों के आभूषण सामान्य हैं।

थारु जनजाति के पारंपरिक लोक नृत्य
थारु जनजाति के पारंपरिक लोक नृत्य

प्रदर्शन दल ने अग्नि के चारों ओर नृत्य करना आरंभ किया। पुरुष कलाकारों का एक दल संगीत वाद्य बजा रहा था। वयोवृद्ध स्त्रियों का एक समूह एक पंक्ति में खड़े होकर गीत गा रहा था। अन्य सभी कलाकार नृत्य करने लगे जिसमें वे डंडियों का भी प्रयोग कर रहे थे। मैंने वहाँ नेपाल का सर्वाधिक लोकप्रिय लोकगीत सीखा, रेशम फिरीरी। उन्होंने मुझे बताया कि यदि मैं इस गीत को भूल भी जाऊँ तो पुनः स्मरण करने के लिए यूट्यूब की सहायता लूँ। यह गीत यूट्यूब पर उपलब्ध है।

उन्होंने एक युद्ध नृत्य प्रस्तुत किया जिसे बजेति कहते हैं। आप इस नृत्य में वीर रस स्पष्ट देख सकते हैं। उन्होंने डम्फु नृत्य प्रस्तुत किया जो सामान्यतः होली के पर्व पर किया जाता है। इस नृत्य में होली का उल्हास स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। तत्पश्चात उन्होंने ठाकरा नृत्य किया जिसमें उन्होंने डांडिया सदृश डंडियों का प्रयोग किया। यह नृत्य भरपूर फसल का उत्सव मनाता है।

गोदना
गोदना

झमता नृत्य में केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं। मुझे वह लोकगीत एवं नृत्य कुछ चंचल प्रतीत हुआ। अतः मुझमें उस लोकगीत का अर्थ जानने की अभिलाषा उत्पन्न हुई। नृत्य प्रदर्शन के समाप्त होते ही मैंने एक वयस्क गायिका स्त्री से गीत का अर्थ पूछा। उन्होंने स्मित हास्य पर विषय को टाल दिया। मैंने देखा, उनके हाथों में सघनता से गोदना गुदा हुआ था। उन्होंने हमें बताया कि विवाह के समय उन्होंने वह गोदना गुदवाया था।

नृत्य करते लोग
नृत्य करते लोग

मुझे थारु जनजाति के कलाकारों द्वारा प्रदर्शित गीत एवं नृत्य अत्यंत लुभावने प्रतीत हुए। मुझमें उनके गाँव का अवलोकन करने एवं उनकी जीवनशैली को जानने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हुई। मैंने चितवन राष्ट्रीय उद्यान के निकट स्थित थारु गाँवों के दर्शन करने का निश्चय किया।

नेपाल की थारु जनजाति

बरही जंगल लॉज में स्थित पुस्तकालय में मैंने नेपाल की थारु जनजाति पर प्रकाशित एक लघु पुस्तिका पढ़ी। उसके अनुसार थारु जनजाति की वंशावली आंशिक रूप से राजस्थान के थार मरुभूमि के राजपूत वंश की ओर संकेत करती है। कहा जाता है कि इस जनजाति के पुरुष नेपाली हैं तथा स्त्रियाँ राजस्थानी मूल की हैं। ऐसा भी माना जाता है कि चूंकि स्त्रियों ने अपने से निम्न जाति के पुरुषों से विवाह किया था, अतः परिवार में उनका वर्चस्व होता है। स्त्रियों को संपत्ति पर विशेषाधिकार भी होता है। कुछ ग्रंथों में इतना भी लिखा था कि स्त्रियाँ भोजन की थालियाँ पुरुषों की ओर अपने पैर से ढकेलती हैं। मैंने इस तथ्य की पुष्टि करने के उद्देश्य से कुछ स्त्रियों से इस विषय पर चर्चा की किन्तु किसी ने भी इस तथ्य की पुष्टि नहीं की।

इस पुस्तिका में इस जनजाति के विषय में आँकड़े प्रकाशित किये गए थे। भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों निवास करते थारु जनजाति की जीवनशैली के विषय में वर्णन किया गया था।

थारु जनजाति मलेरिया रोग से प्रतिरक्षित है – शोध के अनुसार उनके विशेष वंशाणु उन्हे मलेरिया रोग के प्रति रोधक क्षमता प्रदान करते हैं।

थारु जनजाति स्वयं को वनवासी मानती है। उनके गाँव सामान्यतः वन के भीतर स्थित होते हैं। अतः वे वनों के भीतर तथा वनों की संगति में निवास करते हैं। वे आंशिक रूप से कृषि तथा आंशिक रूप से वनोपज पर निर्भर रहते हैं।

थारु जनजाति की संस्कृति
थारु जनजाति की संस्कृति

प्रत्येक गाँव का एक मुखिया होता है जिसे प्रत्येक वर्ष माघ मास में लोकतांत्रिक रूप से चुना जाता है। इस चुनाव के लिए मतदान का अधिकार एक परिवार को समग्र रूप से प्राप्त होता है, ना कि परिवार के प्रत्येक सदस्य अथवा वयस्क को। मुखिया को बड़घर कहा जाता है। उसके ऊपर गाँव के समग्र जनहित का उत्तरदायित्व होता है। उसे दोषी व्यक्ति को दंडित करने का भी अधिकार प्राप्त होता है। गाँव के धार्मिक मुखिया का चुनाव भी इसी रीति से किया जाता है।

थारु जनजाति की बोलचाल भाषा थारु है जो कुछ सीमा तक हिन्दी, अवधि एवं मैथिली से साम्य रखती है।

अधिकांश थारु जनजाति हिन्दू धर्म का पालन करती है जबकि कुछ थारु मूलनिवासियों ने अब ईसाई धर्म अपना लिया है।

थारु सांस्कृतिक संग्रहालय, मेघौली

मेघौली गाँव में स्थित थारु सांस्कृतिक संग्रहालय वास्तव में एक कुटिया सदृश संरचना है। उसकी भित्तियों पर हल्के हरे रंग का रोगन किया हुआ था। उस पर हस्तछाप रंगे हुए थे। चितवन में भ्रमण करते हुए भी हमने मिट्टी के ऐसे अनेक कच्चे घर देखे जिनकी भित्तियों एवं द्वारों पर हाथों से विविध चिन्ह रंगे हुए थे।

मघौली का सांस्कृतिक संग्रहालय
मघौली का सांस्कृतिक संग्रहालय

यह एक एकल-कक्ष संग्रहालय है जहाँ थारु जीवनशैली को प्रदर्शित किया गया है। उनकी आजीविका के साधन, उनके नृत्य, उनकी परम्पराएं तथा उनके दैनंदिनी जीवन के दृश्य प्रदर्शित किये गए थे। वहाँ से मुझे इस तथ्य की पुष्टि हुई कि वे सदा श्वेत-श्याम परिधान धारण करते हैं, यहाँ तक कि अपने विवाह समारोह में भी। विविध चित्रों के माध्यम से थारु जनजाति के एक व्यक्ति के जन्म संस्कारों से लेकर मृत्यु संस्कारों तक की यात्रा का सुंदर चित्रण किया गया है जिनमें उसका विवाह संस्कार भी सम्मिलित है।

मेरी अभिलाषा है कि इस संग्रहालय में इस जनजाति का विस्तृत वर्णन करती अधिक पठन सामग्री उपलब्ध कराई जाए।

थारु जनजाति के निवासस्थान का भ्रमण

पारंपरिक थारु जनजाति के निवासस्थानों को एक अनूठे रूप से संयोजित किया जाता है। एक मुक्ताकाश प्रांगण के चारों ओर आवासों का एक समूह होता है। इस प्रकार सभी आवास स्वयं में स्वतंत्र होते हुए भी एक लघु समुदाय का भाग होते हैं। यह लघु समुदाय उनके परिवार से संबंधित अन्य परिवार भी हो सकते हैं।

चितवन के पक्षी घर
चितवन के पक्षी घर

मध्यस्थल में काष्ठ के ऊँचे पंछीघर होते हैं। प्रत्येक आवास के पार्श्वभाग में एक गौशाला होती है। उनकी इस संरचना से ऐसा आभास होता है मानो उनका आवास मानव, पंछियों एवं मवेशियों के मध्य बँटा होता है।

थारु घर में स्वागत
थारु घर में स्वागत

हमें थारु जनजाति के एक निवासस्थल का भीतर से अवलोकन करने का अवसर प्राप्त हुआ। परिवार की प्रमुख स्त्री ने द्वार पर खड़े होकर आरती की थाली से हमारा स्वागत किया। उसके चारों ओर द्वार पर तथा भित्तियों पर हाथों से सुंदर आकृतियाँ रंगी हुई थीं। एक क्षण के लिए मुझे यह सज्जा उसकी आभामंडल प्रतीत हुई। उन्होंने हमें अपना आवास दिखाया।

चाँदी के आभूषण
चाँदी के आभूषण

अपने पारंपरिक आभूषण दिखाए। आवास में रखे सभी संदूकों एवं भंडारण द्वारों पर भी वैसी ही हस्त निर्मित आकृतियाँ बनी हुई थीं।

थारु जनजातियों द्वारा हस्तछाप

मैंने यहाँ जिनसे भी भेंट की, उन सभी से इन हस्ताकृतियों का महत्व जानने का प्रयास किया। सभी ने यही कहा कि यह उनकी संस्कृति का अभिन्न अंग है। वे सदा से ऐसी आकृतियाँ अपनी संरचनाओं पर चित्रित करते आ रहे हैं। मैंने अनुमान लगाया कि कदाचित ये शुभ चिन्ह हैं। इन चिन्हों ने मुझे उन हस्ताकृतियों का स्मरण कर दिया था जिन्हे मैंने राजस्थान में देखा था, जैसे जैसलमेर का सोनार किला अथवा बीकानेर का जूनागढ़ दुर्ग। कदाचित यह एक ऐसा सांस्कृतिक सूत है जो उन्हे अब भी राजस्थान से बांधे हुए है।

नाग के यंत्र और चित्र
नाग के यंत्र और चित्र

आवास का अवलोकन करते हुए हम उसके पिछवाड़े में पहुँच गए। वहाँ बैठकर हमने परिवार के सदस्यों से कुछ क्षण वार्तालाप किया। उन्होंने हमारे समक्ष रोक्सी नामक पेय प्रस्तुत किया। यह एक स्थानीय पेय है जिसे किण्वित भात से बनाया जाता है। मुझे बताया गया कि यह एक प्रबल मदिरा है। मैंने उससे दूर रहना उत्तम जाना। उन्होंने कहा कि वे इस घरेलू पेय का नियमित सेवन करते हैं।

इस परिवार के सदस्यों ने मुझे अत्यंत आत्मीयता का अनुभव कराया। आवास से बाहर आते हुए मुझे ऐसा आभास हुआ मानो जिस संस्कृति को मैंने तीन दिवसों पूर्व ही जाना था, उस संस्कृति को अब कुछ कुछ समझने लगी हूँ।

उनके आत्मीयता से ओतप्रोत व्यवहार तथा हंसमुख मुखड़ों की स्मृतियाँ मेरी चितवन राष्ट्रीय उद्यान यात्रा की सर्वाधिक प्रिय स्मृति के रूप में सदा मेरे साथ रहेंगी।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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जनकपुर धाम – राम-जानकी का विवाहस्थल https://inditales.com/hindi/janakpur-dham-janaki-mandir-nepal/ https://inditales.com/hindi/janakpur-dham-janaki-mandir-nepal/#respond Wed, 17 Jan 2024 02:30:34 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3364

जनकपुर धाम मिथिला की प्राचीन राजधानी थी। यद्यपि वर्तमान में यह नेपाल की राजनैतिक सीमाओं के भीतर आता है तथापि सांस्कृतिक रूप से यह मिथिलाञ्चल का ही एक भाग है। नेपाल के जिस जिले के अंतर्गत जनकपुर है, उस जिले को धनुष कहा जाता है। इस जिले का यह नाम उस घटना से सम्बद्ध है […]

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जनकपुर धाम मिथिला की प्राचीन राजधानी थी। यद्यपि वर्तमान में यह नेपाल की राजनैतिक सीमाओं के भीतर आता है तथापि सांस्कृतिक रूप से यह मिथिलाञ्चल का ही एक भाग है। नेपाल के जिस जिले के अंतर्गत जनकपुर है, उस जिले को धनुष कहा जाता है। इस जिले का यह नाम उस घटना से सम्बद्ध है जहाँ रामायण काल में भगवान राम ने शिव धनुष तोड़ा था।

रामायण एवं जनकपुर का संबंध

रामायण से संबंधित दो महत्वपूर्ण यात्राएं हैं जो उसके मूल तत्व हैं।। दूसरी यात्रा के विषय में सब जानते हैं। भगवान राम दक्षिण की ओर यात्रा कर श्रीलंका पहुँचे थे तथा लंका के राजा रावण के साथ युद्ध किया था। रामायण को देखने, सुनने अथवा पढ़ने वाले चाहे जिस आयु के हों, यह यात्रा उनमें अधिक लोकप्रिय है। किन्तु प्रथम यात्रा के संबंध में कितने सविस्तार से जानते हैं?

जनकपुर धाम
जनकपुर धाम

भगवान राम ने किशोर अवस्था में प्रथम यात्रा की थी, गुरु विश्वामित्र के साथ। इसके अंतर्गत अनेक राक्षसों का वध करते हुए उन्होंने साधु-संतों एवं जनमानस को सुरक्षित किया था। इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग था, जनकपुर की यात्रा। वहाँ एक उद्यान में सीता जी से, जिन्हे जानकी भी कहा जाता है, उनकी प्रथम भेंट हुई थी। इसके पश्चात उन्होंने स्वयंवर में सीता से पाणिग्रहण आर्जित करने के लिए भगवान शिव का धनुष तोड़ा था। तत्पश्चात राम का सीता से विवाह हुआ था। साथ ही राम के तीन अनुज भ्राताओं का विवाह सीता की भगिनियों के साथ संपन्न हुआ था।

रामचरितमानस में उसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री राम एवं जानकी के विवाहोत्सव का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है। उनका विवाह जिस दिवस संपन्न हुआ था, उसे विवाह पंचमी कहा जाता है। जनकपुर में, साथ ही अयोध्या में यह दिवस हर्षोल्हास से मनाया जाता है।

माँ सीता की कथा

सीता मिथिला के राजा जनक को उनके खेतों से तब प्राप्त हुई थी जब वे हलेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करने के पश्चात खेतों में हल चलाने लगे थे। उस स्थान को सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है। सीता का लालन-पालन राजा जनक के राजमहल में हुआ।

राम जानकी विवाह और मिथिला का जनजीवन
राम जानकी विवाह और मिथिला का जनजीवन

जब सीता विवाह योग्य हुई तब राजा जनक ने घोषणा की कि जो वीर भगवान शिव के धनुष को तोड़ेगा, वह सीता से विवाह करने का मान अर्जित करेगा। इस स्वयंवर से एक दिवस पूर्व एक उद्यान में अकस्मात ही श्री राम एवं सीताजी की भेंट हो गयी। उन्होंने एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा किन्तु उन्हे यह अंतर्ज्ञान हो गया था कि वे एक दूसरे के लिए बने हैं।

सीता ने मन ही मन देवी पार्वती से प्रार्थना की तथा राम के संग विवाह करने की इच्छा प्रकट ही। उनके सौभाग्य से श्री राम ने धनुष को तोड़ दिया तथा घोषणा के अनुसार सीता से उनका विवाह संपन्न हुआ। राम के तीन अनुज भ्राता, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का विवाह भी सीता की भगिनियाँ क्रमशः मांडवी, उर्मिला एवं श्रुतिकीर्ति से संपन्न हुआ।

एक ओर मैथिली विवाहोत्सव का विस्तृत अनुष्ठान रामायण कथा का महत्वपूर्ण भाग है, वहीं राजा जनक के आतिथ्य-सत्कार का रामायण में कम महत्व नहीं है। मिथिला की स्त्रियों को अभिमान है कि भगवान राम उनके जामाता हैं तथा इस नाते उन्हे श्री राम से ठिठोली करने का अधिकार प्राप्त है। मिथिला के अनेक लोकगीतों में इस नाते का उत्सव मनाया जाता है।

जनकपुर धाम

मैंने जब से अयोध्या की यात्रा की थी तथा अयोध्या माहात्म्य का अनुवाद किया था, मुझ में जनकपुर धाम की यात्रा करने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हो गयी थी। मैंने रामायण से संबंधित अधिकांश स्थलों की यात्रा की है। उनमें श्री लंका के भी अधिकांश रामायण संबंधी स्थल सम्मिलित हैं। किन्तु मिथिला यात्रा मुझसे एक लंबे काल तक टालमटोली करती रही।

जनकपुर धाम जानकी मंदिर
जनकपुर धाम जानकी मंदिर

मैंने जनकपुर के विशाल जानकी मंदिर की छवि देखी थी। जानकी के लिए ऐसा ही भव्य मंदिर अब अयोध्या में भी बन रहा है। हृदय में इच्छा उत्पन्न हुई कि अयोध्या के इस जानकी मंदिर के दर्शन से पूर्व, क्यों ना उनके मायके में स्थित उसके मंदिर का दर्शन किया जाए!

जनकपुर में स्थित जानकी मंदिर अत्यंत विशाल है। उसे देख मुझे नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी की हवेली का स्मरण हो आया। जनकपुर के जानकी मंदिर में राजस्थानी स्थापत्य शैली स्पष्ट झलकती है। इस मंदिर का राजस्थान से क्या संबंध हो सकता है? मैंने कई आयामों पर दोनों के बीच संबंध ढूँढने का प्रयास किया किन्तु असफल रही। किन्तु पुरोहित जी से चर्चा करने के पश्चात ही मुझे ज्ञात हो पाया कि इस मंदिर की संरचना जयपुर स्थित गलाता जी मंदिर के संतों ने करवाया था।

जानकी मंदिर में राम -जानकी, लक्ष्मण उर्मिला, भरत मांडोवी, शत्रुघन श्रुतिकीर्ति
जानकी मंदिर में राम -जानकी, लक्ष्मण उर्मिला, भरत मांडोवी, शत्रुघन श्रुतिकीर्ति

इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं। टीकमगढ़ की रानी वृषभानु कुमारी ने सन् १९१० में इस मंदिर के निर्माण के लिए नौ लाख स्वर्ण मुद्राओं का योगदान दिया था। यह मंदिर उसी स्थान पर निर्मित है जहाँ १७ वीं. शताब्दी में माँ सीता की स्वर्ण प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यूनेस्को के वेबस्थल के अनुसार इस मंदिर के प्राचीनतम अवयव ११ वी. से १२ वीं सदी के मध्यकाल के हैं।

मंदिर के मुख्य द्वार के समक्ष स्थित प्रांगण अत्यंत विस्तृत है जिसकी भूमि पर संगमरमर लगा हुआ है। जब मैं वहाँ पहुँची थी, सम्पूर्ण प्रांगण भक्तगणों एवं दर्शनार्थियों से भरा हुआ था। उनमें कई नवविवाहित युगल भी थे जो पूर्ण रूप से अलंकृत होकर माता के दर्शन करने आए थे।

जनकपुर धाम का अभ्यंतर

जनकपुर धाम के भीतर प्रवेश करते ही आप परिसर के मध्य में एक सुंदर मंदिर देखेंगे। इसके चारों ओर वैसा ही गलियारा है जैसे शेखावटी हवेली में देखा था।

यह मूलतः एक श्वेत रंग का मंदिर है जिस पर चटक उजले रंगों द्वारा अलंकरण किया गया है। मंदिर के कुछ सोपान चढ़ते ही राम दरबार अपनी पूर्ण वैभवता के साथ हमारे समक्ष प्रकट हो जाता है। आपको अयोध्या के चारों भ्राताओं एवं मिथिला की उनकी भार्याओं के भव्य दर्शन होंगे। मैं जिस दिन यहाँ उपस्थित थी, वह स्वर्ण अलंकरण का दिवस था। आप सोच सकते हैं कि भव्य स्वर्ण अलंकरण के साथ अपनी पत्नी सहित चारों भ्राताओं की आभा कितनी अविस्मरणीय होगी!

सांस्कृतिक संग्रहालय

मंदिर के प्रथम तल के गलियारे में एक संग्रहालय है जिसमें सीता की कथा प्रदर्शित की गयी है। सीता माँ की जीवनी को डिजिटल चित्रावलियों के माध्यम् से प्रदर्शित किया गया है। जैसे ही सीता माँ के जन्म का दृश्य प्रदर्शित होता है, बधाई गीत बजने लगता है। सब दर्शकों का सर्वाधिक लोकप्रिय दृश्य वह है जहाँ श्री राम धनुष तोड़ते हैं। मुझे यह चित्रावली देख अत्यंत आनंद आया।

जनकपुर डोला परिक्रमा
जनकपुर डोला परिक्रमा

संग्रहालय में सीता माँ के वस्त्र एवं उनके आभूषण भी प्रदर्शित किये गए हैं।

मंदिर के चारों ओर की भित्तियों पर मिथिला चित्रकारी की गयी है जो मधुबनी चित्रकला के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इन चित्रों में मुख्यतः श्री राम-जानकी विवाह के विविध अनुष्ठानों के दृश्य चित्रित किये जाते हैं। मिथिला परिक्रमा डोला एक अत्यंत रोचक चित्र है जिसमें परिक्रमा पथ दर्शाया गया है जो सम्पूर्ण नगर का भ्रमण करता है। अन्य अनेक ऐसे चित्र हैं जिनमें सामान्य जनमानस की जीवनशैली दर्शाई गयी है, जैसे लोहार आदि।

धनुष महायज्ञ
धनुष महायज्ञ

संग्रहालय से बाहर आते हुए आप मंदिर की छत पर पहुँच जाते हैं। यहाँ से मंदिर का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। छायाचित्रीकरण के लिए यह सबका लोकप्रिय स्थान है।

शालिग्राम मंदिर

हम सब जानते हैं कि शालिग्राम पत्थर नेपाल स्थित गण्डकी नदी के तल पर पाये जाते हैं। वस्तुतः अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में स्थापित होने वाली भगवान राम की प्रतिमा के लिए पावन शिला जनकपुर से भेजी गयी है। ऐसी ही एक विशाल शिला इस मंदिर के परिसर में भी रखी गयी है।

शालिग्राम मंदिर - जनकपुर धाम
शालिग्राम मंदिर – जनकपुर धाम

मंदिर में एक विशेष कक्ष है जहाँ लाखों की संख्या में शालिग्राम रखे हुए हैं। बहुतलीय पात्रों में रखे इन शालिग्राम को आप एक जाली के इस ओर से देख सकते हैं। घोर श्याम वर्ण के ये शालिग्राम भिन्न भिन्न आकृति एवं आकार के हैं।

उन शालीग्रामों पर नव-पल्लवित पुष्प चढ़ाए हुए थे जिसे देख आप अनुमान लगा सकते हैं कि उनकी दैनिक पूजा-अर्चना की जाती है। कुछ शालिग्राम शिलाओं पर आभूषण एवं वस्त्र भी चढ़ाए हुए थे।

राम सीता धुन

अयोध्या के मंदिरों के अनुरूप ही इस मंदिर में भी, शालिग्राम कक्ष के समीप खुले प्रांगण में अखंडित रूप से राम धुन गायी जाती है।

आप भी उनमें सम्मिलित होकर राम नाम गा सकते हैं। विशेषतः कलियुग में यह आराधना का सबसे सुलभ व सुगम मार्ग है।

राम जानकी विवाह मंडप

मंदिर परिसर के भीतर, मुख्य मंदिर की सीमा के बाह्य भाग में एक ओर विवाह मंडप है। इस संरचना की छत ठेठ नेपाली शैली की है। इसकी तिरछी छत के कारण यह संरचना एक खुला मंडप प्रतीत होता है। मंडप के भीतर राजसी विवाह के दृश्य प्रदर्शित किये गए हैं।

चबूतरे के चारों कोनों में चार लघु मंदिर हैं जो राजपरिवार के उन चार जोड़ों को समर्पित हैं जिनका विवाह यहाँ संपन्न हुआ था। उन पर दर्शाये गए नामों को अनदेखा करें तो आप यह नहीं जान सकते कि कौन सा मंदिर किस जोड़े का है।

जानकी मंडप एवं मंदिर के उद्यान में पदभ्रमण का आनंद उठायें। गौशाला में भी कुछ क्षण अवश्य व्यतीत करें। आप चाहें तो उन गौओं को चारा भी खिला सकते हैं।

एक चबूतरे पर आप कुछ चरण चिन्ह देखेंगे। यहाँ उत्सव मूर्तियाँ रखी जाती हैं जब उन्हे परिक्रमा के लिए बाहर लाया जाता है।

एक छोटा शिव मंदिर भी है जिसमें एकादश लिंग स्थापित है। एकादश लिंग का अर्थ है, ११ विभिन्न लिंगों का एक संयुक्त लिंग।

जनकपुर जानकी मंदिर के विविध उत्सव

जनकपुर के जानकी मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है विवाह पंचमी, जो मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। इसमें कोई शंका नहीं है क्योंकि इसी स्थान पर श्री राम का जानकी से विवाह सम्पन्न हुआ था।

इस मंदिर में राम नवमी भी धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिवस श्री राम का जन्म हुआ था। राम नवमी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आयोजित की जाती है। मैंने राम नवमी के कुछ दिवस पूर्व इस मंदिर के दर्शन किये थे। उस समय इस मंदिर को राम नवमी उत्सव के लिए सज्ज किया जा रहा था।

दसैं अथवा दशहरा नेपाल का प्रमुख पर्व है।

नेपाल के दशहरा उत्सव के विषय में हमारी इस पुस्तक में पढ़ें – Navaratri – When Devi Comes Home

जनकपुर के अन्य मंदिर

अयोध्या के अनुरूप जनकपुर में भी अनेक मंदिर एवं जलकुंड हैं। इस क्षेत्र में ७० से भी अधिक जलाशय अथवा जलकुंड हैं। यहाँ के कुछ अन्य दर्शनीय मंदिर इस प्रकार हैं-

राम मंदिर

काष्ठ का बना राम मंदिर
काष्ठ का बना राम मंदिर

जानकी मंदिर के समीप स्थित यह अपेक्षाकृत एक छोटा मंदिर है जिसके समक्ष धनुष सागर जलकुंड है। अमर सिंग थापा द्वारा निर्मित यह एक आकर्षक मंदिर है जिसका निर्माण ठेठ नेपाली वस्तुशैली में किया गया है। इसके काष्ठ फलकों पर अप्रतिम उत्कीर्णन किये गए हैं जिनसे मंत्रमुग्ध हुए बिना आप नहीं रह पाएंगे।

राम मंदिर का राम दरबार
राम मंदिर का राम दरबार

राम मंदिर के चारों ओर अनेक शिवलिंग हैं। इस मंदिर में देवी भी पिंडी के रूप में हैं।

जब मैं इस मंदिर में दर्शन के लिए आयी थी, कुछ स्त्रियाँ भगवान के समक्ष सुंदर भजन प्रस्तुत कर रही थीं।

राज देवी मंदिर

राम मंदिर के समीप स्थित यह मंदिर जनक राजा की कुलदेवी को समर्पित है। इसीलिए इसे राज देवी मंदिर कहते हैं। मंदिर के विस्तृत प्रांगण के एक कोने में यह मंदिर स्थित है। यहाँ एक त्रिकोणीय यज्ञ कुंड है। प्रवेश द्वार से भीतर जाते हुए मार्ग पर विराजमान सिंह दर्शाते हैं कि यह देवी दुर्गा माँ का स्वरूप है।

जनक मंदिर

जानकी मंदिर एवं राम मंदिर के मध्य, मार्ग के मधोमध उजले नारंगी रंग का एक मंदिर है। यह जनकपुर के राजा जनक का मंदिर है। उन्हे राजर्षी अथवा संत राजा कहा जाता था।

लक्ष्मण मंदिर

लक्ष्मण को समर्पित यह मंदिर जानकी मंदिर के प्रवेश द्वार के समीप स्थित है, मानो लक्ष्मण उनका संरक्षण कर रहे हों।

जनकपुर के अन्य मंदिरों में हनुमान को समर्पित संकट मोचन मंदिर, कपिलेश्वर मंदिर तथा भूतनाथ मंदिर भी सम्मिलित हैं।

जनकपुर के जलकुंड अथवा जलाशय

  • गंगासागर – विवाह मंडप के समीप स्थित यह जलकुंड मार्ग के उस पार है। ऐसी मान्यता है कि इस जलकुंड के जल को गंगा नदी से लाया गया है।
  • राम सागर
  • धनुष सागर – राम मंदिर के निकट स्थित है ।
  • रत्न सागर
  • दशरथ कुंड
  • कमल कुंड
  • सीता मैया तलैया
राम मंदिर
राम मंदिर

जलेश्वर महादेव मंदिर – यह एक महत्वपूर्ण शिव मंदिर है जो जनकपुर से लगभग १६ किलोमीटर दूर, सीतामढ़ी के मार्ग पर स्थित है।

धनुष धाम – यह स्थल भगवान शिव के धनुष को समर्पित है जिसे भगवान राम ने तोड़ा था। यह जनकपुर से उत्तर-पूर्वी दिशा में लगभग २४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जनकपुर में ठहरकर वहाँ से एक दिवसीय यात्रा के रूप में इसके दर्शन किये जा सकते हैं।

परिक्रमा

भव्य शालिग्राम शिला
भव्य शालिग्राम शिला

जनकपुर धाम के चारों ओर पंच कोसी परिक्रमा की जाती है। यद्यपि यह परिक्रमा किसी भी दिवस की जा सकती है, तथापि नियमित भक्तगण इस परिक्रमा को होलिका दहन के दिन करते हैं।

जनकपुर यात्रा के समय आप गंगासागर सार्वजनिक पुस्तकालय तथा हस्तकला संग्रहालय का भी अवलोकन कर सकते हैं।  अल्प समय के चलते मैं इनके दर्शन नहीं कर पायी थी।

यात्रा सुझाव

जनकपुर दरभंगा से दो घंटे की दूरी पर स्थित है जो जनकपुर के लिए निकटतम विमानतल एवं रेल स्थानक है। नेपाल की ओर जनकपुर में भी विमानतल है जो वायुमार्ग द्वारा काठमांडू से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग द्वारा भारत-नेपाल सीमा को पार करने के लिए उपस्थित भीड़ के अनुसार २०-४० मिनटों का समय लग सकता है। आप अपने स्वयं के वाहन अथवा टैक्सी से भी जा सकते हैं।

जनकपुर में भारतीय मुद्रा की अनुमति है।

जनकपुर में भोजन विकल्प सीमित हैं। मिष्टान्न एवं फल पर्याप्त मात्र में उपलब्ध रहते हैं। जनकपुर धाम के भंडारे में प्रतिदिन दोपहर का भोजन भक्तों को प्रसाद के रूप में परोसा जाता है। वे मनःपूर्वक आपका स्वागत करते हैं।

मंदिर से संबंधित जो भी जानकारी इस संस्करण में मैंने दी है, उन सभी के दर्शन करने के लिए २-३ घंटों का समय आवश्यक है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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लुम्बिनी के २८ की.मी. पश्चिम में स्थित कपिलवस्तु राजा शुद्धोधन की राजधानी थी। शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के ही पुत्र थे गौतम बुद्ध। गौतम बुद्ध की जन्मस्थली, कपिलवस्तु के भौगोलिक निर्धारित स्थल पर मतभेद हैं। वर्तमान में यह निर्धारित करना कठिन है कि कपिलवस्तु नेपाल के तिलौराकोट में स्थित है या भारत-नेपाल सीमारेखा के […]

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कपिलवस्तु नेपाल
कपिलवस्तु नेपाल

लुम्बिनी के २८ की.मी. पश्चिम में स्थित कपिलवस्तु राजा शुद्धोधन की राजधानी थी। शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के ही पुत्र थे गौतम बुद्ध। गौतम बुद्ध की जन्मस्थली, कपिलवस्तु के भौगोलिक निर्धारित स्थल पर मतभेद हैं। वर्तमान में यह निर्धारित करना कठिन है कि कपिलवस्तु नेपाल के तिलौराकोट में स्थित है या भारत-नेपाल सीमारेखा के भारत की तरफ, पिप्राह्वा में। हालांकि यह दोनों स्थल लुम्बिनी के बहुत समीप स्थित है। इसलिए वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा के अनुसार बुद्ध अर्थात् राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मस्थली कपिलवस्तु, इन दोनों स्थलों में एक हो सकती है।

मेरी कपिलवस्तु की यात्रा के पश्चात मैं अपना अनुभव व संस्मरण आपके समक्ष रख रही हूँ। आशा है यह आपकी कपिलवस्तु यात्रा की तैयारी में उपयोगी सिद्ध होगी। मेरी अपनी यात्रा की तैयारी के समय मुझे कपिलवस्तु पर जानकारी हासिल करने में बड़ी कठिनाइयाँ उठानी पड़ीं थीं। इसलिए पूरे मन से मेरी यह कोशिश है कि इंडीटेल के जो पाठक कपिलवस्तु की यात्रा पर जाना चाहतें हैं, उन्हें कपिलवस्तु के आसपास के पुरातात्विक अवशेषों के सम्बन्ध में सही मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। एक तथ्य ध्यान में रखने योग्य है कि कपिलवस्तु एक शहर अथवा गाँव नहीं, बल्कि नेपाल का एक जिला है। इसलिए प्राचीन कपिलवस्तु की यात्रा का अर्थ है कई छोटे बड़े दर्शनीय स्थलों का भ्रमण। इनमें ज्यादातर बुद्ध व बौद्ध धर्म के प्रारम्भिक दिनों से सम्बन्ध रखते हैं।

इक्ष्वाकु वंश के राजाओं ने इस स्थान का नामकरण कपिल मुनि के नाम पर किया था। अयोध्या के भगवान् राम भी इसी वंश के वंशज थे।

कपिलवस्तु – कई बुद्धों की जन्मस्थली

तिलौराकोट का उत्तरी द्वार - कपिलवस्तु नेपाल
तिलौराकोट का उत्तरी द्वार – कपिलवस्तु नेपाल

जिन भगवान् बुद्ध से ज्यादातर लोग परिचित हैं वे हैं शाक्यमुनि बुद्ध। परन्तु बौद्ध धर्म के अनुसार ऐसे कई बोधिसत्व हुए जो बुद्ध बनने की राह पर थे। कुछ मूलग्रंथों के अनुसार शाक्यमुनि बुद्ध से पूर्व ५ बोधिसत्व बुद्ध हुए हैं।

कपिलवस्तु में शाक्यमुनि बुद्ध समेत ३ बुद्धों के पुरातत्व प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

आप इस विषय पर और जानकारी ‘प्राचीन वेबसाइट ‘ से प्राप्त कर सकतें हैं।

तिलौराकोट

तिलौराकोट दुर्ग के अवशेष - कपिलवस्तु नेपाल
तिलौराकोट दुर्ग के अवशेष – कपिलवस्तु नेपाल

तिलौराकोट का अर्थ है तीन खम्बों का शहर – लौरा स्थानीय भाषा में स्तम्भ है। यह शहर मौर्य वंश के पश्चात बसाया गया था। क्योंकि यह वही तीन खम्बें हैं जिनकी स्थापना सम्राट अशोक ने अपनी कपिलवस्तु की तीर्थयात्रा के समय की थी। कहा जाता है कि सम्राट अशोक अपनी तीर्थ यात्रा के समय कई अभिलेख खुदे खम्बे अपने साथ लेकर निकले थे। जब भी वे किसी महत्वपूर्ण स्थान पर पहुंचते, वहीं इन खम्बों की स्थापना करवाते थे। इन्हीं अभिलेखों द्वारा ही हमें उस युग व इस स्थान की जानकारी प्राप्त हुई थी।

पुरातत्ववेत्ताओं का निष्कर्ष है कि तिलौराकोट में शाक्य राजाओं का महल था। यहीं भगवान् बुद्ध ने राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के रूप में अपने जीवन के पहले २९ वर्ष बिताये थे। आप आज भी इस शहर के चारों ओर मोटी दीवार और खंदक देख सकतें हैं। २६०० वर्षों से भी पूर्व बना यह दुर्ग अपेक्षाकृत छोटा है। तिलौराकोट के भौगोलिक सर्वेक्षण धरती के भीतर कुछ राजसी भवनों के ढाँचों की ओर इशारा करतें हैं। इनमें कई ढाँचे खुदाई द्वारा बाहर निकाले जा चुकें हैं व कुछ की खुदाई अभी शेष है।

आप जब तिलौराकोट पहुंचेंगे, आपको इस दुर्ग का पश्चिमी द्वार, सभाकक्ष, कुछ तलघर, दो स्तूप, एक मंदिर, कुछ दीवारें और पूर्वी द्वार दृष्टिगोचर होंगें। इस पूर्वी द्वार से ही सिद्धार्थ ने अपना भव्य महल व उससे जुड़े राजसी जीवन का त्याग किया था। इसलिए इसे महाद्वार भी कहा जाता है।

बुद्ध के त्याग की गाथाएँ

महाद्वार - तिलौराकोट का पूर्वी द्वार - जहाँ से गौतम ने कपिलवस्तु से प्रस्थान किया - नेपाल
महाद्वार – तिलौराकोट का पूर्वी द्वार – जहाँ से गौतम ने कपिलवस्तु से प्रस्थान किया – नेपाल

राजकुमार सिद्धार्थ द्वारा किये सांसारिक सुखों के परित्याग की गाथा आप में से कईयों ने सुनी या पढ़ी होंगीं। राजा शुद्धोधन और रानी मायादेवी के पुत्र सिद्धार्थ के जन्म पर संत असिता ने भविष्यवाणी की थी कि राजकुमार, परम ज्ञान प्राप्त कर लोगों के कल्याण हेतु, अपना जीवन समर्पित कर देंगे। अपने इकलौते पुत्र को खोने के भय से राजा ने राजकुमार को चारदीवारों के भीतर रखा। महल के भीतर ही उनका विवाह व पुत्र राहुल का जन्म हुआ। एक दिवस उनकी दृष्टी एक वृद्ध, एक बीमार व एक मृत व्यक्ति पर पड़ी। जीवन के इस रूप से अनभिज्ञ सिद्धार्थ का मन इन दृश्यों ने झकझोर दिया। सभी सांसारिक सुखों का परित्याग कर वे जीवन के मायने खोजने निकल पड़े। और इस विश्व को बुद्ध की प्राप्ति हुई।

तिलौराकोट के भ्रमण के समय मेरे परिदर्शक ने भगवान् बुद्ध के सांसारिक सुखों के परित्याग व संतत्व प्राप्ति के पीछे प्रसिद्ध दो और कथाएं बतायीं।

दूसरी कथा

शाक्य वंश के सिद्धार्थ की माता मायादेवी, उनकी सौतेली माता प्रजापति गौतमी और उनकी पत्नी यशोदा, देवदहा के कौलिया वंश की थी। सिद्धार्थ ने भी अपने बालपन का कुछ समय यहीं बिताया था। परन्तु एक नदी के जल पर स्वामित्व को लेकर शाक्य वंश का कौलिया वंश से बैर उत्पन्न हो गया था। इस विवाद के चलते दोनों में युद्ध सदृश स्थिति पैदा हो गयी थी। राजकुमार सिद्धार्थ ने इस विवाद को सुलझाने की पहल की। यौवन के जोश में उन्होंने प्रतिज्ञा कर दी कि यदि वे इस जल विवाद को सुलझाने में असमर्थ रहे तो वे राजमहल छोड़ जंगल में जीवनयापन हेतु निकल जायेंगे। दुर्भाग्यवश वे विवाद हल करने में असफल रहे और प्रतिज्ञानुसार महल का त्याग कर दिया।

तीसरी कथा

इस कथानुसार अपने पौत्र राहुल के जन्म पर राजा शुद्धोधन ने एक भव्य उत्सव का आयोजन किया था। दूर दूर से सुन्दर नर्तकियों को आमंत्रित किया था। सिद्धार्थ समेत सबने इस उत्सव का सम्पूर्ण रात्र भरपूर आनंद उठाया। प्रातः सिद्धार्थ ने वहां चारों ओर गन्दगी व कुरूपता देखी व उनका मन खिन्न हो उठा। जो नर्तकियां पिछली रात इतनी आकर्षक व सुन्दर प्रतीत हो रहीं थीं, वही श्रृंगार विहीन, शराब के नशे में अभद्रता की सीमा पर कर रहीं थीं। उन्हें बोध हुआ कि सुन्दरता क्षणभंगुर है। उन्हें इस राजसी जीवन से विरक्ति उत्पन्न हुई और उन्होंने सत्य की खोज में महल का त्याग करने का निश्चय किया।

अब यह आप पर निर्भर है कि आप किस कथा पर विश्वास करतें हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे दूसरी कथा की संभावना ज्यादा प्रतीत होती है। यात्रा के समय मार्ग में स्थानीय लोगों द्वारा कही गयीं कथाएं मुझे बेहद पसंद हैं। स्थानीय निवासियों के आस्था की यह गाथाएँ बहुधा अनजानी होतीं हैं और कई बार इनके सम्बंधित साहित्य भी उपलब्ध नहीं होते। यह पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से जीवित रहतीं हैं।

कपिलवस्तु के तिलौराकोट का भ्रमण

बुद्ध के पिता रजा सुधोधन & माता माया देवी को समर्पित स्तूप - कपिलवस्तु नेपाल
बुद्ध के पिता रजा सुधोधन & माता माया देवी को समर्पित स्तूप – कपिलवस्तु नेपाल

तिलौराकोट को घेरे जो मोटी प्राचीन दीवार के अवशेष हैं उन्हें मेरे परिदर्शक शिवपाल ‘तिलौराकोट की महान दीवार’ कहते हैं। मैंने उस दीवार पर चलने का आनंद उठाया।

दुर्ग के अवशेषों के बीचोंबीच एक कमल तालाब है। एक काल में यह तालाब राज परिवार के आमोद प्रमोद हेतु बनाए बगीचे का हिस्सा था।

तिलौराकोट का समय-माई मंदिर

समय माई मंदिर - तिलौराकोट - नेपाल
समय माई मंदिर – तिलौराकोट – नेपाल

तिलौराकोट में भ्रमण के समय मुझे एक अनोखे मंदिर के दर्शन हुए। यह मंदिर समय-माई अर्थात् समय की देवी को समर्पित है। तिलौराकोट के इन निर्जीव अवशेषों में यही एक जीवित संरचना है। इस मंदिर के चारों ओर, अलग अलग आकार के सैकड़ों हाथी मूर्तियाँ रखीं हुईं हैं। जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि यहाँ मांगी मन्नत पूर्ण होने पर भक्तगण देवी को हाथी की मूर्ति अर्पित करते हैं। मंदिर के भीतर देवी की पिंडी रूप की पूजा की जाती है। तथापि यहाँ हाथी की सवारी करती एक देवी की प्रतिमा भी है। इसी प्रकार के हाथी मुझे यहाँ के अन्य छोटे मंदिरों में भी दिखाई दिए।

मेरे परिदर्शक शिवपाल के अनुसार शाक्य वंश के राजा युद्ध में जाने से पूर्व समय-माई देवी की आराधना किया करते थे। अर्थात् शाक्य वंश के राजा भी, अन्य राजाओं की तरह, युद्ध पूर्व माँ शक्ति का आवाहन करते थे।

तिलौराकोट दुर्ग का बाह्य परिसर

लोहे की कार्यशाला के अवशेष - तिलौराकोट - नेपाल
लोहे की कार्यशाला के अवशेष – तिलौराकोट – नेपाल

तिलौराकोट दुर्ग की दीवारों के बाहर दो रोचक स्थलों के दर्शन हुए। एक था वह स्तूप जो बुद्ध के अश्व कंटक को समर्पित है। कंटक ही वह अश्व था जिस पर सवार होकर राजकुमार सिद्धार्थ अर्थात् बुद्ध ने महल का त्याग किया था। तत्पश्चात उसे महल वापिस भेज दिया था। दूसरा स्थल किसी प्राचीन लोहे के कारखाने के अस्तित्व की ओर इशारा कर रहे थे। हालांकि इस कार्यशाला के अवशेष जिस टीले पर स्थित हैं वहां तक पहुँचने हेतु कुछ दूरी पैदल पार करनी पड़ती है। मेरे परिदर्शक ने मुझे बताया कि उसकी जानकारी अनुसार मैं पहली थी जिसने यह कष्ट उठाया। अन्यथा बाकी पर्यटक केवल जानकारी प्राप्त कर आगे बढ़ जाते थे। मुझे प्रसन्नता है कि मैंने इस ओर प्रयास किया और मुझे इसका फल भी प्राप्त हुआ। मुझे बुद्ध-पूर्व युग के छोटे छोटे लोहे के खांचे देखने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरे अनुमान से यह लौह आयुध व अन्य लौह वस्तुएं बनाने का कारखाना था। प्रदूषित वातावरण से बचने हेतु इसका निर्माण शहर से बहुत दूर किया गया था।

वर्तमान में यहाँ केवल मिट्टी मिश्रित लौह अवशेषों का ढेर है। इसी कारण इस इलाके की धरती बंजर हो गयी है। पुरातत्ववेत्ताओं ने यहाँ हज़ारों टनों लौह अवशेषों के होने की आशंका जताई है। इसी से कारखाने की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है।

यहाँ की एक और बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह यह कि हर महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल पर उस स्थान का नक्शा बनाया हुआ है जो पर्यटकों को उस स्थान की जानकारी देता है। हालांकि दिशा-निर्देशों का अभाव महसूस हुआ परन्तु समयाभाव ना होने के कारण मुझे स्थलों को ढूँढने में कोई कठिनाई नहीं हुई।

तिलौराकोट संग्रहालय

तिलौराकोट संग्रहालय में मृण्मयी गहने
तिलौराकोट संग्रहालय में मृण्मयी गहने

तिलौराकोट दुर्ग से करीब ४०० मीटर दूर एक छोटा पुरातात्विक संग्रहालय है। मेरे देखे सभी संग्रहालयों में यह सबसे मूलभूत संग्रहालय है। दो कक्षों में रखीं कलाकृतियों में मुख्य हैं-
• पाषाणी मूर्तियाँ
• लाल पक्की मिट्टी अर्थात् टेराकोटा की मूर्तियाँ
• सिक्के
• धूसर व लाल कुम्हारी
• मोती
• इतिहास के विभिन्न युगों में उपयोग में लायीं गईं ईंटें
• गुफाओं की खुदाई द्वारा प्राप्त वस्तुएं
• तिलौराकोट में पाए गए छिद्र बनाने के ढाँचे

गोतीहावा

गोतीहावा का अशोक स्तम्भ - नेपाल
गोतीहावा का अशोक स्तम्भ – नेपाल

गोतीहावा का सम्बन्ध क्रकुछंद बुद्ध से है। इसकी जानकारी हमें यहाँ खड़े अशोक स्तम्भ पर लिखे अभिलेखों से प्राप्त होती है। इस स्तम्भ की स्थापना भी सम्राट अशोक ने अपनी तीर्थ यात्रा के समय की थी। चीनी यात्रियों के अभिलेखों से यह पता चलता है कि इस अशोक स्तम्भ के शीर्ष पर सिंहचतुर्मुख स्तंभशीर्ष था। खुदाई के समय पुरातत्ववेत्ताओं ने यहाँ एक स्तूप की खोज की थी। उन्हें यहाँ ९-१० वीं ई. के मानव सभ्यता के भी चिन्ह प्राप्त हुए।

क्रकुछंद बुद्ध स्तूप - गोतीहावा - नेपाल
क्रकुछंद बुद्ध स्तूप – गोतीहावा – नेपाल

वर्तमान में यह स्तूप एक टीले के रूप में है जिस पर एक विशाल वृक्ष खड़ा है। अशोक स्तम्भ इसी स्तूप के बगल में बनाया गया था।

हालांकि अशोक स्तम्भ अपने मूल स्थान पर स्थित है परन्तु वर्तमान में यह भंगित है। इसके आधार का कुछ भाग ही शेष है। परन्तु इसकी महत्ता इसके ऊपर चिपके सोने की पत्तियों व इसके चारों ओर लगे रंगीन ध्वजों से स्पष्ट विदित होती है।

गोतीहावा के स्तूप व अशोक स्तम्भ के दर्शन हेतु एक लम्बा कच्चा रास्ता पार करना पड़ता है। फिर भी इसके आसपास एक संपन्न गाँव बसा हुआ है।

कुदान

कुदान - ताल, स्तूप एवं कुआँ - गोतीहावा - नेपाल
कुदान – ताल, स्तूप एवं कुआँ – गोतीहावा – नेपाल

कुदान प्राचीन काल में निग्रोधाराम नाम से जाना जाता था। गौतम बुद्ध के विश्राम की सुविधा हेतु शाक्यों ने नगर के बाहर, शांत वातावरण में निग्रोधाराम नामक एक विहार बनवाया था। यह वही स्थान है जहां परमज्ञान प्राप्ति के पश्चात गौतम बुद्ध ने सर्वप्रथम परिवारजनों से भेंट की थी। उन्होंने यहाँ अपने माता पिता, सौतेली माता प्रजापति गौतमी, अपनी पत्नी व पुत्र से भेंट की थी। उनकी सौतेली माता ने उन्हें वस्त्र भेंट किये थे। अंत में वे सब गौतम बुद्ध के साथ बौद्ध धर्म के प्रचार में शामिल हो गए थे।

पुरातत्ववेत्ताओं ने कुदान में खुदाई के समय ३ स्तूपों की खोज की थी। इनमें से एक स्तूप के ऊपर, सारनाथ के चौखंडी स्तूप की तरह, अष्टभुजा मंदिर स्थापित है। बुद्ध व अन्य भिक्षुओं की सुविधा हेतु यहाँ एक तालाब भी खुदवाया गया था।
यहाँ ईंटों से बना एक अनोखा कुआं भी है।

ईंटों से बने प्रमुख स्तूप पर चढ़ा जा सकता है। मैंने इस स्तूप के ऊपर एक अनोखा शिवलिंग देखा। इस स्तूप पर लगीं ईंटों को देखकर मुझे नालन्दा में लगीं ईंटों का स्मरण हो आया। ऊपरी सतह की ईंटें विशेष रूप से स्तूप के अलंकरण हेतु बनाए गए थे।

निगलीहावा

निगलीहावा अशोक स्तम्भ - नेपाल
निगलीहावा अशोक स्तम्भ – नेपाल

निगलीहावा एक वीरान रास्ते पर बना एक छोटा आहाता है। इस आहाते के भीतर एक अशोक स्तम्भ दो टुकड़ों में टूटा हुआ रखा है। इनमें से छोटा टुकड़ा जमीन में गढ़ा हुआ, कुछ तिरछा सा खड़ा है जबकि लम्बा निचला हिस्सा आधार से पृथक हो, उसी के समीप पड़ा हुआ है। इस स्तम्भ के लापता शीर्ष की जानकारी यहाँ किसी को नहीं है। इस स्तम्भ की स्थापना भी सम्राट अशोक ने अपने तीर्थयात्रा के समय किया था। इस स्तम्भ पर लिखे अभिलेख के अनुसार यह स्तम्भ एक स्तूप के स्थान पर खड़ा है जिसके भीतर कनकमुनी बुद्ध के पार्थिव अवशेष रखे थे। कालान्तर में इस तथ्य की पुष्टि चीनी यात्रियों ने भी की थी। जिस स्तूप के स्थान पर यह स्तम्भ खड़ा था, उसका अब अस्तित्व नहीं है। मेरे अनुमान से इस स्तूप को, आहाते के पास स्थित तालाब बनाने हेतु ध्वस्त किया गया हो।

मैंने इस स्तम्भ पर कई मोरों की नक्काशी देखी। उस पर लिखे अभिलेख मुझे कुछ नवीन प्रतीत हुए। अभिरक्षक ने इसे प्रथम प्राचीन अभिलेख बताया परन्तु बाद में इस तथ्य पर सहमति जताई कि तालाब से इस स्तम्भ की खोज के पश्चात इस पर अभिलेख खोदे गए थे।

कनकमुनी बुद्ध को कोआगमन बुद्ध और कनकगमन भी कहा जाता है।

आहाते के समीप स्थित एक छोटे मंदिर में कनकमुनि बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। काले रंग की इस मूर्ति को भक्तगणों ने सोने की पत्तियाँ अर्पित कर अलंकृत किया है। इस मूर्ति की बनावट भी अन्य बुद्ध की मूर्तियों से साम्य रखती है।

अरोराकोट

कनकमुनि बुद्ध की जन्मस्थली अरोराकोट, निगलीहावा से कुछ दो की.मी. दूर स्थित एक प्राचीन शहर है। इस शहर के नाम पर यहाँ केवल एक दीवार के मिटते अवशेष देख सकतें हैं। वह भी ध्यान से ढूँढने पर ही दिखाई देते हैं। मिट्टी से ढका यह अवशेष पुरातत्ववेत्ताओं की खुदाई का इंतज़ार कर रहा है।

सागरहावा

सागरहावा - जहाँ कभी हज़ारों स्तूप थे - नेपाल
सागरहावा – जहाँ कभी हज़ारों स्तूप थे – नेपाल

किवदंतियों के अनुसार शाक्य वंश का, शाक्य सीमा के दक्षिण स्थित कोसल राज से वैर था। प्रतिशोध की मंशा से कोसला सेना ने शाक्यों का नरसंहार किया था। उन्ही मृत शाक्यों की स्मृति में उनके वंशजों ने हज़ारों की संख्या में स्मारक स्तूप बनवाये थे। कहा जाता है कि यह सारे स्तूप सागरहावा में स्थित थे। १८९० में डॉ. फुहरर ने इनमें से कई स्तूपों की खोज की थी।

वर्तमान में यहाँ सिर्फ एक तालाब है। मैंने उस तालाब में तैरते कई सारस पक्षी भी देखे।

जगदीशपुर जलाशय

यह पक्षीदर्शन हेतु सर्वोपयुक्त, एक बड़ा जलाशय है। इसकी स्थापना १९७० में सिंचाई हेतु किया गया था। बाणगंगा के जल से भरा यह जलाशय कृषिभूमि व कुछ छोटे तालाबों से घिरा हुआ है। यह नेपाल का सर्वाधिक बड़ा व प्रमुख जलाशय है।

नेपाल के कपिलवस्तु की यात्रा हेतु सुझाव

• इस संस्मरण में बताये गए दर्शनीय स्थलों के दर्शन हेतु ६-८ घंटों का समय लगता है। इनमे लुम्बिनी से आने-जाने का समय भी शामिल है।
• ज्यादातर स्थलों पर खाने-पीने की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः अपने खाने-पीने का सामान साथ रखें।
• तिलौराकोट में पुरातन अवशेषों की जानकारी हेतु परिदर्शक उपलब्ध हैं। परन्तु अन्य स्थलों पर जानकारी देने हेतु कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
• तिलौराकोट में उपलब्ध प्रलेख आपको इतनी जानकारी अवश्य देते हैं कि आप बाकी स्थलों के दर्शन परिदर्शन के बिना भी पूर्ण कर सकतें हैं।
• समय का अभाव हो तो कुछ घंटे केवल तिलौराकोट में बिताकर भी आप कपिलवस्तु दर्शन के आनंद से अभिभूत हो सकतें हैं।
• यहाँ केवल संग्रहालय दर्शन हेतु टिकट खरीदना आवश्यक है। बाकी स्थलों का दर्शन मुफ्त है।

सम्बंधित लेख :

लुम्बिनी – भगवान् बुद्ध की जन्म स्थली 

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बोरोबुदुर – विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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लुम्बिनी का माता मायादेवी मंदिर – नेपाल में बुद्ध की जन्मस्थली https://inditales.com/hindi/mayadevi-temple-buddha-birthplace-nepal/ https://inditales.com/hindi/mayadevi-temple-buddha-birthplace-nepal/#respond Wed, 17 May 2017 02:30:24 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=245

भारत नेपाल सीमा पर स्थित लुम्बिनी बुद्ध की जन्मस्थली है। बुद्ध के जीवन से सम्बंधित, बोध गया, सारनाथ व कुशीनगर के अलावा, यह चौथा मुख्य स्थल है। लुम्बिनी – यहीं से बुद्ध की कथा आरम्भ होती है। बुद्ध के माता व पिता के आवास स्थलों के मध्य स्थित एक पवित्र उद्यान है लुम्बिनी। ससुराल से […]

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माया देवी मंदिर - लुम्बिनी , नेपालभारत नेपाल सीमा पर स्थित लुम्बिनी बुद्ध की जन्मस्थली है। बुद्ध के जीवन से सम्बंधित, बोध गया, सारनाथ व कुशीनगर के अलावा, यह चौथा मुख्य स्थल है।

लुम्बिनी – यहीं से बुद्ध की कथा आरम्भ होती है। बुद्ध के माता व पिता के आवास स्थलों के मध्य स्थित एक पवित्र उद्यान है लुम्बिनी। ससुराल से मायके की ओर यात्रा के दौरान बुद्ध की माता रानी माया देवी ने उन्हें यहीं जन्म दिया था।

माया देवी

लुम्बिनी में बुद्ध के बजाय मायादेवी की अधिक मान्यता है। मायादेवी को बुद्ध की कथाओं में से मुख्यतः २ कथाओं द्वारा जाना जाता है। पहली कथा जिसमें उन्होंने सफ़ेद हाथी का स्वप्न देखा था, जिसका अर्थ, एक महान आत्मा के उनके गर्भ में प्रवेश, बताया गया है। दूसरी कथा उस समय की है जब वह प्रसव हेतु अपने पति, शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के कपिलवस्तु स्थित से देवदाहा स्थित अपने माता पिता के महल की ओर प्रस्थान कर रहीं थीं। उनकी यात्रा को सुखद व सुविधाजनक बनाने हेतु की गयी तैयारियों की विस्तृत जानकारी बोद्ध साहित्यों में देखी जा सकती है। यात्रा के दौरान जल मुहैया कराने हेतु राह में कई तालाब खुदवाए गए थे।

बुद्ध जन्म की दंतकथाएं

माया देवी का बुद्ध को जनम देना - महायान बौद्ध मंदिर में यह दृश्य
माया देवी का बुद्ध को जनम देना – महायान बौद्ध मंदिर में यह दृश्य

कहा जाता है कि लुम्बिनी के ऐसे ही एक तालाब के किनारे मायादेवी ने, अपने ऊपर पेड़ की एक शाखा को हाथ में लिए खड़ी अवस्था में ही बुद्ध को जन्म दिया था। तीनों लोकों के देव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्वयं बुद्ध को अपने हाथों में प्राप्त करने हेतु यहाँ पधारे थे। यह किवदंतियां कहतीं हैं कि जन्म के तुरंत पश्चात बुद्ध सात कदम चले थे।जहाँ उनके चरणों ने धरती को स्पर्श किया, वहां कमल के पुष्प खिल उठे थे। इसी घटना को बुद्ध की जीवन की पहली चमत्कारी घटना माना गया है। तत्पश्चात अपने जीवन में वे कई और चमत्कार करने वाले थे।

भारत के महाबोधि मंदिर में मायादेवी और बुद्ध की जन्मकथा
भारत के महाबोधि मंदिर में मायादेवी और बुद्ध की जन्मकथा

बुद्ध जन्म का यह दृश्य कई बौद्धिक स्थलों में देखा जा सकता है। प्रायः मायादेवी के स्वप्न दृश्य के उपरांत इसे ही दूसरा मुख्य दृश्य बताया जाता है। इन दृश्यों में मायादेवी के साथ बुद्ध की दाई माँ प्रजापति गौतमी को भी दिखाया गया है।

बुद्ध से सम्बंधित अन्य स्थल हैं:-
• बोधगया – जहाँ बुद्ध को परमज्ञान की प्राप्ति हुई
• सारनाथ – जहाँ उन्होंने अपना पहला प्रवचन देकर धर्मचक्र आरम्भ किया
• कुशीनगर – जहाँ उन्हें महानिर्वाण की प्राप्ति हुई
• राजगृह – जहाँ पहला बोद्ध सम्मलेन आयोजित हुआ था
• वैशाली – जहाँ नगरवधु आम्रपाली( अम्बपाली या अम्बपालिका या आर्याअम्बा) बोद्ध धर्म स्वीकार कर बुद्ध की शिष्या बनीं

बाल बुद्ध
बाल बुद्ध

“बुद्ध जन्म का यह दृश्य लुम्बिनी का मुख्य दृश्य है।”

लुम्बिनी का मायादेवी मंदिर

माया देवी मंदिर - पृष्ठ भाग
माया देवी मंदिर – पृष्ठ भाग

लुम्बिनी स्थित चिरस्थायी मंदिर मायादेवी अर्थात् महामाया को समर्पित है। इसे प्रदिमोक्ष वन भी कहा जाता है। गत कुछ सदियों से यह मंदिर उपेक्षित था। हाल ही में पुरातत्वविदों ने यहाँ खुदाई व प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का संरक्षण आरम्भ किया है।

लुम्बिनी को १९९७ में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।

वर्तमान में मायादेवी मंदिर के नाम पर यहाँ एक बाड़ है जिसके भीतर किसी काल में स्थित प्राचीन मंदिर के अवशेष बचे हैं। कई चीनी बोद्ध विद्वान, जिन्होंने इस स्थल के दर्शन किये, अपने द्वारा लिखित साहित्यों में इन अवशेषों की पुष्टि करतें हैं। फाहियान व हुएन सांग दोनों ने अपने साहित्यों में इस मंदिर का उल्लेख किया है।

माया देवी मंदिर के आस पास रंग बिरंगे झंडे
माया देवी मंदिर के आस पास रंग बिरंगे झंडे

यह स्थल बुद्ध की जन्मभूमि है, इसका सर्वोत्तम पुरातत्व प्रमाण है यहाँ स्थित अशोक स्तम्भ और शिलालेख जिस पर इस स्थल को राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मभूमि दर्शाया गया है। इस अशोक स्तम्भ की स्थापना वर्ष २४९ ईसा पूर्व में की गयी थी। हालांकि यह बुद्ध जन्म से ३००-४०० वर्ष बाद की घटना है, तथापि यह माना जा सकता है कि मौखिक परम्पराओं ने ही प्रमुख स्थलों को जीवित रखा है। डॉ. फूहर ने १८९६ में अशोक स्तम्भ की खोज की थी।

परन्तु ईसवी सन १९९० के प्रारम्भ में ही खुदाई के दौरान प्राप्त शिला अवशेष द्वारा यह पुष्टि हो पायी कि ठीक इसी स्थल पर बुद्ध का जन्म हुआ था।

मायादेवी मंदिर के आसपास दर्शनीय स्थल

मायादेवी मंदिर वास्तव में पर्यटकों के लिए रोचक कई स्मारकों का समूह है।

मायादेवी मंदिर परिसर

माया देवी मंदिर परिसर
माया देवी मंदिर परिसर

सफ़ेद दीवारों द्वारा बने मंदिर के अहाते के भीतर स्थित मायादेवी मंदिर के ऊपर बोद्ध स्तूप समान संरचना है व भीतर प्राचीन मंदिर के अवशेष। यहाँ बड़े बड़े ईंटों को कई चौरस ढेर के आकर में रखा है। बहुत समय उन्हें निहारने के पश्चात भी मुझे इस गठन का अर्थ समझ नहीं आया। यह कक्ष, सभा मंडप अथवा विहार अथवा मठ के लिए अपेक्षाकृत छोटा था। यह मंदिर भी प्रतीत नहीं हो रहा था। मुझे शंका होने लगी कि मंदिर का यह स्वरुप खोज का नतीजा है या पुनर्निर्माण का! ज्यादातर संरचनात्मक अवशेष ५-६वीं ई के गुप्ता वंश से सम्बंधित है।

जन्म प्रतिमा

बुद्ध जन्म प्रतिमा
बुद्ध जन्म प्रतिमा

इस सभामंडप सदृश स्थल के एक ओर की दीवार पर एक पत्थर की प्रतिमा स्थापित है जिसे हाथ लगा लगा कर इतना घिसा दिया गया है कि आकृति अस्पष्ट हो गई हैं। इसे देख कर केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि यह, अन्य स्थलों पर स्थित मायादेवी की प्रतिमा सदृश है। इस कक्ष में मुख्यतः उन प्रतिमाओं का समावेश है जो बुद्ध का जन्म प्रदर्शित करती है। बोद्धधर्मियों का मानना है कि सदियों से श्रद्धालुओं द्वारा स्पर्श करने के कारण ही यह शिल्प सपाट हो गया है।

पुरातत्वविदों ने इसका जन्म प्रतिमा नामकरण किया अर्थात् वह शिल्प जो बुद्ध जन्म दर्शाता है। कालानुक्रमिक रूप से यह शिल्प ४थी शताब्दी के हो सकते है। तथापि खुदाई के दौरान मौर्ययुग से पूर्व की विशालकाय ईंटें प्राप्त हुईं हैं जो इस प्रमाण की पुष्टि करतें हैं कि यही बुद्ध की जन्म स्थली है।

पूर्व मौर्यकालीन युग की इन ईंटों का आकार ४९x३६x७ सेंटी मीटर और वजन २० किलो है।

दरअसल ईंटों का यह आकार व उसकी बनावट कौतूहल उत्पन्न करता है। इतने वर्षों उपरांत भी इन ईंटों का ज्यों का त्यों रहना आश्चर्यजनक है। हलके नारंगी रंग की यह ईंटें विभिन्न रूपों व आकारों की हैं। पता नहीं रूप और आकार में बदलाव इनके विभिन्न युगों में पाए जाने के कारण हैं या इनके विभिन्न उद्देश्यों के तहत।

सीमा शिला

सीमा शिला - लुम्बिनी
सीमा शिला – लुम्बिनी

जन्म प्रतिमा के नीचे, धरती से कुछ फीट नीचे, यह सीमा पत्थर रखा है। अनियमित आकार के इस शिला पर मानव पैर का हल्का निशान है। मान्यता है कि यह सिद्धार्थ गौतम के पाँव का निशान है। यह सब हमारी श्रद्धा पर निर्भर है। विश्वास हो तो बुद्ध के पदचिन्ह है वरना तार्किक मन इन बातों पर आसानी से विश्वास नहीं करता।

वर्तमान में यह ना टूटने वाले कांच के नीचे सुरक्षित रखा है। हम इस शिला को व इसे आस पास ढेर में रखे सभी बोद्ध देशों के सिक्कों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जो श्रद्धा स्वरुप यहाँ अर्पित करते हैं।

सामान्यतः इस शिला के दर्शन हेतु पर्यटकों व श्रद्धालुओं को कतार में खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।यह मेरा सौभाग्य है कि दोनों बार जब मैंने इस मंदिर के दर्शन किये, यहाँ ज्यादा पर्यटक मौजूद नहीं थे और मुझे यहाँ कुछ क्षण शान्ति से व्यतीत करने का आनंद प्राप्त हुआ।

लुम्बिनी का अशोक स्तम्भ

लुम्बिनी का अशोक स्तम्भ
लुम्बिनी का अशोक स्तम्भ

यह अशोक स्तम्भ मायादेवी मंदिर की पिछली दीवार के निकट स्थित है। इस पर पाली भाषा में लिखा अभिलेख कहता है कि राजा अशोक ने स्वयं लुम्बिनी के दर्शन किये थे और इस स्तम्भ की स्थापना करवाई थी। इस पर गुदे “हिता बुद्धे जाते शाक्यमुनिती” का अर्थ है शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। यह शिलालेख यह भी उल्लेख करता है कि भगवान् बुद्ध की जन्मभूमि होने के नाते, लुम्बिनी गाँव के करों को केवल आठवें भाग तक सीमित कर दिया था।

पुष्करणी अर्थात पवित्र तालाब

मायादेवी मंदिर के एक पास ही यह पवित्र तालाब स्थित है। यह वही तालाब है जहाँ सिद्धार्थ के जन्म के समय मायादेवी ने स्नान किया था। इसलिए बोद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। वर्तमान तालाब निश्चित रूप से एक नवीन संरचना है। एक विशाल बोधिवृक्ष इस तालाब के निकट स्थित है जहाँ बुद्ध को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है।यहाँ कुछ अन्य बोधिवृक्ष भी हैं, जिनमें कुछ के नीचे लकड़ी के गोलाकार पटिये रखे हैं। इन वृक्षों के नीचे बैठ कर ध्यानमग्न होते लोगों को देख कर मुझे सुकून व प्रसन्नता की अनुभूति हुई।

बोधि वृक्ष - लुम्बिनी
बोधि वृक्ष – लुम्बिनी

एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक बंधी डोर पर प्रार्थना पताकाएं लटक रहीं थीं। मायादेवी मंदिर की ओर पीठ कर जब मैं पुष्करणी के पास खड़ी थी, मेरे समक्ष रंगों का मेला लगा हुआ था।

मन्नत स्तूप

मन्नत स्तूप - माया देवी मंदिर परिसर - लुम्बिनी
मन्नत स्तूप – माया देवी मंदिर परिसर – लुम्बिनी

मायादेवी का मंदिर कई छोटे बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है जिनमें अधिकांश स्तूप खँडहर स्वरुप हैं। तथापि मंदिर से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं या कदाचित इन्हें कम छुआ गया है।

यहाँ कुछ स्तूपों के बड़े वर्गाकार आधार और कई गोलाकार आधार हैं। १६ स्तूप आधारों का यह समूह मुझे बेहद रोचक प्रतीत हुआ। शतरंज मंडल की तरह एक मंच पर स्थित यह स्तूप मुझे बेहद आकर्षक लगे। कहा जाता कि यह मन्नत के स्तूप हैं।

यह मन्नत के स्तूप, भक्तों द्वारा, इच्छा पूर्ती के उपरांत, बनाएं गएँ हैं।

विभिन्न युगों को दर्शाते यह भिन्न भिन्न स्तूप ज्यादातर १-३वीं सदी से सम्बंधित हैं।

मायादेवी मंदिर में पूजा अर्चना

एक शाम मैंने देखा कि दूर दराज के देशों से आये बोद्ध भिक्षुओं के समूह द्वारा किये पूजा अर्चना से मंदिर जीवंत हो उठा था।

अनुशासित तौर तरीके अपनाते श्रीलंका से आये कुछ बोद्ध भिक्षुओं का एक समूह बैठा था। बुद्ध की जीवनी का वर्णन करते हुए, प्रधान भिक्षु ने बुद्ध के प्रवचन सबके समक्ष दोहराए। काले वस्त्र धारण किये चीन से आये बोद्ध भिक्षुओं का एक समूह बुद्ध की बाल रूप की छवि पूजने में व्यस्त था। कुछ भिक्षुओं ने पुष्करणी के चारों ओर दीये प्रज्ज्वलित कर हमें दीपावली की रात्र का आभास करा दिया। कुछ अन्य भिक्षु मंदिर के दूसरे कोने में बैठकर मन्त्रों का जाप कर रहे थे।भिक्षुओं के एक समूह ने एक वर्गाकार आधार के स्तूप को गेंदे के फूलों से सजाया, वहीँ दूसरे समूह ने अशोक स्तम्भ को चटक रेशमी कपडे से बाँधा।

स्थानीय भिक्षुओं का एक समूह वृक्ष के चारों ओर बैठा था। मैंने उनमें से एक भिक्षु से चर्चा की और जाना कि जिस तरह पुरातत्वविदों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया, वे उससे खुश नहीं थे। उन्होंने हमें बताया कि प्राचीनकाल से यह मंदिर पूर्व-पश्चिम अक्ष पर स्थित था। परन्तु वर्तमान में भक्तगणों का प्रवेश व निकास उत्तर-दक्षिण दिशा में किया जाता है। दरअसल मध्य १९वीं ई से इस मंदिर के प्रारूप को आप कई छायाचित्रों में देख सकतें हैं और अब तक इसमें आये परिवर्तन स्पष्ट समझ सकतें हैं।

बौद्ध प्रार्थना ध्वज - लुम्बिनी - नेपाल
बौद्ध प्रार्थना ध्वज – लुम्बिनी – नेपाल

अब तक जो स्थान केवल एक खँडहर प्रतीत हो रहा था, भक्तों के मंत्रोच्चारण में सराबोर, यह सचमुच जीवित सा हो उठा था। बोद्ध भिक्षुओं की उपस्थिति हमारे अन्दर एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करने लगी थी। मैं वहीँ बैठ गयी और ध्यानपूर्वक उनका अवलोकन करने लगी। इस आध्यात्मिक ऊर्जा में भीगने लगी। और तभी मुझे अपनी इस यात्रा की सफलतापूर्वक पूर्ण होने का अहसास हुआ। पिछले दो दिनों से इस परिसर में भ्रमण करते हुए अपने जिस दिल को यहाँ से जोड़ नहीं पा रही थी, वह कुछ क्षणों में ही भिक्षुओं की असीम भक्ति के दर्शन कर यहाँ के अस्तित्व में समाने लगा था। जैसा कि कहा जाता है, भक्त की भक्ति शिला को भी देव बनाने में सक्षम होती है।

लुम्बिनी उद्यान

परम ज्योति - लुम्बिनी उद्यान
परम ज्योति – लुम्बिनी उद्यान

लुम्बिनी विकास न्यास ने एक महायोजना तैयार की है जिसके तहत लुम्बिनी का विकास कर इसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की योजना है। इस महायोजना का प्रभाव पूरे शहर में दिखाई पड़ता है। परन्तु सच्चाई यह है कि यह योजना के तहत कार्य अभी प्रगति पर है और इसकी पूर्णता में अवकाश है।

यह योजना इस परिसर को एक नहर द्वारा मध्य से दो भागों में बांटती है, जिसके एक ओर मायादेवी का मंदिर है तो दूसरी ओर एक विशाल श्वेत रंग का विश्वशांति शिवालय देखा जा सकता है।

चीनी यात्री हुआन त्सांग की प्रतिमा - लुम्बिनी
चीनी यात्री हुआन त्सांग की प्रतिमा – लुम्बिनी

इस नहर के पश्चिम में महायान बोद्ध देशों से सम्बंधित मंदिर स्थित है, जैसे कोरिया, चीन, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रिया, वियतनाम, लद्धाख और बेशक नेपाल। पूर्व की ओर थेरवाद बोद्ध धर्म का पालन करने वालों से सम्बंधित मंदिर स्थित हैं, जैसे थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, भारत का महाबोध समाज, कोलकता, नेपाल का गौतमी जनाना मठ। इन दोनों के मध्य वज्रयान बोध धर्म की भी झलक मिलती है।

थाई बौद्ध विहार - लुम्बिनी
थाई बौद्ध विहार – लुम्बिनी

दोनों ओर के संगठनों के अपने भिन्न भिन्न ध्यान केंद्र हैं जहाँ पूर्वनिर्धारित कर आप ध्यान का अभ्यास कर सकतें हैं। मंदिर परिसर के दर्शन हेतु व्यापक पदयात्रा की आवश्यकता है।

हालांकि यह मंदिर परिसर पर्यटकों हेतु खुला है, परन्तु यह निवासी बोद्ध भिक्षुओं तथा बोद्ध धर्म के अनुयायियों के ध्यान हेतु बनाया गया है। एक पर्यटक की हैसियत से आप इसकी संरचना की सराहना कर सकते है, जो स्पष्ट रूप से इस प्रदेश का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। आप यहाँ स्थित भव्य प्रतिमाएं व अलंकरण के दर्शन का आनंद उठा सकते हैं परन्तु यदि आप इस मंदिर या बोद्ध धर्म के परिपेक्ष्य में अधिक जानकारी की इच्छा रखतें हैं तो आपको स्वयं के सूत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।

म्यांमार का स्वर्णिम पैगोडा - लुम्बिनी, नेपाल
म्यांमार का स्वर्णिम पैगोडा – लुम्बिनी, नेपाल

मेरी आपको यही सलाह है कि आप अपनी प्राथमिकता अनुसार कुछ मंदिर चुनें व संतोषपूर्वक उनके दर्शन करें। यदि आप सभी मंदिरों के दर्शन करना चाहेंगे तो कुछ समय पश्चात आप ऊब या व्यामोह महसूस करेंगे। सब मंदिर बुद्ध और मायादेवी से पूर्णतया सम्बंधित हैं। यदि आप बोद्ध धर्म के अनुयायी नहीं हैं तो इसकी वास्तुशिल्प व संरचना को सराहने से ज्यादा कुछ नहीं कर पायेंगे।

जर्मनी का कलात्मक बौद्ध विहार
जर्मनी का कलात्मक बौद्ध विहार

व्यक्तिगत रूप से इस परिसर में मुझे ऑस्ट्रेलिया मंदिर में स्थित मायादेवी की प्रतिमा अत्यंत मनभावन प्रतीत हुई। इसी तरह लाल व पीले रंग के सुन्दर चीनी मंदिर में हुआन त्सांग की प्रतिमा भी बेहद खूबसूरत है। जर्मनी के मंदिर के भीतर अप्रतिम भित्तिचित्र बनाए गए हैं वहीँ नेपाल के मंदिर में विशाल बुद्ध की प्रतिमा है। थाईलैंड, कंबोडिया व म्यांमार मंदिर बाहर से अत्यंत खूबसूरत है।

लुम्बिनी विकास न्यास संग्रहालय

लुम्बिनी संग्रहालय में नगर्जुन्कोंदा के शिल्प की प्रतिमूर्ति
लुम्बिनी संग्रहालय में नगर्जुन्कोंदा के शिल्प की प्रतिमूर्ति

मध्यावर्ती नहर के एक ओर लाल रंग की ईंटों द्वारा बनायी गयी एक विचित्र आकार की इमारत है। इसके मेहराब इसे बोद्ध विहार का रूप प्रदान करतें हैं। यह लुम्बिनी संग्रहालय है। इसके प्रवेश टिकट खरीदने हेतु हमें तालाब के दूसरी ओर स्थित एक दूसरी इमारत तक चलना पड़ा। उद्यान का यह भाग इतना प्रसिद्द ना होने के कारण इस संग्रहालय के दर्शन हेतु उपस्थित दर्शनार्थियों में शायद आप अकेले हो सकते हैं। इसके पीछे भी एक ठोस कारण है।

संग्रहालय की इमारत बेहद खूबसूरत है किन्तु इसके अन्दर एक भी वास्तविक कलाकृति नहीं रखी गयी है। अपितु यहाँ उपलब्ध प्रत्येक कलाकृति अन्य बोद्ध स्थलों के प्रसिद्द प्रतिमाओं के प्रतिरूप है। अधिकांश प्रतिरूप जिन्हें मैंने गिना, वे सब आंध्रप्रदेश के नागार्जुनकोंडा से सम्बंधित थे। तथापि प्रतिरूप सुन्दर होते हुए भी असली शिला प्रतिमाओं में उपलब्ध ऊर्जा से रहित थे।

मुख्य बोद्ध स्थलों के छायाचित्र भी यहाँ रखे हुए हैं। काश उन्होंने उच्च विभेदन युक्त चित्र रखे होते जो वर्तमान में आसानी से उपलब्ध हैं।

लुम्बिनी उद्यान में विचरण

बौद्ध भिक्षु - लुम्बिनी
बौद्ध भिक्षु – लुम्बिनी

यदि आपको भी मेरी तरह पैदल चलने में आनंद आता हो तो सुबह शाम उद्यान की सैर अवश्य करें। यह पैदल टहलने हेतु अति उपयुक्त स्थल है। हर तरफ जलनिकाय हैं जहाँ आप अनेक पक्षी व तितलियों को निहार सकते हैं। शीत ऋतू में यहाँ झीलों में सारस इत्यादि अनेक प्रवासी पक्षी आतें हैं।

नेपाल का महायान बौद्ध विहार - लुम्बिनी
नेपाल का महायान बौद्ध विहार – लुम्बिनी

हालांकि थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि कई रास्ते अभी भी निर्माणाधीन हैं। कई भाग अत्यंत वीरान हैं अर्थात् आपको अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने की आवश्यकता है।

मैंने यहाँ भिक्षुओं के साथ वार्तालाप का खूब आनंद लिया। मैंने एक भिक्षुणी से भी चर्चा की उन्होंने मुझे अपनी अब तक की अध्यात्मिक यात्रा व बोद्ध धर्म में भिक्षुणियों की स्थिति के बारे में बताया। छोटे बाल भिक्षु, गेरुए पोशाक पहने, चहरे पर मासूमियत व शरारत का मिलाजुला भाव रखे, कैमरे के समक्ष शर्माते सबका मन मोह लेते हैं।

नेपाल के लुम्बिनी यात्रा से सम्बंधित कुछ सुझाव

जर्मनी का बौद्ध विहार - लुम्बिनी
जर्मनी का बौद्ध विहार – लुम्बिनी

१. लुम्बिनी छोटे बड़े जंगल विभागों से बना विशाल उद्यान है। इसलिए पैरों में आरामदायक जूते या चप्पल पहनें।

२. लुम्बिनी उद्यान के भीतर भोजन या जलपान की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। इसलिए प्रवेश के पूर्व भरपेट भोजन करना बेहतर होगा। उद्यान के पूर्वीय भाग में भेल और आइसक्रीम बेचते कुछ ठेले व पानी बेचतीं कुछ छोटी दुकानें दिखीं पर पश्चिमी भाग में खाने पीने की कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है।

३. अपने साथ पानी का भरपूर भण्डार रखें। खासकर मायादेवी मंदिर और पश्चिमी भाग के मंदिर दर्शन के दौरान इनकी आवश्यकता रहेगी।

४. उद्यान के भीतर यातायात की सुविधाएं बेहद सीमित हैं। अपनी पैदल चलने की क्षमता का सही आकलन करें। जरूरत पड़ने पर रिक्शा किराये पर लेकर भ्रमण कर सकतें हैं।

लुम्बिनी का मास्टर प्लान
लुम्बिनी का मास्टर प्लान

५. उद्यान के एक छोर से दूसरे छोर तक की दूरी नाव द्वारा भी तय की जा सकती है परन्तु इस तरह आप सभी मंदिरों के दर्शन नहीं कर पाएंगे।

६. परम्परागत व शालीन वस्त्र धारण करें क्योंकि यह एक धार्मिक स्थल है।

७. मायादेवी मंदिर व लुम्बिनी संग्रहालय के अलावा बाकी स्थलों में दर्शनार्थ प्रवेश शुल्क नहीं है। इन दोनों स्थलों में भारतीय पर्यटकों के लिए प्रवेश व कैमरा शुल्क २० रुपये है।

८. सभी मंदिर व संग्रहालय सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक खुले रहते हैं और दोपहर १ बजे से २ बजे तक मध्यांतर बंद रहतें हैं।

९. मायादेवी मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। इसके दर्शन हेतु २ घंट का समय कम से कम रखना चाहिए।यदि आपके पास लुम्बिनी दर्शन हेतु सिर्फ आधा दिन ही उपलब्ध हो तो उसे पूरी तरह मायादेवी मंदिर के दर्शन हेतु रखना ही उपयुक्त होगा।

१०. हालांकि यह उद्यान हर वक्त खुला रहता है, फिर भी सूर्यास्त के पश्चात यहाँ विचरण करना उपयुक्त नहीं होगा।

सम्बंधित यात्रा वृतान्त

बोध गया – जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ

बोरोबुदुर मंदिर – विश्व का सबसे बड़ा बौध स्थल

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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