आगरा की धरोहर यात्रा में गलियां, खाना और हवेलियाँ

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अगर आप पहली बार आगरा शब्द सुनेंगे तो आपके दिमाग में ताजमहल की छवि आएगी। इसमें आपका कोई दोष नहीं है।  मेरी पूरी तरह से सहमति है कि वास्तव में ताजमहल इस शहर का प्रतीक है। लेकिन मेरे विचार में एक शहर ( जिसकी वजह से वह प्रसिद्ध है) उससे कहीं ज्यादा अधिक दर्शनीय है। और यह मुगल शासित शहर, आगरा के ऊपर भी लागू होता है।

हाल ही में मुझे आगरा की हेरिटेज वॉक करने का सौभाग्य मिला, जिसको ” आगरा बियोंड ताज ” का नाम दिया गया था। वॉक का आयोजन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के संयुक्त प्रयासों से किया गया था। इस सैर को करने से मुझे पता चला कि चमत्कार कहीं भी मिल सकता हैं – हमें बस इसके लिए वैसी नज़रिए की जरूरत है। तो, चलिए मैं आपको पुराने आगरा की गलियों से रूबरू कराता हूं और आपको बताता हूं कि इन गलियों का इतिहास क्या है। शायद हम एक साथ चमत्कार देख ले।

आगरा का किला

आगरा दुर्ग
आगरा दुर्ग

हम सभी आगरा के टूरिज्म गिल्ड द्वारा नियुक्त टूर गाइड, गौरव जी के साथ 7-8 सीटर ट्रैवलर वैन में सवार होकर चल पड़े। वह आगरा की छोटी से छोटी बातों को बताते है कि यह मुगलों से पहले कैसे हुआ करता था। मैं कभी नहीं जानता था कि आगरा कभी ‘ अग्रवन ‘ के नाम में जाना जाता था। हम शीघ्र ही आगरा के रावत पाडा क्षेत्र में आगरा किले के पीछे पहुंचे।

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, गौरव जी ने आगरा किले की कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को बताना शुरू किया। मैं उन किताबी ऐतिहासिक कहानियों की गहराई में नहीं जा रहा हूँ, बल्कि मैं आपको आगरा के बारे में और भी कुछ आश्चर्यजनक बताऊंगा।

जैसा कि अकबर के इतिहासकार अबुल फजल द्वारा दर्ज किया गया था कि आगरा का किला एक ईंटों का किला था और जिसे ‘बादलगढ़’ के नाम से जाना जाता था। लेकिन जब अकबर ने इसका अधिग्रहण किया, तो यह खंडहर था और इसलिए उसने राजस्थान के लाल बलुआ पत्थर से इस किले का पुनर्निर्माण किया।

एक अन्य कहानी जो हमारे गाइड ने हमें बताया कि आगरा किला वहीं स्थान है जहाँ शाहजहाँ को अपने ही पुत्र औरंगज़ेब ने बंदी बना कर कैद कर लिया था। औरंगजेब ने उसे किले के एक टॉवर में डाल दिया था। पीछे की तरफ से हम स्पष्ट रूप से उस सुनहरे रंग, गुंबदाकार टॉवर को देख सकते थे। इस टॉवर को मुसम्मन बुर्ज के रूप में जाना जाता है और यहाँ से, शाहजहां स्पष्ट रूप से ताजमहल को देख सकता था क्योंकि वह अपनी पत्नी मुमताज महल के मरने के बाद अपने अंतिम दिनों ताज महल को निहारता रहना चाहता था।

आगरा किला रेलवे स्टेशन

आगरा किला रेलवे स्टेशन
आगरा किला रेलवे स्टेशन

कुछ मीटर आगे आगरा किला रेलवे स्टेशन है। आगरा किला रेलवे स्टेशन एक प्रमुख स्टेशन है और भारत के सबसे पुराने स्टेशनों में से एक है। हमारे टूर गाइड गौरव जी ने हमें बताया कि यह स्टेशन छोटी लाइन और बड़ी लाइन हुआ करता था। हाल में ही इसे बड़ी लाइन में परिवर्तित कर दिया गया है।

इसके एक तरफ आप आगरा का किला देख सकते हैं और दूसरे तरफ आप आगरा की जामा मस्जिद देख सकते हैं। गौरव जी ने आगे बताया कि जब मुग़लों के समय में यहाँ कोई स्टेशन नहीं था, तब आगरा किला और जामा मस्जिद के बीच एक बड़ा पुल हुआ करता था। लेकिन अपरिहार्य कारणों से, अंग्रेजों को इसे पूरी तरह से नष्ट करना पड़ा और आगरा किला स्टेशन का निर्माण करना पड़ा।

टूंडला, आगरा से लगभग 30-40 किमी दूर एक स्टेशन है। यह स्टेशन अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक व्यापार केंद्र था। लेकिन यह तब डाकुओं और अन्य शरारती गतिविधियों से प्रभावित था। शायद यही मुख्य कारण रहा होगा कि अंग्रेजों ने टूंडला स्टेशन को स्थानांतरित किया और एक नया स्टेशन बनाया – आगरा किला।

जामा मस्जिद

हमने आगरा फोर्ट स्टेशन में प्रवेश करने के लिए प्लेटफार्म टिकट खरीदे। रेलवे पुल की ओर बढ़ते हुए, मैंने एक मानसिक छवि बनाई कि यह स्थान उस समय कैसा रहा होगा। मैं भाप इंजन, रोजमर्रा की गतिविधियों और मनुष्यों को ऊपर और नीचे घूमते हुए और ट्रेन की सीटी को अपने मस्तिष्क महसूस कर सकता था।

हमने सीढ़ियों की चढ़ाई पूरी की और आगरा किला स्टेशन के दूसरे छोर पर पहुंचे। यहां से हम रेलवे पुल से जामा मस्जिद को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। अब आप देख सकते है कि स्टेशन के एक तरफ, आगरा का किला और दूसरी तरफ जामा मस्जिद है।

जामा मस्जिद या शुक्रवार मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ ने अपनी बड़ी बेटी जहांनारा के लिए करवाया था। इसके कुछ हिस्सों को राजस्थान के गैर-पारभासी (तरल पदार्थों को सोखने में प्रतिरोधक) और पारभासी संगमरमर से बनाया गया है, जिसे मकराना संगमरमर के नाम से जाना जाता है। यह वही संगमरमर है जिसका उपयोग ताजमहल में किया गया है।

चिम्मन लाल पूड़ी वाले

भोजन यात्रा का एक अभिन्न अंग है। जब मैं कहीं भी यात्रा करता हूं, तो भोजन के लिए एक पूर्व-निर्धारित खोज हमेशा तैयार रखता हूं। इसलिए, मुझे आपको आगरा के कुछ खाद्य पदार्थों को अवश्य दिखाना चाहिए और आपको इन खाद्य पदार्थों को क्यों खाना चाहिए, यह भी बताऊंगा।

चिम्मन लाल पूड़ी वाले आगरा के सबसे पुराने भोजनालयों में से एक हैं। 1840 में दुकान की स्थापना की गई थी और तब से भोजन की गुणवत्ता एक समान है। उन्होंने ‘पूड़ीवाला’ के रूप में शुरुआत की और अंततः समोसा, कचौड़ी, मिठाई जैसे कि आगरा-प्रसिद्ध पेठा बेचना शुरू किया।

जैसे ही हम चिम्मन लाल पूड़ी वाले के पास पहुंचे, हमारे गाइड ने इसकी एक दिलचस्प कहानी बतानी शुरू की। उन्होंने जो कहा, वही मैं यहां लिखूंगा: दरअसल, एक समय में आगरा के किले के पास शमशान घाट हुआ करता था। हिंदुओं में  यदि परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो 13 दिन तक खाना न पकाने की परंपरा है, इसलिए, जब हिंदू लोग शमशान घाट से लौटते थे, तो वे चिम्मन लाल जी को 13 दिनों के लिए भोजन पहुंचने का आदेश देते थे। जल्द ही यह प्रथा एक परंपरा बन गई और चिम्मन लाल का स्वाद आगरा में प्रसिद्ध हो गया।

बड़ई पूड़ी

बड़ई पूड़ी आगरा
बड़ई पूड़ी आगरा

आगरा की गलियों में जब हम आगे बढ़े तो हम एक बड़ई वाले के पास आ पहुंचे। बड़ई एक विशेष प्रकार की कचौड़ी की किस्म है जिसमें उड़द और मूंग जैसी सामग्री भरी होती है। इसको सब्जी के साथ परोसा जाता है और जैसे आप खाते हैं वैसे ही कुरकुरा सा लगता है। यह आगरा का एक प्रसिद्ध नाश्ता है और सुबह के समय में आसानी से चौराहों पर इनके ठेलों को देखा जा सकता है।

मैंने एक बड़ई खाई और मेरी यह व्याख्या है कि बड़ई ​​वास्तव में सामान्य पूड़ी और कचौड़ी का एक मिलन रूप है जो वास्तव में स्वाद में बिल्कुल अद्भुत था।

आगरा की गलियों में ऐतिहासिक इमारतें

इस हेरिटेज वॉक में, मैं पुराने आगरा की विभिन्न रोचक और  शानदार वास्तुकला वाली इमारतों से रूबरू हुआ। ये इमारतें रावत पाड़ा और आसपास के इलाकों में स्थित हैं। मैं इन्हें एक-एक करके यहाँ साझा करूँगा।

इंग्लैंड की रानी और राजा की उकेरी आकृतियां

रानी की आकृति
रानी की आकृति

कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर हमारा सामना एक इमारत से हुआ। यह काफी पुराना लग रहा था और ऐसा बिल्कुल महसूस नहीं हुआ कि कोई भी वर्तमान में यहां रह रहा है। यह तब तक सच लगा रहा था जब तक कि हमारी नजरें शीर्ष मंजिल पर सूखने के लिए लटकाए गए कपड़ों पर नहीं पड़ी। हमारे गाइड ने हमें इमारत में कुछ अलग ढूंढने के लिए कहा। फिर उन्होंने हमें लोहे की रेलिंग पर बनी महारानी विक्टोरिया और उनके पति प्रिंस अल्बर्ट की नक्काशी दिखाई। तो, इंग्लैंड के राजा और रानी का एक चित्र आगरा की एक इमारत पर क्यों है? आखिर उनका यहां से क्या नाता रहा होगा?

वास्तव में इसे एक इमारत कहना उचित नहीं होगा क्योंकि यह हवेली और हवेलियों की कतारें थे जो उस समय के अमीर सेठों की थी, जो कभी यहां रहते थे। प्राचीन काल में, लोहे की ढलाई भारत में नहीं बल्कि इंग्लैंड में की जाती थी। सेठ और अन्य अमीर लोग लोहे से बने रेलिंग और अन्य चीजों को बनवाने का आदेश देते थे और उन्हें वैसे ही शिलालेख और लोहे पर उकेरे हुए कलाकृतियां प्राप्त होती थीं।

500 कमरों की एक हवेली

इसके अलावा, गलियों में ही हम एक और इमारत में गए जिसका नाम कोकामल हवेली है और इसमें जगह जगह केएम  कोकामल) अंकित है, जो इसके स्वामित्व पर अपनी मुहर लगाता है।

५०० कमरों की हवेली
५०० कमरों की हवेली

कोकामल हवेली आगरा के एक सेठ के स्वामित्व वाली एक और विशाल हवेली है। यह एक भीड़भाड़ वाली गली में स्थित है। हालांकि, इसकी अवस्थिति आपको हैरानी में डाल सकती है। इस विशाल हवेली में 500 कमरे हैं। कमाल है ना?

हमने देखा कि सरकार ऐतिहासिक महत्व के इस भवन के नवीकरण का कार्य कर रही थी। कल्पना करिए कि नवीकरण के बाद यह कितना खूबसूरत लगेगा।

अखाड़ा परंपरा

आगे बढ़ते हुए, मुझे एक और दिलचस्प परंपरा के बारे में पता चला जो कि अखाडा परंपरा है। हमारे गाइड ने हमें बताया कि अखाड़ा सेठों और अमीर लोगों के घरों का एक अभिन्न हिस्सा था। चूँकि वे बहुत अमीर थे और उन्हें धन की सुरक्षा करनी पड़ती थी, इसलिए वे उन अखाड़ों में पहलवान (पहलवानों) को पालते थे।

हवेली के उपरी भाग में स्थित अखाडा
हवेली के उपरी भाग में स्थित अखाडा

यह जानकर मैंने तुरंत हमारे गाइड से पूछा कि क्या हमारे लिए कोई अखाड़ा या पहलवान देखना संभव होगा? सबसे पहले तो लगा कि देख पाना कठिन होगा लेकिन मैं आभारी हूं कि हमारे गाइड हमें अखाड़ा दिखाने में कामयाब रहे।

और पढ़ें – काशी का तुलसी अखाडा 

बहुत हलचल वाली सड़क से होते हुए हम एक हवेली के इर्दगिर्द आए, जिसकी छत पर एक अखाड़ा था। यह कोकामल से पैदल दूरी पर स्थित था। चूंकि हम सुबह के समय पहुंचे थे तो ऊपर जाकर अखाड़ा नहीं देख पाए, बस दूर से ही देखकर संतोष करना पड़ा।

मुन्ना लाल पेठे वाले

अब मैं आपके साथ आगरा की प्रतिष्ठित मिठाई पेठा के बारे में बात करता हूं। पेठा एक तरह की मिठाई है जो कुम्हड़ा या सफेद कद्दू से बनी होती है और पूरे देश में यह प्रसिद्ध है। आगरा की भीड़भाड़ वाली गलियों से होते हुए, हम रावत पाड़ा चौक पर मुन्ना लाल पेठे वाले के पास पहुंचे। देखने में यह दुकान किसी अन्य सामान्य दुकान की तरह है लेकिन सुंदरता उनके ताजा और स्वादिष्ट पेठे में निहित है।

आपने पंछी पेठा के बारे में तो सुना ही होगा। वे आगरा में सबसे पुराने पेठा निर्माता हैं। उनके बाद मुन्ना लाल पेठे वाले भी एक जानी पहचानी दुकानों में आते हैं। यदि आप असली पंछी पेठा की दुकान को लेकर असमंजस में हैं तो आप इस दुकान पर आ सकते हैं।

हमने यह भी देखा कि पेठे कैसे बनाए जाते हैं। मुन्ना लाल पेठे वाले के मालिक से आग्रह करने के बाद, वह हमें पेठा बनाने की प्रक्रिया दिखाने के लिए सहमत हुए। आप इसके बारे में यहां और अधिक पढ़ सकते हैं।

मसालों वाली गली

मसालों वाली गली मुख्यत एक पुरानी सड़क है। यहां आपको हर तरह के मसाले देखने कों मिल जाएंगे। हल्दी और धनिया की सुगंध आपकी नाक भर देगी। यहां, आप भारतीय व्यंजनों में मसालों के महत्व को अच्छी तरह से समझ सकते हैं और मसाले भोजन का एक अभिन्न हिस्सा क्यों हैं।

मैं यहां आपको अपनी नाक को ढंकने की सलाह देता हूं क्योंकि मसालों की सुगंध से आपको छींक आना स्वाभाविक है। आप यहां गलियों में घूमें और विभिन्न प्रकार के भारतीय मसालों को देखें।

मनकामेश्वर मंदिर

अगला पड़ाव एक प्राचीन मंदिर मनकामेश्वर था। हमारी यात्रा यहीं समाप्त होनी थी। मनकामेश्वर मंदिर, भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं इस शिवलिंग की स्थापना तब की, जब भगवान कृष्ण को बाल रूप में देखने की उनकी मनोकामना (दिल की इच्छा या इच्छा) पूरी हुई।

मनकामेश्वर मंदिर में चांदी के शिवलिंग
मनकामेश्वर मंदिर में चांदी के शिवलिंग

इस मंदिर पर स्वयं भगवान शिव की कृपा है। कहा जाता है कि सच्चे मन से निकली हुई मनोकामनाएं यहां पूरी होती हैं। इसलिए, यदि आप किसी चीज़ की कामना रखते हैं, तो यहां आपकी मन की कामना अवश्य पूरी होगी।

आपको मंदिर भवन तक पहुंचने के लिए सकरी गली से होकर गुजरना होगा। इन गलियों में आपको भगवान शिव की प्रिय मिठाई – कलाकंद भी मिल जाएगी। भगवान शिव को चढ़ाने के लिए लोग कलाकंद खरीदते हैं।

कलाकंद - शिवजी का भोग
कलाकंद – शिवजी का भोग

मंदिर में प्रवेश करते ही आप गौर करेंगे कि मुख्य हॉल में एक चमकदार शिवलिंग स्थापित है। इसकी चमक और चांदी के शिवलिंग के कारण, इस मंदिर को आगरा के “चांदी के शिवलिंग मंदिर” के रूप में भी जाना जाता है।

आगरा की वैद्य गली

हमारा हेरिटेज वॉक मनकामेश्वर मंदिर पर समाप्त हुई। इसलिए हम सभी इकठ्ठा होकर एक ही मार्ग से लौटने लगे। जब हम आगरा किला रेलवे स्टेशन पहुंचने ही वाले थे, तो हमारे गाइड ने हमें एक और दिलचस्प बात बताई – डॉक्टर की गली या वैद्य की गली।

यह एक साधारण गली है, जहां आयुर्वेद का अभ्यास करने वाले डॉक्टर निवास करते हैं और उनका चिकित्सालय भी मौजूद है। लोग कहते हैं कि यहां ऐसे डॉक्टर हैं जो केवल नसों को छूकर बीमारी का नाम बता सकते हैं। विज्ञान की पृष्ठभूमि से होने के कारण, मेरा दिमाग समझ नहीं सका कि यह कैसे हो सकता है?

लेकिन बात लोगों का डॉक्टरों पर भरोसे का है। इन चिकित्सालयों की दवाएं बहुत किफायती हैं और आप सिर्फ 100-200 रुपये में इलाज करवा सकते हैं

कुछ प्रमुख बिंदु

कुछ प्रमुख बिंदु हैं, जिन्हें मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा। मुझे यकीन है कि ये बिंदु आपको अगली बार आगरा का एक हेरिटेज वॉक करने में मदद करेंगे।

  • आगरा ताज से कहीं अधिक है।
  • उक्त ऐतिहासिक इमारतें पुराने आगरा और रावत पाड़ा के आसपास के क्षेत्रों में स्थित हैं।
  • बड़ई ​​को सड़क विक्रेताओं के पास आसानी से पाया जा सकता है।
  • आप मुन्ना लाल पेठे वाले के वहां पेठा बनते हुए देख सकते हैं। दुकान के बाईं ओर की सड़क पेठा बनानेवाले स्थल की ओर जाती है। सुनिश्चित करें कि आप पहले अनुमति लें।
  • आप गुरुवार (छुट्टी) के दिन वैद्य गली के डॉक्टरों और चिकित्सालयों को नहीं देख सकते हैं।
  • यहाँ उल्लेखित प्रत्येक स्थान पर फोटोग्राफी की अनुमति है।

निष्कर्ष

पूरे हेरिटेज वॉक को पूरा करने में हमारे समूह (7 लोगों) को लगभग 4-5 घंटे लगे। इसलिए, मेरा मानना ​​है कि अगर आप अकेले जा रहे हैं तो कम समय भी लग सकता है।

मुझे इस बात का सौभाग्य है कि मुझे इंडिटेल्स का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और इस यात्रा को खूबसूरती से पूरा करने के लिए टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा और उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग का भी आभारी हूं। दरअसल यह वॉक तारीफ के काबिल है क्योंकि इसमें हमारा मुख्य आकर्षण ताज नहीं बल्कि उसके अलावा वो सभी इमारतें और प्राचीन गालियां रहीं जिनको अक्सर हम नजरअंदाज करते है।

इसलिए, अगली बार जब आप आगरा में हों तो आगरा को ताज के अलावा भी देखने की कोशिश करें क्योंकि मैं हमेशा कहता हूं कि एक शहर की पहचान सिर्फ उसके प्रमुख आकर्षण से ही नहीं है। हर शहर की अपनी कुछ अनकही बातें और अनदेखी तस्वीरें है।

यह लेख विपिन कुमार और अभिषेक ने लिखा है जो Inditales के प्रतिनिधि थे इस यात्रा पर।

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