बाघ गुफाएं और उनके अद्भुत भित्तिचित्र व ठप्पा छपाई

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जब से मैंने दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में भारतीय कला का अध्ययन किया था, तब से मध्य प्रदेश की बाघ गुफाओं के दर्शन करना मेरी यात्रा प्राथमिकता में उच्च स्थान पर था। मुझे अब भी स्मरण है, डॉ. अनुपा पांडे ने सर्वप्रथम हमें अजंता के भित्तिचित्रों को ‘पढ़ना’ सिखाया। उन्होंने हमें वहाँ के प्रमुख भित्तिचित्रों एवं जातक कथाओं के विषय में जानकारी दी। दूसरे दिवस उन्होंने हमें इन बाघ गुफाओं के विषय में बताया था। उन्होंने हमें बताया कि अब उन गुफाओं में कोई भी भित्तिचित्र नहीं हैं। अपितु उन चित्रों को सावधानीपूर्वक निकालकर वहीं संग्रहालय क्षेत्र में संरक्षित किया गया है। मैंने अजंता गुफाओं के अनेक बार दर्शन किए हैं किन्तु बाघ गुफ़ाएं कई प्रयत्नों के बाद भी मेरी पहुँच से दूर रहीं।

ऊंची चट्टान पर स्थित बाघ गुफाएं
ऊंची चट्टान पर स्थित बाघ गुफाएं

कुछ समय पूर्व, जब मैं मध्य प्रदेश ‘रानियों के नगरों की’ यात्रा कर रही थी तब भी मैं इन गुफाओं के दर्शन करना चाहती थी किन्तु अपनी सीमित समयसारिणी के चलते एक बार फिर निराश ही हाथ लगी। इस समय जब मैं मांडू उत्सव में भाग लेने मध्य प्रदेश गई थी, तब मैंने स्वप्न में भी बाघ गुफाओं के दर्शन की योजना नहीं बनाई थी। किन्तु कदाचित मेरे इन गुफाओं के दर्शन का समय आ गया था। अतः जैसे ही मुझसे पूछा गया कि क्या मैं बाघ गुफाओं के दर्शन करना चाहती हूँ, बिना एक क्षण गँवाए मैंने तुरंत ‘हाँ’ कर दी। और तो और, १० मिनटों के भीतर मैं गाड़ी में बैठकर धार की ओर जा रही थी। बाघ गुफाओं से सर्वाधिक समीप नगरी धार ही है।

बाघ गुफाओं का इतिहास

इन गुफाओं के भित्तिचित्र अजंता गुफाओं के समकालीन हैं। वैसे तो इन दो गुफाओं में ३०० किलोमीटर का अंतर है, फिर भी दोनों की भौगोलिक अवस्थिति में विशेष अंतर नहीं है। बाघिनी नदी के तीर स्थित ये गुफ़ाएं भी मानव-निर्मित हैं। बिहार में स्थित बराबर गुफाओं से आरंभ हुई भारत की प्रसिद्ध शैलकर्तित स्थापत्य तकनीक, अर्थात शिलाओं को काटकर निर्मित की गई संरचना का एक और अप्रतिम उदाहरण है ये बाघ गुफ़ाएं।

बाघ गुफाएं
बाघ गुफाएं

इन गुफाओं को लगभग ५-६ वी. सदी में शिलाओं को काटकर निर्मित किया गया है। बौद्ध काल की यह अंतिम समयावधि इन गुफाओं को सर्वाधिक नवोदित गुफाओं में से एक बनाती है। उस समय इस क्षेत्र में सातवाहनों का राज था। माहिष्मती अर्थात महेश्वर के महाराज सुबंधु द्वारा अभिलेखित ४१६-१७ ई. के एक ताम्र पात्र में इस बौद्ध विहार को दिए गए अनुदान का उल्लेख किया गया है। उस अभिलेख में इस विहार को कल्याण विहार कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध भिक्षु दातक ने बाघ गुफाओं की रचना की थी।

लगभग १० वी. सदी के आसपास हुए बौद्ध धर्म के पतन के पश्चात कदाचित इन गुफाओं का परित्याग कर दिया गया था। उसके पश्चात यह गुफ़ाएं बाघों के निवास में परिवर्तित हो गईं। तभी से इन गुफाओं को बाघ गुफाएँ भी कहा जाता है।

बाघ गुफाएं एक ऊंचे बलुआ पत्थर के ऊपर एक पंक्ति में उत्कीर्णित है। मुझे बताया गया कि यह शिला इस क्षेत्र की एकमात्र बलुआ पत्थर की शिला है। अन्यथा अधिकतर शिलाएं कड़क बसाल्ट शिला है। आज हम सीढ़ियाँ चढ़कर इस विशाल शिला तक पहुंच पाते हैं। कभी कभी सोच में पढ़ जाती हूँ, जब इस गुफा का कार्य आरंभ किया गया था, उस समय कारीगर यहाँ तक कैसे पहुंचते थे!

बाघ गुफा के दर्शन

गुफाओं के परिसर को अत्यंत संरक्षित एवं सुंदर बाग-बगीचों द्वारा अलंकृत रखा गया है। टिकट खिड़की से टिकट खरीदकर आप भीतर प्रवेश कर सकते हैं। एक पक्की पगडंडी आपको गुफाओं तक ले जाएगी। बाघिनी नदी के ऊपर स्थित एक छोटे सेतु से होते हुए आप गुफाओं के आधार तक पहुंचेंगे। नदी में जल अधिक नहीं था। वैसे भी मैं यहाँ जनवरी में आई थी जब नदियों में जल अधिक नहीं रहता। नदी को देख मैंने अनुमान लगाया कि इसकी उपस्थिति ही यहाँ गुफाओं की खुदाई करने का कारण रहा होगा। पीने का जल आसानी से उपलब्ध है।

बाघिनी नदी
बाघिनी नदी
बाघ गुफा में शिवलिंग
बाघ गुफा में शिवलिंग

गुफाओं तक जाती सीढ़ियाँ चढ़कर जब मैं वहाँ पहुंची, सर्वप्रथम मेरी दृष्टि दाहिनी ओर धरती पर उत्कीर्णित शिवलिंग पर पड़ी। उसके समीप दो पैरों के चिन्ह भी उत्कीर्णित थे। लिंग पर अर्पित पुष्प बताया रहे थे कि इसकी अब भी पूजा अर्चना की जाती है। उन्हे देख यह कहना कठिन था कि वे गुफाओं की निर्माण के समय से थे अथवा उन्हे कालांतर में बनाया गया है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह इस प्राचीन गुफा परिसर का जागृत भाग है।

गुफा २ अर्थात पांडव गुफा

मैंने अपने समक्ष स्थित गुफाओं पर अपनी जिज्ञासू दृष्टि डाली। मेरे समक्ष विशाल स्तंभ थे जो शिलाओं का भार उठाए हुए थे। इन स्तंभों के एक ओर स्थित गुफाओं में विशाल मूर्तियाँ थी। बाईं ओर स्थित मूर्ति को पहचानना कठिन था। दाहिनी ओर की मूर्ति गणेश की थी।

बाघ गुफाएं
बाघ गुफाएं

मैंने गुफा के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करते ही स्वयं को २४ विशाल स्तंभों से घिरा पाया जो गोलाकार थे तथा उन पर समांतर तिरछी रेखाएं खुदी हुई थीं। उनमें से कई स्तंभों के निचले भागों पर नवीनीकरण के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे। कुछ स्तंभों के छत को छूते ऊपरी भागों पर पुष्पाकृतियाँ उत्कीर्णित थीं। एक प्रकार से, सभी स्तंभ अपेक्षाकृत सादे तथा चौड़े थे। गुफा का अधिकतर भाग इन स्तंभों से ही भरा हुआ था।

बाघ गुफा में बौद्ध स्तूप
बाघ गुफा में बौद्ध स्तूप

गुफा के भीतरी भाग में चैत्य गृह है जिसके भीतर एक संकरा ऊंचा स्तूप है। स्तूप की ऊंचाई लगभग छत तक है। ऐसा प्रतीत होता है मानो छत नीचे आ गई हो अथवा स्तूप की ऊंचाई कालांतर में बढ़ाई गई हो। चैत्य की बाहरी भित्तियों पर बड़ी बड़ी प्रतिमाएं हैं किन्तु किस की प्रतिमाएं है, यह जान पाना कठिन था। एक प्रतिमा की बाहरी रेखाओं से वह बुद्ध के समान प्रतीत होते हैं किन्तु सूक्ष्म लक्षणों की अनुपस्थिति में यह बताना कठिन है कि वह बुद्ध है अथवा एक बोधिसत्व।

बुद्ध और बोधिसत्व - बाघ गुफाएं
बुद्ध और बोधिसत्व मूर्तियाँ

दाहिनी ओर दूर स्थित एक भित्ति पर कुछ धुंधले भित्तिचित्र थे। किसी समय ये उजले रंगीन चित्र रहे होंगे, किन्तु अब जो बचा है उससे उनके मूल स्वरूप की अंश मात्र झलक भी प्राप्त नहीं होती। ध्यानपूर्वक निहारने पर मुझे कुछ पुष्पाकृतियों की झलक अवश्य दिखी। आसपास के अधिकतर भागों पर मरम्मत की गई है।

बाईं ओर एक अन्य गुफा के अवशेष थे जिसके भीतर जाना कठिन था। किन्तु आप वहाँ भी वैसे ही स्तंभ देख सकते हैं जो मुख्य गुफा में हैं।

बाघ गुफाएं ३ एवं ४

ये गुफाएं थोड़ी अधिक संरक्षित हैं। बाहरी भित्तियों पर कुछ प्रतिमाएं हैं जो समय के साथ अत्यंत कट गई हैं। मुख्य द्वार की चौखट पर कुछ उत्कीर्णन हैं। गुफा के अग्रभाग को कुछ स्तंभों की पंक्ति ने ढँक दिया है। ये स्तंभ अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत होते हैं। कदाचित प्राचीन स्तंभों के स्थान पर इन्हे प्रतिस्थापित किया गया है।

थपेड़े खाती हुई मूर्तियाँ
थपेड़े खाती हुई मूर्तियाँ

इतने वर्षों में इन शिलाओं ने कितने जल सतह देखे, यह इन शिलाओं की सतह की रचना स्पष्ट दर्शाते है। गुफा के भीतर भी सर्वत्र जल का रिसाव आप अब भी देख सकते हैं।

गुफा के भीतर, एक भित्ति तथा कुछ स्तंभों पर भित्तिचित्रों के कुछ अवशेष अब भी हैं। भित्ति पर चित्र रंगीन हैं किन्तु स्तंभों पर केवल ज्यामितीय आकृतियाँ हैं, वह भी श्वेत-श्याम। सत्य कहूँ तो मैंने अब तक किसी भी प्राचीन भारतीय गुफा के भीतर ज्यामितीय आकृतियाँ नहीं देखीं। ये आकृतियाँ मुझे नवीन कलाकृति प्रतीत हुईं। इसका सत्यापन करने के लिए वहाँ कोई भी अधिकारिक सूत्र उपस्थित नहीं था।

बाघ गुफाओं के भित्तिचित्र
बाघ गुफाओं के भित्तिचित्र

यहाँ भी चैत्य गृह जैसे एक कक्ष में एक स्तूप है जो एक बार फिर छत को छू रहा है। बाघ गुफाओं के स्तूप सँकरे एवं ऊंचे हैं जिनका ऊपरी भाग गोलाकार है तथा निचला भाग षट्कोण के आकार का है। जबकि अजंता तथा साँची के स्तूप उलटे अर्धगोलकार के हैं।

मुख्य कक्ष के चारों ओर अनेक छोटे कक्ष हैं जिनमें अधिकांश रिक्त हैं। या तो ये किसी समय ध्यान कक्ष थे अथवा इनके भीतर की प्रतिमाओं को वहाँ से निकाल दिया गया है।

चौथी गुफा को उसमें स्थित चटक रंगों के भित्ति-चित्रों के कारण कभी कभी रंग महल भी कहते हैं।

बाघ गुफाएं ५ एवं ६

बाघ गुफाओं के स्तम्भ
बाघ गुफाओं के स्तम्भ

यह एक लंबी संकरी गुफा है। इसके भीतर स्तंभों की दो पंक्तियाँ आमने-सामने खड़ी हैं। यहाँ भी गुफा का अधिकतम भाग इन स्तंभों ने घेर रखा है। इस गुफा में मैंने भूमिगत जल की धारा देखी। कहा नहीं जा सकता ये धारा कहाँ से आ रही है, कहाँ जा रही है, प्राचीन काल से है अथवा कालांतर में बनाई गई है?

यहाँ तीन और बाघ गुफाएं भी हैं जिन्हे ७ से ९ क्रमांक दिया गया है। किन्तु ढह जाने के कारण इनका अवलोकन संभव नहीं है।

गुफा क्षेत्र के संग्रहालय में बाघ चित्रकला

संग्रहालय में भित्तिचित्र
संग्रहालय में भित्तिचित्र

आप जैसे ही गुफा से नीचे आकर बाघिनी नदी पार करेंगे, एक सादी कान्क्रीट की इमारत देखेंगे जिसके भीतर एक छोटा संग्रहालय है। इस संग्रहालय में आप वो मौलिक चित्र देखेंगे जिन्हे गुफाओं की भित्तियों से निकालकर यहाँ संरक्षित किया गया है। इनके सिवाय कुछ अन्य चित्र ग्वालियर के पुरातात्विक संग्रहालय में भी रखे गए हैं।

यहाँ इन चित्रकलाओं के विषय में कुछ जानकारी उपलब्ध है।

बाघ चित्रकला में टेम्परा चित्रण तकनीक का प्रयोग किया जाता है। शिलाओ की सतह पर सर्वप्रथम मिट्टी एवं पौधों के रेशे मिलकर एक परत बनाई जाती है। तत्पश्चात उस पर चूना पोता जाता है। इस सतह पर रंगों से चित्रकारी की जाती है। ऐसी ही तकनीक एवं रंग अजंता की गुफाओं में भी प्रयोग किए गए हैं।

सूचना पट्टिकाओं पर अंग्रेजी एवं हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चित्रों एवं प्रयोग किये गए तकनीक के विषय में जानकारी दी गई है।

मैंने यहाँ बोधिसत्व पद्मपाणि, ज्यामितीय आकृतियाँ, विदुर पंडित जातक जैसी जातक कथाएं, वनस्पति एवं जीवों की चित्रकारियाँ देखीं। यदि कोई गाइड मुझे इन प्राचीन एवं विलक्षण चित्रों के विषय में विस्तृत जानकारी देने हेतु उपलब्ध होता तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होती। यहाँ की बाघ चित्रकारी में गेरुए लाल रंगत की प्रधान्यता है।

जानकारी की कमी

मेरी तीव्र अभिलाषा है कि इन गुफाओं के विषय में विस्तृत जानकारी गुफाओं में अथवा संग्रहालय में उपलब्ध हो। हमारे साथ मांडू से जो गाइड आया था उसे मात्र इतनी ही जानकारी थी कि ये बौद्ध गुफ़ाएं हैं। स्थानीय गाइड उपलब्ध नहीं थे। टिकट खिड़की पर भी किसी प्रकार की सूचना पुस्तिका उपलब्ध नहीं थी। संग्रहालय में अवश्य इन चित्रों के विषय में कुछ जानकारी चिन्हित थी किन्तु साथ ले जाने के लिए संबंधित पुस्तिका उपलब्ध नहीं थी।

गुफाओं के भीतर प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अधिकतर पर्यटक अपने मोबाईल के प्रकाश का प्रयोग कर गुफाओं की असमतल सतह से बचते हुए मार्ग खोज रहे थे।

बाघेश्वरी देवी मंदिर

बाघेश्वरी देवी मंदिर
बाघेश्वरी देवी मंदिर

बाघ नगरी में एक छोटी पहाड़ी पर बागेश्वरी देवी का मंदिर है। ये बाघ नगरी की ग्राम देवी है।

मंदिर के समीप गणपत हलवाई की दुकान है जहां हमने दोपहर का भोजन किया। यह भोजन लगभग हमारे घर के भोजन जैसा था।

बाघ ठप्पा छपाई

बाघ जाते समय मार्ग में हमने अनेक कपास के खेतों को पार किया। ये खेत कपास से भरे तथा कटाई के लिए प्रस्तुत थे। चारों ओर किसान कपास के डोडे तोड़ रहे थे तथा उन्हे बिक्री करने के लिए मंडी में ले जा रहे थे। कपास के खेतों में जाना, किसानों से वार्तालाप करना तथा कुछ डोडे तोड़ना, इस सब में मुझे अत्यंत आनंद आया। इन डोडों के भीतर के बीज को अपने हाथों से अनुभव किया। इन बीजों को कताई से पूर्व अवश्य निकाल कर पृथक किया जाता है। तत्पश्चात इनसे वस्त्र बुना जाता है।

बाघ की प्रसिद्द ठप्पा छपाई
बाघ की प्रसिद्द ठप्पा छपाई

चूंकि मैंने गुफाओं एवं उनके भीतर स्थित भित्तिचित्रों के विषय में अध्ययन किया था, मुझे उनके अवलोकन की उत्सुकता थी। उसी प्रकार मेरे साथी पर्यटक बाघ के ठप्पा छपाई कारीगरों से भेंट करने के लिए उत्सुक थे। हम कुछ स्थानीय बुनकरों से भेंट करना चाहते थे किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि अब बुनकर अधिकांशतः उपलब्ध नहीं हैं। अब केवल बाघ छपाई प्रसिद्ध है जिन्हें मैं बहुत समय से धारण कर रही हूँ।

कार्यशाला

लंबी खोज के पश्चात हम खत्री ठप्पा छपाई के कार्यशाला में पहुंचे। अनेक रंगों की कोमल साड़ियाँ उनके प्रांगण में सूखने के लिए फैलाई हुई थीं। उन्होंने हमें पूर्ण श्रद्धा से छपाई का प्रत्येक चरण दिखाया। एक ओर छपाई ठप्पों का ढेर लगा हुआ था। प्रत्येक छोटा-बड़ा ठप्पा लकड़ी का था। ये लकड़ी के टुकड़े वास्तव में बाघ छपाई कारीगरों का खजाना हैं।

हाथ की छपाई
हाथ की छपाई

प्रत्येक कपड़े पर हाथों द्वारा कोमलता से तथा सावधानी से ठप्पों का प्रयोग कर छपाई की जाती है। आकृतियों को सावधानी से जोड़ते हुए ठप्पे को वस्त्र पर दबाया जाता है। इस प्रकार पूर्ण आकृति तैयार की जाती है। अब इस वस्त्र को उबलते जल में पकाया जाता है तथा तदनंतर सुखाया जाता है। इससे रंग पक्के हो जाते हैं। बाघ छपाई के इन वस्त्रों में तीन रंगों की प्रधान्यता होती है, लाल, काला व बिस्कुटी।

बाघ की पारंपरिक छपाई
बाघ की पारंपरिक छपाई

मेरे साथी पर्यटक साड़ियाँ, दुपट्टे तथा वस्त्र क्रय करने में व्यस्त हो गए जबकि मैं शांति से बैठकर छपाई की आकृतियों को निहारने का आनंद ले रही थी। स्थानीय वस्त्र एवं प्राचीन छपाई तकनीक के बीच का अदृश्य संबंध मेरे समक्ष जीवंत उपस्थित था। छपाई कारीगर इस तकनीक की वंशावली को राजस्थान के मरवाढ़ क्षेत्र से जोड़ते हैं।

बाघ के लिए यात्रा सुझाव

• इन गुफाओं का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।
• प्रवेश शुल्क भारतीयों के लिए २५ रुपये तथा विदेशियों के लिए २५० रुपये है। १५ वर्ष से कम आयु के पर्यटक निशुल्क प्रवेश कर सकते हैं। टिकट में संग्रहालय प्रवेश शुल्क सम्मिलित है।
• इन गुफाओं के दर्शन के लिए एक घंटे का समय पर्याप्त है। ये गुफ़ाएं प्रातः ९ बजे से संध्या ५ बजे तक खुले रहते हैं।
• बाघ में तथा आसपास कोई भी अल्पाहार गृह अथवा भोजनालय उपलब्ध नहीं हैं। अतः अपने खाने-पीने की वस्तुएं साथ ले जाएँ।
• आप मांडू, धार अथवा इंदौर से बाघ गुफाओं के दर्शन दिवसीय यात्रा के रूप में कर सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

5 COMMENTS

  1. अनुराधा जी, सदीयों पूर्व निर्मित, मध्य प्रदेश में स्थित बाघ की गुफाओं के बारे में विस्तृत जानकारी युक्त आलेख ! यह अच्छी बात हैं कि गुफाओं के परिसर को बहुत ही सुंदरता से संरक्षित किया गया है । साथ ही गुफाओं के मौलिक भित्ति चित्रों को निकालकर,परिसर के ही संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया हैं । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को इन गुफाओं के रखरखाओं पर और अधिक ध्यान देना चाहिये ताकि सदीयों पुरानी यें सम्पदाये आगे भी सुरक्षित रह सके ।
    धन्यवाद !

  2. आपका बहुत आभार जो आपने हम इन सब बातो से अवगत करवाया उसके। बहुत धन्यवाद

  3. पिछले महीने ही बाघ गुफाये देखने का मौका मिला | सफर तय नही था इसलिए जल्दी ही समाप्त किया | पर आपकी जानकारी काफी महत्वपूर्ण है बाघ गुफाओ को समझने के लिए | आपका बहुत शुक्रीया |एक बात, जो सभी का ध्यान आकर्षित करती है, वो है वहाँ का शिवलिंग | इसपर आप जानकारी साझा करेंगी तो काफी मदत होंगी |
    धन्यवाद

  4. में धार जिले का ही निवासी हूं एक मध्यम वर्गिय किसान से हूं, मैने बचपन से बड़ो से सुना था की बाग की गुफा प्रसिद्ध हैं।
    में बचपन से ही प्राचीन इतिहास में बड़ी रुचि थी। पौराणिक कथाओं को सुनना बहुत रुचि थी
    हालांकि मुझे इतिहास में सन् और अंकों में ध्यान नहीं रख पाता था । जो की गणित मेरी कमजोरी थी।
    खैर में जब 12th उत्तीर्ण होने के बाद । आर्थिक स्थिति न होने के कारण मुझे । शिक्षा को छोड़ना पड़ा फिर पिता जी की आर्थिक स्थिति देख कर मेने 2000 महीने से मेने बोरवेल (नलकूप) जैसी मशीन पर काम किया । लगभग 2004 में में बाग के गांव में सरकारी बोरवेल नलकूप खनन के लिए गया था । सहसा मुझे बाग की गुफाएं याद आई । में देखने चला गया । मेने 2 गुफाएं ऐसी स्थिति में थी की सायद उसे स्तूप कहते है। जो अंतिम स्थिति पर थी की अगर में अंदर जा कर देखू तो ऊपर गिर जायेगी ।
    उस समय जो चलचित्र थे लगभग अच्छी स्थिति में दिख रहे थे। में आश्चर्य चकित हो गया की 5वि सदी में कितना रंग पक्के थे जो आज तक दिख रहे है।
    फिर स्थानीय लोगो से बात की थी ।ये गुफाएं कब की है। कुछ लोगो ने बताया था की बौद्ध की ओर पांडवों की भी गुफा है जो यहां अज्ञात वर्ष में यही पर 1 वर्ष बिताया था । यहां की गुफाएं बलुआ चट्टानों से निर्मित हुई है । इस गांव के आसपास की भू भाग के अंदर चुना, कैल्शियम और बलुआ पत्थर भरपूर मात्रा में उपस्थित है।
    बलुआ चट्टान एक परत दर परत की तरह होती है । जो पानी और सूर्य की गर्मी से स्वत: मिट्टी की तरह गिरती है । जो उन स्तूप के अंदर स्तंभ उसी की सुरक्षा के लिए लगाए गए थे।

    यहां के लोग सीधे साधे होते है ।
    अगर यहां कोई भी देखने आए तो यहां से शाम को 4 बजे निकल जाए ।क्योंकि जो यहां की विंध्य की घटिया है । यहां रात में चोरी और डकैती का भय लगा रहता है । हर 2 ,4 दिनों में घटनाएं होती है।

    मुझे बहुत खुशी हुई कि यहां भी देखने आते है लोग ।

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