राजा भोज का भोजेश्वर मंदिर – भोजपुर का प्रसिद्ध शिवलिंग

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मैंने जब सर्वप्रथम भोजपुर का नाम सुना था तब मुझे इस लोकप्रिय हिन्दी मुहावरे का स्मरण हो आया था, “कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली”। इस मुहावरे का प्रयोग साधारणतः दो विपरीत स्थितियों को दर्शाने के लिए किया जाता है। कदाचित यह मुहावरा राजा भोज की छवि एवं उनके राज्य की समृद्धि को दर्शाने के लिए भी सर्वोपयुक्त है। राजा भोज के राज्य की भव्यता एवं सम्पन्नता निसंदेह असाधारण व अतुलनीय थी।

भोजपुर का यह भोजेश्वर मंदिर उसी समृद्ध एवं भव्य राज्य का एकमात्र जीवंत प्रमाण है।

राजा भोज कौन थे?

राजा भोज परमार वंश के राजा थे। वे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के वंशज माने जाते हैं। उन्होंने सन् १०१० से १०५५ तक मालवा क्षेत्र में राज्य किया था। उनकी राजधानी धार नगरी थी जो अब धार नाम से जानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह क्षेत्र तलवारों की धार के कारण प्रसिद्ध थी। इसीलिए इसे धार नगरी कहा जाता था।

भोजेश्वर मंदिर के स्तम्भ, चौखटें और लिंग
भोजेश्वर मंदिर के स्तम्भ, चौखटें और लिंग

राजा भोज एक शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने दूर दूर के क्षेत्रों तक अपने सैन्य अभियान क्रियान्वित थे। भोज राजा ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था तथा अनेक भव्य मंदिरों के निर्माण का नियोजन भी किया था। भोपाल एवं उसके आसपास स्थित तालाबों के निर्माण का श्रेय भी उन्ही को जाता है। वास्तव में भोजेश्वर मंदिर भीमताल नामक एक विशाल सरोवर के निकट बनाया गया था। बेतवा नदी पर बाँध निर्मित कर इस विशाल सरोवर की रचना हुई थी।

राजा भोज की एक अन्य उपलब्धि भी है जिसके विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है। वे शिक्षा एवं साहित्य के अनन्य उपासक थे। उन्होंने स्थापत्य कला से लेकर दर्शन शास्त्र, औषधि शास्त्र तथा संगीत जैसे विषयों पर लगभग ८४ पुस्तकें लिखी थीं। वे बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न एक विद्वान राजा थे जिनके विषय में यह प्रसिद्ध धारणा बन गयी थी कि वे साक्षात् ज्ञान की देवी सरस्वती को ही धरती पर ले आये थे। धार में उनके द्वारा स्थापित महाविद्यालय, कालान्तर में जिसे भोजशाला कहा गया, उनकी इसी बहुआयामी व्यक्तित्व का साक्ष्य है। उदयपुर प्रशस्ति शिलालेख से संकेत प्राप्त होता है कि उन्होंने धार में लगभग १०४ मंदिरों का निर्माण कराया था। दुर्भाग्य से वे सभी अब अस्तित्वहीन हो चुके हैं।

भोपाल नगर का यह नामकरण राजा भोज की ही देन है। आरम्भ में इसे भोजपाल कहा जाता था जो कालांतर में अपभ्रंशित होते हुए भोपाल कहलाया।

विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय ने भोज राजा से प्रभावित होकर स्वयं को अभिनव-भोज तथा सकल-काल-भोज की उपाधि से अलंकृत किया था।

भोजेश्वर मंदिर – भोजपुर का अभिनव शिव मंदिर

भोजपुर शिव मंदिर की विशाल योनि
भोजपुर शिव मंदिर की विशाल योनि

भोजेश्वर मंदिर, राजा भोज के भव्य भोजपुर नगर से सम्बंधित केवल यही रचना शेष है। काली शिला में निर्मित एक विशाल शिव मंदिर, जो अपूर्ण होते हुए भी जीवंत है। यहाँ भगवान शिव की नियमित पूजा-अर्चना की जाती है। ११वीं सदी के मध्यकाल में निर्मित इस मंदिर की संरचना कभी पूर्ण नहीं हुई। अपने इस अपूर्ण रूप में यह मंदिर अपनी निर्माण प्रक्रिया के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

विशाल शिवलिंग

भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर विशेषतः अपने विशाल शिवलिंग के लिए अत्यंत लोकप्रिय है। जैसा कि हम जानते हैं, शिवलिंग के दो भाग होते हैं, लिंग एवं योनि। शिवलिंग की निचली पीठिका भाग योनि कहलाता है। इस मंदिर के शिवलिंग की योनि अतिविशाल एवं सुन्दर है। कदाचित, इससे अधिक विशाल योनि आपने कहीं नहीं देखी होगी। जहाँ तक लिंग का प्रश्न है, वह भी विशाल है किन्तु मैं उसे विशालतम नहीं कहूंगी। खजुराहो के मतंगेश्वर मंदिर का लिंग इससे भी अधिक विशाल है।

भोजपुर शिव मंदिर की छत
भोजपुर शिव मंदिर की छत

यह शिवलिंग चूना पत्थर के अनेक आवरणों द्वारा निर्मित है। सम्पूर्ण शिवलिंग की ऊँचाई लगभग ४० फीट है।

मंदिर की भीतरी छत संकेंद्रित वृत्तों की आकृति से उत्कीर्णित है जिसे देख खजुराहो के मंदिरों का स्मरण हो आता है।

मंदिर में चार अष्टकोणीय स्तम्भ हैं। भित्तियों को देख ऐसा प्रतीत होता है मानो उन्हें कालांतर में निर्मित किया गया है। अथवा कालांतर में उनका नवीनीकरण किया गया होगा क्योंकि शेष मंदिर के अलंकरण की तुलना में भित्तियाँ साधारण प्रतीत होती हैं। स्तम्भों के ऊपरी कोष्ठकों पर शिव-पार्वती, ब्रह्म-ब्रह्मणी, लक्ष्मी-नारायण एवं राम-सीता की छवियाँ उत्कीर्णित हैं।

मेरे अनुमान से आरम्भ में यह मंदिर चार स्तम्भों पर आधारित एक खुला मंदिर रहा होगा, जैसे कि बहुधा शिव मंदिरों की संरचना होती है। किन्तु मेरे इस प्रस्थापित सिद्धांत का कोई प्रमाण नहीं है।

भोजेश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली

यह मंदिर एक विशाल चबूतरे पर निर्मित है जिसे जगती कहते हैं। यह उस काल की प्रचलित शैली थी।

अपूर्ण भोजेश्वर महादेव मंदिर
अपूर्ण भोजेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर में सभा मंडप नहीं है। जगती पर स्थापित यह एक स्वतन्त्र मंदिर है।

गर्भगृह का शिखर, मंदिर निर्माण की नागर शैली में प्रचलित वक्रीय आकार में ना होकर सरलरेखीय है। मंदिर के केवल अग्र भाग में अप्सराओं, गणों तथा अन्य देवी-देवताओं के शिल्प उत्कीर्णित हैं। मंदिर की अन्य भित्तियों पर शिल्पकारी नहीं है, मानो वे शिव की कथाओं पर आधारित शिल्पों के उत्कीर्णन की प्रतीक्षा कर रही हों।

मकरनाल
मकरनाल

शिखर के आकार के कारण कुछ विद्वानों का मानना है कि यह एक स्वर्गारोहण प्रासाद है। अर्थात् वह मंदिर जिसे स्वर्गवासी पूर्वजों की स्मृति में निर्मित किया जाता है।

शिला ढोने के लिए ढालू मार्ग

मंदिर के दाहिनी ओर एक विशाल ढालू मार्ग है। मेरा अनुमान है कि इसकी रचना मंदिर के निर्माण के लिए विशाल शिलाओं को जगती तक ले जाने के लिए की गयी होगी। यदि हम इस ढालू मार्ग का दर्शन नहीं करते तो हमारी यह मनन श्रंखला अखंड जारी रहती कि विशाल शिलाओं एवं शैलशिल्पों को इस विशालकाय जगती के ऊपर किस प्रकार ले जाया गया होगा! अथवा इस जगती के निर्माण के लिए भी विशालकाय शिलाओं को यहाँ तक कैसे लाया होगा!

आपको स्मरण होगा कि तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर के विशाल शिलाखंड को ले जाने के लिए भी ढालू मार्ग का प्रयोग किया गया था।

मंदिर की अवधारणा शिला पर
मंदिर की अवधारणा शिला पर

मंदिर के समीप एक खदान है जहाँ भिन्न भिन्न चरणों में अनेक उत्कीर्णित शैलशिल्प रखे हुए हैं। अब ये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा अधिगृहीत हैं। मंदिर के चारों ओर चट्टानों पर मंदिर के वास्तु चित्र रेखांकित हैं। उन्हें देख यह अनुमान लगा सकते हैं कि प्रारंभ में एक विशाल मंदिर परिसर की संरचना नियोजित थी। इस प्रकल्प के चरणागत निर्माणकार्य के प्रबंधन के लिए किये गए चिन्ह भी इन चट्टानों पर दृष्टिगोचर होते हैं।

मुख्य मंदिर के बाह्य भाग में दो लघु मंदिर हैं। यहाँ भी नियमित पूजा-अर्चना होती है। दाहिनी ओर स्थित लघु मंदिर की बाह्य भित्तियों पर कुछ अपूर्ण कलाकृतियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। इन कलाकृतियों से मंदिर निर्माण अवधि में निर्माण कार्य की प्रगति का प्रत्यक्षीकरण होता है।

उत्खनन

इस स्थान पर किये गए उत्खनन से यह जानकारी प्राप्त होती है कि यहाँ इससे अधिक मंदिरों के निर्माण की योजना बनाई गयी थी। कदाचित खजुराहो के पदचिन्हों पर विस्तृत मंदिर संकुल के निर्माण की योजना थी। किन्ही अप्रत्याशित कारणों से उस योजना को बीच में ही स्थगित कर देना पड़ा होगा।

भोजपुर में एक और शिवलिंग
भोजपुर में एक और शिवलिंग

भोजेश्वर मंदिर का पर्याप्त निर्माण कार्य पूर्ण किया गया ताकि शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा-अर्चना आरम्भ हो सके। आज भी पूजा-अर्चना की प्रथा अनवरत अखंडित है।

प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के दिवस यहाँ विशाल महाशिवरात्रि मेला लगता है।

भोजपुर के अन्य दर्शनीय स्थल

भोजेश्वर मंदिर के निकट एक भोजेश्वर मंदिर संग्रहालय है। यह संग्रहालय आपको मंदिर की दृष्टि से इस क्षेत्र के इतिहास का परिचय देता है।

यदि आप मंदिर के ऊँचे विशाल जगती पर खड़े होकर चारों ओर दृष्टि दौड़ायेंगे तो आपको इस क्षेत्र के अंधाधुंध आधुनिकरण के चिन्ह दृष्टिगोचर होंगे। हमारे समक्ष विशाल औद्योगिक इकाइयाँ थीं जो अपने भीमकाय चिमनियों से आकाश में काले घने धुंए की धार उत्सर्जित कर रही थीं। समीप स्थित मंडीदीप नामक औद्योगिक नगरी आकाश को प्रदूषित करने में अपना योगदान दे रही थी।

मंडीदीप के समीप एक अपूर्ण जैन मंदिर है जो शांतिनाथ जी को समर्पित है।

बेतवा की संकरी घाटी में पार्वती गुफा है जहाँ अनेक संतों ने साधना की है।

मंदिर के समीप राजा भोज के प्राचीन राजमहल के अवशेष देखे जा सकते हैं। राजा भोज ने भारतीय वास्तुशास्त्र पर एक पुस्तक लिखी थी, समरांगणसूत्रधार। इस पुस्तक में उन्होंने इस महल के विषय में विस्तृत जानकारी दी है। इन अवशेषों में आप उस महल की कल्पना कर सकते हैं जिसका उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है।

यह सब देख मुझे तीव्र पीड़ा होती है कि मैंने भारत के उस स्वर्णिम काल में जन्म क्यों नहीं लिया! एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर उस स्वर्णिम इतिहास के अवशेषों को ढूँढने के स्थान पर मैंने भारत की सम्पन्नता एवं सौंदर्य की चरमसीमा का अनुभव प्राप्त किया होता।

यात्रा सुझाव

भोजपुर भोपाल से लगभग ३२ किलोमीटर दूर स्थित है। आप भोपाल से एक दिवसीय यात्रा के रूप में भोजेश्वर मंदिर एवं आसपास के स्थलों का आसानी से दर्शन कर सकते हैं।

भोपाल देश के सभी भागों से वायु, रेल तथा सड़क मार्गों द्वारा सुगमता से संयुक्त है।

मंदिर दर्शन के लिए एक घंटे का समय पर्याप्त है।

भोजपुर भ्रमण को सांची भ्रमण एवं भीमबेटका भ्रमण के साथ भी किया जा सकता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

1 COMMENT

  1. ये बहुत अच्छा है आपने भोजपुर क बारे में लिखा परन्तु भोजपुर क पास ही आशापुरी मंदिर समूह है उसके बारे में नहीं लिखा खैर इसमे आप की भी कोई गलती नहीं होगी ये तो प्रशासन की तरफ से भी नेग्लेक्टेड है कोई जानकारी भी नहीं दी जाती भोजपुर आने वाले पर्यटकों को.
    परन्तु घुमक्कड़ों से ये आशा की जा सकती है .

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