मैंने यह सुन रखा था कि मध्य श्रीलंका में स्थित दांबुला गुफा मंदिर में सर्वोत्तम रूप से परिरक्षित भित्ति चित्र हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है। ये कारण मेरे लिए पर्याप्त थे कि मैं इन शैल गुफाओं तक पहुँचने के लिए आरोहण की योजना बनाऊँ। किन्तु, जून मास की तपती दुपहरी में अनुराधापुरा एवं पोलोनरूवा में पैदल भ्रमण के पश्चात मेरी उर्जा अपने निम्नतम स्तर पर थी।
मिहिंतले में प्राप्त अनुभव मुझे चेता रहा था कि इस पर्वतीय स्थल का आरोहण प्रातःकाल अथवा संध्याकाल में ही करना चाहिए। अतः परिस्थिति का विश्लेषण कर मैंने निश्चय किया कि मैं दोपहर ढलने के पश्चात, लगभग शाम ४ बजे चट्टान का आरोहण आरम्भ करूंगी।
आप इस चट्टान का आरोहण, दो विपरीत दिशा में स्थित आरम्भ बिन्दुओं से कर सकते हैं। एक, जहां हम टिकट क्रय करते हैं, दूसरा जहां एक विशाल स्वर्ण मंदिर स्थित है। मैंने टिकट खिड़की से टिकट क्रय किया तथा स्वर्ण मंदिर की दिशा में आ गई, क्योंकि मुझे बताया गया कि इस बिंदु से आरोहण अपेक्षाकृत सुगम है। प्रवेशद्वार पर स्थित एक विशाल स्वर्ण प्रतिमा तथा एक स्वर्णिम पगोडा के दर्शन कर मैं आगे बढ़ी।
सीढ़ियाँ चौड़ी एवं आसान थीं। कुछ स्थानों पर सीढ़ियाँ सुव्यवस्थित प्रकार से उकेरी नहीं गयी थीं। वहां चट्टानी सतह पर चढ़ना पड़ा। एक बिंदु पर आकर हमारा पथ दो भागों में बंट गया। एक मार्ग तीव्र ढलान युक्त सपाट पथ है किन्तु अपेक्षाकृत किंचित छोटा पथ है। वहीं दूसरे पथ पर आसान सीढ़ियाँ हैं। मैंने चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ युक्त पथ का प्रयोग किया तथा उतरने के लिए सपाट ढलुआँ पथ का। मेरा सुझाव है कि आप भी इस प्रकार दोनों मार्गों का प्रयोग करें क्योंकि ये दो मार्ग चट्टान के दो ओर से जाते हैं तथा दोनों ओर के परिदृश्य अत्यंत भिन्न हैं। सीढ़ियों वाले मार्ग से आप अपने समक्ष प्रभावशाली सिगिरिया चट्टान देखेंगे जो अपने जुड़वा चट्टान के साथ गर्व से खड़ा है। ढलुआँ मार्ग की ओर से आप सुन्दर पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में अनेक रंगों की छटा बिखेरती हरियाली देखेंगे।
दांबुला गुफा मंदिर का इतिहास
दांबुला दो शब्दों की संधि से बना है, दाम्बा तथा उला, जिनके अर्थ हैं चट्टान एवं झरने। झरने? जी हाँ, यहाँ स्थित विशालतम गुफाओं में से एक गुफा के भीतर से जल अनवरत टपकता रहता है। ये सभी गुफाएं प्राकृतिक हैं, इस तथ्य ने मुझे अचंभित कर दिया। गुफा के भीतर जाते ही आपकी दृष्टी शिलाओं की प्राकृतिक आकृतियों पर पड़ेंगी। इन आकृतियों के अनुसार ही चित्रकारों ने इन शिलाओं को कुशलता से चित्रित किया है। ये गुफाएं अजंता, एलोरा अथवा बराबर गुफाओं के अनुरूप नहीं हैं क्योंकि वे गुफाएं मानवों द्वारा उत्खनित हैं।
अभिलेखों के अनुसार, प्राचीन काल में, लगभग प्रथम ईसा पूर्व, राजा वट्टगामिनी अभय ने इन गुफाओं में शरण ली थी। कालांतर में उन्होंने इन गुफाओं को मंदिरों में परिवर्तित दिया।
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राजा निषंकमल्ला, जिनके विषय में हमने पोलोनरूवा में जानकारी प्राप्त की थी, उन्होंने इन पर स्वर्ण पत्रों का आवरण चढ़ाया। इसी कारण इनका नाम रनगिरी पड़ा। स्वर्ण को श्री लंका की सिंहली भाषा में रन कहते हैं।
इन गुफाओं में बुद्ध की १५० से भी अधिक प्रतिमाएं हैं। इनके अतिरिक्त हिन्दू देवी-देवताओं एवं राज परिवार के सदस्यों की भी छवियाँ हैं।
श्रीलंका के आधुनिक इतिहास के अनुसार, ये वे गुफाएं हैं जहां से बौद्ध भिक्षुओं ने सन् १८४८ में ब्रिटिश अधिपत्य के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ किया था।
दांबुला गुफा मंदिर
५ प्रमुख गुफाएं
इस क्षेत्र में कुल ८० गुफाएं हैं। उनमें ५ गुफाएं प्रमुख हैं जिनके सामान्यतः पर्यटक दर्शन करते हैं। प्राकृतिक होने के कारण इन गुफाओं के आकार एवं आकृतियाँ भिन्न हैं।
गुफाओं से जब आपका प्रथम साक्षात्कार होगा तब आपके समक्ष एक विशाल चट्टान के नीचे पंक्तियों में लगे अनेक शुभ्र श्वेत द्वार होंगे। इस की वास्तुशैली औपनिवेशिक प्रतीत होती है, मुख्यतः प्रथम द्वार जो आपसे निकटतम स्थान पर स्थित है। मुझे बताया गया कि इन द्वारों को कालांतर में, लगभग २०वीं शताब्दी में बिठाया गया था। इसी कारण इनमें उस काल में प्रचलित वास्तुशैली की छाप है।
गुफाओं के समक्ष एक संकरा गलियारा है। प्रवेशद्वारों को मंदिर के द्वारों के समान निर्मित किया गया है जिन पर द्वारपाल, रक्षक तथा देवदूतों की आकृतियाँ उत्कीर्णित हैं।
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गुफाओं के भीतर लाल एवं पीले रंगों की प्राधान्यता है। प्रतिमाओं के ऊपर छत पर, छपे वस्त्रों के समान चित्रण किया गया है। उन पर प्रमुखता से श्वेत, श्याम एवं लाल रंग के चौकोर खंड हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रतिमाओं के ऊपर कपडे का तम्बू लगाया गया है।
१. देवराज लेणा अथवा दिव्य राजा की गुफा
यह गुफा अपेक्षाकृत छोटी है। इस गुफा में प्रमुखता से महापरिनिर्वाण स्थिति में बुद्ध की प्रतिमा है। प्रमुखता इसीलिए कहा क्योंकि गुफा के भीतर लगभग सम्पूर्ण स्थान इस प्रतिमा ने ग्रहण किया हुआ है। चूंकि सर्वप्रथम मैंने इसी प्रतिमा के दर्शन किये थे, इसकी विशालता देख मैं स्तब्ध रह गयी थी। भित्तिचित्रों एवं विग्रहों के चटक रंग अत्यंत आकर्षित हैं।
यहाँ की सर्वाधिक रोचक व आकर्षक रचना है, बुद्ध की आत्मा का चित्रण जिसमें धर्मचक्र एवं पद्म पुष्प की आकृतियों के संयोजन से सुन्दर चित्रण किया गया है।
दाहिनी ओर आसीनस्थ बुद्ध की छवि है जिनके पीछे अप्रतिम प्रभामण्डल है। उनके चरणों में आनंद बैठे हुए हैं। भित्तियों पर हाथ जोड़कर खड़े राजा एवं मंत्रियों की छवियाँ हैं। छत पर दो भागों में अनोखा चित्रण किया गया है जिसमें एक भाग में ज्यामितीय आकृतियाँ हैं तो दूसरे भाग में पुष्पाकृतियाँ हैं।
प्रथम गुफा के निकट एक लघु मंदिर है जिसके भीतर विष्णु एवं कार्तिकेय के विग्रह हैं।
२. महाराजा लेणा – दांबुला का प्रमुख गुफा मंदिर
यह यहाँ की विशालतम गुफा है। इसके भीतर खड़े होकर अपनी सूक्ष्मता का तीव्र आभास होता है। चारों ओर स्थित बुद्ध की आसीनस्थ एवं खड़ी प्रतिमाएं अभिभूत कर देती हैं। अधिकांश प्रतिमाओं के वस्त्र सुनहरे पीले रंग में रंगे हैं। गुफा के दो द्वार हैं जिनमें एक के समीप एक स्तूप है। गुफा के छत की विस्तृत सतह को पूर्ण रूप से चित्रित किया गया है। छत के सतह पर छोटे से छोटा स्थान भी चित्रण विहीन नहीं है। बुद्ध के चारों ओर उनका ध्यान भंग करने का प्रयास करते माराओं के चित्र हैं।
गुफा की छत पर एक चित्र है जिसमें सहस्त्र बुद्ध ध्यान मग्न बैठे हैं। इसी छवि अजंता गुफाओं की भित्तियों पर भी हैं।
इस गुफा में राजा वट्टगामिनी अभय एवं राजा निषंकमल्ला के भी चित्र हैं।
३. गुफा ३
यह गुफा प्रमुख गुफा का लघु प्रतिरूप है। प्रवेश करते ही एक विशाल प्रतिमा से आपका सामना होता है। चारों ओर ध्यानमग्न बुद्ध की प्रतिमाएं हैं।
४. गुफा ४
यहाँ तक पहुँचते पहुँचते आप को अनुमान लगने लगता है कि गुफा के भीतर आप क्या देखने वाले हैं। यह भी एक लघु गुफा है जिसके भीतर निद्रामग्न बुद्ध की मूर्ति है।
५. गुफा ५
इस गुफा में भी एक लघु स्तूप है जिसके चारों ओर बुद्ध के विग्रह हैं तथा भित्तियों पर कथाएं चित्रित हैं।
इन सभी पाँच गुफाओं के अवलोकन के पश्चात, मुक्त आकाश ने नीचे खड़े होकर आप आसपास के अप्रतिम परिदृश्यों का आनंद उठायें। आपको यहाँ आते श्रद्धालुओं को देख कर एवं उनकी श्रद्धा को अनुभव कर भी अत्यंत आनंद आएगा। आपको पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं में भेद तुरंत दृष्टिगोचर होगा। अनेक पर्यटक यहाँ आकर इस स्थान का कौतूहलपूर्वक अवलोकन करते हैं, प्रशंसा करते हैं किन्तु उनका इस स्थान से जुड़ाव नहीं दिखता। इसके विपरीत, श्रद्धालुओं को यहाँ की कला एवं विरासत से सरोकार नहीं होता, वे यहाँ केवल उस परम भगवान को अनुभव करने एवं उनसे एकाकार होने की अभिलाषा लिए आते हैं।
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मैंने यहाँ अनेक शालेय विद्यार्थियों को देखा जो प्रार्थना करने तथा क्रीड़ा करने आये थे।
दांबुला गुफा मंदिर के ऊपर बुद्ध की एक विशाल स्वर्ण प्रतिमा है तथा चट्टान की तलहटी पर एक संग्रहालय है। यहाँ से मैदानी क्षेत्रों एवं सिगिरिया चट्टान का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है।
यात्रा सुझाव
- दांबुला गुफा मंदिर के दर्शन के लिए प्रातःकाल अथवा संध्याकाल के समय ही आरोहण करें। दोपहर की तपती धूप कष्टदायी होती है।
- पेयजल साथ रखें।
- यूँ तो दर्शन स्थल पर गाइड उपलब्ध होते हैं। किन्तु यह विशाल अथवा जटिल स्थल नहीं है। अतः इनके विषय में अध्ययन कर अथवा पूर्व जानकारी प्राप्त कर जाएँ तो आप आसानी से स्वयं भी इनका अवलोकन कर सकते हैं।
- चट्टान के एक ओर से आरोहण करें तथा दूसरी ओर से अवरोहण। इससे आप चट्टान के दोनों ओर के परिदृश्यों का आनंद उठा सकते हैं।
- श्री लंका के नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क नहीं है। विदेशी पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क उस समय १५०० श्री लंका रुपये थी।
- गुफाएं अत्यंत आर्द्र एवं उष्ण हैं। गुफाओं के बाहर वातावरण आनंदमय होता है। गुफाओं का अवलोकन करते समय मुझे अनेकों बार बाहर आना पड़ा एवं स्वच्छ वायु में श्वास लेना पड़ा।
- इन गुफाओं का अवलोकन करने के लिए डेढ़ से दो घंटों का समय लग सकता है।
इन गुफाओं के भ्रमण के लिए निकटतम विश्राम स्थल कैंडी है जो यहाँ से अधिक दूर नहीं है। अन्यथा आप मेरे समान हब्बरना के Cinnamon Lodge में ठहर सकते हैं । वहाँ से आप ३० मिनट गाड़ी चलाकर गुफाओं तक पहुँच सकते हैं।
श्री लंका में करने योग्य २५ रोचक क्रियाकलाप – मेरे यूट्यूब चैनल पर यह विडियो देखें।
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