हमारे 18 दिनों के लंबे हिमाचल भ्रमण के अंतिम दिन हम मणिकरण साहिब के दर्शन करने चले। घर वापस जाने से पहले हम आभार प्रकट करने के रूप में मणिकरण साहिब के दर्शन लेना चाहते थे। हम सुबह ही नाश्ता करने के बाद मनाली से निकले और दोपहर के भोजन के काफी समय पहले मणिकरण पहुंचे।
हमे मणिकरण के उष्ण जलस्रोतों और रास्ते में मिलने वाले हिप्पी गाँव कसोल के बारे में तो पहले से ही जानकारी थी, लेकिन जब आप हर दिन यात्रा करते हुए गुजारते हैं तो आपको हर समय ऐसी चीजें देखने को मिलती हैं जिसके बारे में आपने कभी नहीं सोचा होगा।
पार्वती घाटी
रास्ते में हम पार्वती नदी के किनारे से गुजरते हुए चल रहे थे। पार्वती नदी जो पार्वती घाटी को अपना नाम देती है एक छोटी सी लड़की की तरह है। अगर एक शब्द में उसका वर्णन करना है तो ‘अल्हड़’ से बेहतर शब्द आपको नहीं मिलेगा। वह अधीरता, अठखेलियों और उत्साह से भरपूर है। वह विशाल हिमालय पर्वतों को काटते हुए अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ती है। वह अजेय है। उसे एक नज़र में देखते ही आप यह भाँप लेते हैं कि, आप उसे पकड़ नहीं सकते, उसे नियंत्रित नहीं कर सकते और उसकी प्रचुर शक्ति को बांध नहीं सकते। आप सिर्फ दूर से ही उसकी प्रशंसा कर सकते हैं और केवल उसके लिए प्रार्थना कर सकते हैं।
तो सड़क के दूसरी तरफ थे चट्टानी पर्वत। यह सड़क जैसे संतुलन का केंद्रीय उत्तोलक है; जो पहाड़ों की स्थिर शक्ति और पार्वती नदी के पानी की प्रवाही शक्ति के बीच संतुलन बनाए रखती है।
मणिकरण साहिब तक पहुँचने के लिए हमे पार्वती नदी पर बने पुल को पार करते हुए आगे बढ़ना था। नदी के पुल के ऊपर खड़े होकर मुझे उसके जल प्रवाह की शक्ति की प्रचुरता का आभास हुआ। उस बहते हुए पानी में इतना बल था कि, कोई भी उसके रास्ते में खड़ा नहीं हो सकता था। उसके सामने मेरे विचार भी जैसे स्तब्ध हो गए थे। उस पुल के नीचे बहती इस नदी की गर्जना के सिवाय मुझे और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
गुरुद्वारा मणिकरण साहिब
गुरुद्वारा मणिकरण साहिब 16वी शताब्दी के उत्तर काल के दौरान मणिकरण में गुरु नानक देव की यात्रा का स्मारक चिह्न है। उपाख्यान के अनुसार जब गुरु नानक देव जी मणिकरण आए थे और उन्होंने गाँव से लंगर मांगा था। यहाँ के लोगों से उन्हें बस कच्ची सामग्री ही प्राप्त हुई थी लेकिन उसे पकाने के लिए कोई चूल्हा नहीं था। तब गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों से एक पत्थर उठाने के लिए कहा। पत्थर उठाते ही उसके नीचे उबलता हुआ पानी देखकर सभी हैरान रह गए। यह पानी खाना पकाने के लिए एकदम योग्य था।
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परन्तु, खाना उस गरम पानी के तालाब में डूबता गया और सभी अनुयायि गुरु को देखने लगे। तब गुरु ने कृतज्ञता से उन्हें एक सीख दी। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि, अगर उन्हें खाना खाना है तो उन्हें वह खाना भगवान को अर्पित करना होगा। और जैसे ही यह शपथ ली गयी कि, यह खाना भगवान को चढ़ाया जाएगा, तो सारा खाना अपने-आप तैरने लगा।
महारिशी वेद व्यास ने भविष्य पुराण में गुरु नानक देव की भेट की भविष्यवाणी की थी।
आज उसी स्थान पर यह गौरवशाली गुरुद्वारा खड़ा है। प्रत्येक सिख भक्त अपनी जिंदगी में एक बार तो गुरुद्वारा मणिकरण साहिब के दर्शन करना चाहता है। हमने गुरुद्वारा मणिकरण साहिब में कुछ समय बिताया। उस समय वहाँ पर गुरुबानी का पाठ पढ़ा जा रहा था। वर्षों बाद मैंने कढ़ा प्रसाद खाया जो मेरे लिए मात्र स्वादिष्ट भोजन ही नहीं था बल्कि उसके साथ पंजाब में गुरुद्वारे के आसपास बड़े होने की मेरी ढेर सारी बचपन की यादें जुड़ी हुई थीं। हमने अपनी प्रार्थना की और हम मणिकरण साहिब के पीछे स्थित उष्ण जलस्रोत देखने के लिए चले गए।
गुरु गोबिंद सिंह भी अपने पंज प्यारों के साथ मणिकरण के दर्शन करने आए थे।
मणिकरण साहिब में उष्ण जलस्रोत
गुरुद्वारा मणिकरण साहिब के बाहर, हम एक लंबे से सुरंग-जैसे गलियारे से गुजरते हुए ‘गरम कोठी’ नाम के एक कक्ष तक पहुंचे। हमारे पाँव के नीचे के पत्थर बहुत गरम थे। कक्ष में खड़े रहना जैसे असंभव था। गर्मी या उष्णता असहनीय थी। हमने वहाँ पर बहुत से बूढ़े लोगों को पत्थरों पर बैठे हुए देखा और जब हमने उनसे पूछा कि वे वहाँ पर क्यों बैठे हैं। उनका जवाब सुनकर हम हैरान रह गए।
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उन्होंने बताया कि यहाँ की गर्मी आपकी अनेक बीमारियों को ठीक कर सकती है, खास कर जोड़ों के दर्द से संबंधित परेशानियाँ। ऐसी गर्मी में बैठने के लिए आपके पास दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। मेरे खयाल से अगर आप खुद को गोलियों के बिना ठीक कर सकते हैं तो यह बहुत ही अच्छी बात है। हम वहाँ से निकले और भरे बाज़ार से गुजरते हुए आगे बढ़े, जो भारत में किसी भी तीर्थ-स्थल की पहचान है।
वहाँ से हम शिव मंदिर के प्रांगण में पहुंचे जहां पर हमे उबलते हुए पानी के कुएं जैसे दिखने वाले अनेक जलस्रोत दिखे। पृष्ठ भाग में बहती पार्वती नदी के साथ इस पर विश्वास करना असंभव था कि, एक दूसरे के इतने पास स्थित दो जलस्रोतों के तापमान में लगभग 100 डिग्री सेंटीग्रेड का फर्क हो सकता है। एक तरफ जहां पार्वती नदी का पानी बर्फ जैसा ठंडा था तो दूसरी तरफ उसके ठीक पास में स्थित उष्ण जलस्रोतों में उबलता हुआ पानी था। यह पानी इतना गरम था कि, वहाँ पर लोगों को आस-पास घूमने के लिए लकड़ी के तख्ते बिछाये गए थे।
उष्ण जलस्रोतों में खाना पकाना
इन उष्ण जलस्रोतों में आप लगभग आधे घंटे में सूती की थैली में डालकर अपने अनाज खुद उबाल सकते हैं। यहाँ पर आस-पास हमे ऐसे अनेक थैले देखने को मिले। एक बड़े बर्तन में मणिकरण साहिब का लंगर पकाया जा रहा था। उष्ण जलस्रोतों से निकलती हुई भाप के बीच से जब आप मंदिर को देखते हैं, तो आप इसी सोच में पड़ जाते हैं कि, क्या हम कभी भी इस दुनिया के रहस्यों को समझ पाएंगे? क्या ये रहस्य इसीलिए बिखेरे गए हैं कि हमे याद दिला सके कि, हम प्रकृति के बारे में कितना जानते हैं और हमे कितना कुछ जानना-समझना बाकी है?
मणिकरण से जुड़े उपाख्यान
कहते हैं की उन दिनों की बात है जब भगवान शिव अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ यहाँ पर 1100 वर्षों तक रहे थे। एक बार तालाब में कुछ चंचल से पल बिताते समय देवी पार्वती के कान की बलियों से एक मणि टूटकर सीधा शेषनाग के पास जा गिरी – जिनके बारे में यह मान्यता है कि, हमारी पृथ्वी उसके फन पर अपना संतुलन बनाए हुए है। पार्वती ने शिव से अपना मणि खोज कर लाने की जिद की और जब शिव जी वह मणि नहीं खोज पाये तो उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोली और नैना देवी का जन्म हुआ।
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नैना देवी शिव की आँखें बनकर वह मणि खोजने के लिए निकल पड़ी। तब शेषनाग ने बहुत सारे मणि बाहर थूके और पार्वती से उनकी मणि चुनने के लिए कहा। तब देवी पार्वती ने अपना मणि निकालकर बाकी सारे मणियों को पत्थर बनने का श्राप दिया। यह कहा जाता है कि, शेषनाग के थूकने के साथ ही इन उष्ण जलस्रोतों का निर्माण हुआ था। लोगों का यह भी कहना है कि पहले इन जलस्रोतों से मणियाँ निकला करती थी लेकिन 1905 में यहाँ पर हुए भूकंप के बाद यह बंद हो गया।
आप अपने प्रकार से इस कहानी की जैसे चाहे व्याख्या कर सकते हैं। आप इसे इतिहास या मिथक के रूप में ले सकते हैं या इसे हमारे पूर्वजों का हम तक कोई गोपनीय कथा पहुंचाने का एक भाव समझ सकते हैं।
मणिकरण का शिव मंदिर
उष्ण जलस्रोतों से भाप लेने के पश्चात मैं उनके पीछे स्थित शिव मंदिर के दर्शन लेने चली गयी। यह एक साधारण सा शिव मंदिर है जिसके निर्माण को मुझे लगता है कि, ज्यादा साल नहीं हुए होंगे।
मणिकरण और उष्ण जलस्रोतों की हमारी यात्रा का विडियो देखें।
जैसे मैं अपनी गाड़ी की ओर बढ़ी, उष्ण जलस्रोतों का रहस्य, गरम कोठी की गर्मी और पुल के नीचे पार्वती नदी की गरज मेरे साथ बनी रही।