नग्गर – कुल्लू मनाली का महल, इतिहास एवं प्रकृति

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नग्गर हिमाचल प्रदेश का एक आकर्षक स्थान है जो चित्रपट निर्माताओं में अत्यंत लोकप्रिय है। उन्हें जब भी हिमाचल प्रदेश में चित्रपट का चित्रण करना हो तो वे अधिकतर नग्गर की ओर ही जाना चाहते हैं। कुल्लू एवं मनाली के मध्य स्थित, प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण नग्गर केवल चित्रपट निर्माताओं का ही प्रिय गंतव्य नहीं था। कुल्लू-मनाली क्षेत्र के राजाओं व शासकों ने जब ब्यास नदी की पृष्ठभूमि में महलों एवं दुर्गों का निर्माण किया था तब उन्होंने नग्गर में ही अपनी गद्दी स्थापित की थी। रूसी चित्रकार, लेखक, पुरातत्त्वविद, थियोसोफिस्ट व दार्शनिक निकोलाई रोरिक ने भी निवास करने के लिए इन्ही महलों का चुनाव किया था। अपने परिदृश्यों से प्रोत्साहित होकर उन्होंने अनेक प्रख्यात कलाकृतियाँ रची थीं। वर्तमान में यह हिमाचल प्रदेश का लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। आप यहाँ कुल्लू अथवा मनाली से पहुँच सकते हैं। आप यहाँ ठहर भी सकते हैं क्योंकि कुल्लू-मनाली के मध्य स्थित इस नगरी में अधिक भीड़ नहीं होती।

कुल्लू मनाली के नग्गर का महल
नग्गर का महल

मेरे Himachal Odyssey के अंतिम पड़ाव के अंतर्गत मैं नग्गर गयी थी। यहाँ आने का उत्साह वही था जो इस यात्राक्रम के प्रथम दिवस था। मैं इस छोटी सी मनमोहक नगरी, नग्गर के दुर्गों एवं कला दीर्घाओं के विषय में पूर्व में ही बहुत कुछ सुन चुकी थी। मुझे वह एक उत्तम पर्यटन स्थल प्रतीत हुआ था। ब्यास नदी द्वारा पोषित प्रकृति की गोद में बसी नगरी जिसके महल एवं दुर्ग अद्भुत इतिहास एवं अप्रतिम कला से ओतप्रोत हैं। यदि आप सही मौसम में यहाँ आये तो आपको चारों ओर अनेक प्रकार के पुष्प प्रफुल्लित होते दृष्टिगोचर होंगे।

प्रस्तुत है हिमाचल प्रदेश के अप्रतिम पर्यटन गंतव्य नग्गर से सम्बंधित यात्रा निर्देशिका।

नग्गर महल

ज्ञात ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार नग्गर कुल्लू के महाराजाओं की राजगद्दी हुआ करती थी। खड़ी चट्टान की चोटी पर स्थित नग्गर का महल अपेक्षाकृत छोटा है। इसका निर्माण १६वीं शताब्दी में किया गया था। औपनिवेशिक काल में इसका प्रयोग एक न्यायालय के रूप में किया जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात इसे एक विश्राम गृह में परिवर्तित कर दिया गया। वर्तमान में यह हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित एक विरासती होटल है। कुल्लू मनाली में छुट्टियां मनाते समय यहाँ ठहरना एक उत्तम विकल्प है।

नग्गर के महल से परिदृश्य
नग्गर के महल से परिदृश्य

इस महल के निर्माण में केवल लकड़ी एवं शिलाओं का प्रयोग किया गया है। इसका निर्माण स्थानिक काठ-कुणी वास्तु तकनीक के अनुसार किया गया है जिसमें लोहे का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस महल में अनेक विशेष तत्व हैं। इसकी निर्मिती में लोहे की एक कील भी प्रयोग में नहीं लाई गई है। इस महल के लिए ब्यास नदी के उस पार से शिलाएं कैसे लायी गई थी, इससे सम्बंधित दो कथाएं प्रचलित हैं। महल के सूचना फलक पर आप उन्हें पढ़ सकते हैं। महल के द्वार पूर्णतः अखंड लकड़ी के हैं जो अत्यंत विस्मयकारी हैं. आप उस विशाल वृक्ष की कल्पना ही कर सकते हैं जिससे द्वार के लिए लकड़ी का इतना बड़ा टुकड़ा प्राप्त हुआ होगा।

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महल में चहुँ ओर भ्रमण के लिए गलियारें है जहां सैर करते हुए आप आस-पास के अप्रतिम परिदृश्यों का आनंद उठा सकते हैं। एक ओर घाटी का अत्यंत मनमोहक दृश्य दिखाई पड़ता है तो दूसरी ओर नग्गर नगरी स्थित है। नगरी की ओर दृष्टी डाले तो ऊंचे शिखरों से युक्त अनेक मंदिर अपनी उपस्थिति दर्शाते हैं। यहाँ से आप नगर की चहल-पहल एवं वहां के क्रियाकलापों को स्पष्ट देख सकते हैं।

नग्गर महल में एक लघु संग्रहालय भी है। समय ना हो तो इसका अवलोकन छोड़ भी सकते हैं, किन्तु महल की स्मारिका दुकान अवश्य जाएँ जहां से आप स्थानीय वस्तुएं क्रय कर सकते हैं।

नग्गर के मंदिर

जगतीपट्ट मंदिर

जगतीपट्ट मंदिर नग्गर
जगतीपट्ट मंदिर नग्गर

जगतीपट्ट मंदिर नग्गर महल के भीतर स्थित एक छोटा मंदिर है। सांस्कृतिक रूप से यह महल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है क्योकि इसे कुल्लू के देवताओं की गद्दी माना जाता है। नग्गर में आज भी यह प्रथा है कि महामारी अथवा भूकंप जैसे किसी भी प्राकृतिक आपदाओं के समय गाँव के सभी गुरु एवं बुद्धिजीवी यहाँ एकत्र होकर जनता के कल्याण हेतु चर्चा करते हैं एवं उपयुक्त निर्णय लेते हैं। आपदाओं पर नियंत्रण पाने के लिए वे यहाँ संयुक्त रूप से यज्ञों तथा अन्य अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं। मेरे मत से यह किसी भी संकट को मात देने का सर्वाधिक लोकतांत्रिक एवं सामूहिक मार्ग है।

ऐसी मान्यता है कि विभिन्न दैवी आत्माएँ मधुमक्खियों का रूप धर कर भृगु तुंग पर्वत का एक खंड यहाँ लाये तथा उसे यहाँ स्थापित किया। १९९९ में इस मंदिर का नवीनीकरण किया गया।

नशाला गाँव का चामुंडा देवी मंदिर

नशाला गाँव का चामुंडा देवी मंदिर
नशाला गाँव का चामुंडा देवी मंदिर

यह एक अनूठा मंदिर है जिसमें गहरे रंग की लकड़ी का नीले रंग से संगम किया गया है। इससे पूर्व मैंने ऐसा ही संगम रामपुर बुशहर के पदम महल में देखा था जो हरे-भरे वन के उत्कृष्ट रंग की पृष्ठ भूमि में उभर कर दिखाई पड़ता है। यह एक साधारण मंदिर है जिसके द्वार एक साथ खुले एवं बंद थे, जैसा कि समूचे हिमाचल प्रदेश के मंदिरों में दृष्टिगोचर होता है। इस मंदिर के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी किन्तु देवी को देख मुझे आभास हुआ कि हिमालय के इस भाग में शक्ति का वास अवश्य था।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर

त्रिपुरसुंदरी मंदिर नग्गर
त्रिपुरसुंदरी मंदिर नग्गर

मुल्लू मनाली के इस क्षेत्र में यह दूसरा शक्ति मंदिर था जिसके मैंने दर्शन किये थे। यह एक अत्यंत आकर्षक मंदिर है। दुहरी तिरछी छत के ऊपर शंक्वाकार शिखर अद्वितीय प्रतीत होता है। उत्कीर्णित लकड़ी द्वारा इस मंदिर के स्तंभों एवं द्वारों को बनाया गया है। यद्यपि हिमाचल के अन्य मंदिरों के समान इस मंदिर में भी लकड़ी व शिलाओं एवं काठ-कुणी वास्तुशैली का प्रयोग किया गया है, तथापि त्रिपुर सुंदरी मंदिर में लकड़ी का अत्यधिक प्रयोग किया गया है, वह भी सूक्ष्मता व सघनता से उत्कीर्णित।

काष्ठ में उत्कीर्णित त्रिपुरसुन्दरी मंदिर
काष्ठ में उत्कीर्णित त्रिपुरसुन्दरी मंदिर

ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर के वास्तुविद मंदिर की अधिष्ठात्री देवी की सुन्दरता को मंदिर की संरचना में भी दर्शाना चाहते थे। मंदिर में एक मुक्तांगण है। प्रवेश करते ही सर्वप्रथम गणेशजी की आकर्षक काष्ठ प्रतिमा मन मोह लेती है। मंदिर परिसर में अनेक छोटे देवालय हैं जिनमें अनेक उत्कीर्णित शिलाएं रखी हुई हैं। परन्तु  उनके विषय में मुझे कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी।

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नरसिंह देव मंदिर

नरसिंह देव मंदिर
नरसिंह देव मंदिर

नग्गर महल के सम्मुख यह नरसिंह देव मंदिर स्थित है। मंदिर तक पहुँचाने वाली दुहरी सीढ़ियाँ यूरोपीय शैली की प्रतीत होती हैं।

निकोलस रियोरिच कला दीर्घा

रियोरिच कला दीर्घा से दृश्य
रियोरिच कला दीर्घा से दृश्य

रियोरिच कला दीर्घा वास्तव में कलाकार निकोलस रियोरिच का निवासस्थान है जिन्होंने अपने जीवनकाल में कलाक्षेत्र में अनेक झंडे गाड़े हैं। उनके विषय में अधिक जानने के लिए उनके Wikipedia पेज पर जाएँ। निकोलस रियोरिच अपनी पत्नी एलेना के संग १९२८ में इस महल में आये थे। उससे पूर्व यह कुल्लू राजाओं का महल था। इमारत के चारों ओर सुन्दर बाग हैं। मैं जब यहाँ जुलाई मास में आयी थी, यह बाग विभिन्न प्रकार के रंगबिरंगे पुष्पों से भरा हुआ था। पुष्पों से भरे बगीचे के मध्य से एक मार्ग हमें दो-तल की इस इमारत तक ले जाता है जहां से घाटियों का अप्रतिम दृश्य प्राप्त होता है। निकोलस रियोरिच कला दीर्घा में छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं है।

रोयरिच कला दीर्घा
रोयरिच कला दीर्घा

कला दीर्घा के प्रथम तल पर निकोलस रियोरिच द्वारा चित्रित कलाकृतियाँ हैं। उनके द्वारा चित्रित परिदृश्यों में आपको उनकी विशिष्ट शैली अवश्य दिखाई देगी। यदि इस स्थान पर इतनी भीड़-भाड़ नहीं होती तो यह स्थल किसी भी कलाकार के लिए अधिक प्रीतिकर व प्रेरणादायी होता।

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दूसरे तल पर खुला गलियारा है जिस पर चलते हुए आप रियोरिच परिवार के निजी आवासीय क्षेत्रों का अवलोकन कर सकते हैं। आपको ज्ञात होगा कि भारतीय चित्रपटों के आरंभिक चरण की लोकप्रिय नायिकाओं में से एक थी देविका रानी जिनका विवाह रियोरिच परिवार में हुआ था। आप उनका कक्ष भी देख सकते हैं। यह गृह सदृश संग्रहालय तो सुन्दर है ही, किन्तु इस इमारत के छज्जे से दृष्टिगोचर बाहरी परिदृश्य इस इमारत की विशेषता का सर्वोत्कृष्ट भाग है। अधिक जानकारी के लिए इस वेबस्थल पर जाएँ।

वृक्ष के नीचे स्थित प्रतिमाएं

प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं
प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं

रियोरिच कला दीर्घा के प्रवेश द्वार के समक्ष, एक वृक्ष के नीचे गहरे रंग की लकड़ी में बनी अनेक प्रतिमाएं रखी हुई थीं। कुतुहलतावश मैंने उन पर सरसरी दृष्टी दौड़ाई। ३ प्रतिमाओं में पुरुष घुड़सवारी करते दर्शाए गए थे। उनके चारों ओर अनेक प्रतिमाएं थीं जिनमें एक मुझे लज्जा गौरी के समान प्रतीत हुई। उन सभी प्रतिमाओं के माथे पर तिलक-टीका लगाया हुआ था जो इस तथ्य का द्योतक है कि उनकी अब भी पूजा अर्चना की जाती है। उनके विषय में उल्लेख करता हुआ कोई भी सूचना फलक उपलब्ध नहीं था। वहां के चौकीदार ने यह जानकारी दी कि वे कुल्लू के वीर राजाओं की प्रतिकृतियाँ हैं।

उरुस्वती – हिमालय शोध संस्थान

उरुस्वती - हिमालय शोध संस्थान
उरुस्वती – हिमालय शोध संस्थान

रियोरिच कला दीर्घा से कुछ १० मिनट चढ़ाई करते हुए हम दो सुन्दर इमारतों के निकट पहुंचे। इनमें हिमालय लोककला से सम्बंधित कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। यह हिमालय शोध संस्थान आरम्भ में दार्जिलिंग में स्थापित किया गया था। किन्तु शीघ्र ही इसे कुल्लू घाटी में स्थानांतरित कर दिया गया।

इस संग्रहालय में अत्यंत रोचक वस्तुओं एवं कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है, जैसे इस क्षेत्र से एकत्रित विशेष शिलायें व पत्थर, जीवाश्म, उत्कीर्णित शिलाएं इत्यादि।

कुल्लू राजा स्मारिका शिला

हिमालय शोध संस्थान के भीतर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने से पूर्व, आप देखेंगे कि कुछ उत्कीर्णित शिलाखंडों को व्यवस्थित प्रकार से पंक्तियों में रखा गया है। उन पर इतनी सुन्दर शिल्पकारी की गयी है कि आप कुछ क्षण ठहरकर उन्हें निहारना चाहेंगे। प्रत्येक शिलाखंड पर की गयी शिल्पकारी अपनी एक कथा कहती है। समीप लगे परिचय फलक के अनुसार ये कुल्लू के राजा व रानियों की स्मृति में लगायी गयी स्मारिका शिलाएं हैं। ये शिलाएं नग्गर महल के नीचे से प्राप्त हुई थीं। कालान्तर में रियोरिच परिवार ने इन्हें यहाँ पुनः स्थापित कर दिया। इन शिलाओं को सती शिलाएं अथवा वीर शिलाएं भी कहा जाता है।

कुल्लू राजाओं की समरक शिलाएं
कुल्लू राजाओं की समरक शिलाएं

ऐसी शिलाओं में बहुधा राजा को मध्य में दर्शाया जाता है जिनके दोनों ओर उनकी रानियाँ होती हैं। इनमें स्त्रियों को विशेष राजपुताना शैली के वस्त्रों एवं आभूषणों में दिखाया गया है। प्रत्येक शिलाखंड के ऊपर वैसा ही शिखर है जैसा कि हम उत्तर भारत के मंदिरों में देखते हैं। इसका अर्थ है कि यहाँ राजाओं एवं रानियों को देवता समान मान दिया जाता था।

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नग्गर जैसे एक छोटे से गाँव में इतना कुछ दर्शनीय है। एक छोटे से गाँव से इससे अधिक क्या उम्मीद की जा सकती है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

1 COMMENT

  1. अनुराधा जी,
    बहुत ही सुंदर जानकारी युक्त आलेख।
    नग्गर महल के बारे में पहले जानकारी ही नहीं थी। कुल्लू-मनाली यात्रा के दौरान इस ऐतिहासिक स्थान पर नहीं जा सके। वैसे भी कुल्लू मनाली और समूचे हिमाचल का प्राकृतिक सौंदर्य कल्पना से परे हैं।
    धन्यवाद ????

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