पडी इग्गुथप्पा मंदिर कूर्ग के अधिष्ठात्र देवता से एक साक्षात्कार

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इग्गुथप्पा को समर्पित पडी इग्गुथप्पा मंदिर कूर्ग का अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है। इग्गुथप्पा कोडगू अथवा कूर्ग के प्रमुख देवता हैं तथा कोडवा समुदाय के कुल देवता हैं। प्राचीन काल में वे कदाचित वर्षा एवं फसल के देव माने जाते थे। मेरे अनुमान से इसका कारण यह है कि मनुष्यों के अस्तित्व के लिए फसल तथा फसल के अस्तित्व के लिए वर्षा महत्वपूर्ण है।

पड़ी इग्गुथप्पा मंदिर की काष्ठ कला
पड़ी इग्गुथप्पा मंदिर की काष्ठ कला

स्थानीय किसान अब भी प्रत्येक वर्ष अपने धान की प्रथम उपज इस मंदिर में भगवान को अर्पित करते हैं। इसके पश्चात कूर्ग क्षेत्र में किसानों के पुत्तरी नामक एक उत्सव का औपचारिक रूप से आरंभ किया जाता है।

मडिकेरी का इग्गुथप्पा मंदिर

दंतकथाएं

इग्गुथप्पा मंदिर की प्राचीन छवियाँ
इग्गुथप्पा मंदिर की प्राचीन छवियाँ

इस मंदिर से संबंधित किवदंतियों के अनुसार इग्गुथप्पा अपने माता-पिता की ७ दिव्य संतानों में से चौथी संतान थे जो एक शंख के भीतर बैठकर मलाबार तट पर पहुंचे थे। वे कुल ६ भाई एवं एक बहिन थे। तीन बड़े भाईयों में से प्रत्येक ने केरल में एक एक गाँव स्वयं के लिए चयन किया तथा वहाँ बस गए। चार छोटे बहन-भाईयों ने पश्चिमी घाट पार किया तथा कूर्ग क्षेत्र में पहुंचे।

इन चार बहिन-भाईयों ने इस स्थान पर किसी सामान्य बहिन-भाईयों के समान जीवन व्यतीत किया, अर्थात् वे झगड़ते भी थे एवं साथ भी रहते थे। इनमें से सबसे बड़े भाई इग्गुथप्पा ने यहीं निवास करने एवं कोडगू के निवासियों को वर्षा एवं धान मुहैया कराने का निश्चय किया। अन्य बहिन-भाई अन्यत्र क्षेत्रों में चले गए।

यहाँ आप सम्पूर्ण कथा पढ़ सकते हैं।

इतिहास

पडी इग्गुथप्पा मंदिर परिसर
पडी इग्गुथप्पा मंदिर परिसर

पडी इग्गुथप्पा मंदिर के प्रमुख देव सुब्रमन्य अथवा कार्तिक हैं जिन्हे शिव एवं कावेरी अम्मा का पुत्र माना जाता है। कावेरी अम्मा को गौरी का अवतार माना जाता है। मंदिर में शिव एवं इग्गुथप्पा दोनों की मूर्तियाँ हैं। इस क्षेत्र में कावेरी नदी को कावेरी अम्मा मानते हैं जो कूर्ग एवं उसके नागरिकों की सर्वव्यापी देवी हैं।

मंदिर के पुरोहित जी भक्तों के लिए भोजन बना रहे थे। अपना कार्य करते हुए ही वे मुझसे वार्तालाप करने लगे। उन्होंने मुझे बताया कि यह कई सदियों पुराना मंदिर है। इसका निर्माण कोडगू के राजा लिंग राजेन्द्र ने सन् १८१० में किया था। हाल ही में कूर्ग के नागरिकों द्वारा मंदिर का नवीनीकरण किया गया है। इसके लिए उन्होंने करोड़ों रुपये एकत्र किये थे।

इग्गुथप्पा देवता का चित्र
इग्गुथप्पा देवता का चित्र

उनके अनुसार, इग्गुथप्पा शिव पुत्र कार्तिकेय का स्थानीय नाम है। इसका शब्दशः अर्थ है, भगवान जो भोजन प्रदान करते हैं। यहाँ के लोगों की मान्यता है कि किसी काल में वे मानव रूप में कूर्ग में निवास करते थे। यह भी माना जाता है कि कार्तिकेय ने लोगों से उन्हे अन्न प्रदान करने के लिए कहा। उसी समय से कूर्ग में किसानों का पुत्तरी कृषि उत्सव मनाया जाता है

पुत्तरी – फसल कटाई का उत्सव

पुत्तरी उत्सव की तिथि साधारणतः दिसंबर मास के मध्य में आती है जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में भ्रमण करता है। यह एक प्रकार से भगवान का वार्षिक भ्रमण है। इस समय इग्गुथप्पा भगवान की शोभायात्रा निकाली जाती है। उन्हे स्नान कराया जाता है, उनका शृंगार किया जाता है, संगीत एवं नृत्य द्वारा उनका मनोरंजन किया जाता है तथा शोभायात्रा के पश्चात उन्हे वापिस मंदिर में बिठाया जाता है। तत्पश्चात उनके समक्ष ९ प्रकार के शिव तांडव नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है जो भगवान शिव का दिव्य नृत्य है। इसके पश्चात इग्गुथप्पा भगवान की विस्तृत पूजा-अर्चना की जाती है। अन्न दान किया जाता है। तुलाभार का आयोजन किया जाता है जिसमें भक्तगण अपने अथवा अपने चयनित संबंधी के भार के तुल्य अनाज का दान करते हैं। ऐसे ही तुलाभार प्रक्रिया का उल्लेख मैंने द्वारका पर लिखे अपने एक संस्करण में भी किया था।

पुजारीजी ने बताया कि वे स्वयं अथवा उनके परिवार के सदस्य तांडव नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। उन सब ने इस नृत्य कला शैली का विस्तृत प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

मंदिर में तुलाभार अनुष्ठान का आयोजन प्रत्येक शनिवार एवं रविवार के दिन किया जाता है।

उन्होंने बताया कि यदि वर्षा के आगमन में विलंब होने की आशंका हो अथवा वर्षा में कमी की आशंका हो तो लोग यहाँ पर्याप्त वर्षा के लिए प्रार्थना करने आते हैं। उन्होंने इसका एक उदाहरण भी दिया कि टाटा कॉफी के एक अधिकारी उस वर्ष विशेष पूजा-अर्चना के लिए यहाँ आए थे जिस वर्ष पर्याप्त मात्रा में वर्षा नहीं हो रही थी। ऐसा कहा जाता है कि पूजा अनुष्ठानों के कुछ घंटों के पश्चात ही वर्षा के देव ने प्रसन्न होकर उनकी इच्छा पूर्ति कर दी थी।

अनेक निःसंतान दंपति भी संतान की अभिलाषा लेकर यहाँ आते हैं। पुजारीजी बता रहे थे कि उन्होंने कम से कम ५०० दंपति ऐसे देखे जिन्हे पडी इग्गुथप्पा मंदिर में पूजा–अर्चना अर्पित करने के पश्चात संतान प्राप्ति हुई है।

वे जब हम से वार्तालाप कर रहे थे वे भक्तों के लिए अनवरत भोजन पका रहे थे। हमें भी भोजन का स्वाद चखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमने यहाँ जलपान किया, अनानास का हलवा खाया तथा गरम चाय भी पी।

पडी इग्गुथप्पा मंदिर के दर्शन

मंदिर के प्रवेश पर नाग नागिनी मूर्तियाँ
मंदिर के प्रवेश पर नाग नागिनी मूर्तियाँ

मडिकेरी शहर से लगभग १० किलोमीटर दूर, कक्कबे नगर में यह मंदिर स्थित है। यहाँ सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए एक ढलुआं मार्ग द्वारा ऊपर चढ़ना पड़ता है जहाँ से आप कूर्ग की हरी-भरी घाटियों के अप्रतिम सौन्दर्य का आनंद उठा सकते हैं।

यह एक छोटा मंदिर अवश्य है किन्तु पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का सर्वोत्तम रखरखाव किया गया है। जब हम मंदिर की ओर पैदल जा रहे थे तब हमने एक वृक्ष के नीचे नाग नागिनियों की अनेक मूर्तियाँ देखी। उन पर पूजा-अर्चना के सर्व चिन्ह उपस्थित थे। अधिकतर मूर्तियों पर ताजे पुष्पों की मालाएं थीं। उनमें से बड़ी प्रतिमाओं के एक समूह के समक्ष एक दीप प्रज्ज्वलित कर रखा हुआ था। इस क्षेत्र में नाग एक महत्वपूर्ण चिन्ह है। इन्हे देख मुझे नेपाल के थारु समुदाय का स्मरण हो आया जो अपने निवास के समक्ष कुंडली धारी नाग की प्रतिमा रखते हैं।

मंदिर के बाहर रंग बिरंगी चूड़ियाँ
मंदिर के बाहर रंग बिरंगी चूड़ियाँ

एक चूड़ी विक्रेता कांच की चूड़ियों की विक्री कर रहा था। मैं समझ नहीं पायी कि ये चूड़ियाँ भक्तों के लिए हैं अथवा इन्हे भगवान को अर्पित किया जाता है।

इग्गुथप्पा मंदिर की वास्तुकला

कोडवा योद्धा
कोडवा योद्धा

मंदिर की जो वर्तमान संरचना है उसकी आयु १० से भी कम वर्ष है। उसे देखकर इस तथ्य का आभास भी तुरंत लग जाता है। इसकी संरचना पाषाण शिलाओं द्वारा की गई है। इसकी तिरछी छत ठीक उसी प्रकार की है जैसे हम केरल के मंदिरों में देखते हैं। प्रवेशद्वार की ओर की छत को धातुई अलंकरण द्वारा सुंदरता से उत्कीर्णित किया हुआ है। मुझे दोनों ओर गजाकृतियाँ भी दृष्टिगोचर हुईं।

वृक्ष पूजा का चित्रण
वृक्ष पूजा का चित्रण

एक आगंतुक के रूप में आपको मंदिर के भीतर प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। अतः पुष्पों से अलंकृत भगवान को आपको दूर से देखकर ही संतुष्ट होना पड़ेगा। मुख्य प्रवेश द्वार पर चांदी के पत्रों का आवरण है जिस पर कोडगू की अनेक किवदंतियाँ एवं चिन्ह उत्कीर्णित हैं।

कोडवा पुरुष पारंपरिक वेश भूषा में
कोडवा पुरुष पारंपरिक वेश भूषा में

मंदिर की बाहरी भित्तियों पर पत्थर के फलक सन्निहित किये गए हैं जिन पर कोडवाओं की कथाओं की सुंदर शिल्पकारी की गई है। उन पर भगवान की आराधना, तुलाभार, युद्धकला, उत्सवों, संगीत एवं नृत्यों से संबंधित दृश्यों के शिल्प हैं।
जीवंत कोडगू संस्कृति के दर्शन

कोडवा महिलाएं पारंपरिक भेषभूषा में
कोडवा महिलाएं पारंपरिक भेषभूषा में

मंदिर के दर्शन एवं अवलोकन का सर्वोत्तम भाग था कोडगू के जीवंत संस्कृति का दर्शन! यहाँ की स्त्रियाँ पारंपरिक कूर्गी शैली में साड़ियों का परिधान करती हैं। यह शैली भारत के अन्य स्थानों की शैली के समान ही होता है, अंतर केवल इतना है कि सामान्य साड़ी का पृष्ठ भाग इनके सम्मुख होता है तथा सामने का भाग इनके पृष्ठभाग में होता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो साड़ी को उसी स्थान पर रख स्त्रियाँ १८० अंश घूम जाती हैं। इस शैली में रंगबिरंगी साड़ियाँ धारण किये अनेक स्त्रियों को मैंने मंदिर की मुंडेर पर बैठे देखा। साड़ी धारण करने की इस शैली को देख मुझे अत्यंत अचरज हुआ।

कोडवा सांस्कृतिक धरोहर
कोडवा सांस्कृतिक धरोहर

मंदिर में दर्शनार्थ आई हुई स्त्रियों में केवल मैं ही थी जो साड़ी में सज्ज नहीं थी। मुझे उनकी अस्वीकृत दृष्टि का पूर्ण आभास हो रहा था। पुजारीजी द्वारा पकाये एवं भगवान को अर्पित किये गए प्रसाद रूपी भोजन को भक्तों को परोसा जा रहा था। हम भोजन हेतु वहाँ रुके नहीं क्योंकि अन्य कई स्थानों का अवलोकन शेष था। किन्तु वहाँ अनेक परिवार पंक्ति में खड़े अपने बुलावे की प्रतीक्षा कर रहे थे।

यात्रा सुझाव

• मंदिर प्रातः से दोपहर तक खुला रहता है। तत्पश्चायर संध्याकाल में कुछ घंटों के लिए खुलता है। आप मंदिर के खुलने के सही समय की स्थानीय निवासियों से पुष्टि कर लें।
• मंदिर के भीतर छायाचित्रिकारण की अनुमति नहीं है।
• मंदिर में आए सभी भक्तों एवं पर्यटकों के लिए भोजन कक्ष के द्वार खुले हैं।
• पर्यटकों के लिए मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश वर्जित है ।
• मंदिर की पवित्रता एवं संस्कारों की मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपने परिधान का चयन करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

1 COMMENT

  1. बड़े भाई आपका लेख मुझे बहुत पसंद आया और आपकी फोटोस काफी अच्छी हैं आपका यह लेख वाकई काबिल-ऐ-तारीफ है।

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