सिक्किम भ्रमण के अंतर्गत इस भाग में हम गंगटोक से रिंचेनपाँग की ओर निकल पड़े। इस गंतव्य के विषय में हमारे मस्तिष्क में कोई नूतन कल्पना जन्म नहीं ले रही थी। यही अपेक्षित था कि किसी भी पर्वतीय क्षेत्र के नगरों के अनुरूप रिंचेनपाँग भी एक ठेठ पर्वतीय नगर होगा जहाँ दो अवयव अवश्य होंगे।
सर्वप्रथम, कंचनजंगा पर्वतमालाओं की तलहटी में भ्रमण करते हुए हमें रिंचेनपाँग में भी कंचनजंगा पर्वत शिखरों के सुन्दर दृश्य अवश्य दृष्टिगोचर होंगे। किन्तु क्या ऐसा दृश्य सिक्किम के लगभग सभी नगरों से दृश्यमान नहीं है? सिक्किम में मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यहाँ के लगभग सभी नगरों को युक्तिपूर्ण रूप से बसाया गया हैं ताकि सभी स्थानों से कंचनजंगा का अप्रतिम दृश्य प्राप्त हो सके। दूसरा अवयव है, बौद्ध मठ। हम अपेक्षा कर रहे थे कि रिंचेनपाँग में भी कुछ बौद्ध मठ होंगे जिनकी कुछ कथाएं होंगी, कुछ इतिहास होगा, जैसे इन मठों में किन किन पुण्यात्माओं ने भ्रमण किया है व कब भ्रमण किया है।
मैं आप को बता दूं कि मेरी कल्पना सत्य एवं असत्य दोनों थी। जी हाँ, रिंचेनपाँग से हिमालय के कंचनजंगा पर्वत शिखरों का अप्रतिम दृश्य प्राप्त होता है। कुछ सुन्दर मठ भी हैं जिनकी ओर जाते मार्गों के दोनों ओर फड़फड़ाती पताकाएँ हमारा स्वागत करती प्रतीत होती हैं। किन्तु रिंचेनपाँग में केवल इतना ही नहीं है।
इनके परे भी रिंचेनपाँग में अप्रतिम दर्शनीय दृश्य हैं जिनके विषय में मुझे किसी भी परिदर्शक अथवा परिदर्शन पुस्तिका ने नहीं बताया। आईये रिंचेनपाँग के उन्ही कुछ अनूठे आयामों का आनंद लेते हैं।
रिंचेनपाँग के अनुपम दर्शनीय स्थल
आप सोच रहे होंगे कि रिंचेनपाँग के अनूठे आयामों के विषय में मुझे किसी परिदर्शक अथवा परिदर्शन पुस्तिका से जानकारी प्राप्त नहीं हुई है तो मेरी सहायता किसने की? मैं आपको बताना चाहूंगी कि नगर के मुख्य हाट की भित्ति पर मुझे यह मानचित्र दिखा जिसने रिंचेनपाँग को जानने में मेरी सहायता की थी।
मेरी अभिलाषा है कि भारत के सभी नगरों में पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एवं उनका मार्गदर्शन करने के लिए ऐसे मानचित्र सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किये जाने चाहिए।
आर्किड पुष्प पगडण्डी
मानचित्र के निर्देशों के अनुसार हमने अपने परिदर्शक (गाइड) के साथ आर्किड पगडण्डी तक जाने का निश्चय किया। नगर के पर्यटन मानचित्र पर इसे आर्किड बेल्ट कहा गया है किन्तु मैं इसे आर्किड ट्रेल अथवा आर्किड पगडण्डी कहना चाहूंगी। मानचित्र में दर्शाए मार्ग के अनुसार हम गोम्पा तक पहुँचे तथा वहाँ वाहन खड़ी की। वहाँ से आगे जाने का प्रश्न ही नहीं था क्योंकि वहीं पर मार्ग समाप्त हो गया था।
वहाँ से हमने सघन वन के भीतर प्रवेश किया। वन में अस्पष्ट सी पगडण्डी थी जो सूखे पत्तों से भरी हुई थी। २० मिनटों तक हमें ना तो आर्किड दिखे, ना ही जीवन के कोई चिन्ह। हम आशंकित हो रहे थे कि हम सही मार्ग पर नहीं जा रहे हैं। किन्तु हमारा परिदर्शक संदेह रहित था। उसने हमसे किंचित आगे चलने का आग्रह किया। आगे जाते ही हमें प्रार्थना ध्वज दृष्टिगोचर होने आरम्भ हो गए थे। कुछ क्षणों पश्चात सघन वन के मध्य हमारे समक्ष एक इकलौती संरचना प्रकट हो गयी। वह कोई कुटिया अथवा छोटा सा घर नहीं था अपितु एक आकर्षक भवन था।
वन के मध्य निवास
आगे जाकर हमारी पगडण्डी एक गृह के भीतर प्रवेश कर गयी। हम उस घर के आँगन में पहुँच गए थे। हमारे चारों ओर मनमोहक आर्किड से भरे गमले लटके हुए थे। हमने यहाँ जल ग्रहण कर किंचित विश्राम किया। तत्पश्चात आगे बढ़ गए। पगडण्डी पर चलते हुए अब नियमित अंतराल पर हमें भवन अथवा निवास दिखाई दे रहे थे। सभी घरों के समक्ष तथा पृष्ठ भाग में स्थित आँगन भिन्न भिन्न रंगों के आर्किड पुष्पों से भरे हुए थे।
एक स्थान पर हमें कैक्टस का एक पौधा दिखा जिस पर सुन्दर पुष्प पल्लवित थे। एक घर पर रूककर मैंने गृहस्वामिनी से कुछ वार्तालाप भी किया। मुझे उसके आभूषण अत्यंत आकर्षक प्रतीत हो रहे थे। मैंने उनसे उनके जीवन के विषय में भी चर्चा की। वन के भीतर बिना मूलभूत सुविधाओं के वे वहाँ कैसे निवास कर रहे हैं? वे अत्यंत प्रसन्न थे। उन्हें अपने निवास तक किसी पक्के मार्ग की भी आवश्यकता नहीं थी।
लगभग एक घंटे तक चलते हुए अंततः हम घूमकर अपने वाहन तक पहुँचे। मैं पर्वतों एवं पर्वतीय जीवन शैली से सम्बंधित ज्ञान से अधिक समृद्ध होकर वापिस आयी थी। मुझे यह अनुभव हुआ कि जिन सड़कों एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, वे उसके अभाव में अधिक प्रसन्नता से जीवन यापन कर रहे थे। इस धरती पर अनेक ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने घरों के आसपास आधुनिक सुख सुविधाएं नहीं अपितु वृक्ष, वन, पौधे, पुष्प जैसी प्राकृतिक संपदा अधिक प्रिय है।
हमारी भेंट वहाँ एक बालक से हुई जो अनेक पक्षियों के चहचहाहट के स्वरों को अपने मुंह से निकाल सकता था। उन बालक की आयु मात्र ३-४ वर्ष की थी। हम उनकी प्रतिभा को देख कर अचंभित थे। जैसे जैसे पक्षी चहचहा रहे थे, बालक वैसे ही स्वर अपने मुंह से निकाल रहा था।
रिंचेनपाँग के विषैले सरोवर की कथा
निएंग डाह अथवा विषैला सरोवर अब लगभग एक शुष्क सरोवर बन चुका है। हमने वहाँ कुछ बालकों को क्रिकेट भी खेलते देखा। विषैला सरोवर, यह नाम हमारे भीतर कौतूहल उत्पन्न कर रहा था। हमने कुछ लोगों से इस विषय में जानने का प्रयास किया। जो हमें ज्ञात हुआ, वह यह है।
प्रथम अंग्रेज अधिकारी जब रिंचेनपाँग पहुँचा था, उसने यहाँ एक भवन का निर्माण किया था। उस समय यह सरोवर उस भवन से सीधे जुड़ा हुआ था। एक दिवस कुछ स्थानीय लेप्चाओं ने उसके वध का नियोजन किया। इसके लिए उन्होंने उस सरोवर में विष मिला दिया। अंग्रेज अधिकारी का सौभाग्य था कि उसके एक कर्मचारी ने, जो स्थानीय लेप्चा ही था, उसे इस विषय में जानकारी दी तथा उसके प्राणों की रक्षा की।
जब मैं सिक्किम से वापिस अपने घर आयी, मैंने इस विषैले सरोवर के विषय में इन्टरनेट में खोज की। वहाँ मुझे ज्ञात हुआ कि सन् १८६० में इस विषैले सरोवर के जल ने अंग्रेज सेना के अनेक जवानों के प्राण ले लिए थे। इस घटना ने अंग्रेज सेना को पीछे हटने के लिए विवश कर दिया था। आज यह सरोवर लगभग अस्तित्वहीन है किन्तु ऐसी मान्यता है कि अब भी इसका जल विषैला है।
आप को जो कथा भाये आप उसे चुनें। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैंने यह तथ्य चुना कि जैव रासायनिक युद्ध नीति नवीन अवधारणा नहीं है। यह प्राचीनकाल से प्रचलित है।
अंग्रेज का बंगला
विषैले सरोवर से एक मार्ग उस अंग्रेज अधिकारी के भवन की ओर जाता है जिसका संबंध इस विषैले सरोवर से है। अब यह लोक निर्माण विभाग का एक विश्राम गृह है। यह इसे सामान्य जनमानस की पहुँच से दूर कर देता है। यह किसी भी दिशा से प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। मेरे अनुमान से भिन्न भिन्न कालखण्डों में इस पर अनवरत नवीनीकरण का कार्य किया जाता रहा है।
रिंचेनपाँग में एक पारंपरिक सिक्किमी निवासस्थान
यह एक ऐसा घर है जिसने हमें रिंचेनपाँग नगर का पूर्ण चक्र लगाने के लिए विवश कर दिया था। मानचित्र के अनुसार यह विषैले सरोवर से किंचित आगे स्थित है। हम आगे बढ़ते रहे किन्तु हमें सघन वन के अतिरिक्त कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
अंततः, हमें शिलाखंडों द्वारा निर्मित एक संरचना दिखाई दी जिसमें रंगबिरंगे झरोखे थे। आश्चर्यजनक रूप से यह विस्तृत परिसर में खड़ा एक इकलौता भवन था। इसके निचले भाग में शिलाओं द्वारा अनोखी शैली में निर्मित केवल भित्तियाँ थीं। इसके ऊपरी भाग में लकड़ी के झरोखे थे जिन पर जालियां लगीं थीं। जालियों पर भिन्न भिन्न आकारों के खांचे थे। इसकी पार्श्व भित्तियों पर रंगबिरंगे फलक थे। यह भवन अत्यंत रोचक व आकर्षक प्रतीत हो रहा था।
इस भवन के आसपास अनेक कुत्ते विचरण कर रहे थे। इसलिए मैंने वाहन की शरण में रहना ही उत्तम जाना। हमारे परिदर्शक ने भवन के भीतर जाकर उसके अवलोकन की अनुमति ग्रहण करने का प्रयास किया किन्तु उनकी प्रार्थना को कठोरता से नकार दिया गया।
रिंचेनपाँग के मठ
रिंचेनपाँग में हमने दो बौद्ध मठ देखे। ये दोनों हाट मार्ग के दोनों छोरों पर स्थित हैं।
अन्य मठों के अनुरूप ये भी विविध रंगों में रंगे मठ हैं जिनके चारों ओर हरियाली होती है। चारों ओर फड़फड़ाते ध्वज भक्तों की श्रद्धा की ओर संकेत करते हैं।
रिंचेनपाँग हाट में पदभ्रमण
रिंचेनपाँग नगर का मुख्य हाट मुख्य मार्ग के एक छोर पर स्थित है। यहाँ आप हिमाच्छादित हिमालय शिखरों का अवलोकन करते हुए भाप निकलती चाय एवं मोमो का आनंद उठा सकते हैं। आवश्यकता है तो केवल निर्मल स्वच्छ आकाश की।
समीप स्थित बुरुंश पुष्प अभयारण्य भी एक आकर्षक पर्यटन बिंदु है। पुष्पों के लदे उद्यान का आनंद उठाना हो तो आपको मार्च-अप्रैल में सिक्किम यात्रा नियोजित करनी पड़ेगी। जब हम यहाँ आये थे तब इन पुष्पों का ऋतुकाल समाप्त होने लगा था।
क्या आपने रिंचेनपाँग को अपनी सिक्किम यात्रा के भ्रमण बिन्दुओं की सूची में सम्मिलित कर लिया है?