सहस्रलिंग – सिरसी शाल्मला नदी के सहस्त्र शिवलिंग

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सहस्रलिंग – सिरसी शाल्मला नदी
सहस्रलिंग – सिरसी शाल्मला नदी

उत्तर कन्नड़ के हरे भरे घने वनों के हृदयस्थली में स्थित है विस्मयकारी स्थलों का नगर सिरसी। उत्तर कन्नड़ के प्रत्येक स्थान से सिरसी की ओर रास्ता जाता है। मेरे इस सिरसी यात्रा के समय मैंने निश्चय किया था कि सिरसी के आसपास के अद्भुत पर्यटन स्थलों का अवलोकन अवश्य करूंगी। इससे पूर्व मैंने आपसे विभूति झरना, याना शिलाएं तथा मिर्जन दुर्ग की यात्रा के मेरे अनुभव बांटे थे। अपने इस संस्मरण द्वारा आपको सिरसी की शाल्मला नदी के तल पर स्थित प्राचीन शिवलिंगों के दर्शन कराती हूँ।

सोंदा के सहस्रलिंग शिवलिंग

शाल्मला नदी में सहस्रलिंग - कंकर कंकर शंकर है
शाल्मला नदी में सहस्रलिंग – कंकर कंकर शंकर है

सिरसी से लगभग १७ की.मी. दूर एक छोटा सा गाँव है सोंदा। इसी गाँव के समीप, घने वनों से होकर बहती है एक शांत सी नदी, जिसका नाम है शाल्मला। शाल्मला नदी ने अपने आँचल में एक आसाधारण ऐतिहासिक धरोहर छुपा रखी है।शाल्मला नदी के तल में बड़ी बड़ी शिलाएं है जिनमें कुछ इतनी विशाल हैं कि इन्हें चट्टानें कहा जा सकता है। गहरे धूसर रंग की ये शिलाएं कड़े स्फटिक से निर्मित प्रतीत होती हैं।

चारों ओर सर्व लघु एवं विशाल शिलाओं पर शिवलिंग तराशे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यहाँ कुल मिला कर एक सहस्त्र (१०००) से भी अधिक शिवलिंग उत्कीर्णित हैं। इसी कारण यह स्थल सहस्त्रलिंग के नाम से से जाना जाता है। इनमें से कई शिवलिंग, शिव के वाहन नंदी सहित भी हैं। कई शिलाओं पर एक से अधिक शिवलिंग तक्ष हैं। कुछ शिवलिंग अर्धनिर्मित हैं जिनके खाके मैंने स्पष्ट देखे। घुटनों तक गहरे जल के भीतर प्रवेश कर मैंने देखा कि लगभग प्रत्येक शिला पर कम से कम एक शिवलिंग अवश्य तक्ष था।

जहाँ शिव वहां उनका वहां नंदी - सहस्रलिंग - शाल्मला नदी
जहाँ शिव वहां उनका वहां नंदी – सहस्रलिंग – शाल्मला नदी

कुछ शिलाओं पर नाग देवता भी उत्कीर्णित थे। मेरी दृष्टी एक शिला पर तक्षे नाग देवी की अत्यंत आकर्षित प्रतिमा पर जाकर थम सी गयी थी। भगवान् शिव के प्रतीक ये शिवलिंग, नंदी तथा नागदेव विहीन कैसे हो सकते हैं?

कुछ चट्टानों पर एक के ऊपर एक जमाये हुए पत्थरों को देख मुझे अपनी स्पीती घाटियों की यात्रा स्मरण हो आयी। वहां भी मैंने ऐसे ही पत्थरों को एक के ऊपर एक जमाये हुए देखा था। यहाँ तक कि ऐसा दृश्य मैने कनाडा के इनुक्षुक में भी देखा था। मैं दंग रह गयी कि कुछ प्रतीकात्मक चिन्ह कितने सार्वभौमिक हो जाते हैं!

सहस्त्रलिंग स्थापना की किवदंतियां

शाल्मला नदी के किनारे शिवलिंग
शाल्मला नदी के किनारे शिवलिंग

इन सहस्त्रलिंगों के समीप स्थित एक लघु सूचना पटल इन सहस्त्रलिंगों की कथाएं कह रहा था।

ऐसा कहा जाता है कि सोंदा के राजा सवादी अकसप्पा नायक को संतान सुख प्राप्त नहीं था। संतान प्राप्ति हेतु उन्हें एक ऋषि ने एक सहस्त्र शिवलिंगों के निर्माण करवाने की सलाह दी थी। देवों को प्रसन्न करने के लिए राजा ने शाल्माला नदी में उपलब्ध लगभग प्रत्येक शिला को शिवलिंग में परिवर्तित कर दिया था।

हर शिला एक शिवलिंग - सहस्रलिंग सिरसी
हर शिला एक शिवलिंग – सहस्रलिंग सिरसी

किवदंतियों के अनुसार शिवलिंगों के निर्माण के पश्चात अंततः राजा को संतान सुख प्राप्त हुआ। उसी काल से यह धारणा चली आ रही है कि यह शिवलिंग सबकी मनोकामनाएं सम्पूर्ण करती हैं। अर्थात् इच्छापूर्ति शिवलिंग हैं ये सिरसी के सहस्त्रलिंग।

हालांकि इन सहस्त्र लिंगों के इतिहास सम्बंधित अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

शिवलिंग का एक और विहंगम दृश्य
शिवलिंग का एक और विहंगम दृश्य

निम्नदर्शित चित्र में दृष्ट नंदी की प्रतिमा यहाँ की विशालतम प्रतिमा है। मैंने अनुमान लगाया यह प्रतिमा लगभग ६ फीट ऊंची, १२ फीट लम्बी तथा ५ फीट चौड़ी है। यह विशालकाय पाषाणी मूर्ति कई मन भारी हो सकती है। इस विशालकाय प्रतिमाओं तथा शिवलिंगों को देख मैंने अनुमान लगाया कि इन्हें यहीं नदी के तल में स्थित चट्टानों तथा शिलाओं पर यथास्थान तराशा गया होगा।

विशाल चट्टान को नंदी का रूप दिया - सहस्रलिंग सिरसी
विशाल चट्टान को नंदी का रूप दिया – सहस्रलिंग सिरसी

कुछ विशाल चट्टानों पर पौराणिक कथाओं से सम्बंधित चित्र भी उत्कीर्णित थे। उदाहरणतः निम्न चित्र में दर्शित परिदृश्य में नंदी तथा शिवलिंग एकत्र तक्ष हैं।

सहस्रलिंग के दर्शन करने कब जाएँ

नंदी एवं नाग प्रतिमाएं - शाल्मला नदी के तट पर
नंदी एवं नाग प्रतिमाएं – शाल्मला नदी के तट पर

चूंकि ये सहस्त्रलिंग वर्षा ऋतु द्वारा पोषित शाल्माला नदी के तल पर स्थित हैं, इनके दर्शन हेतु समय का चयन अति आवश्यक है। वर्षा ऋतु में अधिकतर शिवलिंग जलमग्न अवस्था में आ जाते हैं। इस कारण इनके अवलोकन हेतु सर्वोपयुक्त समय अक्टूबर मास से मार्च के महीने तक है।

सार्वजनिक सड़क परिवहन द्वारा नदी तक नहीं पहुंचा जा सकता। अतः हमने इन शिवलिंगों तक पहुँचने के लिए किराए की गाड़ी का प्रबंध किया था। नदी के चारों ओर के घने वनों का आनंद लेते हुए नदी के आसपास पदयात्रा भी की थी। यह स्थल जीव-वनस्पतियों तथा पक्षियों से समृद्ध है।

नाग देवी की प्रतिमा - शाल्मला नदी
नाग देवी की प्रतिमा – शाल्मला नदी

समीप ही एक छोटी सी दुकान है जो पर्यटकों की कुछ मौलिक आवश्यकताओं जैसे पेयजल, जलपान इत्यादि की आपूर्ति करती है।

गूगल में सरसरी दृष्टी दौडाने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जितना इन सहस्त्रलिंगों के सम्बन्ध में सुना था, उससे अधिक कोई जानकारी वहां उपलब्ध नहीं है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग तथा सरकार से मेरी यह अवश्य अपेक्षा है कि वे नदी के तल पर आगे जाकर और अधिक शिवलिंगों की खोज करे। वर्तमान में उपलब्ध शिवलिंगों की सही संख्या की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयत्न करें।

झूलता सेतु

शाल्मला नदी पर झूलता सेतु
शाल्मला नदी पर झूलता सेतु

नदी के समीप एक झूलता सेतु निर्मित है जो नदी के उस पार गाँव तक पहुंचाता है। इस सेतु पर चढ़ कर ऊपर से इन शिवलिंगों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यहाँ से आसपास का परिदृश्य भी अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है।

साथ ही यह भी दृश्मान है कि पर्यटकों ने नदी तथा आसपास के क्षेत्र की क्या दुर्गति की है। नदी के दोनों तीर स्वच्छ नहीं थे तथा पर्यटकों ने नदी में कचरा डालने में किसी भी प्रकार का परहेज नहीं किया है। आशा है सरकार इस स्थल की स्वच्छता की ओर गंभीरता से विचार करे।

इन सहस्त्रलिंगों के पृष्ठभागीय किवदंतियों से परे जाकर एक विचार मष्तिष्क में उभरता है और इन लिंगों के इतनी बड़ी संख्या में एक ही स्थान पर होने के कारणों को खोजता है। कुछ तो कारण अवश्य होगा क्योंकि ऐसे ही समूह भारत में अन्य स्थलों पर भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ तक कि विश्व की अन्य हिन्दुधर्म का पालन करते स्थलों पर भी ऐसे शिवलिंगों के समूह प्राप्त हुए हैं।

इनमें कुछ स्थल हैं:

कंबोडिया की सियाम रीप नदी

नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर

वाराणसी का जंगमवाड़ी मठ

पाटन, गुजरात का सहस्त्रलिंग तलाव

तेलंगाना स्थित वारंगल दुर्ग के अवशेष

मुझे विश्वास है कि कई अन्य स्थलों में भी इस प्रकार के शिवलिंग अवश्य उपलब्ध होंगे। कुछ स्थानों पर इच्छापूर्ति हेतु निर्मित होंगे तथा कुछ स्थानों पर यह इच्छाप्राप्ति पर भक्तों द्वारा चढ़ाए गए होंगे। अथवा ऐसे शिवलिंगों के समूह तक्ष करने की परंपरा रही होगी।

सिरसी, कर्नाटक के आसपास कुछ अन्य अद्भुत पर्यटन स्थल इस प्रकार हैं।

सिरसी मारिकम्बा मंदिर

लाल तथा श्वेत रंग में रंगा, १७ वी. शताब्दी का यह मंदिर श्री मारिकम्बा देवी को समर्पित है। इसे देवी को समर्पित शक्तिपीठ मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की भित्तियों पर स्थानीय कवी कला देख आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगे।

बनवासी

बनवासी ग्रामीण पर्यटन विकास योजना के लिए प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक दृष्टी से बनवासी कदम्ब शासकों की राजधानी थी। निर्मल ग्रामीण जीवन से समृद्ध बनवासी का मुख्य आकर्षण है ९ वी. सदी का भगवान् शिव को समर्पित मधुकेश्वर मंदिर। पाषाण द्वारा निर्मित यह मंदिर शिव की प्रतिमाओं से भरपूर है। देवी पार्वती तथा नंदी की भी कई प्रतिमाएं हैं।

बनवासी ताजे निर्मित गन्ने के गुड के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ पर चखे गुड़ से अधिक ताजे गुड़ का स्वाद कदाचित आपने नहीं लिया होगा।

बनवासी सिरसी से लगभग २० की.मी. की दूरी पर स्थित है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

6 COMMENTS

  1. ये जगह का वर्णन कहीं पढ़ा था थोड़ा सा लेकिन आपने पूरा विस्तृत आलेख लिखकर बहुत ही अच्छा काम किया है ! अद्भुत और आशचर्यजनक जगह है !!

  2. अनुराधा जी,
    इस बारे मे,संक्षेप में पहले भी पढ़ा था पर विस्तृत जानकारी आपके आलेख से मिली । शाल्मला नदी के तल में ऐसी असाधारण ऐतिहासिक धरोहर का होना सच में विस्मयकारी है । पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग तथा शासन स्तर पर इस ओर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिये । यह भी बड़े दुःख की बात हैं कि पर्यटकों द्वारा गंदगी फैलाने में इस स्थल को भी नहीं बख्शा गया ! यह विडम्बना ही हैं कि कुछ अपवादों को छोडकर, लगभग हर पर्यटन स्थल की यहीं स्थिती हैं…..जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी, इस दिशा में सुधार की उम्मीद करना बेमानी है !
    सुंदर शब्द-चित्रण की प्रस्तुति के लिये अनेकानेक धन्यवाद ।

    • जी – स्वच्छता से बढकर कुछ भी नहीं है। आशा है हम और हमारा व्यवहार अवश्य बदलेगा।

  3. कुछ समय पहले सहस्त्र शिवलिंग की फ़ोटो व्हाट्सएप पर बहुत प्रचारित हुई थी तब इसके फ़ोटो को देखकर मन मे यह शंका होती थी कि ऐसा कही हो सकता है क्या? जिज्ञासा भी बनी रहती थी कि अगर ऐसा होगा तो कितना अदभुत होगा, पर आपका यह लेख पढकर शंका दूर हुई व जिज्ञासा को विराम मिला। वाकई संतान प्राप्ति के लिए इंसान क्या क्या नही करता, क्या राजा और क्या रंक, सब हर सम्भव कोशिश करते हैं, यहाँ सौंदा के राजा ने इतिहास रच दिया। एक और ऐतिहासिक धरोहर का भ्रमण करवाने के लिए धन्यवाद.

    • संजय जी, जब मैंने पहली बार इन शिवलिंगों के बारे में पढ़ा था, मुझे भी ऐसा ही लगा था. लेकिन यह स्थान मेरे ससुराल के बहुत समीप है, सो तथ्य की पुष्टि शीघ्र ही हो गयी और दर्शन का अवसर भी मिल ही गया। मुझे आश्चर्यचकित करती है, हमारे पूर्वजों की सृजनात्मक दृष्टि, कहाँ खो दिया उसे हमने, यही समझने का प्रयास है।

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