चेरापूंजी को धरती की सबसे गीली जगह के रूप में जाना जाता है। जैसा कि हमने अपनी भूगोल की कक्षा में भी पढ़ा था। इससे हमारे दिमाग में चेरापूंजी की जो छवि निर्मित हुई थी वह कुछ ऐसी थी कि, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर हर वक्त वर्षा होती रहती है। अगर आप वहां पर जाए तो आपको सिर्फ बारिश ही बारिश देखने को मिलेगी। लेकिन हमारी यह धारणा जल्द ही गलत साबित हुई और हमे यह पता चला कि वास्तव में चेरापूंजी ऐसी जगह बिल्कुल नहीं है। देश के अन्य भागों की तरह यहां पर भी वर्षा ऋतु के समय ही बारिश होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस दौरान यहां पर धरती के अन्य किसी भी स्थान से अधिक बारिश होती है।
वास्तव में हमे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि सर्दियों के मौसम में यहां पर पूरा सूखा पड़ जाता है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र को पानी की गंभीर समस्या से गुजरना पड़ता है। इससे भी अधिक विडंबनात्मक शायद ही कभी हो सकती है – धरती की सबसे गीली जगह पर हर साल महीनों के लिए सूखा पड़ जाता है। यह सब जानने के बाद मेरे दिमाग में बार-बार एक ही सवाल उठ रहा था कि, क्या कभी भी इस क्षेत्र के लोगों ने जल संचयन के तरीके अपनाने की कोशिश की होगी या नहीं। और अगर कोशिश की होगी, तो क्या उन्हें किसी भी प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, या उन्होंने इसे भी प्रकृति की भेट और अपना भाग्य समझकर अपनाया होगा। चाहे जो भी हो लेकिन इन लोगों के लिए जिंदगी दोनों तरफ से बहुत कठिन है – जब बारिश होती है तब भी और जब बारिश नहीं होती तब भी।
भारत का सबसे बेहतरीन झरना – नोहकालिकाई झरना, चेरापूंजी
चेरापूंजी में घूमते समय आप हर वक्त बादलों को अपने आस-पास पाते हैं। यहां पर आप वास्तव में बादलों के बीच चल सकते हैं, उन्हें अपनी त्वचा पर महसूस कर सकते हैं और उन्हें सूंघ भी सकते हैं। ये बादल न सिर्फ आपके साथ मस्ती-मज़ाक ही करते हैं, बल्कि आपके लिए हर पल नए-नए नज़ारे भी पेश करते रहते हैं।
कभी कभी तो ये बादल झरने को ही छलावृत्त कर देते हैं जिसके कारण आपको बस उसकी आवाज सुनकर ही संतुष्ट होना पड़ता है। लेकिन बीच-बीच में वे, आपको झरने की छोटी सी झलक दिखाकर आपकी उत्सुकता को बढ़ाते हैं और फिर अचानक से आपकी दृष्टि से ओझल होकर आपको गहरी नीली झील में गिरते इस सुंदर से झरने की प्रशंसा करने हेतु कुछ समय के लिए एकांत में छोड़ देते हैं। नोहकालिकाई झरना लगभग 1100 फीट की ऊंचाई का है, जो उसे भारत का सबसे ऊंचा और बेहतरीन झरना बनाता है।
यहां की और एक विशेषता है, यहां के रंगबिरंगी फूल जो आपको हर जगह नज़र आते हैं। चाहे वह सड़क के किनारे हो, घाटी हो, या फिर यहां पर बसे प्रत्येक घरों के आँगन, हर कहीं आपको विभिन्न प्रकार के फूल दिखाई देते हैं। इन फूलों को देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लगता जैसे उन्हें यहां पर जबरदस्ती लगाया गया होगा, बल्कि ये फूल भी इन पहाड़ियों, बादलों और मनुष्यों की तरह यहां की प्रकृति का एक अभिन्न अंग हैं। हमारी इस पूरी यात्रा के दौरान हमे यहां के विविध प्रकार के, रंगबिरंगी और खूबसूरत फूल देखने को मिले जो कि अन्यत्र दुर्लभ हैं।
पहाड़ी इलाका – प्रकृति की प्रचुरता
यहां के खुले नीले आकाश में बिखरे सफ़ेद या सलेटी बादल, यहां की हरी-भरी पहाड़ियाँ और रंगबिरंगी फूल, सभी जैसे अपने उज्वलित रंगों से एक दूसरे की शोभा बढ़ाते हुए इन नज़ारों को और भी आकर्षक बना रहे थे। चेरापूंजी के इर्द-गिर्द बसी पहाड़ियों पर यहां-वहां अनेक झरने छितराये हुए हैं। आप चाहे किसी भी घाटी पर हो, आपको अपने आस-पास या तो किसी झरने की आवाज सुनाई देगी, या फिर कोई झरना ही जरूर दिखेगा। इन में से कुछ झरने यहां के मानक यात्रा कार्यक्रमों के भाग हैं, जिसके द्वारा आपको उनकी यात्रा कराई जाती है और उनसे संबंधित कुछ रोचकपूर्ण कहानियाँ भी सुनाई जाती हैं। ये सीधे खड़े झरने पहाड़ियों के बीच स्थित संकुचित मार्ग में गिरते हैं और फिर इसी मार्ग से बहते-बहते घाटी के गहन भागों में पहुँचकर नदी का रूप धारण करते हैं।
अगर पहाड़ियों के ऊपर से देखा जाए तो ये नदियां इन हरी ढलानों के बीच से बहती पानी की पतली सी रेखा के समान दिखाई देती हैं। कभी-कभी आपको इस छोटी सी नाजुक नदी की अपार शक्ति पर आश्चर्य होता है, जो इन चट्टानी पर्वतों को चीर कर स्वयं अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ती है। और आप अचानक से, कहीं पर भी जा सकने की उसकी स्वतंत्रता और सीमा पार जाने की उसकी क्षमता से ईर्ष्या करने लगते हैं। यहां की अधिकतर नदियां बहते-बहते पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश में चली जाती हैं।
भारत के सबसे बेहतरीन झरने का मनमोहक विडियो – नोहकालिकाई झरना, चेरापूंजी
नोहकालिकाई झरने से संबंधित उपाख्यान और मिथक
उपाख्यान और मिथक मानव जीवन के अभिन्न अंग हैं। ऐसी ही एक कथा चेरापूंजी के नोहकालिकाई झरने से जुडी है, जिसके नाम के पीछे एक बहुत दुखद कहानी छिपी हुई है। माना जाता है कि, का लिकाई नामक एक महिला ने बरसों पहले गलती से अपनी खुद की बेटी को खा लिया था, जिसके बाद उसने यहां पर आकर आत्महत्या की थी। इसी घटना के बाद से इस झरने को नोहकालिकाई के नाम से जाना जाने लगा।
200 फीट की अखंड चट्टान से जुडे उपाख्यान
यहां पर 200 फीट की अखंड चट्टान से बनी एक विशाल संरचना है, जो पलटी हुई ख़ासी टोकरी के जैसे लगती है। कहा जाता है कि यह टोकरी एक विराट राक्षस की थी जो हमेशा लोगों को परेशान करता था। एक बार सब लोगों ने मिलकर उसे कीलों का बनाया हुआ खाना खिलाया और मार डाला। इस उपाख्यान के अनुसार उस राक्षस का नाश तो हो गया लेकिन उसकी टोकरी यहीं पर औंधी पड़ी रह गयी, जो आज भी चट्टान के रूप में यहां पर खड़ी है। जिस प्रकार से यह चट्टान अपने चोटीदार शीर्ष के साथ इन पहाड़ियों और मैदानों के बीच खड़ी है, उसे देखकर आप इस उपाख्यान पर विश्वास किए बिना नहीं रह सकते।
मॉस्मई गुफाएँ
मेघालय में लगभग 788 गुफाएँ हैं, जिन में से अधिकतर या तो नक्शे पर नहीं मिलती या फिर अब तक उनकी खोज नहीं हो पायी है। इन में से कुछ भारत में स्थित सबसे लंबी गुफाएँ हैं। इन सभी गुफाओं में से मॉस्मई गुफाएँ सबसे प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। चेरापूंजी से कुछ ही समय की दूरी पर बसे होने के कारण बहुत से लोग इन गुफाओं को देखने आते हैं।
यहां पर बनवाई गयी पक्की सीढ़ियाँ आपको गुफा के प्रवेश द्वार तक ले जाती हैं। गुफा के द्वार पर पहुँचते ही सामने ही आपको एक विशाल कक्ष जैसी संरचना दिखेगी, जो आपको एक पतले से मार्ग की ओर ले जाती है। इस मार्ग से एक समय पर केवल एक ही व्यक्ति गुजर सकता है। इस मार्ग को पार करने के पश्चात फिर से आपको एक विशाल कक्ष जैसा मिलता है, जहां से बाहर निकलते ही आप गुफा के दूसरे छोर पर पहुँचते हैं।
इस प्रकार की कुदरती संरचनाएं आपको प्रकृति की अनेकरूपता के प्रति हमेशा मोहित कर देती हैं। लेकिन इस गुफा की अवस्था को देख आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उसकी कितनी देखबाल होती होगी। इस गुफा के इर्द-गिर्द आपको घने जंगल नज़र आएंगे जिनमें सिर्फ जंगली पेड़-पौधे हैं। जब हम मॉस्मई गुफाओं तक पहुंचे तब तक शाम हो चुकी थी और उसी समय बारिश भी होने लगी थी। चेरापूंजी में आकर एक पूरा दिन सूखा-सूखा गुजारने के बाद अब जाकर हम उसकी असली पहचान, यानी उसके गीलेपन के अनुभव से रूबरू हो रहे थे। वर्षा की इस बौछार से लगा जैसे चेरापूंजी की हमारी यात्रा सही मायनों में अब पूरी हो गयी है।
सोहरा – चेरापूंजी का नामपरिवर्तन
चेरापूंजी अब आधिकारिक तौर पर सोहरा के नाम से जाना जाता है, जो उसका मूल नाम हुआ करता था। जाहिर तौर पर चेरापूंजी नाम उसे अंग्रेजों द्वारा दिया गया था। यहां पर कुछ स्थान ऐसे हैं जहां से आप बांग्लादेश के कुछ भाग देख सकते हैं। अचरज की बात तो यह है कि सोहरा जैसे पहाड़ी क्षेत्र में जहां पर भी खेती की जाती है, वहां की पहाड़ियाँ अचानक से व्यापक मैदानों में परिवर्तित होती हैं।
सोहरा में रामकृष्ण मिशन से जुड़ा एक आश्रम है, जिसकी उत्तर पूर्वीय दिशा में एक मंदिर और एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में इस क्षेत्र के सभी झरनों की तस्वीरें प्रदर्शित की गयी हैं। उनके साथ उनसे जुडे इतिहास की थोड़ी-बहुत जानकारी भी प्रस्तुत की गयी है। इस आश्रम की मुख्य इमारत की दीवारों पर इस क्षेत्र से जुडे कुछ चित्र दर्शाये गए हैं। इस इमारत के ठीक पीछे ही मंदिर बसा हुआ है। यहां पर एक छोटा सा बुनाई का केंद्र भी है, जहां पर कुछ युवक और युवतियाँ अपनी पारंपरिक रीतिनुसार बुनाई कर रहे थे। यहां की महिलाएं भी पारंपरिक ख़ासी पहनावे में दालचीनी और चाय बेचती हुई नज़र आ रही थीं।
पर्यटकों के लिए सुविधाएं
इतना प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने के बावजूद भी यहां पर पर्यटन पूर्वावश्यकता की कोई सुविधाएं नहीं मिलती। जब तक कि आप यहां के गिने-चुने और नामांकित होटलों में न रुके हों, आपको यहां पर एक वक्त का भी सही खाना नहीं मिल पाता। अधिकतर लोग अपनी शिलांग यात्रा के दौरान सिर्फ एक दिन की यात्रा के लिए ही यहां पर आते हैं, तो ऐसे में यहां पर कुछ अच्छे भोजनालयों का होना बहुत आवश्यक है, जहां पर अच्छा मौलिक खाना मिल सके। अभी के लिए तो आपको यहां पर सिर्फ छोटी-छोटी दुकानें ही मिलेंगी, जहां पर खाने की कुछ -कुछ चीजें बेची जाती हैं। लेकिन चाय की भूमि से कुछ ही दूर बसे इस क्षेत्र में एक अच्छी सी चाय मिल पाना भी कठिन सा लगता है।