वडोदरा की यात्रा पर जाते वक्त सबसे पहले आपको लक्ष्मी विलास महल के दर्शन करने के लिए जरूर कहा जाएगा। इस शहर में घूमते हुए हमने बहुत बार इस महल की कुछ-कुछ झलकियाँ जरूर देखी थीं।
उसका आलीशान मेहराबदार प्रवेश द्वार सड़क के पास ही स्थित है। इस महल का परिसर इतना विशाल है कि वहाँ पर स्थित विविध भवनों के, जैसे फतेह सिंह संग्रहालय और लक्ष्मी विलास महल के दर्शन करने हेतु आपको अलग-अलग प्रवेश द्वारों से जाना पड़ता है। इस महल के परिसर में एक सुव्यवस्थित गोल्फ कोर्स और क्रिकेट का मैदान भी है। इसके अलावा यहाँ पर घास के व्यापक मैदान हैं, जहाँ पर आप यहाँ-वहाँ घूमते हुए ढेर सारे मोर देख सकते हैं तथा वृक्षों पर चहचहाते हुए पक्षियों को सुन सकते हैं।
लक्ष्मी विलास महल, वडोदरा
गायकवाड वंश
वडोदरा शहर में गायकवाड परिवार के अनेक भवन हैं। पर इनमें से जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है और जिसे सबसे अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है, वह है लक्ष्मी विलास महल। यह आज भी विश्व का सबसे बड़ा व्यक्तिगत निवास स्थान है। यहाँ का भूतपूर्व राज परिवार आज भी इस महल में आते-जाते रहता है। जब भी महाराज यहाँ पर आते हैं तो उनकी उपस्थिति की घोषणा महल के प्रवेश द्वार पर केसरी ध्वज फहराकर की जाती है। 19वी शताब्दी के उत्तरकाल में महाराज सयाजी राव गायकवाड तृतीय ने इस महल को अपनी महारानी का नाम दिया, जो तंजौर के दक्षिणी राज्य से थी। हमे बताया गया कि गायकवाड वंश के वर्तमान राजकुमार डॉक्टरेट की उपाधि हेतु पगड़ियों अर्थात साफ़ा या भारत के पारंपरिक सिर के पहनावों पर अपना शोधकार्य कर रहे हैं।
लक्ष्मी विलास महल के कर्मचारी बहुत ही अशिष्ट और असभ्य थे। वे आज भी इसी मनोवृत्ति से व्यवहार करते हैं जैसे कि महाराज आज भी यहाँ पर राज कर रहे हों। शायद उन्हें इससे कोई दिक्कत न हो क्योंकि उन्हें तो राज परिवार द्वारा ही काम पर रखा गया है। यहाँ का प्रवेश शुल्क 175/- रुपया है, जो मेरे अनुमान से अधिक है जिसके कारण देश के अधिकतर लोग इस अद्वितीय धरोहर के दर्शन करने में असमर्थ हैं। लेकिन चूंकि यह एक व्यक्तिगत महल है, तो उससे संबंधित सभी निर्णय लेने का अधिकार भी उसके स्वामी का ही होता है।
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यद्यपि इसकी एक बात अच्छी है कि टिकिट के साथ आपको एक श्रव्य मार्गदर्शिका भी दी जाती है जिससे कि आप आराम से बिना किसी गाइड के अपने आप इस पूरे महल के दर्शन कर सकते हैं। इस श्रव्य मार्गदर्शिका में इस महल की अधिकतर वस्तुओं को बहुत ही विस्तार से समझाया गया है। इसके अलावा इस श्रव्य मार्गदर्शिका में आप गायकवाड कुल के वर्तमान वंशज को इस महल से जुड़ी अपनी यादों को आपके साथ साझा करते हुए सुन सकते हैं। इस महल के लंबे-लंबे गलियारों में चलते हुए उन्हें अपनी बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए सुनना और परिवार के अन्य सदस्यों के चित्रों से सजी दीवारों वाले उसे गलियारे में खड़े होकर उनके विवरणों को कल्पना का रूप देना जैसे बहुत ही रोचकपूर्ण अनुभव था।
लक्ष्मी विलास महल की वास्तुकला
लक्ष्मी विलास महल विविध वास्तु शैलियों की परिणति है जैसे मुगल, राजपूत, जैन, गुजराती और वेनिशियन। यहाँ तक कि इसके निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर भी पुणे, अजमेर और आगरा जैसे दूर-दूर के स्थानों से लाए गए थे। इस महल के मध्य भाग में महाराज रहते थे तो दाहिने तरफ वाले भाग में राज घराने की महिलाएं रहती थीं और महल का बाईं तरफ वाला भाग मेहमानों के लिए बनवाया गया था।
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अन्य देखने की वस्तुएं
लक्ष्मी विलास महल महल के भीतर तस्वीरें खिचाना माना है इसलिए मैं आपको वहाँ की कुछ देखने योग्य वस्तुओं के बारे में बता दूँ ताकि जब आप वहाँ पर जाए तो इन वस्तुओं को देख सके।
- महाराज और महारानी की अर्ध-प्रतिमाएँ जिन्हें इतनी बारीकी से बनवाया गया है कि, महारानी का मोतियों वाला हार उनकी साड़ी की सिलवटों से भी साफ झलकता है।
- प्रताप शस्त्रागार, जो शस्त्र प्रदर्शन का कक्ष है। वैसे तो मुझे शस्त्रों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। लेकिन इस शस्त्रागार में प्रदर्शित कुछ तलवारें आपको जरूर देखनी चाहिए जैसे कि दो-धारी तलवार, गुरु गोबिन्द सिंह की पंचकला तलवार और सोने और चाँदी के बने तोप। वहाँ पर कुछ तख्ते भी हैं जिन पर इन तलवारों के विभिन्न भागों को दर्शाया गया है तथा यह भी बताया गया है कि कब और किस स्थिति में कौनसी तलवार का इस्तेमाल करना चाहिए। यह प्रदर्शन कक्ष जैसे तलवारों का जीता-जागता विश्वकोश है।
- महल के बीचोबीच खड़ा 300 फिट का घंटाघर जो बाद में दीपस्तंभ में परिवर्तित किया गया था।
- महल के गद्दी सभागृह या राज परिवार के राज-तिलक कक्ष में प्रदर्शित राजा रवि वर्मा के चित्र। उनके राजसिंहासन की सादगी आपको आश्चर्य चकित कर देगी।
- दरबार कक्ष जो आपको अपनी अभियांत्रिकी की ओर आकर्षित करता है। इसकी 95 फीट की लंबी ऊंची दीवारें जो बिना किसी स्तंभ के सहारे के खड़ी हैं, सच में बहुत ही प्रशंसनीय हैं। यहाँ पर प्रदर्शित भिन्न भिन्न विषयों पर की गयी काँच की चित्रकारी एक अनोखा सम्मिश्रण है। इस महल की पहली मंजिल पर महिलाओं के लिए बने झरोखे प्रचुरता से उत्कीर्णित हैं। इस कक्ष के दोनों तरफ परिवार के अन्य सदस्यों की अर्ध-प्रतिमाएँ सजी हुई हैं। यहाँ पर वार्षिक बरोड़ा संगीत महोत्सव का भी आयोजन किया जाता था।
- इस महल को बाहर से भी जरूर देखिये, उसकी कुछ बाह्य दीवारों पर आपको प्रचुर चित्रकारी देखने को मिलती है।
- वहाँ के घास के मैदानों में टहलते हुए इस महल को एक पूर्ण संरचना के रूप देखिये जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है।
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व्यक्तिगत महल
क्योंकि यह एक व्यक्तिगत महल है तो प्रबंधकों की इच्छा के अनुसार वह जब चाहे खुलता है और बंद होता है। जब हम पहली बार वहाँ गए तो महल खुला होने के बावजूद भी हमे वापस जाने के लिए कहा गया, क्योंकि उस दिन वहाँ पर किसी विज्ञापन का चित्रीकरण चल रहा था। इसलिए जाने से पहले एक बार जरूर पता कीजिए।