फिरोजाबाद, इस नगरी के नाम का स्मरण सदैव से मेरे कानों में कांच की चूड़ियों की खनक उत्पन्न करता रहा है। सम्पूर्ण भारत में मैं किसी भी मेले अथवा बाजार में रंगबिरंगी चमचमाती कांच की चूड़ियों के भण्डार देखती, तब फिरोजाबाद जाकर वहां इन चूड़ियों को बनते देखने की इच्छा तीव्र हो जाती। अतः, इस समय जब मैं मथुरा वृन्दावन में होली देखने गयी, मैंने फिरोजाबाद होते हुए वहां जाने का निश्चय किया।
मार्ग में आगरा नगरी के मध्य से जाते हुए मुझे ताज महल की भी एक झलक प्राप्त हुई। मष्तिष्क में पिछली आगरा यात्राओं की स्मृतियाँ उभरने लगीं। ताजमहल मुझे पुनः आकर्षित करने का प्रयास करने लगा किन्तु कानों में सतत गूँजती कांच की चूड़ियों की खनक ने मुझे मेरे मार्ग से भटकने नहीं दिया।
फिरोजाबाद प्रवेश करते ही मुझे एक सुन्दर जैन मंदिर दिखाई दिया। यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था। इस मंदिर के विषय में आपको अवश्य अवगत कराऊँगी, किन्तु जैसा की मैंने पहले कहा, सर्वप्रथम चूड़ियों के सन्दर्भ में चर्चा करना चाहती हूँ।
फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग
कांच की वस्तुओं का निर्माण
फिरोजाबाद में हमारा प्रथम पड़ाव था लेज़र कांच का कारखाना जहां विभिन्न प्रकार के कांच निर्मित किये जा रहे थे। उनसे कई कांच की वस्तुएं जैसे प्याले, कलश, बोतलें, यहाँ तक कि गाड़ियों के हेडलाइट बनाए जा रहे थे। ना जाने क्यों, मुझे ऐसा आभास था कि फिरोजाबाद में कांच से केवल चूड़ियाँ ही निर्मित की जाती हैं। मैं सही नहीं थी। फिरोजाबाद में कई प्रकार के कांच एवं कांच की वस्तुएँ निर्मित की जाती हैं।
इस कांच उत्पादन इकाई के स्वामी श्री सुबोध जैन ने मुझे कांच की सामान्य वस्तुओं के निर्माण की सभी प्रक्रियाएं विस्तार पूर्वक समझाई। सम्पूर्ण प्रक्रिया में हाथों द्वारा ढलाई तथा सांचे का प्रयोग कर स्वचालित प्रक्रिया दोनों सम्मिलित है। कोलाहल भरे कारखाने में मैंने देखा, किस प्रकार रेत एवं पुनर्चक्रित कांच के ढेर कुछ ही घंटों में सुन्दर एवं उपयोगी वस्तुओं का रूप ले रहे थे।
मैंने कारीगर को निपुणता से पिघले कांच को कलश की मूठ में परिवर्तित करते देखा। एक कारीगर नवनिर्मित कांच के अवांछित भागों को सटीकता से काटकर उसे निर्बाध रूप प्रदान कर रहा था। एक बड़े कक्ष के भीतर, एक धीमी गति की वाहक पट्टी सर्व उत्पादों को, कक्ष के एक ओर स्थित, उत्पादन के प्रथम चरण से, कक्ष के दूसरी ओर स्थित, अंतिम चरण तक ले जा रही थी।
कक्ष के अंतिम छोर पर एक यांत्रिक सांचा निर्मिती इकाई सांचे बनाने में व्यस्त थी। यहाँ से कुछ ही दूरी पर स्वच्छ बक्सों में तैयार माल भर कर रखे हुए थे। अपने जीवन में कांच के बने कितने ही प्याले, गिलास, बोतल इत्यादि का प्रयोग किया किन्तु यह प्रथम अवसर था जब उन्हें अपना रूप ग्रहण करते प्रत्यक्ष देखा।
इनके साथ साथ यहाँ कांच के झूमर, हर प्रकार की बोतलें तथा कांच की कलाकृतियों का भी निर्माण किया जाता है।
कांच के कारखाने की इस छोटी सी यात्रा से मुझे कांच निर्माण की बारीकियों के सन्दर्भ में अनमोल अनुभव प्राप्त हुआ।
यहाँ से आगे हम अगले द्वार की ओर गए जहां कांच की चूड़ियाँ बनती हैं।
विडियो: फिरोजाबाद के कांच कारखाने में एक दिन
कांच उत्पादन की एक झलक देखें।
कांच की चूड़ियों का निर्माण
यहाँ पहुंचते ही हमारा स्वागत किया चमकीले लाल रंग की चूड़ियों के अम्बार ने। आसपास के नीरस वातावरण को यह चमकीला लाल रंग अनोखी आभा प्रदान कर रहा था। कक्ष के भीतर चूड़ियों के लम्बे बण्डल को काटकर एक एक चूड़ी बनायी जा रही थी। वस्तुतः मैं इस चूड़ी निर्माण प्रक्रिया के अंतिम चरण को निहार रही थी।
इंडिया इलेक्ट्रिक ग्लास वर्क्स, इस चूड़ी निर्माण इकाई के युवा मालिक निखिल बंसल ने हमारा स्वागत किया। हम यहाँ बिना पूर्व सूचना दिए ही आ गए थे। फिर भी निखिल ने अपने कारखाने में चूड़ी बनाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया दिखाने के लिए अपना महत्वपूर्ण समय हमें प्रदान किया। छोटे नगरों की यही विशेषता है। लोग अतिथियों एवं उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण प्राथमिकता देते हुए अपने कार्य को समायोजित कर लेते हैं। वह भी मेरे जैसा अपरिचित अतिथि जिसने पूर्व सूचना भी नहीं दी थी।
फिरोजाबाद के कुछ रोचक तथ्य
• कांच की चूड़ियों के उद्योग के कारण फिरोजाबाद को सुहाग नगरी भी कहा जाता है।
• फिरोजाबाद कांच उद्योग में २४ चूड़ियों को एक दर्जन माना जाता है, अर्थात एक दर्जन चूड़ियाँ प्रत्येक हाथ में! थोक बाजार में भी चूड़ियों की गिनती इसी प्रकार की जाती है। खुदरा अथवा फुटकर बिक्री की कथा भिन्न है।
• यहाँ निर्मित चूड़ियों में एक जोड़ होता है। इसे हाथों द्वारा ही जोड़ा जाता है। जोड़ रहित चूड़ियाँ केवल सांचों द्वारा बनाए जाते हैं। निखिल के अनुसार केवल पाकिस्तान में ही जोड़ रहित चूड़ियाँ बनती हैं।
• फिरोजबाद एक नगर बनने से पूर्व डाकुओं का अड्डा था।
• फिरोजाबाद में ४०० से भी अधिक कांच उत्पादन इकाइयां हैं। इनमें से अधिकतर लघु उद्योग इकाई के अंतर्गत आते हैं।चूड़ी उत्पादन यहाँ का प्रमुख उद्योग है।
कांच की चूड़ियों का उत्पादन
इसका आरम्भ होता है रेत के ढेर से जो जयपुर से आता है तथा चमकीले अभ्रक से परिपूर्ण होता है। इसे कुछ रसायन मिलाकर भट्टी में पिघलाया जाता है। भट्टी का तापमान १५०० डिग्री तक पहुँच जाता है। भट्टी पर मिट्टी की मोटी परत होने के बाद भी इसके पास से जाते समय इसके तापमान का अनुमान लग जाता है।
इसके पश्चात कच्चे कांच में रंग मिलाया जाता है तथा इसे एक बार फिर बड़े पात्रों में भट्टी के भीतर गर्म किया जाता है। इस रंग मिश्रित पिघले कांच को एक लम्बे धातुई डंडे के छोर से उठाया जाता है। भट्टी से बाहर आते ही कांच क्षण भर में जमने लगता है। कारीगर इस जमते कांच को आकार देता है। आवश्यकता के अनुसार वह इसमें और पिघला कांच मिलाता रहता है।
फिरोजाबाद के कांच की चूड़ी उद्योग की एक झलक: विडियो
छड़ी पर पर्याप्त पिघला कांच ले कर यह जलता हुआ लाल रंग का कांच एक कारीगर के समक्ष रखा जाता है जो इसे शुण्डाकार में ढालता है। गर्म जलते कांच को आप गहरे लाल रंग, तत्पश्चात लाल रंग में परिवर्तित होते देखेंगे जो यहाँ निर्मित चूड़ियों का वास्तविक रंग है।
लम्बी धातुई छड़ी के एक छोर पर रंगीन कांच के ठूंठ को एक बार पुनः भट्टी में डाला जाता है। यहाँ गर्म तथा नर्म कांच को रस्सी के रूप में खींच कर एक अन्य छड़ी के ऊपर लपेटा जाता है। इस छड़ी पर कांच का सर्पिल बेलन तैयार हो जाता है। इस बेलन का व्यास चूड़ी के आवश्यक व्यास के अनुसार होता है। भट्टी से बाहर आते समय इस बेलन का रंग लगभग काला होता है जो शनैः शनैः लाल रंग का हो जाता है। इस सर्पिल बेलनों को शीतल होने तक एक ओर रखा जाता है।
मैंने देखा, चारों ओर टूटी चूड़ियों के टुकड़े बिखरे हुए थे। किसी को भी उनकी चिंता नहीं थी क्योंकि ये टुकड़े पुनः भट्टी में जाकर चूड़ी में परिवर्तित होने वाले थे।
इन सर्पिल बेलनों को उस कक्ष में ले जाया जाता है जिसे मैंने सर्वप्रथम देखा था। प्रत्येक बेलन पर हीरे के औजार द्वारा एक सीधा चीरा लगाया जाता है। सर्पिल बेलन इस चीरे के कारण पृथक खुली चूड़ी के रूप में छड़ी से बाहर आ जाती है। छोटे अथवा कुटीर उद्योग इस खुली चूड़ियों को ले जाते हैं तथा अपने कार्यशाला में एक एक खुली चूड़ी को सटीकता से जोड़ते हैं।
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चूड़ियों को जोड़ने के पश्चात उन पर गड़ाई अथवा कटाई का कार्य कर उनके रूप को बढ़ाया भी जा सकता है। इन सबके पश्चात ये चूड़ियाँ फिरोजाबाद की रंगबिरंगी बोहरा गली में पहुँचती हैं जहां उनकी थोक बिक्री होती है।
फिरोजाबाद का चूड़ी बाजार
यहाँ आते ही आपको लोगों की भीड़ के बीच चूड़ियों के कई ठेले दृष्टिगोचर होंगे। अधिकतर समय एक ठेले पर एक ही रंग की चूड़ियाँ होती हैं।
फिरोजाबाद के मुख्य बाजार में रंगबिरंगी गलियों से जाते हुए अपने दोनों ओर देख आपका मन भी रंगीन हो जाएगा। दोनों ओर चटक पीले रंग की भित्तियों पर रंगीन चमकीली चूड़ियाँ लटकी हुई थीं। रंगों का यह मेल देख ह्रदय प्रसन्न हो गया था। साइकलों पर भूरे रंग के कागज़ में लपेटी चूड़ियों के अम्बार लगे हुए थे। चारों ओर चूड़ियों का ही व्यापार दृष्टिगोचर हो रहा था।
डब्बों में कांच की नाजुक चूड़ियों की भराई भी एक कला ही है। इस चूड़ियों को टूटने से बचाने के लिए टेढ़ा रखकर आपस में जोड़ दिया जाता है। यह देखना मेरे लिए प्रथम अवसर था। कारीगरों द्वारा इतनी चपलता तथा तेजी से चूड़ियों को उठाना देखने योग्य दृश्य होता है। इस विडियो के अंत में आप इस दृश्य का अनुभव ले सकते हैं।
यद्यपि फिरोजाबाद नगरी अपेक्षाकृत नवीन है, तथापि इस क्षेत्र में, पुनर्चक्रित कांच से कांच की चूड़ियों तथा बोतलों के उत्पादन की परंपरा दशकों से चली आ रही है।
फिरोजाबाद के दर्शनीय स्थल
यूँ तो फिरोजाबाद का मुख्य आकर्षण कांच की चूड़ियाँ हैं।
फिरोजाबाद का इतिहास
फिरोजाबाद का इतिहास हमें उस काल में ले जाता है जब यह चंद्रवर क्षेत्र का भाग था जो चौहान राजाओं के अधीन था। उस समय तक भारत में आक्रमण आरम्भ नहीं हुए थे। यह नगर से ५ की.मी. दूर स्थित एक छोटा सा गाँव था। यहाँ जैन परिवार बसे हुए थे। इसीलिए यहाँ कई जैन मंदिर हैं।
वर्तमान की नगरी, १६वी. शताब्दी में अकबर के मनसबदार फिरोज शाह द्वारा बसाई गयी है। भौगोलिक विवरणिका गजेट के अनुसार इस पर कई शासकों ने शासन किया जिनमें बाजीराव पेशवा, जाट, मराठा तथा अंग्रेज सम्मिलित हैं।
दिगंबर जैन मंदिर
जैसा कि मैंने इस संस्मरण के आरम्भ में उल्लेख किया था, मेरा प्रथम पड़ाव जैन मंदिर ही था। २४ वें. तीर्थंकर महावीर जैन को समर्पित यह एक बड़ा मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण जैन सेठ छाद्मिलाल के परिवार द्वारा किया गया है।
इस मंदिर की विशेषता है, सम्पूर्ण उत्तर भारत की सर्वाधिक विशाल बाहुबली की प्रतिमा। मंदिर के अधिकारियों ने मुझे बताया कि यह प्रतिमा कुछ वर्षों पूर्व कर्नाटक से लाई गयी थी। कर्नाटक स्थित बाहुबली प्रतिमा के सामान यह प्रतिमा भी अखंड शिला द्वारा निर्मित है।
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मंदिर के शांतिपूर्ण परिसर में घूमते हुए मैंने कुछ क्षण बिताते। तत्पश्चात उद्योग नगरी की भीड़भाड़ में प्रवेश किया।
बाजार के मध्य में भी एक जैन मंदिर है। यहाँ की प्रतिमा अनोखी मानी जाती है। समय के अभाव में मैंने यह मंदिर बाहर से ही देखा था।
फिरोजाबाद कैसे पहुंचे?
फिरोजाबाद आगरा से लगभग ४० की.मी. दूर है। अतः इसे आगरा से आधे दिन की यात्रा का अद्भुत अवसर कहा जा सकता है।
फिरोजाबाद दिल्ली से लगभग २५० की.मी. की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से इसे एक दिवसीय यात्रा के रूप में देख जा सकता है किन्तु यह कष्टकर हो सकता है।
२० की.मी. की दूरी पर स्थित टूंडला मुख्य रेल स्टेशन है। फिरोजाबाद में भी रेल स्टेशन है।
नगर दर्शन के लिए सामान्यतः २ घंटे का समय लग सकता है। इसमें आप नगर, इसके मंदिर तथा चूड़ी बाजार देख सकते हैं।
चूंकि यहाँ चूड़ियाँ थोक भाव में उपलब्ध हैं, यह चूड़ी खरीदी का एक उत्तम स्थान है। किन्तु इसका उपयोग उठाने के लिए एक प्रकार की कई चूड़ियाँ खरीदना आवश्यक है।
उद्योग नगरी होने के कारण यहाँ अतिथिगृह तो हैं किन्तु वे कदाचित उच्च श्रेणी के विलासी अतिथिगृह ना हों। अतः मेरा सुझाव है कि आप आगरा अथवा मथुरा में ठहर कर वहां से एक दिवसीय यात्रा कर सकते हैं, जैसा कि मैंने किया था।