प्राचीन भीमा देवी मंदिर – पिंजौर गार्डन, पंचकुला

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भीमा देवी मंदिर संकुल पंचकुला जिले के पिंजौर नगरी में, प्रसिद्ध पिंजौर गार्डन क्षेत्र के समीप स्थित है। यदि आपने कभी चंडीगढ़ में निवास किया हो अथवा कभी चंडीगढ़ का भ्रमण किया हो तो संभवतः आपने इन दोनों स्थलों के दर्शन किये होंगे। मैं चंडीगढ़ तथा पंचकुला में पली-बढ़ी हूँ। मैंने अनेक बार पिंजौर गार्डन का भ्रमण किया है, कभी परिवार के संग सैर, कभी शालेय भ्रमण तो कभी महाविद्यालय की पिकनिक। किन्तु तब मुझे तनिक भी भनक नहीं थी कि इस पिंजौर गार्डन के इतने समीप एक प्राचीन मंदिर के अवशेष रखे हुए हैं। यहाँ तक कि बगीचे की बाहरी भित्तियाँ भी कदाचित मंदिर के उन्ही अवशेषों से प्राप्त शिलाओं द्वारा निर्मित हैं।

भीमा देवी मंदिर परिसर - पंचकुला
भीमा देवी मंदिर परिसर – पंचकुला

मैंने स्वयं को सांत्वना दी कि कदाचित इसकी खुदाई हाल ही में हुई होगी। इसीलिए मुझे इसके विषय में जानकारी प्राप्त नहीं हुई होगी। जी नहीं! इसकी खुदाई सन् १९७४ में की गई थी। मैं इसके समीप निवास करने गई, उसके कई वर्षों पूर्व। अपनी ही धरोहर से मैं कितनी अनभिज्ञ थी।

भीमा देवी मंदिर का इतिहास

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा लगायी गयी एक सूचना पटल के अनुसार यह मंदिर ९ वीं. से ११ वीं. सदी के मध्य निर्मित किया गया था। इसका निर्माण गुर्जर प्रतिहार राजवंश के राजाओं द्वारा किया गया था। अतः इस मंदिर का संबंध उज्जैन एवं कन्नौज के राज्यों से था। इस मंदिर के निर्माण का सर्वाधिक श्रेय संभवतः इस राजवंश के राजा राम देव को जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भीमा देवी उन ५ देवियों में से एक हैं जो वर्तमान में विद्यमान जागृत शक्तियां हैं। देवी माहात्म्य में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। भीमा देवी के ४ प्रमुख मंदिर हैं। तीन अन्य मंदिर हिमाचल के सराहन, नेपाल एवं महाराष्ट्र में स्थित हैं।

ऐसी भी मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था। विराटनगर नामक एक छोटी सी नगरी अब भी इस मंदिर के समीप अस्तित्व में है। कुरुक्षेत्र भी यहाँ से दूर नहीं है। ऐसा माना जाता है कि पांडव यहाँ काली की आराधना करते थे। पिंजौर को मौलिक रूप से पंचपुरा कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ है पाँच की नगरी। ये पाँच क्या पांडव थे? कदाचित। कुछ सूत्र इस स्थान को भीमानगर भी कहते हैं।

चंडी मंदिर, मनसा देवी मंदिर तथा कालका देवी मंदिर इस क्षेत्र के प्रमुख देवी मंदिर हैं। इसी क्षेत्र में स्थित यह भीमा देवी मंदिर उसी देवी क्षेत्र का एक भाग हो सकता है।

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१९ वीं. सदी में अलेक्जेंडर कन्निंघम ने १२ वीं. सदी के कुछ अभिलेखों को लेखांकित किया था जिसमें पंचपुरा का उल्लेख प्राप्त होता है। अल बरूनी ने भी अपने यात्रा संस्मरण में इस मंदिर का उल्लेख किया था।

औरंगजेब की सेना ने १७ वीं. सदी में इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर ना केवल भूगोल से विलुप्त हो गया अपितु जनता की स्मृति से भी लुप्त हो गया है। इस मंदिर ने कदाचित पूर्वकालीन इस्लामी आक्रमणों को भी सहन किया था।

सन् १९७४ में किये गए एक टीले के उत्खनन ने इस मंदिर को पुनः जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। सन् २००९ में यहाँ एक क्षेत्र संग्रहालय का भी निर्माण किया गया जहां इस स्थान से उत्खनित, मंदिर के अवशेषों को प्रदर्शित किया गया है।

भीमा देवी मंदिर की वास्तुसंरचना

यह मंदिर एक पंचायतन शैली का मंदिर है। इस शैली में एक मंदिर संकुल में ५ मंदिर होते हैं जो ५ देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं। मध्य में एक विशाल पीठिका होती है जहां क्षेत्र के अधिष्ठात्र देव को समर्पित मंदिर होता है तथा जो पंचायतन शैली का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षेत्र में यह भीमा देवी का मंदिर था। अन्य चार मंदिर प्रमुख मंदिर के चार कोनों में स्थित होते हैं। ये चार मंदिर बहुधा मुख्य मंदिर की रूपरेखा लिए हुए किन्तु अपेक्षाकृत छोटे मंदिर होते हैं।

भीमा देवी मंदिर के अवशेष
भीमा देवी मंदिर के अवशेष

पंचायतन शैली भुवनेश्वर के समकालीन कलिंग मंदिरों में तथा खजुराहों के मंदिरों में भी अत्यंत प्रसिद्ध है।

मंदिर संकुल का दर्शन

इस मंदिर संकुल में केन्द्रीय पीठिका का अधिकतर भाग अखंडित है। किसी समय इस पीठिका के ऊपर स्थापित मंदिर की अमलका अब पीठिका के ऊपर रखी हुई है। शिलाओं को उत्कीर्णित कर निर्मित किये गए इस अमलका पर ऐसा ही एक कलश संतुलित कर रखा गया है। पीठिका एवं अमलका-कलश के मध्य स्थित मंदिर अब कहाँ है? इस क्षेत्र के दर्शन करते समय सर्वप्रथम यही विचार मन-मस्तिष्क में कौंध जाता है। शीघ्र ही आभास हो जाता है कि मंदिर के खंडित भाग इस पीठिका के आस पास  ही बिखरे हुए हैं।

भीमा देवी मंदिर की पीठिका अवन अमलका
भीमा देवी मंदिर की पीठिका अवन अमलका

गणेश की एक छोटी प्रतिमा तथा राम-लक्ष्मण की एक तत्कालीन प्रतिमा एक ओर रखी हुई हैं जो आपको एक मंदिर का आभास करती हैं।

मंदिर के समीप एक जलकुंड है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में कुल ३६५ जलकुंड थे। यह कुंड उनमें से ही एक है। मुझे जानकारी मिली कि उनमें से १४-१५ जलकुंड अब भी अस्तित्व में हैं। उनमें से तीन जलकुंड समीप ही स्थित हैं जिन्हें मैं भी देख पायी।

श्री निर्मल सिंह जी
श्री निर्मल सिंह जी

सौभाग्य से हमारी भेंट श्री निर्मल सिंह जी से हुई जिन्होंने हमें मंदिर के विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने हमें पिंजौर के निकट स्थित अन्य प्राचीन मंदिरों एवं जलकुंडों के विषय में भी जानकारी प्रदान की।

उन्होंने हमें धूसर रंग की शिला द्वारा निर्मित एक प्रतिमा दिखाई। इस प्रतिमा की विशेषता थी इसकी खनकती शिला। खनकती शिला एक ऐसे शिला होती है जो थपथपाने पर धातुई ध्वनि उत्पन्न करती है। छत्तीसगढ़ में भी मैंने ऐसा ही एक पत्थर देखा था जिसे ठिनठिनिया पत्थर कहते हैं। ये उसी प्रकार के पत्थर हैं जिसका प्रयोग संगीतमय स्तंभों में किया गया है, जो थपथपाने पर संगीतमय स्वर उत्पन्न करते हैं। ऐसे स्तंभ आप हम्पी के मंदिर तथा दारासुरम के ऐरतेश्वर मंदिर में देख सकते हैं।

भीमा देवी मंदिर कुंड
भीमा देवी मंदिर कुंड

मंदिर का जलकुंड छोटा सा था किन्तु इसका जल अत्यंत स्वच्छ था। इसके जल में अनेक रंगबिरंगी मछलियाँ थीं। यह कुंड मंदिर परिसर का सर्वाधिक जीवंत भाग था।

भीमा देवी मंदिर परिसर की प्रतिमाएं

मंदिर परिसर क्षेत्र के उत्खनन के समय प्राप्त हुई अनेक प्रतिमाएं परिसर में चारों ओर बिखरी हुई हैं। उनमें से सर्वोत्तम प्रतिमाएं क्षेत्र संग्रहालय के चार कक्षों में सुरक्षित रखी हुई हैं। किंचित खंडित प्रतिमाओं को खुले संग्रहालय में स्थित पीठिका के ऊपर रखा गया है। इनसे भी अधिक भंगित मूर्तियों को वृक्षों के तनों के चारों ओर रखा है तथा कुछ अन्यत्र बिखरे पड़े हैं।

बिखरे पड़े अवशेष
बिखरे पड़े अवशेष

किसी मंदिर को इस प्रकार खंडित तथा बिखर हुआ देखना अत्यंत कष्टकर होता है। अनेक प्रतिमाओं के शीष धड़ से पृथक हैं। फिर भी यहाँ आकर मैं प्रसन्न थी क्योंकि इसने मुझमें उत्तर भारत के कुछ और प्राचीन मंदिरों को ढूँढने की आशा जागृत की। आशा है भविष्य में हम इन मंदिरों का पुनर्निर्माण करें ताकि हम अपने पूर्वजों का ऋण चुका सकें।

मंदिर परिसर की इन प्रतिमाओं को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं:

देवी-देवताओं की प्रतिमाएं – इनमें निम्न सम्मिलित हैं:

शिव प्रतिमा
शिव प्रतिमा
  • शिव, लकुलीश रूप में शिव तथा शिवलिंग
  • शिव पार्वती
  • नंदी प्रतिमाएं
  • विष्णु
  • अग्नि
  • सूर्य
  • वरुण
  • गणेश
  • कार्तिकेय
  • इन्द्र
  • दिशा देवता, जैसे ईशान
  • महिषासुरमर्दिनी
  • ब्राह्मणी
  • अंबिका
  • गंगा, यमुना
  • सरस्वती
  • हरिहर
  • लक्ष्मी नारायण
  • सेवक-सेविकाओं की प्रतिमाएं
अग्निदेव प्रतिमा
अग्निदेव प्रतिमा

आलंकारिक प्रतिमाएं– इनमें निम्न सम्मिलित हैं:

  • मदनिकाएँ अथवा सुर सुंदरियाँ जैसे अलस्य कन्या
  • संगीत वाद्य बजाते गंधर्व तथा नृत्य में रत मूर्तियाँ
  • प्रेमकाव्य अथवा रत्यात्मक
  • पशु, विशेषतः गज प्रतिमाओं की पट्टिकाएं
  • ज्यामितीय तथा पुष्पाकृतियाँ

दैनंदिनी जीवन प्रदर्शित करती प्रतिमाएं – इनमें निम्न सम्मिलित हैं:

  • कढ़ाई करती स्त्रियाँ
  • विवाह दृश्य

मंदिर के तत्व – इनमें निम्न सम्मिलित हैं:

  • द्वार के चौखट
  • लघु शिखर तथा मंदिर
  • स्तंभों के भाग
  • पत्थर का कलश

ये सभी एक उत्तर भारतीय नागर शैली की मंदिर वास्तुकला की ओर संकेत करते हैं।

मैं प्रतिमाओं के मध्य से भ्रमण करते करते चारों ओर बिखरी प्रतिमाओं की पहेली सुलझाने की चेष्टा करने लगी। अपने मन-मस्तिष्क में एक काल्पनिक मंदिर को गढ़ते हुए इन प्रतिमाओं को उनके सुयोग्य स्थान पर स्थापित करने लगी। क्या मैं इस मंदिर के रचयिता द्वारा सृजित मंदिर के मूलस्वरूप के समीप भी आ पाऊँगी? वह पहेली आसान नहीं थी।

धारामण्डल तथा द्रौपदी कुंड

भीमा देवी मंदिर के समक्ष स्थित मार्ग के उस पार एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह भी उसी काल का है जब पांडव बंधु यहाँ निवास करते थे। इस मंदिर को भीमेश्वर महादेव कहा जाता है जो इस ओर संकेत करता है कि इस मंदिर का निर्माण भीम ने किया था। मैंने ऐसा ही एक मंदिर कुमाऊँ के भीमताल में भी देखा था। यह भीमेश्वर महादेव एक छोटा मंदिर है जिसका हाल ही में पुनर्निर्माण किया गया था।

द्रौपदी कुंड एवं धरामंडल के समीप प्राचीन शिव मंदिर
द्रौपदी कुंड एवं धरामंडल के समीप प्राचीन शिव मंदिर

मंदिर के समीप दो छोटे कुंड हैं। एक कुंड को द्रौपदी कुंड कहा जाता है। यह कुंड केवल स्त्रियों के लिए उपलब्ध है। दूसरे कुंड को धारामण्डल कहते हैं जो केवल पुरुषों के उपयोग के लिए निर्धारित है।

ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान करने से पूर्व पांडवों ने यहाँ स्नान किया था।

मुझे बताया गया कि यहाँ के कुछ किलोमीटर दूर, मल्लाह गाँव में, पांडवों के एक अन्य निवास का संकेत, एक संरचना है। अपनी आगामी यात्रा के समय उसके दर्शन अवश्य करूंगी।

मंजी साहिब गुरुद्वारा

गुरुद्वारा मंजी साहिब - पिंजौर
गुरुद्वारा मंजी साहिब – पिंजौर

शिव मंदिर के समीप स्वच्छ श्वेत रंग में रंगा एक प्राचीन गुरुद्वारा है। ऐसी मान्यता है कि गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्रा के समय इस गुरुद्वारा के दर्शन किये थे।

संग्रहालय दर्शन के लिए सुझाव

यह मंदिर पिंजौर बगीचे के अत्यंत समीप स्थित है। पिंजौर बगीचा परिवहन के सभी साधनों से व्यवस्थित रूप से जुड़ा हुआ है।

पिंजौर बगीचे में खाने-पीने के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं।

क्षेत्र संग्रहालय प्रत्येक सोमवार के दिन बंद रहता है। किन्तु मंदिर परिसर सप्ताह के सातों दिवस खुला रहता है।

मंदिर एवं संग्रहालय दर्शन के लिए एक घंटे का समय पर्याप्त है। मैंने यहाँ कुछ घंटे व्यतीत किये। आप प्रसिद्ध पिंजौर बगीचे में भ्रमण के लिए आते समय इस मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

3 COMMENTS

  1. मुस्लिम आक्रांताओ द्वारा ध्वस्त मंदिरों का भी एक क्रमबद्ध वर्णन। ज्ञानवर्धक विवरण????????

  2. अनुराधा जी, प्राचीन भीमादेवी मंदिर और पिंजौर गार्डन के बारे में बहुत ही सुंदर जानकारी । वर्षों पूर्व वहां जाने का मौका मिला था लेकिन ठीक से याद नहीं था ।आलेख पढ़कर स्मृतियां जिवंत हो गईं । आलेख के साथ विडियो भी स्थल के इतिहास की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है ।सुंदर आलेख के लिये धन्यवाद !

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