यदि आप कभी मुंबई शहर गएँ हैं या आप मुंबई निवासी हैं तो आपने सी. एस. टी. मुंबई रलवे स्टेशन अर्थात छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई तो देखा ही होगा। कदाचित् आपने इसकी सुविधाएँ भी लीं होंगी या इस सुन्दर स्टेशन के सामने से अवश्य गुजरें होंगे। मैं यहाँ आप लोगों को इस ऐतिहासिक धरोहर की विशेषताओं और दिलचस्प बारीकियों से अवगत कराना चाहती हूँ। हालांकि इस रेल मार्ग के इस खूबसूरत अंतिम स्टेशन के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। अतः मैं यहाँ केवल इसकी विचित्र विशेषताओं और बारीकियों की और आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी। छोटी से छोटी जानकारी जो आप हासिल करना चाहते हैं इस स्टेशन को देखने से पूर्व!
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस भारत का प्राचीनतम व सर्वाधिक खूबसूरत रेलवे स्टेशन है। मौलिक रूप से “विक्टोरिया टर्मिनस” या वी. टी. के नाम से प्रचलित इस स्टेशन को वर्ष २००४ में युनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई की नींव तब डली जब वर्ष १८५३ में भारतीय रेल की शुरुआत हुई। इस देश की पहली रेलगाड़ी मुंबई के बोरी बंदर स्टेशन (अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) और ठाणे के बीच दौड़ी। इस स्टेशन का निर्माण १० वर्षों (व.१८७८ – १८८८) में पूर्ण हुआ।
क्या आप जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनस युनेस्को की उन दो विश्व विरासत स्थलों में से एक है जो अभी भी सक्रिय उपयोग में है। इस प्रकार का दूसरा स्थल भी भारतीय रेल सेवा से सम्बंधित है। वह है भारत की पर्वतीय रेलसेवा – दार्जिलिंग हिमालय रेल।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस संग्रहालय
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के मुख्य द्वार पर दो विशालकाय शेर बनें हैं, जैसे वे इसके रक्षक हों। इस द्वार के दाहिनी ओर एक दालान है जहां यह संग्रहालय बनाया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय रेल के उस इतिहास को प्रदर्शित करना है जब उसे “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” कहा जाता था।
यहाँ मुंबई में रेलसेवा के विकास का सफ़र एक मानचित्र द्वारा सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है। ना केवल मुंबई रेलसेवा, अपितु मुंबई शहर की विकास यात्रा भी इस मानचित्र में देखी जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे दोनों साथ साथ विकसित हुए हैं।
इस इमारत की रूपरेखा व इसका वर्त्तमान चित्र पासपास रखे हुए हैं। ईमारत की नक्काशियों की बारीकियां इस रूपरेखा में स्पष्ट देखी जा सकतीं हैं। इन नक्काशियों व बारीकियों को हू-ब-हू ईमारत में उतारा गया है। इस इमारत के वास्तु सलाहकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स की अभिकल्पना सराहनीय है। इसके लिए उन्होंने १६.१४ लाख रुपये शुल्क रूप लिए थे। वहां मेरी नजर एक दिलचस्प पत्र पर पड़ी जहाँ स्टीवन्स ने रेल विभाग से ५ हज़ार रुपयों की अतिरिक्त शुल्क की मांग की। ध्यान दीजिये यह वर्ष १८८८ की दास्ताँ है!
यहाँ इमारत सम्बन्धित कई पत्राचार, नक्शे, रूपरेखायें, प्रतीक चिन्ह और पुरानी चाँदी के छुरी-कांटे संग्रहित किये हुए हैं।
समय-सारिणी
समय-सारिणी पर एक नज़र आपको उस इंसान की प्रशंसा करने पर मजबूर कर देती है जिसने इसकी रचना की। रेल समय, किराया, दूरी, स्टेशन के नाम इत्यादि रेल सम्बन्धी संपूर्ण जानकारी इस छोटे से चौकोर कागज़ के टुकड़े पर उपलब्ध है।
यदि आपका अनुमान है कि लोगों ने रेलसेवा को सहज ही अपनाया होगा और उन्हें किसी भी प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं पड़ी होगी तो आप अवश्य ‘डेक्कन क्वीन’ के इस विज्ञापन पर गौर फरमाईये, जो अब भी मुंबई पुणे के बीच दौड़ती है। लोगों को यह रेलसेवा लेने हेतु प्रेरित करने के लिए इसका विज्ञापन ‘बॉम्बे टाइम्स’ के पहले पृष्ठ पर छापा गया था। यहाँ तक की नियमित रूप से यात्रा करने वाले यात्रियों के पत्रव्यवहार भी ‘डेक्कन क्वीन’ तक पहुंचाए जाते थे।
तीन इंजन जिन्होंने भारत की पहली रेलगाड़ी को खींचा था, उनके नाम हैं साहिब, सिंध और सुल्तान। इंजन साहिब की प्रतिकृति इस संग्रहालय में देखने हेतु उपलब्ध है।
“ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” (जी.आई.पी.आर.) के १० प्रारंभिक निदेशकों में दो भारतीयों का समावेश है-
• जगन्नाथ नाना शंकर शेट
• कर्सेटजी जमसेटजी जीजीभॉय
भारतीय रेलसेवा की स्थापना के उपलक्ष्य में कई डाक टिकटों को भी जारी किया गया था। यह सारे डाक टिकट इस संग्रहालय में प्रदर्शनार्थ रखे हुए हैं। काश लोग इन टिकटों को खरीद पाते या उनकी प्रतिलिपि उपलब्ध होती! इनका संग्रह मेरे लिए गौरव की बात होती!
बोरी-बंदर और ठाणे के बीच पहली रेलगाड़ी की गाथा
कहा जाता है कि बोरी बंदर अर्थात् छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और ठाणे के बीच दौड़ी इस पहली भारतीय रेलगाड़ी में ४०० आमंत्रित अथितियों ने सफ़र किया था। १६ अप्रैल १८५३ के दिन शुरुआत हुई इस रेल ने ३५ की. मी. की दूरी तय की थी।
१४ डब्बों वाली इस रेलगाड़ी को तीन इंजन साहिब, सिंध और सुल्तान ने खींचा था। २१ तोपों की सलामी दे कर इसे रवाना किया गया था।
आमंत्रित अथितियों का इस रेलगाड़ी के ऐतिहासिक सफ़र में भव्य स्वागत किया गया था। उनके चाय नाश्ते का खास इंतजाम भी रेलगाड़ी में ही किया गया था। हम अंदाजा लगा सकतें हैं कि इस यात्रा के लिए चुने गए अतिथी कितनी जानी मानी हस्तियाँ रहीं होंगी।
जगह की कमी के चलते इस रेलसेवा के टिकट कार्यालय की व्यवस्था कुछ समय हेतु श्री शंकर शेट के घर पर की गयी थी।
इस ऐतिहासिक यात्रा के बारे में और अधिक जानकारी इस “हिन्दू” के लेख से प्राप्त की जा सकती है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का सर्वश्रेष्ठ आकर्षण – सितारा कक्ष (‘स्टार चैम्बर’)
जब से मैंने ‘स्टार चैम्बर’ अर्थात् सितारा कक्ष का नाम सुना था, मैंने मन ही मन एक सितारे के आकर के कक्ष की कल्पना कर ली थी। मैंने राहत की सांस ली कि मैंने इस विषय में किसी से चर्चा नहीं की और समय रहते मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया। क्योंकि इस कक्ष की बनावट का सितारे के आकर से कोई सम्बन्ध नहीं है। अपितु इस कक्ष में रेल टिकट जारी करने हेतु कार्यालय व खिड़कियाँ हैं। यदि आपने इस स्टेशन से कभी रेल पकड़ी हो तो आपने यह कक्ष अवश्य देखा होगा। तथापि सितारे देखने हेतु अपनी गर्दन खींच कर छत निहारने की आवश्यकता है। पिस्ते हरे रंग की छत पर सुनहरे चमकते सितारे अत्यंत खूबसूरत लगते हैं। पहली मंजिल से यह मेहराबदार कक्ष बड़ा ही सुन्दर प्रतीत होता है। ये मेहराब इसे एक बहुत बड़े दरबार खाने का आभास करतें हैं।
पर क्या वे सब, जो यहाँ टिकट खरीदने आतें हैं, ऊपर देख इन मेहराबों की सुन्दरता को सराहतें है? या टिकट की हड़बड़ी में मस्त रहतें है!
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का प्रसिद्ध गुंबद
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की ईमारत के बीचोंबीच यह ऊंचा गुंबद खड़ा हुआ है। यहाँ मैं इस वास्तुशिल्प की महान रचना से आपका परिचय कराती हूँ।
गुंबद की तरफ जाती सीड़ियों के लिए जिन दरवाज़ों से हो कर गुजरना पड़ता है वह सुन्दरता का एक अप्रतिम नमूना है। खांचेदार मेहराब में फंसाया हुआ यह दरवाज़ा इतना चमकता है जैसे उसे अभी अभी चमकाया गया हो। उस पर लगी पीतल की सजावट उस दरवाज़े को एक शाही आभा प्रदान करती है। आपको यह अहसास होने लगता है जैसे आप किसी शाही दरबार में दाखिल हो रहें हों। आपका यह अहसास और मजबूत हो जाता है जब वहां राज-चिन्ह युक्त एक भव्य शेर की ऊँची मूर्ती आपका स्वागत करती है।
घुमावदार सीड़ियाँ
जैसे ही मैंने अपनी नज़र शेर पर से हटाई, मेरा ध्यान आकर्षित किया गुंबद के समीप स्थित घुमावदार सीड़ियों ने। ईमारत की दीवार से जुड़ी इस घुमावदार चौड़ी सीड़ियों को किसी प्रकार का अतिरिक्त आधार नहीं है। करीब ८ – १० फीट मोटी ईमारत की दीवार ने ही सीड़ियों का भार उठाया है। इतनी खूबसूरती से बनाई गयी सीड़ियाँ और उतनी ही खूबसूरत उसकी पृष्ठभूमि अर्थात् ईमारत की दीवार देखकर मैं अत्यंत प्रभावित थी। तय नहीं कर पा रही थी कि दीवार की शिल्पकारी ज्यादा खूबसूरत है या सीड़ियों की।
ईमारत की दोनों मंजिलों के बीच, दीवार पर एक झरोखा है जिस पर जालीदार नक्काशी की गयी है। ईमारत की पहली मंजिल से ऊपर की मंजिलों तक नज़र पड़ती है। गुंबद तक पहुँचने के लिए संकरी धातु की सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती है।
उसके उपरांत एक और संकरी सीड़ी जहाँ पकड़ने के लिए कोई आधार उपलब्ध नहीं है। ऊपर पहुँच कर रंगीन कांच की कलाकारी देख आपकी सारी मेहनत वसूल हो जाती है। दुहरी परत में लगे रंगीन कांच “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” की कहानी कहती है। इनमें हाथी की सवारी से ले कर रेलगाड़ी के बीच का सफ़र मुख्य आकर्षण है। गुंबद के इतने समीप जा कर ही इसकी विशालता का सही अनुमान लगाया जा सकता है।
यहाँ से पिछवाड़े खड़ी ईमारत, जहाँ मध्य रेल का कार्यालय स्थित है, खूबसूरत नज़ारा पेश करता है। इतनी ऊँचाई से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के आसपास का नज़ारा एक अलग ही परिप्रेक्ष्य में दिखाई पड़ता है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन – बाहरी परिप्रेक्ष्य
इस ईमारत की बाहरी संरचना आलिशान और अत्यंत प्रभावशाली है। इनकी कुछ बारीकियां जो मेरे ध्यान में आईं, गौरतलब हैं।
• तीन अलग अलग स्तरों पर बनाईं गईं मेहराबें तीन अलग अलग युगों में प्रचलित वास्तुशिल्प का प्रतिनिधित्व करतीं दिखाई पड़तीं हैं।
• “ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे” के १० निदेशकों को समर्पित १० मूर्तियाँ भी इस पर बनाई गईं हैं।
• मध्यवर्ती रिक्त स्थान पर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा थी। इनको समर्पित ही इस ईमारत का नामकरण “विक्टोरिया टर्मिनस” किया गया था। आज़ादी के उपरांत इस मूर्ति को यहाँ से हटा दिया गया।
• व्याल्मुख प्रणाली छत्रपति शिवाजी टर्मिनस की जल प्रबंधन प्रणाली है जिसमें मूर्तिरूप जानवरों के मुख से पानी का निकास होता है। ईमारत के चारों ओर इस प्रकार अलग अलग जानवरों के मुख से पानी निकास होता देखा जा सकता है।
• बारीकी से देखने पर झरोखे के आधार पर एक विचित्र शिल्पकारी दिखाई पड़ी। वह है १६ अलग अलग शैलियों में बाँधी जाने वाली पगड़ियाँ दर्शाती शिल्पकारी। मेरे अनुमान से यह भारत की जनसँख्या की विविधताओं को दर्शाती है।
• ईमारत के कोने में स्थित शौचालय भी एक भव्य कक्ष में स्थित है। पानी की नालियों को देखने के उपरांत ही मुझे इसके अस्तित्व पर विश्वास हुआ।
भारतीय वनस्पति व जीव दर्शन
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई के इलाके में बहुतायत में पाए जाने वाले भारतीय वनस्पतियों व जीवों का भी दर्शन कराती है यह ईमारत! शिल्पकारी से भरपूर प्रत्येक खम्बे का बारीकी से निरिक्षण करने पर इस इलाके की जैव विविधता की जानकारी मिलती है। एक झरोखे पर मढ़ा नाचता मोर मेरा सबसे पसंदीदा शिल्प था।
स्टेशन की मुख्य ईमारत के गुंबद के ऊपर एक सफ़ेद रंग की महिला की मूर्ती है। करीब १६ फीट ऊंची इस मूर्ती को “दि लेडी ऑफ़ प्रोग्रेस” कहा जाता है। इसके बाएं हाथ में पहिया है जो प्रतीक है प्रगति का अथवा प्रगति की ओर गतिशीलता का। इसके दाहिने हाथ में जलती हुई मशाल है, ठीक “स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी” की तरह। मेरे परिदर्शक के अनुसार यह मशाल दर्शाता है कि मुंबई शहर कभी सोता नहीं। अब यह तो हम सब जानते है की रात भर जागना मुंबई की रग रग में बसा है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई विरासत दर्शन- कुछ सुझाव
• छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन के दर्शन हेतु परिदर्शक की सेवा लेना उपयोगी है। वह आपको इस ईमारत की ऐतिहासिक विरासत के साथ साथ संग्रहालय के बारे में भी विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकता है।
• संग्रहालय, सप्ताहांत के आलावा, हर दिन दोपहर २ बजे से ५ बजे तक खुला रहता है। हालांकि मेरा मानना है कि सप्ताहांत में भी इसे खुला रखने पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे देखने का अवसर मिलेगा। आशा है यह बदलाव जल्द ही आये।
• ऐतिहासिक विरासत दर्शन के लिए पूरा १ घंटे का समय लगता है। हालांकि गुंबद और उसके आसपास का क्षेत्र इस दर्शन के अंतर्गत नहीं आता।
• यह संस्मरण लिखते समय तक दर्शन शुल्क २०० रूपए थी। विद्यार्थियों के लिए विशेष शुल्क केवल १०० रूपए थी।
मुंबई के कुछ और विशेष दर्शनीय स्थल
- डॉ. भाऊ दाजी लाड संग्रहालय
- बाणगंगा सरोवर – प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर
- बांद्रा की सड़कों पर कला की खोज
- मणि भवन – महात्मा गाँधी की मुंबई में छाप
- रुपये की यात्रा – रिज़र्व बैंक मौद्रिक संग्रहालय