कानाताल उत्तराखंड में है जो भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वतीय राज्यों में से एक है। अप्रतिम मनोरम परिदृश्यों से ओतप्रोत यह राज्य दिव्य पर्वतराज हिमालय से रक्षित, भारतवर्ष की अनेक पावन नदियों से सिंचित, विभिन्न वन्यजीवों तथा विविध वनस्पतियो से विभूषित विश्व प्रसिद्ध धरा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इन्ही कारणों से यह भूमि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए अत्यंत अनुकूल है। वनों की हरियाली, सरोवरों, पर्वतों, नदियों आदि की सुन्दरता, साथ ही उनके साथ जुड़ी विभिन्न देवी-देवताओं की कथाएं व किवदंतियां ही वे कारण हैं जिनसे इस राज्य का नाम देवभूमि पड़ा।
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में कानाताल एक गाँवखेड़ा है। पर्यटकों का ऐसा मानना है कि सम्पूर्ण उत्तराखंड की सुन्दरता का आनंद व अनुभव प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर है, इस गाँव की एक यात्रा। यह एक शांत एवं विलक्षण गाँव है जो आपको सभी जनोपयोगी सेवाओं से दूर रहते हुए प्रकृति की समीपता का आनंद उठाने का शुद्ध अवसर प्रदान करती है।
कानाताल
लोकप्रिय पर्वतीय पर्यटन स्थल मसूरी के समीप स्थित कानाताल एक छोटा सा क्षेत्र है। कानाताल शब्द दो शब्दों के मेल से बना है, काना अर्थात् सूखा तथा ताल अर्थात् सरोवर। स्थानिकों का ऐसा मानना है कि अनेक वर्षो पूर्व इस क्षेत्र में एक सरोवर था जो सूर्य की तपती किरणों के कारण शनैः-शनैः सूख गया है। उसी सरोवर की स्मृति में स्थानिकों ने इस क्षेत्र को कानाताल का नाम दिया। कानाताल अर्थात् सूखा सरोवर।
कानाताल गढ़वाल हिमालय के बन्दरपूँछ पर्वत श्रंखला के अप्रतिम परिदृश्यों के लिए जाना जाता है। यहाँ की विशेषतायें हैं, यहाँ के अनेक वनीय साहसिक भ्रमण पथ, सेबों के उद्यान तथा प्रसिद्ध शक्तिपीठ सुरकंडा देवी। कानाताल में आप गढ़वाल क्षेत्र के स्थानिकों के ग्रामीण जनजीवन को समीप से अनुभव कर सकते हैं।
यहाँ से बन्दरपूँछ पर्वत श्रंखला समेत हिमालय के अनेक शिखर दृष्टिगोचर होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका दहन के पश्चात अपनी पूँछ की अग्नि का शमन करने के लिए हनुमानजी यहीं आये थे। इसी कारण इस स्थान को बन्दरपूँछ कहा जाता है।
कानाताल की अवस्थिति एवं यहाँ पहुँचने के साधन
कानाताल उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में समुद्र सतह से लगभग २५९० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मसूरी से लगभग ४० किलोमीटर, देहरादून से ८० किलोमीटर तथा दिल्ली से लगभग ३२० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से यहाँ तक पहुँचने के लिए दो प्रमुख मार्ग हैं। प्रथम है, दिल्ली मेरठ द्रुतमार्ग द्वारा मेरठ की ओर आना, मेरठ उपमार्ग द्वारा राष्ट्रीय महामार्ग ३४४ लेते हुए हरिद्वार व ऋषिकेश की ओर जाना, ऋषिकेश से राष्ट्रीय महामार्ग ७ द्वारा चंबा पहुंचना, तत्पश्चात चंबा से चंबा-मसूरी मार्ग पर लगभग १० किलोमीटर वाहन चलाते हुए कानाताल पहुंचना।
कानाताल पहुँचने के लिए दूसरा मार्ग है, राष्ट्रीय महामार्ग ३४४ तक पूर्व रूप से पहुंचना, इस महामार्ग द्वारा मुजफ्फरनगर पहुँचने पर राष्ट्रीय महामार्ग ३०७ की ओर मुड़ जाना, इस नवीन महामार्ग से रुड़की होते हुए देहरादून पहुँचना, देहरादून से मसूरी जाकर मसूरी-चंबा मार्ग पर पहुंचना। इस मार्ग से लण्ढोर एवं धनौल्टी होते हुए, लगभग ३० किलोमीटर पश्चात कानाताल पहुँचते हैं।
आप अपने निजी वाहन द्वारा इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग द्वारा आसानी ने कानाताल पहुँच सकते हैं। सडकों की स्थिति उत्तम है। केवल मसूरी-चंबा मार्ग कुछ स्थानों पर संकरा हो जाता है। यद्यपि आप सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं द्वारा भी यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं तथापि कानाताल के लिए सीधी बस सुविधा उपलब्ध नहीं है। देहरादून, मसूरी, हरिद्वार अथवा ऋषिकेश से कानाताल तक उत्तराखंड सड़क परिवहन की सुगम सुविधाएं उपलब्ध हैं।
हरिद्वार एवं देहरादून निकटतम रेल स्थानक हैं जो देश के सभी प्रमुख नगरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़े हुए हैं। देहरादून का जॉली ग्रांट विमानतल इस क्षेत्र का इकलौता विमानतल है। यहाँ से दिल्ली एवं मुंबई जैसे प्रमुख नगरों तक विमान सेवायें उपलब्ध हैं। रेल स्थानक एवं विमानतल से टैक्सी द्वारा कानाताल पहुंचा जा सकता है। टैक्सी चालक टैक्सीयों के भाड़े मौसम की स्थिति के अनुसार निर्धारित करते हैं।
कानाताल भ्रमण का सर्वोत्तम समय
कानाताल एवं आसपास के क्षेत्रों के भ्रमण का सर्वोत्तम समय है, ग्रीष्म ऋतू में अप्रैल से जुलाई मास तक। मैदानी क्षेत्रों के तपते वातावरण से बचने के लिए यह एक उत्तम पर्यटन स्थल है। सितम्बर व अक्टूबर मास में भी यहाँ का वातावरण अत्यंत सुहावना होता है। यदि आप शीत ऋतु एवं हिमपात का आनंद उठाना चाहते हैं तो दिसंबर एवं जनवरी सर्वोत्तम मास हैं।
एक आवश्यक सूचना यह है कि वर्षा ऋतु में कानाताल भ्रमण को टालना बुद्धिमानी होगी। उत्तराखंड पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र है। वर्षा ऋतु में, विशेषतः अतिवृष्टि की स्थिति में, भूस्खलन का संकट सदा बना रहता है। ऐसी स्थिति में कानाताल तक पहुंचना भी दूभर हो सकता है। वर्षा ऋतु में भूस्खलन एवं कीचड़ प्रवाह सामान्य है।
कानाताल के दर्शनीय स्थल
सुरकंडा देवी मंदिर
सुरकंडा देवी मंदिर भारत में स्थित शक्तिपीठों में से एक है। इस स्थान पर देवी सती के पार्थिव शरीर का शीष गिरा था। शीष को सर भी कहा जाता है। इसी कारण इस स्थान का नाम सुरकंडा पड़ा। यह मंदिर कानाताल पर्वतमाला की सर्वोच्च चोटी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए १.६ किलोमीटर की ढलान चढ़नी पड़ती है। यद्यपि दूरी अधिक नहीं है, तथापि ढलान किंचित तीव्र है। ऊपर तक पहुँचने में एक घंटे से अधिक समय लग जाता है। उत्तराखंड सरकार अब नीचे से सीधे ऊपर मंदिर तक पहुँचने के लिए रस्सा मार्ग बनवा रही है। इस संस्करण के प्रकाशित होने तक उसका निर्माण कार्य कदाचित पूर्ण हो चुका होगा। इस रस्सा मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचना आसान हो जाएगा, तथापि ढलुआ मार्ग द्वारा ऊपर चढ़ने का आनंद तथा संतुष्टि अतुलनीय है। मंदिर की वास्तुकला अनूठी है तथा जापानी कुटियों का स्मरण कराती है।
मंदिर परिसर से गढ़वाल हिमालय एवं बन्दरपूँछ पर्वतश्रंखला का चौतरफा दृश्य दिखाई देता है। इस मंदिर के दर्शन का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल लगभग सूर्योदय के समय तथा संध्या सूर्यास्त का समय है। इस क्षेत्र की सर्वोच्च चोटी होने के कारण यहाँ से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के अप्रतिम दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं।
इस मंदिर से किंचित दूर एक अन्य शक्तिपीठ है जिसका नाम कुंजापुरी मंदिर है। यह भी एक पर्वत शिखर पर स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए शिखर तक चढ़ना पड़ता है किन्तु इसकी चढ़ाई अपेक्षाकृत आसान है।
कौड़िया वन
कानाताल तीन ओर से घने कौड़िया वन से घिरा हुआ है। यह वन साहसिक चढ़ाई एवं सफारी के लिए लोकप्रिय है। यहाँ से हिमालय एवं घाटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यदा-कदा वनीय पशु-पक्षी भी दृष्टिगोचर हो जाते हैं। इस वन में हिरणों की अनेक प्रजातियाँ, बन्दर, हिमालयी भालू, तेंदुए आदि विचरण करते हैं।
सफारी प्रातः शीघ्र आरम्भ होकर संध्या तक उपलब्ध है। वहीं साहसिक पद यात्रा अथवा चढ़ाई प्रातः ५:३० बजे से संध्या ५:३० बजे तक की जा सकती है। सफारी एवं चढ़ाई के लिए भिन्न भिन्न प्रवेश द्वार हैं। १२ किलोमीटर की सफारी आपको यहाँ की प्रकृति एवं वातावरण का अनुभव प्राप्त करने का उत्तम अवसर प्रदान करती है।
टिहरी बाँध एवं टिहरी जलक्रीड़ा पर्यटन संकुल
टिहरी बाँध भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा विवादास्पद बहुउद्देशीय बांध प्रकल्पों में से एक है। पावन भागीरथी नदी पर बना यह देश का सर्वोच्च बांध है। भौगोलिक रूप से भारत के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक पर निर्मित यह बाँध आधुनिक अभियांत्रिकी का अनूठा उदहारण है। इस बांध के निर्माण के कारण पुरातन टिहरी नगरी जलमग्न हो गयी है। पुरातन टिहरी के निवासियों को एक नवनिर्मित नगरी की रचना कर वहां स्थानांतरित किया गया जिसे अब ‘नवीन टिहरी’ कहा जाता है। टिहरी बाँध का जलाशय ७० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस जलाशय को अब टिहरी झील कहा जाता है। यह एशिया के विशालतम मानवनिर्मित जलाशयों में से एक है।
टिहरी झील
टिहरी बाँध एवं टिहरी जलक्रीड़ा पर्यटन संकुल कानाताल से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। कानाताल भ्रमण के लिए आये पर्यटकों के लिए ये कदाचित सर्वोत्तम आकर्षण के केंद्र हैं। चारों ओर पर्वतमाला के शिखर, मध्य में भागीरथी नदी का शांत नीला जल, कुल मिलाकर एक विशुद्ध निर्मल परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं।
यहाँ स्थित जलक्रीड़ा पर्यटन संकुल टिहरी झील के जल में जलक्रीड़ा का उत्तम अवसर प्रदान करते हैं। द्रुतगति नौकाएं एवं जेट स्की सर्वाधिक लोकप्रिय रोमांचक क्रियाकलाप हैं। नदी की द्रुत गति के कारण नौकायन अत्यंत रोमांचक हो जाता है। इस सरोवर में एक लघु द्वीप भी है। जल के ऊपर दो तटों को जोड़ता डोबरा-चांठी सेतु अत्यंत दर्शनीय है। यह भारत का सर्वाधिक लम्बा लटकता सेतु है।
डोबरा-चांठी लटकता सेतु
टिहरी सरोवर में जून मास में, जब जल का तापमान अधिल शीतल नहीं होता है, पर्यटकों के लिए गोताखोरी का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन जल के भीतर स्थित पुरातन टिहरी गाँव को देखने का उत्तम अवसर होता है। बांध के निर्माण से समय जलमग्न हुए घर, वृक्ष इत्यादि देख सकते हैं।
तैरते घर
सरोवर के मध्य पर्यटकों के लिए तैरते घर बनाए गए हैं जहां पर्यटक ठहर सकते हैं। इन घरों का पूर्व आरक्षण आप ऑनलाइन कर सकते हैं।
कानाताल के आसपास अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं, धनौल्टी, मसूरी, आध्यात्मिक राजधानी ऋषिकेश एवं हरिद्वार।
कानाताल में ठहरने योग्य सुविधाएँ
कानाताल में आपकी आवश्यकता, रूचि एवं व्ययसीमा के अनुसार अनेक प्रकार के विश्राम गृह अथवा होटल हैं। अनेक प्रकार के प्रकृति शिविर तथा साहसिक रोमांचक शिविर उपलब्ध है जो आपको प्रकृति के सानिध्य में रोमांचक गतिविधियाँ प्रदान करते हुए सुखदायक विश्राम का सुअवसर देते हैं। अनेक होमस्टे अर्थात् घर जैसी व्यवस्थाएं हैं जहां आपको स्थानीय गढ़वाली व्यंजन का आस्वाद लेने का सुअवसर प्राप्त होगा। अनेक लक्ज़री रिसॉर्ट्स हैं जिनमें कुछ लोकप्रिय तारांकित टाइमशैयर रिसोर्ट भी सम्मिलित हैं।
आप गढ़वाल मंडल विकास निगम के होटल में भी ठहर सकते हैं। इसके लिए उनके वेबस्थल से संपर्क करें।
यात्रा सुझाव
- यदि आप सुरकंडा देवी के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो तीव्र ढलान चढ़ने की तैयारी आवश्यक है। पैरों में सुविधाजनक जूते-चप्पल तथा शरीर में उर्जा आवश्यक है।
- यहाँ उपलब्ध भोजन सादा एवं सात्विक होता है। स्थानीय गढ़वाली व्यंजनों के लिए पूर्वसूचना देना आवश्यक है। यहाँ के कुछ लोकप्रिय स्थानीय व्यंजन हैं, दाल गटवानी, पिंडालू के गुटके, कौफ्ली की सब्जी, आलू जखिया, झंगूरे की खीर तथा मंडूरे की रोटी।
- कानाताल भ्रमण करते समय आँखों पर धूप के चश्मे एवं सर पर टोपी अवश्य धारण करिए। पहाड़ी क्षेत्रों में धूप अत्यंत कष्टकारी होती है।
- दोपहर के समय आप वनों में पक्षी दर्शन के लिए जा सकते हैं।
- ध्यान रखें कि सूर्योदय से पूर्व तथा सूर्यास्त के पश्चात वनों के भीतर अथवा आसपास ना जायें। अन्धकार होते ही वनीय पशुओं की उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। तेंदुओं तथा हिमालयी भालुओं द्वारा मवेशियों इत्यादि तथा मानवों पर आक्रमण की घटनाएँ पूर्व में हो चुकी हैं।
यह संस्करण IndiTales Internship Program के अंतर्गत श्री तेजस कपूर द्वारा लिखा गया है।
अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे