मीराबाई हम में से कई पाठकों के लिए चिर परिचित नाम है। हम सब उन्हे मध्य-युगीन भारत में चितोड़गढ़ की रानी के रूप में तो जानते ही हैं, साथ ही यदि मैं उन्हे भारत में अब तक की सर्वोत्तम भक्ति कवयित्री तथा कृष्ण भक्त कहूँ तो यह अतिशयोक्ति कदापि नहीं होगी। उनके द्वारा रचित भक्ति गीत सम्पूर्ण भारत में गाए जाते हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि वे जयपुर व जोधपुर के मध्य स्थित एक छोटे राज्य, मेड़ता की राजकुमारी थीं?
कुछ दिनों पूर्व मैं पुष्कर का भ्रमण कर रही थी। एक दिवस मैंने मेड़ता का भी भ्रमण करने का निश्चय किया तथा एक छोटे विमार्ग द्वारा मेड़ता पहुंची। यूं तो मैंने इंटरनेट में मेड़ता एवं वहाँ के दर्शनीय स्थानों के विषय में कुछ जानकारी एकत्र की थी किन्तु जैसा कि भारत के अनेक दर्शनीय स्थलों में बहुधा होता है, मेड़ता ने भी मुझे कई अधिक अद्भुत अचंभों के दर्शन कराए।
पुष्कर से हम अरावली पर्वतशृंखलाओं के बीच से आगे बढ़े। अरावली पर्वत शृंखलाओं में उपलब्ध शिलाओं के खनन के लिए उन्हे कई स्थानों पर निर्दयता से काटा गया है। इनमें कुछ पर्वतों के शिखर पर मंदिर हैं जहां पहुँचने के लिए ऊंची ढलान की सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मार्ग में अधिक भीड़ ना होने के कारण इस उजले प्रातःकाल में यह भ्रमण अत्यंत सुखद था।
मेड़ता का इतिहास
मेड़ता मेड़तिया राठोड़ राजपूतों का राज्य था। 16 वी. सदी में मीराबाई के दादाजी, मेड़ता राव दूदा, इस राज्य के सुप्रसिद्ध राजा थे। उनके दुर्ग तथा महल मेड़ता में अब भी विद्यमान हैं। राजपूत एवं शेर शाह सूरी के मध्य हुए कई युद्धों के कारण इस साम्राज्य में कई राजाओं ने शासन किया। जिस समय मीराबाई का विवाह मेवाड़ में चित्तोड़गढ़ के सीसोदिया परिवार में हुआ था, उस समय उनके भ्राता जयमल पर मेड़ता का राज्यभार था। मीराबाई के विवाहोपरांत, एक युद्ध में जयमल को वीरगति प्राप्त हुई तथा उनके राज्य का जोधपुर के राज्य में विलय हो गया था।
मेड़ता का राजपरिवार इस तथ्य पर अत्यंत गौरान्वित रहता है कि उन्होंने, अन्य कुछ राजपरिवारों के विपरीत, अपनी किसी भी कन्या का विवाह मुगलों के परिवार में नहीं किया। ऐसा ही एक अन्य परिवार मेवाड़ों का है जिसमें मीराबाई ब्याही गई थीं।
मेड़ता में मीराबाई से संबंधित दर्शनीय स्थल
मेड़ता जैसे अन्य छोटे नगरों से ठीक विपरीत, मेड़ता में कुछ सर्वोत्तम रखरखाव युक्त दर्शनीय स्थल हैं। उनमें एक प्रमुख मंदिर तथा एक दुर्ग, जिसे अब एक संग्रहालय में परिवर्तित किया गया है, विशेषतः अत्यंत दर्शनीय हैं। यदि आप मीराबाई की जीवनी से प्रेरित हैं तो यह अवसर सोने पर सुहागा है।
चारभुजा मंदिर
मीराबाई के दादाजी राव दूदा द्वारा निर्मित यह मंदिर मेड़ता के हृदयस्थल में स्थित है। यह मंदिर विष्णु के चारभुजा अवतार को समर्पित है। चारभुजा का अर्थ है चार हाथों वाला। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के ठीक सामने, मीराबाई को समर्पित एक छोटा मंदिर है।
जब मैं मंदिर पहुंची, रंगबिरंगी वेशभूषा में सज्ज कई स्त्रियाँ भजन गा रही थीं। उनके समीप से जाते हुए मैं गर्भगृह की ओर बढ़ी। वहाँ पुजारीजी से मेरी विस्तृत चर्चा हुई। उन्होंने मुझे कई किवदंतियाँ कहीं जो हमारे चारों ओर की भित्तियों पर भी उत्कीर्णित थे।
मीराबाई के बालपन से संबंधित किवदंतियाँ
ऐसा कहा जाता है कि किसी समय विष्णु की यह मूर्ति राव दूदा को स्वप्न में दिखी थी। उन्हे ज्ञात हुआ कि किसी मोची की गाय प्रत्येक दिवस एक विशेष स्थान पर जाती थी तथा वहाँ अपना सम्पूर्ण दूध समर्पित कर देती थी। राव दादू ने गाय का पीछा किया। उन्होंने अपने सेवकों से उस स्थान को खोदने कहा जहां प्रत्येक दिवस गाय दूध छोड़ती थी। वहाँ उन्हे विष्णु की एक सुंदर मूर्ति मिली। दादू ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया तथा उसके भीतर विष्णु की उसी मूर्ति की स्थापना की। प्रत्येक दिवस राव दादू उस प्रतिमा की पूजा करते थे तथा उसे दूध अर्पित करते थे। चढ़ावे का दूध वे मोची समुदाय की गाय का ही लाते थे। आज भी इस मंदिर में विष्णु की मूर्ति को अर्पित दूध मोची समुदाय से ही लाया जाता है।
अपने बालपन में नन्ही मीरा सदैव अपने दादाजी को चारभुजा मूर्ति पर दूध चढ़ाते देखती थी। उसे लगता था कि भगवान विष्णु दूध पीते हैं। एक बार उसके दादाजी को कुछ समय के लिए कहीं जाना पड़ा। तब उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में विष्णु को दूध पिलाने का उत्तरदायित्व नन्ही मीरा को सौंपा था। दूध चढ़ाने के पश्चात मीरा वहीं खड़ी विष्णु को निहारने लगी। वह विष्णु को दूध पीते देखना चाहती थी। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अतः वह कक्ष से बाहर आ गई तथा खिड़की से भीतर झाँककर विष्णु को देखा। किन्तु विष्णु टस से मस नहीं हुए। तब नन्ही मीरा रोने लगी तथा विष्णु से दूध पीने का आग्रह करने लगी, अन्यथा उसके दादाजी क्रोधित हो जाएंगे। ऐसा कहा जाता है कि पात्र में रखा दूध लुप्त हो गया। यह स्थान आप मंदिर में आज भी देख सकते हैं।
मीराबाई से संबंधित कई कथाएं मंदिर की भित्तियों पर चित्रित हैं।
चारभुजा मूर्ति
चारभुजा मूर्ति लगभग 4 फुट ऊंची है। अपने निचले हाथ में उन्होंने चक्र धारण किया है। इसका अर्थ है, यह विष्णु का शांत अवतार है। जब विष्णु क्रोधित होकर किसी पर चक्र चलाने के लिए उद्दत हों तो वे चक्र को ऊपरी हाथ में धारण करते हैं। मुझे कथाएं सुनाते हुए ही पुजारीजी आनेवाले भक्तों को प्रसाद दे रहे थे। वहाँ उपस्थित भक्तगण ‘जय चारभुजा’ कहकर एक दूसरे का अभिनंदन कर रहे थे। इस अभिनंदन को मैं अपने संस्करण ‘भारत में अभिनंदन के 20 से अधिक प्रकार’ में अवश्य सम्मिलित करने वाली हूँ।
पुजारीजी ने मुझे कृष्ण की अष्टधातु में निर्मित एक छोटी प्रतिमा दिखाई। उन्होंने बताया कि मीरा इस प्रतिमा की पूजा करती थी। एक बार नन्ही मीरा के हठ को टालने के लिए उनकी माता ने उनसे यूं ही कह दिया था कि कृष्ण ही उनके वर हैं। तब से उन्होंने स्वयं को कृष्ण की वधू मान लिया था। यह नन्ही मीरा से संत कवि मीराबाई बनने का आरंभ था।
मीराबाई से भेंट
चारभुजा मंदिर अनेक भित्तिचित्रों एवं कांच पर की गई चित्रकारियों से भरा हुआ है। जब मैं वहाँ चारों ओर घूमते हुए मंदिर को निहार रही थी, तब केसरिया रंग की साड़ी पहने एक दुर्बल स्त्री मेरे पास आई तथा मुझसे पूछा कि क्या मैं अकेली यहाँ आई हूँ? मेरे हाँ कहने पर उन्होंने मुझ पर प्रश्नों की बौछार कर दी, जैसे मेरे पति कहाँ हैं, वो मेरे साथ क्यों नहीं आए इत्यादि। हम मीराबाई मंदिर के समक्ष खड़े थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या 400 वर्षों पूर्व मीराबाई भजन गाते देशभर में अकेले भ्रमण नहीं करती थी? हम उन्ही की तो संतानें हैं। उन्होंने कहा, सही है और हम दोनों जी भर कर हंसने लगे। कभी कभी हम जाने-अनजाने मूल संस्कारों को भूल कर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही भ्रमित परंपराओं में बंध जाते हैं।
मैं कुछ क्षण मीराबाई के समक्ष खड़ी हो गई। मन मस्तिष्क में एक ही विचार था, ये अनेक प्रकार से मेरी पूर्वज हैं। उन्होंने ऐसी आयु में देशभर में अकेले भ्रमण किया जब यह अकल्पनीय था। मैं सोचने लगी कि ऐसा क्या है इस धरती की माटी में जो उसने मीराबाई को इतना साहस एवं भक्ति प्रदान की। मैं अपने चारों ओर देखने लगी। मुझे मंदिर में घूमती प्रत्येक स्त्री में मीराबाई दृष्टिगोचर होने लगी। वे सब तो उनसे अनुवांशिक रूप से संबंध रखती हैं।
मीराबाई के विषय में अधिक जानने के लिए उनकी कविताएं पढ़िये अथवा अमर चित्रकथा में उनकी कथा पढ़िये।
मैं कुछ समय और मंदिर में घूमते हुए, उसे निहारते हुए मीराबाई से संबंधित तथ्य आत्मसात करने लगी। कल्पना करने लगी कि यहीं मीराबाई कृष्ण संग खेलते व उनकी आराधना करते पली-बढ़ी थीं।
मंदिर परिसर कई अन्य छोटे मंदिरों से भर हुआ है। उनमें एक शिवलिंग एवं हिंगलज माता को समर्पित एक मंदिर सम्मिलित हैं।
मीरा स्मारक
यह मीराबाई के परिवार का दुर्ग था जिसे अब एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। यह संग्रहालय मीराबाई को समर्पित है। यह एक अत्यंत मनभावन संग्रहालय है जहां उनकी जीवनी एवं कथाओं का प्रलेखीकरण किया गया है। मध्य में उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्थापित है। पांडुलिपियों के बड़े बड़े पन्नों पर उनके जीवन की कथाएं अंकित हैं।
एक कक्ष में विभिन्न साहित्य एवं कलाशैलियों में मीरा का प्रस्तुतीकरण किया गया है। एक अन्य कक्ष में द्वारका एवं वृंदावन जैसे उन नगरों का चित्रण हैं जहां मीराबाई ने भ्रमण किया था। प्रत्येक स्थान से संबंधित मीरा की एक ना एक कथा अवश्य है। इन नगरों के निवासियों से उनके व्यवहार का भी यहाँ चित्रण है।
मुझे यहाँ ज्ञात हुआ कि कुछ वर्षों पूर्व मीराबाई पर एक डाकटिकट भी जारी किया गया था।
संग्रहालय की एक दीर्घा में मीराबाई की कविताओं का चित्रण किया है जिन पर कुछ दोहे भी लिखे हुए हैं। मिट्टी की कई पट्टिकाओं पर मीराबाई की जीवनी उत्कीर्णित है।
एक पुस्तकालय भी है जहां मीराबाई से संबंधित पुस्तकें हैं। इस पुस्तकालय का एक ही भाग मैं देख पाई क्योंकि इसका दूसरा भाग आम जनता के लिए खुला नहीं है। इसी प्रांगण में मीरा अनुसंधान संस्थान भी है। मुझे तो कल्पना भी नहीं थी कि इस प्रकार की कोई संस्थान अस्तित्व में भी है।
नागणेची माता का मंदिर – यह राठोर घराने की कुलदेवी हैं। उनका मंदिर मीरा स्मारक अर्थात मीरा दुर्ग के भीतर स्थित है। नागणेची माता चक्रेश्वरी माता की ही एक अवतार है जिन्हे सारस्वत ब्राह्मण कन्नौज से यहाँ लाये थे।
वीर कालिया की भी एक मूर्ति मंदिर के भीतर स्थित है। एक समय वह अकबर की सेना से युद्ध करने वाला वीर सेनाध्यक्ष था किन्तु अब उन्हे देव मानकर पूजा जाता है।
मीरा स्मारक एक मनमोहक स्मारक एवं अनुसंधान केंद्र है जो इस धरती की पुत्री मीराबाई को समर्पित है।
मेड़ता के अन्य दर्शनीय स्थल
दुर्ग के प्रवेशद्वार से ठीक बाहर श्वेत संगमरमर में निर्मित एक सुंदर घंटाघर है।
आसपास की दुकानों में स्त्रियाँ रंगबिरंगी लाख की चूड़ियाँ बिक्री कर रही थीं। उनमें पीले एवं लाल रंगों की प्राधान्यता थी। पीले एवं लाल रंगों को राजस्थान में अत्यंत पावन माना जाता है।
कुंड के एक ओर मुझे एक महल का खंडहर दृष्टिगोचर हुआ। एक गूंगे दर्शक की भांति यह स्तब्ध खड़ा सम्पूर्ण नगरी को आगे बढ़ते देख रहा है।
मेड़ता के दर्शन आप एक दिवसीय भ्रमण के रूप में अजमेर, पुष्कर अथवा जोधपुर में ठहरकर कर सकते हैं।
मेड़ता के सभी प्रमुख दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए 1-2 घंटों का समय पर्याप्त है।
Waahhh dost bahut achchi post likhi hai apne.. for meera lover… who want to view the such a this great place. I appreciate dude..
अप्रतिम लेख. ऐसे ही लिखते रहिये.
आप के सहयोग और प्रेरणा से ही यह संभव है
अनुराधाजी, संत कवयित्री मीराबाई तथा उनकी जन्म स्थलि मेड़ता के बारे में जानकारी देता सुंदर आलेख ! आलेख पढ़कर बचपन में पाठ्य पुस्तक में पढी हुई मीराबाई की जीवनी और किंवदंतीयों का स्मरण हुआ । श्रीकृष्ण की भक्ति में राजसी वैभव का त्याग कर अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करना भगवान के प्रति उनकी भक्ति की पराकाष्ठा है !
ज्ञानवर्धक आलेख हेतू धन्यवाद ।
प्रदीप जी – मेरे लिए भी यह एक सुखद अनुभव था, मीरा बाई की जन्मस्थली को देखना।
In my next visit to Jodhpur planed to vitsit Medta. Excellect article.
धन्यवाद तेजस
कृष्ण भक्त मीराबाई के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख था हमारे भारत के इतिहास में सभी तरह की शख्सियत हुई है उन्ही में से एक महान मीराबाई भी है आपके यात्रा वृतांत से बचपन मे मीराबाई के बारे में जो पढ़ा था वह यादें फिर ताजा हो गई धन्यवाद????????
मिताजी
आपके द्वारा मीराबाई और उनके जन्मस्थल मेडता के बारे मे लिखीत तथा सुंदर अनुवादित लेख पढकर मन प्रफुल्लीत हो उठा.उनके संबद्धमे लिखी किदवंतिओ और मडता के इतिहास के विषयमे अनसुनी जानकारी प्राप्त हुई.
मीराबाई भक्तिकी पराकाष्ठा थी.शादिके पश्चात असैह्य दुखो के कारण उन्होने तुलसीदासजी को पत्र लिखा.जवाब मे उन्होंने लिखा “परीक्षा स्वर्णकी होती है पितल की नही.” चारभुजा मंदिर के फोटो से लगताहै वह बहुतही भव्य ऐवं दर्शनीय है.
मीराबाई स्मारक,उपवन का कृष्ण-मीरा का मंदिर भी बहुत लुभाना है.आपके द्वारा प्राप्त माहितीपूर्ण लेख के लिए बहुत बहोत धन्यवाद.
मंदिर तो सामान्य है पर भक्ति में मीरा बाई की भक्ति का अंश अवश्य देखने को मिलता है. सही कहा आपने, सिद्ध मानवों का जीवन कठिन हो होता है.
अति आनंदमय विवरण
ऐसे ही लिखते रहिये
धन्यवाद
धन्यवाद, आप ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहिये, हम लिखते रहेंगे
JAI RADHEKRISHNA😍😍JAI MEERABAI😍😍😍