बिसरख – रावण का जन्मस्थान ग्रेटर नोएडा का प्राचीन गाँव

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बिसरख, यह नाम ऋषि विश्रवा के नाम से व्युत्पत्त है। काल के साथ अपभ्रंशित होते हुए यह नाम बिसरख में परिवर्तित हो गया। ऋषि विश्रवा दशमुख रावण के पिता थे। कुछ सूत्रों के अनुसार रावण का जन्म बिसरख हुआ था, वहीं कुछ का मानना है कि रावण ने अपने बाल्यावस्था का कुछ काल यहाँ व्यतीत किया था।

बिसरख एक प्राचीन गाँव है जो नोएडा महानगरी में स्थित है। वस्तुतः यह ग्रेटर नोएडा का सेक्टर १ है। दिल्ली में आप कहाँ से जा रहे हैं, उसके आधार पर यह गाँव दिल्ली से लगभग २० से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

बिसरख भ्रमण

नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा के चौड़े द्रुतगामी महामार्गों के माध्यम से वाहन द्वारा बिसरख पहुँचने में हमें १५-२० मिनट का समय लगा।

यहाँ पहुँचकर हमारी दृष्टि सर्वप्रथम किराने की एक दुकान पर पड़ी जिसका नाम रावण किराना स्टोर था। इसके पार्श्व में एक गैरेज के भीतर रावण डीजे अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था। यह बिसरख गाँव में रावण से संबंधित जीवंत दंतकथा से मेरा प्रथम परिचय था। इस दुकान के समक्ष अनामी धाम नामक एक बड़ा आश्रम है।

रावण के नाम पे दुकानें
रावण के नाम पे दुकानें

हमने किराने की दुकान के स्वामी से कुछ संवाद साधे तथा उनसे रावण के मंदिर का मार्ग पूछा। हमें गाँव के भीतर से जाते एक मार्ग पर चलने का परामर्श दिया गया। वह एक संकरा मार्ग था किन्तु उसके दोनों ओर कई सुंदर व विशाल भवन थे।

सँकरे मार्ग पर चलते हुए हम एक निर्जन स्थान पर जा पहुँचे। यहीं पर हमें एक मंदिर दृष्टिगोचर हुआ जिस पर एक ऊंचा शिखर था। हमें ज्ञात हुआ कि यह वो मंदिर नहीं था जिसके शोध में हम यहाँ तक पहुँचे थे। हमारा उद्देशित मंदिर बाईं दिशा में कुछ आगे जाकर था।

बिसरख का प्राचीन शिव मंदिर

एक तोरण के मध्य से हम मंदिर परिसर में पहुँचे। मंदिर के अलंकृत प्रवेशद्वार एवं हमारे मध्य एक इकलौता वृक्ष था। मंदिर के चारों ओर नवीन प्राकार का निर्माण किया जा रहा था। उस पर रावण के जीवनकाल से संबंधित कथाओं एवं घटनाओं के दृश्यों को अप्रतिम शिल्पकला द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा था।

बिसरख का प्राचीन शिव मंदिर
बिसरख का प्राचीन शिव मंदिर

इन अप्रतिम शिल्पावलियों का अवलोकन करते हुए हमने परिसर में भ्रमण किया। कुछ शिल्पकारों से चर्चा भी की जो पार्श्व भाग में स्थित एक भित्ति पर रावण के अनुज भ्राता विभीषण का एक चित्र गढ़ रहे थे। इन शिल्पकार्यों को करने के लिए वे ओडिशा से विशेषरूप से यहाँ पधारे थे। इससे पूर्व मैंने जाजपुर में भी ओडिशा के शैल शिल्पकारों से भेंट की थी। इन शिल्पकारों से चर्चा करते हुए मुझे उनका स्मरण हो आया।

बिसरख मंदिर में रावण
बिसरख मंदिर में रावण

द्वार के दाहिने ओर आप दशमुख रावण का शिल्प स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। बायीं ओर ब्रह्मा की आराधना करते विश्रवा ऋषि का शिल्प है। एक दृश्य में ऋषि विश्रवा एवं उनकी धर्मपत्नी साथ में पूजा कर रहे हैं। एक अन्य दृश्य में भगवान शिव को अपना शीष अर्पण करते रावण को दर्शाया गया है। हमारे समक्ष शिल्पकार रावण के दो भ्राताओं, विभीषण एवं कुंभकर्ण से संबंधित दृश्यों पर शिल्पकारी कर रहे थे।

मुख्य प्रवेशद्वार के ऊपर गणेश की आसनस्थ मुद्रा में विशाल प्रतिमा है। उनके एक ओर वाहन उल्लू पर आरूढ़ देवी लक्ष्मी हैं तो दूसरी ओर हंस पर विराजमान देवी सरस्वती हैं। शंखनाद करते ऋषियों के शिल्प हैं। यहाँ कुछ नाग शिल्प भी हैं।

शिव मंदिर
शिव मंदिर

हमने मंदिर के विस्तृत परिसर में प्रवेश किया। परिसर के आकार की तुलना में मंदिर अत्यंत लघु प्रतीत होता है। मंदिर के रूप में एक छोटा सा कक्ष है जिसके भीतर एक शिवलिंग है। शिवलिंग के समक्ष मुक्ताकाश प्रांगण में नंदी की एक छोटी प्रतिमा है। इस मुख्य लिंग के ऊपर गुलाबी रंग में रंगी बाह्य संरचना है।

देवी मूर्ति
देवी मूर्ति

ऐसी मान्यता है कि यहाँ के वनीय प्रदेश में ऋषि विश्रवा को यह शिवलिंग प्राप्त हुआ था। उन्होंने ही यहाँ इस शिवलिंग की स्थापना की तथा उसकी आराधना की। इसीलिए इस शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है।

श्रावण

श्रावण मास चल रहा था। यह मास शिव भक्तों के लिए अत्यंत विशेष माना जाता है। हमने देखा कि अनेक भक्तगण मंदिर में दर्शन कर रहे थे तथा शिवलिंग का जलाभिषेक कर रहे थे। शिवलिंग के समीप एक स्त्री अपने मुख को दुपट्टे से ढँककर बैठी थी तथा ध्यान कर रही थी। उसकी उपस्थिति मंदिर की दिव्यता को एक नवीन आयाम प्रदान कर रही थी।

मंदिर में स्थापित लिंग प्राचीन प्रतीत होता है। धातु में निर्मित नाग शिवलिंग का अलंकरण करता हुआ विराजमान है। हमने शिवलिंग का अष्टभुजाकार आधार तत्व भी देखा। शिवलिंग को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी काल में यह योनि पर स्थापित रहा होगा किन्तु अब ग्रेनाइट के टाइल पर स्वतंत्र रूप से विराजमान है।

भित्ति के आले पर देवी पार्वती की लघु किन्तु अप्रतिम विग्रह स्थापित है। उनके साथ उनके दोनों पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय भी विराजमान हैं।

नवग्रह मंदिर

शिव मंदिर के निकट एक लघु मुक्ताकाश मंदिर है जो नवग्रह को समर्पित है। सूर्य का विग्रह अत्यंत विशेष है। यहाँ सूर्य को एक विलक्षण एक-चक्री रथ पर विराजमान दर्शाया गया है। इस रथ को दो अश्व हाँक रहे हैं। रथ पर आरूढ़ सूर्य का विग्रह नवग्रह मंडल के मध्य में स्थापित है।

यम की प्रतिमा इस प्रकार स्थापित है कि उनकी दृष्टि नवग्रह विग्रहों पर स्थिर है। ये विग्रह प्राचीन प्रतीत होते हैं। उनमें से एक विग्रह भंगित है।

विश्रवा मंदिर

नवग्रह मंदिर के समीप एक विशाल कक्ष है जिसके भीतर सभी देवी-देवताओं की पूर्णकाय मूर्तियाँ हैं। उन सभी मूर्तियों में ऋषि विश्रवा की प्रतिमा विशेष है। यह मूर्ति एक शिवलिंग के समक्ष स्थित है।

ऋषि विश्रवा की प्रतिमा के निकट मुझे सूर्य देव की एक सुंदर प्रतिमा दिखी जिसमें वे अपने सात अश्वों के साथ विराजमान हैं। यह शिल्प काली शिला पर उकेरी हुई है। सूर्य देव के इस विग्रह ने मुझे सूरजकुंड का स्मरण करा दिया जो यहाँ से निकट ही स्थित है।

इस कक्ष के कुछ अन्य विग्रहों में निम्न विग्रह भी अनूठे हैं-

  • गणेश एवं कार्तिकेय संग गौरी शंकर
  • श्वेत अश्व पर आरूढ़ कलकी देव
  • लक्ष्मी नारायण
  • रावण का चचेरा भ्राता कुबेर
  • राधा कृष्ण
  • अपने अश्व को हाँकते बाबा मोहन राम जी
  • हनुमान जी
  • माँ काली

उपरोक्त विग्रहों के नामों को पढ़ते हुए आप बाबा मोहन राम जी के विषय में जानने के लिए अवश्य उत्सुक हुए होंगे। बाबा मोहन राम जी एक संत हैं जिन्होंने इस मंदिर एवं बिसरख धाम के नवीनीकरण का बीड़ा उठाया है। मंदिर एवं गाँव में उपस्थित निवासियों से वार्तालाप करते हुए मुझे ज्ञात हुआ कि गाँव में बाबा मोहन राम जी के अनेक भक्त हैं।

शिव पार्वती मंदिर

मुख्य मंदिर के दर्शन के उपरांत हम उजले गुलाबी रंग में रंगे एक ऊँचे शिखर से अलंकृत मंदिर पहुँचे। यह भी एक लघु मंदिर है जिसके भीतर देवी की प्रतिमा है।

इस मंदिर के चारों ओर बैठकर कुछ भक्तगण मंत्रों का जप कर रहे थे।

इसके पार्श्व भाग पर कुछ मूर्तियाँ थीं जिनके समक्ष उन्हे समर्पित प्रसाद के ढेर थे।

मंदिर के उत्सव

उत्तर भरत में दशहरा के पावन पर्व पर चहुँ ओर रावण, भ्राता कुंभकर्ण एवं रावण-पुत्र मेघनाथ के पुतलों को जलाने की प्रथा है। रामलीला के विविध प्रदर्शन किये जाते हैं। किन्तु बिसरख में प्रथा विपरीत है।

चूंकि बिसरख गाँव रावण का जन्मस्थान  है, यहाँ रावण की आराधना करते हुए दशहरा पर्व मनाया जाता है। यहाँ रामलीला का प्रदर्शन भी नहीं किया जाता। दीवाली का उत्सव भी न्यूनतम एवं मंद स्तर पर किया जाता है।

एक ओर जहाँ भारतीय उपमहाद्वीप को रामायण की भूमि माना जाता है, वहीं रावण को पूजते इस छोटे से गाँव को एक अनूठा द्वीप कहा जा सकता है।

यात्रा सुझाव

  • बिसरख गाँव राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र NCR का एक भाग है। अतः यहाँ तक पहुँचना अत्यंत सुलभ है।
  • यह मंदिर सम्पूर्ण दिवस खुला रहता है।
  • यह मंदिर मूलतः स्थानीय लोगों में लोकप्रिय है। सामान्यतः सभी अनुष्ठान स्थानीय निवासी ही आयोजित करते हैं। कदाचित इसलिए ही मुझे यहाँ पर्यटकों से संबंधित सुविधाओं का नितांत अभाव प्रतीत हुआ।
  • मंदिर के दर्शन करने के साथ साथ आप बिसरख गाँव में भी पद-भ्रमण करें। आधुनिक प्रतीत होते हुए भी इस गाँव में आपका अनुभव सामान्य नहीं होगा, अपितु आपका अनुभव अवश्य अनूठा होगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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