भीमबेटका शैलाश्रय एवं प्रागैतिहासिक गुफा चित्र

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ४५ किलोमीटर दक्षिण की ओर, भोपाल-होशंगाबाद राजमार्ग पर भीमबेटका नामक विश्व धरोहर स्थल है। जब आप भोपाल से होशंगाबाद की ओर जा रहे हों तब आप अपने दाहिनी ओर एक छोटी पहाड़ी पर विशेष शैल समूह देखेंगे। प्रथम दर्शन में ये शैल समूह अत्यंत अनोखे प्रतीत होते हैं। यही भीमबेटका के सुप्रसिद्ध शैलचित्रों का स्थल है। जब आप मुख्य मार्ग से इन गुफाओं की ओर जाते मार्ग पर मुड़ेंगे, तब मार्ग में एक रेलगाड़ी का फाटक आएगा जो अधिकतर समय बंद ही रहता है। यहाँ कुछ क्षण प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। जैसी ही पर्याप्त गाड़ियां एकत्र हो जाएँ तथा रेलगाड़ी के आने का समय ना हुआ हो तो यह फाटक कुछ क्षण के लिए खोला जाता है।

भीमबेटका के प्राचीन शैलचित्र
भीमबेटका के प्राचीन शैलचित्र

इस स्थान पर, फाटक के खुलने की प्रतीक्षा करते हुए आप कुछ समय मध्यप्रदेश पर्यटन के जलपान गृह में तरोताजा हो सकते हैं क्योंकि इसके पश्चात आपको कुछ भी खाने-पीने का सामान उपलब्ध नहीं होगा। पेयजल भी नहीं। छायाचित्रकारों के लिए यह स्थान दूर से भीमबेटका शैलाश्रय का चित्र लेने का उपयुक्त स्थल है।

भीमबेटका – सर्वाधिक पुरातन मानवी धरोहर

भीमबेटका गुफ़ाएं भारत की सर्वाधिक पुरातन मानवी धरोहर है जो लगभग १०,००० वर्ष प्राचीन हैं। ये शिलाएं अनुमानतः उस काल की हैं जब यह क्षेत्र कदाचित एक महासागर था। शिलाओं की चिकनी व गोलाकार आकृतियाँ सागर की लहरों के थपेड़ों द्वारा निर्मित मानी जाती हैं।

भीमबेटका के चित्रों में घुड़सवार
भीमबेटका के चित्रों में घुड़सवार

यहाँ के वनों में ७५० से भी अधिक शैलाश्रयों की खोज हो चुकी है। उनमें से ४०० से भी अधिक शैलाश्रयों में गुफाचित्र हैं जिनमें से केवल २० गुफाएं जनता द्वारा दर्शन के लिए उपलब्ध हैं। इन गुफाओं में जो चित्र हैं वे भिन्न भिन्न काल के हैं जब उनमें उस काल की प्रागैतिहासिक धरोहर रही होगी।

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भीमबेटका के गुफाचित्रों में मूलतः लाल व श्वेत रंगों का प्रयोग किया गया है। कुछ स्थानों पर हरा व पीला रंग भी दृष्टिगोचर होता है। इन रंगों में लाल रंग सर्वोत्तम रूप से संरक्षित है। इसका कारण कदाचित लाल रंग की सघनता है। श्वेत रंगों में सर्वाधिक धुंधलापन प्रतीत होता है। हो सकता है, वे सर्वाधिक प्राचीन हों।

भीमबेटका गुफाचित्र – प्रागैतिहासिक शैलचित्र

अनेक स्थानों पर एक चित्र पर अनेक चित्र चित्रित किए गए हैं। यह इस ओर संकेत करता है कि विभिन्न काल के चित्रकारों ने उसी स्थान पर पुनः पुनः चित्रकारी की है। इसका अर्थ यह भी होता सकता है कि यह अनुष्ठानिक चित्रकारी हो जिसकी नियमित पुनरावृत्ति की जाती थी।

यहाँ की चित्रकारी की शैली वार्ली चित्रकारी एवं मधुबनी चित्रकारी से साम्य रखती प्रतीत होती हैं। मानवी आकृतियों को दर्शाने के लिए ज्यामितीय रेखाचित्रों का प्राधान्यता से प्रयोग किया गया है। केवल एक स्थान पर मानवी आकृति को प्रदर्शित करने के लिए ज्यामितीय रेखांकन की अनुपस्थिति दिखी। वह कदाचित शिव की अथवा कोई ध्यानमग्न ऋषि की छवि थी। कुछ चित्र इतने चटक थे मानो कुछ दिवस पूर्व ही चित्रित किए गए हों। यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि वे प्रागैतिहासिक चित्र हैं। ऐसी इच्छा होती है कि उन्हे छूकर शंका का निवारण कर लें। कुछ चित्र अपने आसपास पसरे धूल के कणों से भी अछूते प्रतीत होते हैं।

प्रागैतिहासिक कला की विषय-वस्तुएं

मानवी आकृतियाँ, पशु-पक्षी, पुष्प, वृक्ष इत्यादि

भीमबेटका की गुफाचित्रों में पशु-आकृतियों की प्राधान्यता है। इसके पश्चात क्रमशः मानवी आकृतियाँ तथा यदा-कदा वृक्षों व पुष्पों की आकृतियाँ दृष्टिगोचर हो जाती हैं। यहाँ की सर्वाधिक लोकप्रिय शिलाओं में से एक है, पशु वाटिका शिला। इस शिला पर मूलतः लाल एवं श्वेत रंगों का प्रयोग कर सभी प्रकार के पशुओं को चित्रित किया गया है। उन चित्रों में विभिन्न पशुओं को खोजना युवा पर्यटकों के लिए एक रोमांचक अभ्यास हो सकता है।

युद्ध के दृश्य

भीमबेटका के शैलचित्रों में युद्ध के अनेक दृश्य हैं जिनमें घोड़ों पर सवार राजाओं एवं सैनिकों को दर्शाया गया है। इन चित्रों में राजाओं को उनके अलंकृत अश्वों एवं यदा-कदा उनके ऊपर चित्रित छत्रों द्वारा पहचाना जा सकता है। इन चित्रों में आप तलवार एवं उस काल के अन्य शस्त्रों को भी पहचान सकते हैं। इन चित्रों में किसी युद्ध में अर्जित विजय का उल्हास व्यक्त किया गया था अथवा किसी युद्ध का चित्रित आलेखन किया गया था, यह कहना कठिन है।

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सामुदायिक जीवनशैली

इन चित्रों में अनेक दृश्य ऐसे हैं जिनमें उस काल के मानवों की सामुदायिक जीवनशैली चित्रित है। इन चित्रों में आप लोगों के समूहों को साथ में खाते-पीते, नृत्य करते, संगीत वाद्य बजाते, विभिन्न अनुष्ठान करते एवं जीवन का आनंद उठाते देख सकते हैं। अनेक स्थानों पर युगल जोड़ों को भी दिखाया गया है। इनमें से अधिकतर चित्र गुफा की छत पर चित्रित हैं।

जीव जंतु शैलचित्र
जीव जंतु शैलचित्र

हमारे पर्यटन परिदर्शक ने हमें बताया कि इन चित्रों के चित्रिकरण के लिए, चित्रकारों ने विशेषतः, उन स्थानों का चयन किया था जहाँ वर्षा का जल नहीं पहुंचता था। मेरा अंतर्मन मुझसे यह कह रहा था कि किसी काल में, गुफाओं की सम्पूर्ण सतहों पर चित्रकारी की गई होगी, किन्तु वही चित्र सुरक्षित बचे हैं जहाँ वर्षा का जल नहीं पहुंचा है। आप देख सकते हैं कि गुफाओं के बाह्य भागों के चित्र भीतरी भागों के चित्रों से अपेक्षाकृत धुंधले हैं।

प्रांगण

भीमबेटका का प्रांगण
भीमबेटका का प्रांगण

शैलाश्रयों के अतिरिक्त, एक प्रांगण के समान संरचना है। हमारे परिदर्शक के अनुसार यह एक मुक्तांगन हो सकता है। यहाँ कदाचित सामुदायिक सभाएं आयोजित की गई होंगी। प्रांगण के मध्य स्थित शिलाखंड कदाचित समुदाय के प्रमुख अथवा राजा का आसन हो सकता है। किन्तु ये सब हमारे विवेचन हैं। इन्हे प्रमाणित करने के लिए कोई संदर्भ उपलब्ध नहीं हैं।

गुफा मंदिर

गुफा के मुख से लगभग १०० मीटर दूर एक गुफा मंदिर है जो अब भी एक जीवंत मंदिर है। हमें बताया गया कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने उस समय की थी जब वे अपने अज्ञात वास में यहाँ आए थे। वस्तुतः, भीमबेटका नाम का संदर्भ भी भीम से है जिसका अर्थ है भीम की बैठक।

मध्यप्रदेश के भीमबेटका की खोज

यूँ तो भारत के अनेक महत्वपूर्ण गुफाओं एवं विस्मृत प्राचीन संरचनाओं की खोज घुमक्कड़ ब्रिटिश अफसरों ने की थी। किन्तु, इसके ठीक विपरीत, भीमबेटका गुफाओं की खोज एक भारतीय ने की थी। भीमबेटका गुफाओं की खोज सन् १९५८ में डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी। उन्होंने उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के लिए इस स्थल का विस्तृत अध्ययन किया था।

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उन्होंने भिन्न भिन्न प्रकार की शिलाओं एवं शैलाश्रयों को वर्गीकृत किया था। तत्पश्चात भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने इस स्थल का उत्खनन किया। इस स्थान पर प्रागैतिहासिक गुफाओं की खोज से पूर्व इस क्षेत्र को स्तूपों से भरा बौद्ध क्षेत्र माना जाता था। किन्तु ये गुफाएं प्रागैतिहासिक काल से मध्यकाल तक, अर्थात् युगों युगों से मानव जीवन की अनवरत उपस्थिति की ओर संकेत करती हैं।

भीमबेटका गुफाओं के दर्शन

यहाँ आने से पूर्व मैंने इस स्थान के विषय में अनेक समीक्षाएं पढ़ी थीं। पूर्व में यहाँ के दर्शन किए अनेक पर्यटकों ने भी वही समीक्षा दी थी कि आप यहाँ २ घंटों से अधिक समय व्यतीत नहीं कर सकते। अधिकतर पर्यटक यहाँ औसतन लगभग आधा घंटा व्यतीत करते हैं। किन्तु मुझे यहाँ आकर ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं इस स्थान को अधिकाधिक सूक्ष्मता से अवलोकन करूं। अधिक से अधिक समय यहाँ व्यतीत करूं। इसके अतिरिक्त, मेरी इच्छा थी कि मुझे उन गुफाओं के दर्शन की भी अनुमति मिले जिन्हे पर्यटकों के लिए बंद कर रखा है। मुझे यहाँ केवल एक ही परिदर्शक अर्थात् गाइड दिखाई दिया जो सम्पूर्ण दर्शन को १० से १२ मिनटों में समेटने का प्रयत्न कर रहा था। यदि आप भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग द्वारा जारी गाइड पुस्तिका भी साथ लें तो उचित होगा। इससे आप क्रमवार गुफाओं के दर्शन कर सकते हैं तथा चित्रों के विषय में विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।

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इन गुफाओं को देख मेरे मस्तिष्क में एक विचार उत्पन्न होता है कि क्या उस काल के चित्रकारों को लेश मात्र भी आशा रही होगी कि उनकी यह कला एक दिवस उनकी जीवनशैली एवं रहन-सहन को समझने का एक उत्तम मार्ग सिद्ध होगी? इन गुफाओं को देख एक विचार यह भी उत्पन्न होता है कि एक आनंदित जीवन व्यतीत करने के लिए एक छत एवं दो समय की रोटी के सिवाय क्या अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता है?

भीमबेटका की गुफाओं के दर्शन के उपरांत मैं यही कहूँगी कि यह स्थान मानव इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक उत्तम एवं अनिवार्य पर्यटन स्थल है।

भोपाल के निकट स्थित भीमबेटका गुफाओं के दर्शन के लिए आप जब यहाँ आयें तब इसके समीप स्थित भोजपुर शिव मंदिर(भोजेश्वर मंदिर) के भी दर्शन करें। सांची के स्तूप भी यहाँ से अधिक दूरी पर नहीं हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. अनुराधा जी, मीता जी,
    सदियों पुरानी भीमबेटका गुफ़ाओं की सुंदर एवम् सटीक जानकारी प्रदान करता पठनीय आलेख ! यह आश्चर्य की बात है कि लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व ज्यामितीय आकृतियों से चित्रित चित्रों के रंग आज भी जैसे ताज़े है और यह भी आश्चर्यजनक है कि उस समय भी लोगों को ज्यामिती का ज्ञान था ।आपका कथन सही है,उस समय के चित्रकारों को शायद यह कल्पना भी नहीं होगी कि कालान्तर में उनके ये चित्र उस समय के सामाजिक परिवेश,जीवन शैली आदि से आने वाली नस्लों का परिचय करवायेंगे ।भीमबेटका गुफ़ाएँ वास्तव में भारत की सार्वधिक पुरातन मानवी धरोहर है । ये जानकारी और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि यें गुफाएँ मेरे अपने राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है तथा इनके खोजकर्ता पद्मश्री (स्व) डॉ. वाकणकर जी, मेरे ही शहर उज्जैन से थे !
    सुंदर आलेख हेतु धन्यवाद ।

  2. अनुराधाजी एवं मीताजी
    अत्यंत सुंदर लेख जो बहुत ही माहिती पूर्ण और अचंभित करने वाला है.वाकणकरजी की सुंदर खोज को आपने शब्दों में व्यक्त किया है. दस हजार वर्ष पूर्व सागर भोपाल के पास तक था जानकर आश्चर्य हुआ.
    पानी के द्वारा तराशी गई शिलाऐं और महाभारत के भीम के नाम पर नामांकित भीमबेटका तथा वहां की गुफाओं का सुंदर वर्णन मन को छूने वाला है.
    इतनी पुरानी सुंदर चित्रकारी वहां की विकसित सभ्यताओं का द्योतक है.युध्द के मैदान में अश्व और पैदल दल की चित्रकारी इस शताब्दी के युद्ध कौशल से मिलती है.
    सदियों तक वैसे के वैसे ही स्थिति में रहने वाले रंग और कुछ रंगो पर तो धूल भी नहीं टिकती. आज के आधुनिकता के लेमिनेटेड पेंट से मिलती है.याने कि उस समय की सभ्यताएं कितनी विकसित होंगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. सुंदर आलेख हेतु धन्यावाद.

  3. Sundar varnan, us sthan pr na jaakr bhi esa lag raha he jese ab vaha k baare me hum jaante he, or ab jab jaenge to iss baare me hume jankari bhi rahegi.

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