उडुपी का श्री कृष्ण मठ भक्तों का लोकप्रिय मंदिर

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भारत के पश्चिमी तट पर बसी उडुपी मंदिरों की नगरी है जो भक्तों का बड़े उत्साह से स्वागत करती है। यह एक परशुराम क्षेत्र है जिसके मध्य में श्री कृष्ण मठ स्थित है। साथ ही यहाँ चन्द्रमौलेश्वर मंदिर एवं अनंतेश्वर मंदिर नामक प्राचीन मंदिर भी हैं।

उडुपी के श्री कृष्ण मठ का इतिहास

श्री कृष्ण मंदिर की स्थापना के पूर्व से ही उडुपी एक पावन भूमि कहलाती थी। यहाँ स्थित प्राचीन चन्द्रमौलेश्वर मंदिर एवं अनंतेश्वर मंदिर वर्षों से अनेक भक्तगणों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे थे। उडुपी के दक्षिणी ओर, लगभग १२ किलोमीटर की दूरी पर पजाका नामक गाँव है जिसे द्वैत दार्शनिक श्री माधवाचार्य का जन्मस्थान माना जाता है। १२३८ ई. में पजाका में जन्मे माधवाचार्य जी ने ना केवल द्वैत दर्शन की स्थापना की थी, अपितु उन्होंने श्री कृष्ण मंदिर की नींव भी रखी थी।

श्री कृष्ण मठ उडुपी
श्री कृष्ण मठ उडुपी

किवदंतियों के अनुसार श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी ने अपने पति से बालकृष्ण अर्थात् कृष्ण के बाल रूप की प्रतिमा की मांग की थी। श्री कृष्ण ने निर्माण व सृजन के देवता विश्वकर्मा से मूर्ति गढ़ने के लिए कहा। विश्वकर्मा देव ने शालिग्राम शिला द्वारा एक मनमोहक प्रतिमा गढ़ी तथा पूजन हेतु रुक्मिणी को प्रदान की। द्वारका में सैकड़ों भक्तों ने इस प्रतिमा पर चन्दन का लेप लगाकर इसकी आराधना की। प्रतिमा पूर्ण रूप से चन्दन के लेप से आच्छादित हो गयी।

एक भयावह बाढ़ की स्थिति में यह प्रतिमा द्वारका से बहकर दूर चली गयी। जब एक व्यापारी जहाज के मल्लाह ने इसे देखा, वह उसे एक शिला समझ बैठा तथा जहाज को संतुलित करने के लिए उस का प्रयोग कर लिया। जब व्यापारी का जहाज द्वारका से मालाबार जा रहा था तब तुलुब के निकट वह जहाज डूब गया। उसमें गोपीचंदन से ढकी भगवान कृष्ण की वह मूर्ति भी थी। उस समय भगवान ने स्वयं माधवाचार्य जी के स्वप्न में अवतरित होकर उन्हें आज्ञा दी। माधवाचार्य ने मूर्ति को जल से निकाल कर उडुपी में उसकी स्थापना की। इस मूर्ति की स्थापना लगभग ७०० वर्ष पूर्व हुई थी।

श्री कृष्ण मंदिर

इस मंदिर की यह विशेषता है कि इसके आसपास ८ मठ स्थापित हैं जो क्रमशः, चक्रीय क्रम में इस मंदिर का कार्यभार संभालते हैं। पूर्व में यह अवधि दो मास की थी जिसे कालांतर में स्वामी वदिराज ने परिवर्तित कर दो वर्ष कर दिए थे।

श्री कृष्ण मठ उडुपी का आकाशीय दृश्य
श्री कृष्ण मठ उडुपी का आकाशीय दृश्य

कार्यावधि परिवर्तन को पर्याय महोत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है जिसमें मंदिर का प्रशासन  एक मठ से दूसरे मठ को स्थानांतरित किया जाता है। संत माधवाचार्य जी द्वारा स्थापित इन आठ मठों के नाम उन गाँवों पर दिए गए हैं जहाँ इनकी स्थापना की गयी है, पालिमारु, अदमरू, कृष्णपुरा, पुत्तिगे, शिरूर, सोढे, कनियूरू, पेजावर। इन मठों के मुख्यालय श्री कृष्ण मंदिर के आसपास ही स्थित हैं।

कनकदास कथा

कृष्ण मठ का मनोहर गोपुरम
कृष्ण मठ का मनोहर गोपुरम

मंदिर में प्रवेश से पूर्व आपकी दृष्टि एक झरोखे पर निर्मित एक अलंकृत गोपुरम पर पड़ेगी। गोपुरम एक विशाल, उत्कीर्णित व अलंकृत अटारी होता है जो दक्षिण भारत के मंदिरों के प्रवेश द्वारों के ऊपर स्थित होता है। यह दक्षिण भारत में बहुप्रचलित द्रविड़ शैली की वास्तुकला का अप्रतिम उदहारण है। श्री कृष्ण मंदिर के इस झरोखे से आप सीधे मंदिर में स्थापित भगवान की प्रतिमा को देख सकते हैं। एक लोककथा के अनुसार कनकदास भगवान कृष्ण का एक परम भक्त था जो भगवान के दर्शन के लिए उडुपी के इस श्री कृष्ण मंदिर में आया था। किन्तु उसे भगवान के दर्शन नहीं प्राप्त हुए। उसने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की। भगवान ने प्रसन्न होकर उसकी ओर मुख कर लिया। आज भी यह प्रथा है कि भक्तगण सर्वप्रथम इस झरोखे से भगवान कृष्ण के दर्शन करते हैं जिसके पश्चात ही वे मंदिर में प्रवेश करते हैं। यह बताना आवश्यक है कि इस कथा को ना ही किसी ग्रन्थ में, ना ही किसी साधक द्वारा प्रमाणित किया गया है।

श्री कृष्ण मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व, समक्ष स्थित चन्द्रमौलिश्वर मंदिर में दर्शन करने की प्रथा प्रचलित है।

हाल ही में मंदिर के अधिकारियों ने मंदिर में प्रवेश हेतु भक्तों के लिए परिधान संहिता निर्दिष्ट की है जिसके अनुसार स्त्रियों को साड़ी अथवा सलवार-कुर्ता तथा पुरुषों को धोती एवं अंगवस्त्र धारण करना अनिवार्य है।

विष्णु की कथाएं कहते गोपुरम का स्थापत्य
विष्णु की कथाएं कहते गोपुरम का स्थापत्य

मंदिर में प्रवेश करते ही हमें एक भिन्न वातावरण की अनुभूति होती है। एक आकस्मिक निस्तब्धता, एक दिव्य प्रभामंडल हमें अभिभूत कर देती है। चारों ओर का विश्व गतिहीन प्रतीत होने लगता है। काले कडप्पा शिलाओं द्वारा निर्मित इसकी शीतल भूमि उडुपी के उष्ण व आर्द्र वातावरण से छुटकारा दिलाती है। श्री कृष्ण मंदिर का गर्भगृह एक लंबे गलियारे के बाईं ओर स्थित है। भगवान की प्रतिमा अत्यंत मनमोहक है। उनके दर्शन करते ही हृदय प्रसन्न हो जाता है। उत्सवों में गर्भगृह के चारों ओर तेल के दीपक प्रज्ज्वलित किये जाते हैं।

मंदिर मंडप

आगे बढ़ते हुए आप मंदिर के मुख्य मंडप में पहुंचेंगे। यह एक विस्तृत मंडप है जो भक्तों के विभिन्न क्रियाकलापों से गुंजायमान रहता है। एक कोने में पर्याय मठ के वर्तमान गुरु भक्तों के लिए विभिन्न अनुष्ठान आयोजित करते हैं तथा भक्तों के विभिन्न समस्याओं के निवारण का मार्ग भी सुझाते हैं। मंडप के भीतर एक हनुमान मंदिर है तथा एक नवग्रह मंदिर भी है। प्रातः ६ बजे से लेकर रात्रि ९ बजे तक भोजन मंडप में भक्तों के लिए अन्नदान आयोजित किया जाता है। यहाँ परोसे जाने वाला भोजन सरल किन्तु स्वादिष्ट होता है जिसे अत्यंत भक्तिभाव से बनाया व परोसा जाता है।

कृष्ण मठ का रथ
कृष्ण मठ का रथ

मंडप के एक छोर पर गौशाला है। किन्तु उसके भीतर जाने की अनुमति हमें नहीं है। केवल उसके अभिरक्षक ही भीतर जा सकते हैं। दैनिक प्रसाद तथा नैवेद्य प्राप्त करने के लिए एक छोटी दुकान भी है।

मंडप से बाहर जाते ही आपको मंदिर के हाथी, सुभद्रा की गजशाला दिखाई देगी। यद्यपि अब सुभद्रा गज को होन्नाली नगरी में रखा गया है, तथापि विशेष अवसरों व उत्सवों में उसे यहाँ लाया जाता है।

श्री कृष्ण मठ मंदिर संकुल

मंदिर के चारों ओर आठ मठ, अनेक अतिथि गृह एवं जलपान गृह हैं।

माधव सरोवर - श्री कृष्ण मठ उडुपी
माधव सरोवर – श्री कृष्ण मठ उडुपी

एक जलपान गृह ऐसा है जहाँ आपको अवश्य जाना चाहिए। वह है, मित्र समाज। मंदिर के आसपास उनके दो जलपान गृह हैं तथा एक जलपान गृह उडुपी नगरी में है। उनकी गर्म गोली भाजी, बन, फिल्टर कॉफी आदि आपकी सुबह को प्रफुल्लित कर देगी।

गीता भवन
गीता भवन

मंदिर के भोजनालय में स्वादिष्ट भोजन करने के पश्चात मंदिर परिसर में ही कुछ समय व्यतीत करें। मंदिर से कुछ मीटर दूर मुझे अचानक एक पुस्तक की दुकान दिखाई दी जिसका नाम था, नंदिता फ्रेग्रेन्स बुकस्टोर। यद्यपि यह दुकान मंदिर परिसर में स्थित है, तथापि यह आसपास के विभिन्न क्रियाकलापों एवं चहल-पहल से कुछ क्षण के लिए हमें पलायन देती है। इस दुकान में संस्कृत की पुस्तकें, अध्यात्म, ज्योतिषशास्त्र, दर्शन शास्त्र आदि पर पुस्तकें तथा विभिन्न शास्त्रों के अंग्रेजी, हिन्दी व कन्नड़ भाषा में अनुवाद उपलब्ध हैं।

संस्कृत महाविद्यालय

मंदिर के पृष्ठभाग में एक संस्कृत महाविद्यालय है। इस पुस्तक दुकान में वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि के संस्कृत भाषा में ग्रन्थ उपलब्ध हैं। मैंने कवि कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभव, अष्टावक्र गीता एवं The Yoga of Kashmir Shaivism नामक पुस्तक का क्रय किया।

इस संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं अन्य अल्पावधि पाठ्यक्रम के अध्ययन निशुल्क उपलब्ध कराये जाते हैं। इस महाविद्यालय में विश्व भर से अनेक विद्यार्थी ज्ञान अर्जन के लिए आते हैं। इस महाविद्यालय में सभी प्रकार के संस्कृत ग्रंथों से भरा एक पुस्तकालय है जिसमें कालिदास एवं शुद्रका जैसे महा नाटकों से लेकर दर्शन तक की पुस्तकें उपलब्ध हैं।

समीप ही अनेक दुकानें हैं जहाँ लकड़ी की बिलोनी जैसी अनेक काष्ठी वस्तुएं, चीनी मिट्टी के पात्र, लौह पात्र तथा श्री कृष्ण व अन्य देवी देवताओं की पीतल में निर्मित प्रतिमाएं विक्री के लिए रखी हुई हैं। यदि आप विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में रूचि रखते हैं तो यहाँ से अनेक स्थानीय व्यंजन ले सकते हैं जैसे, चुर्मुरी, फरसान, चकली, मुरुक्कू आदि।

यदि आपके पास कुछ अतिरिक्त समय हो आप समीप के अन्य तीर्थ स्थलों का अवलोकन कर सकते हैं जैसे, कोल्लूर मूकाम्बिका, कतील, श्रृंगेरी, मुरुडेश्वर एवं गोकर्ण

मठ के उत्सव

यदि आप जन्माष्टमी एवं पर्याय महोत्सव जैसे उत्सवों में यहाँ आ पायें तो यह सोने पर सुहागा होगा। आपको यहाँ के भव्य उत्सवों के अवलोकन का आनंद प्राप्त होगा।

जन्माष्टमी उत्सव

उत्सव के अवसर पर मंदिर की सजावट
उत्सव के अवसर पर मंदिर की सजावट

श्री कृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव विट्टल पिंडी के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव बड़ी भव्यता एवं उत्साह से मनाया जाता है। सम्पूर्ण मंदिर को विस्तृत रूप से विभिन्न पुष्पों द्वारा अलंकृत किया जाता है। तेल के अनेक दीप प्रज्ज्वलित किये जाते हैं। भक्त गण दूर-सुदूर स्थलों से आकर यहाँ एकत्र होते हैं तथा श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का उत्सव मनाते हैं। भगवान को एक स्वर्ण रथ पर विराजमान किया जाता है तथा सम्पूर्ण मंदिर परिसर में उनका भ्रमण कराया जाता है।

इस उत्सव की विशेषता यह है, हुली वेष अर्थात बाघ आवरण के परिधान धारण कर नर्तकों के विभिन्न समूह पारंपरिक नृत्य प्रदर्शित करते हैं।

पर्याय महोत्सव

पर्याय महोत्सव का आयोजन तब किया जाता है जब मंदिर का प्रशासन एक मठ से दूसरे मठ के हाथों में सौंपा जाता है। प्रत्येक मठ के हाथों में दो वर्षों के लिए मंदिर के प्रशासन का कार्यभार रहता है।

श्री कनियुरु मठ - उडुपी
श्री कनियुरु मठ – उडुपी

ग्रंथों के अनुसार, यह उत्सव प्रत्येक दो वर्षों में मकर संक्रांति के पश्चात, चौथे दिवस आयोजित किया जाता है। यह दिवस १८ जनवरी के दिन आता है। इस उत्सव में उडुपी के आसपास के सभी घरों को दीयों एवं साज-सज्जा से अलंकृत किया जाता है। उडुपी नगरी के विभिन्न चौकों एवं सार्वजनिक स्थलों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। अन्न संतर्पण आयोजित किये जाते हैं जिनमें बड़े स्तर पर अन्न वितरण किया जाता है। इस वर्ष कृष्णपुर मठ के दैवज्ञ स्वामी विद्यासागर तीर्थ ने अदमरू मठ के दैवज्ञ संत ईशप्रिय तीर्थ स्वामीजी से मंदिर का कार्यभार स्वीकार किया है।

श्री कृष्ण मंदिर दर्शन एवं उडुपी भ्रमण के लिए सर्वोत्तम काल

उडुपी भ्रमण के लिए सर्वोत्तम काल सितम्बर से फरवरी का होता है। यही काल मंदिर अवलोकन के लिए भी सर्वोत्तम है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ की उष्णता एवं आर्द्रता कष्टकर हो सकती है। जून से सितम्बर के मध्य यहाँ भारी वर्षा का अनुमान सदा रहता है। भारी वर्षा की स्थिति में यात्रा में कुछ कष्ट हो सकता है, जैसे सड़कों की परिस्थिति, वर्षा के कारण बाहर ना निकल पाना, स्वास्थ्य आदि। किन्तु जिन्हें वर्षा ऋतु प्रिय है तथा जिन्हें वर्षा ऋतु मार्ग का रोड़ा प्रतीत नहीं होती, उन्हें वर्षा ऋतु में भी उडुपी में आनंद आएगा क्योंकि मानसून में इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य एवं हरियाली अपनी चरम सीमा पर होती है।

परिवहन एवं आवास

उडुपी पहुँचने के लिए निकटतम विमानतल मंगलुरु है। यह उडुपी से लगभग ५५ किलोमीटर दूर स्थित है। आप मंगलरू से टैक्सी अथवा बस द्वारा उडुपी पहुँच सकते हैं। यदि आपको रेल यात्रा भाती है तो आप रेल द्वारा भी यहाँ पहुँच सकते हैं। उडुपी रेल मार्ग द्वारा देश के सभी भागों से जुड़ा हुआ है। यदि आप बंगलुरु से आ रहे हैं तो आप कारवार एक्सप्रेस अथवा विस्ताडोम द्वारा यात्रा कर सकते हैं। बंगलुरु से उडुपी तक, लगभग ८ घंटों की यात्रा में आपको पश्चिमी घाटों के अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने का अवसर प्राप्त होगा। बंगलुरु, मुंबई, पुणे, मंगलुरु जैसे देश के सभी प्रमुख नगरों या शहरों से उडुपी के लिए बस सेवायें भी उपलब्ध हैं।

उडुपी अनेक वर्षों से एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल रहा है। इसीलिए यहाँ लघुकालीन आवासों, विश्राम गृहों, होटलों तथा रिसोर्ट की कोई कमी नहीं है। आपके सामर्थ्य के भीतर आपको लघुकालीन आवासों, विश्राम गृहों, होटलों तथा रिसोर्ट के अनेक पर्याय उपलब्ध हो जायेंगे। आपको सभी स्थानों पर स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन भी आसानी से प्राप्त हो जाएगा।

यह संस्करण IndiTales Internship Program के अंतर्गत अक्षया विजय ने लिखा है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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