अयोध्या नगरी की यात्रा करने की अभिलाषा मुझे कई वर्षों से थी। जहाँ भगवान् राम का जन्म हुआ, जहाँ महाकाव्य रामायण की शुरुवात हुई और जहाँ रामायण का समापन भी हुआ। जिसके बारे में भारत वर्ष में पैदा हुआ बच्चा बच्चा जानता है, भले ही उसे उस नगरी के यथार्थ भौगोलिक स्थिति का ज्ञान तक ना हो। मैंने जबसे यात्रायें करनीं आरम्भ कीं हैं, तब से मैं अयोध्या पर लिखी गई यात्राविवरण अथवा संस्मरण की तलाश कर रही थी, परन्तु मुझे कुछ मिला नहीं। जो कुछ मिला वह अयोध्या नगरी के बारे में ना हो कर राम जन्मभूमि को लेकर चल रहे विवादों के बारे में था।
अयोध्या नगरी हिन्दुओं के सात पवित्र नगरों, सप्तपुरी, में से एक है। इसलिए यह हिन्दुओं का तीर्थस्थान है। यह एक दर्शनीय स्थल है। पर आधुनिक काल में, इन सातों पवित्र स्थानों में से अयोध्या नगरी के दर्शन करने सबसे कम दर्शनार्थी पहुंचाते हैं। पिछले अक्टूबर में मैंने जब यात्रा की, तब वहां बहुत ही कम पर्यटक और दर्शनार्थी मौजूद थे। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें से मुख्य है मूलभूत सुविधाओं की कमी। परन्तु लखनऊ से कुछ ही घंटों की दूरी पर स्थित होने के कारण इनकी कमी ज्यादा खलती नहीं।
सप्तपुरी अर्थात भारत के सात पवित्र शहर इस प्रकार हैं – अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन और द्वारिका।
अयोध्या नगरी के दर्शनीय स्थल
मुख्य दर्शनीय स्थल कुछ इस प्रकार हैं –
अयोध्या नगरी के मंदिर
मंदिरों का शहर है। कुल कितने मंदिर हैं अयोध्या में, यह कहना तो असंभव है, पर चलिए इनमें से कुछ मुख्य मंदिरों से आपका साक्षात्कार कराती हूँ।
राम जन्मभूमि मंदिर
यह मंदिर जिस जगह स्थित है उसे भगवान राम की जन्मभूमि माना जाता है। १६वीं शताब्दी के अंतिम चरण में इस मंदिर के ऊपर एक मस्जिद बना दी गयी थी। २०वीं शताब्दी के अंतिम चरण में यहाँ पर फिर मंदिर का निर्माण करने हेतु इस मस्जिद को तोड़ दिया गया था। भूतकाल में हुईं इन घटनाओं का लोगों की भावनाओं से जुड़ें होने के कारण राम जन्मभूमि मंदिर आज भी भारत का सबसे विवादित स्थल है। यहाँ सुरक्षा के किये गए इंतजाम इतने कड़े हैं जितनें मैंने इससे पहले कभी कहीं नहीं देखा।
इस मंदिर में प्रवेश से पहले हमें हमारे साथ की सारी वस्तुएं जमा करनीं पड़तीं हैं। सुरक्षा जांच की कई परतों से गुजरना पड़ता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए एक संकरी गली पार करनी पड़ती है जहाँ से बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता है। आप पर छापामार सैनिकों की तीखी नजर हर समय बनी रहती है। मोर्चाबंदी की छत पर नाचते बंदरों को देख मुझे हंसी आ गयी। स्वच्छंद घूमते बंदर मानों पिंजरे में बंद हमें देख कर उछल उछल कर आनंद ले रहें हों।
मंदिर पहुँचने के लिए जब मैं गली पार कर रही थी, मंदिर दर्शनार्थ उत्तेजना भी थी और उत्सुकता भी। पर वहां पहुँच कर मंदिर को देखते ही मेरी आँखों में आँसू आ गए। मंदिर के नाम पर वहां सिर्फ एक स्विस तम्बू का ढांचा था। तम्बू में बैठी रामलला की मूर्ति सैनिकों और बंदरों से घिरी हुई थी। दर्शनार्थियों को तम्बू में बैठे रामलला को करीब २० फीट की दूरी से देखकर ही संतुष्ट होना पड़ता है और वह भी सिर्फ एक-आध मिनट के लिए। इस एक मिनट में भी मुझे यह अहसास हो गया कि इस मंदिर का आकार बहुत छोटा है। मैं सोचने लगी कि क्या यह मंदिर कभी किसी भव्य मंदिर का हिस्सा हुआ करता था? यह तथ्य जानने का कोई मार्ग भी नहीं था। हमारे और मंदिर के बीच एक बाड़ बनी हुई थी जिसके ऊपर बैठे पुजारी जी ने हमें प्रसाद दिया और दक्षिणा ग्रहण की। बहुत भारी मन से मैं मंदिर के बाहर आई। श्रद्धा का कोई भी पवित्र स्थल ऐसे युद्ध भूमि नहीं हो सकता।
हनुमान गढ़ी मंदिर
हनुमान गढ़ी मंदिर अयोध्या का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान् राम ने जीवन त्याग कर सरयू नदी में समाधी लेने का निश्चय किया तब उन्होंने हनुमान को बुलावा भेजा और उन्हें अपनी अयोध्या की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी। अयोध्या पर नजर रखने के लिए हनुमान एक पहाड़ पर बैठ गए। ऐसा माना जाता है कि उसी पहाड़ पर हनुमान गढ़ी मंदिर बनाया गया है।
यह एक छोटा सा सुन्दर मंदिर है। यहाँ पहुँचने के लिए बहुत सारी ऊंची ऊंची सीडियां चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ की एक गुप्त जानकारी आपको बतादूँ कि मंदिर के पिछवाड़े से भी एक रास्ता है जिस पर चढ़ाई थोड़ी कम है। हनुमान गढ़ी मंदिर की सबसे स्पष्ट स्मृति है उसके चटक रंग और उसका भव्य नक्काशीदार चाँदी का द्वार।
मंदिर में हनुमान मूर्ती के स्थान पर एक अनियमित आकर का पत्थर रखा हुआ है।
आप जब भी हनुमान मंदिर के दर्शन करने जाएँ, उसकी छत पर अवश्य जाएँ। यहाँ से सम्पूर्ण अयोध्या नगरी के दर्शन किये जा सकते हैं। यदि आपके पास परिदर्शक हो तो वह आपको अयोध्या के सारे मुख्य स्थल वहां से दिखा सकता है। काश समिति ने संकेत पट्टिका ही लगा दी होती जो पर्यटकों को इन स्थलों को पहचानने में सहायता करती।
कनक भवन
इसे मंदिर ना कह कर भवन कहा जाता है क्योंकि यह एक आवास ग्रह है। मेरे अनुमान से यह अयोध्या का सबसे सुन्दर मंदिर है। इसके मुख्य द्वार पर स्थित रंगीन नक्काशीदार कोटरिका युक्त मेहराब बेहद मनमोहक है। मंदिर के बीचोंबीच नक्काशीदार दीवारों और झरोखों से घिरा एक आँगन है। इस मंदिर की दंतकथा सुनने से पहले ही मुझे यहाँ एक तेजवान नारीसुलभ शक्ति की अनुभूति हुई।
ऐसा कहा जाता है कि राजा दशरथ की सबसे छोटी रानी और राम की सौतेली माता कैकेयी ने यह महल सीता को उनके विवाहोपरांत मुंह दिखाई में दिया था। कनक भवन उसी महल का वर्त्तमान रूप है। मेरे परिदर्शक के अनुसार इस स्थान पर अलग अलग समय पर अलग अलग मंदिरों का निर्माण किया गया। मंदिर के मुख्य दीवार पर लगी पट्टिका त्रेता युग, द्वापर युग और अब तक, समय समय पर किये गए नवीनीकरण व उनके उत्तरदायीयों के नामों का विस्तृत ब्यौरा देती है।
कनक भवन के मंदिर में राम और सीता की अप्रतिम मूर्तियाँ हैं। यहाँ प्रसाद के रूप में भी राम और सीता के प्रतिरूप दिए जाते हैं। हमने इस मंदिर के दर्शन संध्याकाल में किये थे जब भगवान् की संध्या आरती की जा रही थी। मूर्ती के समक्ष विराजमान भक्तागण भक्ति से ओतप्रोत भजन गा रहे थे।
अयोध्या के घाट
नगरी सरयू नदी के किनारे स्थित है। सरयू या सरजू रामायण का एक अभिन्न अंग है। घाट किनारे स्थित अन्य पवित्र शहरों की तरह सरयू नदी के घाटों के पीछे भी अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
गुप्तार घाट
मेरी यात्रा गुप्तार घाट से ही आरम्भ हुई थी जो फैजाबाद में सरयू के दूसरे तट पर स्थित है। यह एक अनूठा शांत घाट है जिस पर हल्के पीले रंग का एक भव्य मंदिर है। यहाँ से चाट पकौड़ों की दुकानों के बाजू में कुछ रंगबिरंगी नावें भी दिखायी दे रहीं थीं। उन्ही में से एक नाव पर सवार होकर हमने अयोध्या की तरफ यात्रा की शुरुआत की। कुछ लोग वहां रेत के टापुओं पर अंतिम क्रिया सम्पन्न कर रहे थे।
गुप्तार घाट से जुडी दंतकथा कहती है कि भगवान् राम ने सरयू नदी में जलसमाधि लेने हेतु इसी घाट से प्रवेश किया था।
सरयू नदी का पाट अत्यंत चौड़ा है। उस पर लम्बी नौका सवारी का आनंद लिया जा सकता है। हमें नदी किनारे कई पक्षियों के भी दर्शन हुए। जैसे जैसे हम नगरी की तरफ बढ़ रहे थे, हमें नगरी की क्षितिजरेखा दिखाई पड़ने लगी।
झुनकी घाट
गुप्तार घाट से नाव द्वारा अयोध्या जिस घाट पर पहुंचे वह था झुनकी घाट। वाराणसी के घाटों से कहीं ज्यादा स्वच्छ और भव्य। इस पर ताज़ी सफेदी की हुई थी। मेरे गले में पड़ी चटक गेंदे की माला मुझे इस स्थान का एक अभिन्न अंग महसूस करा रही थी। यह इतना साफसुथरा और शांत घाट है कि इस पर सैर करने का एक अलग ही आनंद है।
लक्षमण घाट
झुनकी घाट से थोड़ा आगे जाने पर लक्षमण घाट पड़ता है। इस घाट से जुड़ी यह मान्यता है कि राम के भ्राता लक्षमण ने इसी घाट पर जलसमाधि ली थी।
सरयू आरती
शाम के समय हमने घाट पर सरयू आरती में भाग लिया। मैंने इससे पहले ऐसी आरती वाराणसी में गंगा की और बटेश्वर में यमुना की देखी थीं। मेरे अनुमान से यह एक नयी शुरुआत है। जैसे जैसे शहरों का विकास होता है, नए नए अनुष्ठान भी जुड़ते चले जाते हैं। नदियों के घाटों पर संध्या आरती भी २१वीं सदी का नवीन अनुष्ठान प्रतीत होता है। कुछ भी कहिये, हजारों की संख्या में नदी में तैरते, जलते हुए मिट्टी के दिए, यह एक अत्यंत ही मनोहार दृश्य होता है।
आरती के दौरान जब सारे पंडित बड़े बड़े पीतल के दीयों के समूह को घुमाते है, हम एक अनोखे आध्यामिक भावना से ओतप्रोत हो जाते हैं। वहां बजते संगीत और भजन इस प्रभामंडल को चार चाँद लगा देते हैं। मुझे ऐसी आरती में बहुत आनंद आता है। वाराणसी में गंगा आरती मेरी अब तक की सबसे अधिक यादगार और आनंददायक आरती रही है।
अयोध्या में राम की खोज
हम में से अधिकांश के लिए अयोध्या प्रतीक है राम का, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। अर्थात सर्वगुण सम्पन्न महापुरुष जिन्होंने अपना सारा जीवन सिद्धांतों और आदर्शों के दायरे में व्यतीत किया। मैं जानना चाहती थी कि अयोध्या में आज राम के क्या मायने हैं। मैंने यहाँ कुछ लोगों से चर्चा की और जाना की अयोध्या में राम को अलग अलग स्वरुप में मान्यता प्राप्त है। कुछ लोग उनके शिशु रूप अर्थात रामलला को पूजते हैं। माताओं के लिए राम एक पुत्र की तरह है, वहीँ युवाओं के लिए एक सखा। इसी तरह सीता की नगरी मिथिला में उन्हें वर रूप अर्थात जमाई की मान्यता प्राप्त है। उन्हें देखने का कोई एक नजरिया नहीं है।
हरिधाम के स्वामी दिनेशाचार्य ने मुझे श्रेष्ठ शब्दों में समझाया कि राम के क्या मायने हैं और क्यों दर्शनार्थियों को अयोध्या पधारना चाहिए। उनके अनुसार राम का आयुष्य हमें मर्यादी व सदाचारी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। राम और उनकी नगरी हमें एक अच्छा इंसान बनाना सिखातें है। उनके साथ हुई मेरी चर्चा इस विडियो में आप सुन सकते हैं।
अयोध्या अनुसंधान केंद्र
नगरी के बीचों बीच स्थित, अपेक्षाकृत नवीन, अयोध्या अनुसंधान केंद्र का लक्ष्य है विभिन्न ललित कलाओं द्वारा दर्शाए गए रामायण का संकलन और प्रलेखन। भारत के कोने कोने में रामायण की गाथा सुनाई जाती है। इसके अलावा रामायण की गाथाएँ दक्षिणपूर्व एशिया – जैसे थाईलैंड, इंडोनेशिया में भी जानी जाती हैं। श्रीलंका तो रामायण का एक अभिन्न अंग है ही।
अयोध्या अनुसन्धान केंद्र में विभिन्न ललित कलाओं द्वारा दर्शाए गए रामायण का अनुभव लिया जा सकता है। एक सम्पूर्ण भित्ति पर रामायण को मधुबनी चित्रकारी द्वारा दर्शाया है। रंगीन ज्यामितीय आकृतियाँ द्वारा रामायण की जानी मानी गाथाओं को सुन्दर रूप से चित्रित किया गया है। उड़ीसा के पटचित्र शैली में भी रामायण अत्यंत लुभावना लग रहा था। विभिन्न शैलियों के रामलीला में इस्तेमाल होने वाले मुखौटों का भी यहाँ संग्रह है।
इस अनुसंधान केंद्र के पहिले मंजिल पर रामायण के विभिन्न द्रश्यों को एक चित्र श्रंखला द्वारा दर्शाया है। यहाँ पर एक मानचित्र ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। उस नक़्शे पर वह सब स्थल अंकित हैं जहाँ जहाँ रामायण के विभिन्न प्रसंग घटित हुए थे। मेरे अनुभव से यह एक अद्भुत अनुसन्धान है।
मुझे यहाँ जानकारी दी गयी कि इस अनुसन्धान केंद्र में प्रत्येक दिवस रामायण अभिनीत होता है। मेरी इस यात्रा के दौरान मुझे यहाँ रामायण देखने का सौभाग्य नहीं मिला। संभवतः अगली अयोध्या यात्रा के दौरान मैं यह अभिनय देख पाऊँ ऐसी आशा लेकर मैं केंद्र से बाहर आ गयी।
अयोध्या नगरी
अयोध्या नगरी विभिन्न रंगों में रंगी नगरी है, मानो इस पर रंगों की बौछार हुई हो। हर घर, हर आश्रम चटक रंगों में रंगा, अयोध्या को सजीव और चमकदार रूप प्रदान करता है। यहाँ की संकरी गलियां सायकल, मोटर और इंसानों के क्रियाकलापों से गुंजायमान रहतीं हैं। सही मायनों में यह एक अनोखा और अद्भुत शहर है।
आवश्यक सूचनाएं
- आप जब रामजन्मभूमि मंदिर के दर्शन करने जाएँ, तो अपना पहचान पत्र अवश्य अपने साथ रखें। विदेशी नागरिकों के लिए पासपोर्ट आवश्यक है। सुरक्षाकर्मी आपसे आपकी पहचान और कुछ सवाल पूछ सकते हैं। मांगी गयी सारी जानकारी उन्हें सही सही दें। इससे आपको भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- अयोध्या संकरी गलियों का छोटा शहर है। इसे सर्वोत्तम ढंग से पैदल चलते ही देखा जा सकता है। हालाँकि यहाँ आपकी सुविधा के लिए रिक्शेवाले भी मौजूद रहतें हैं।
- अप्रैल माह में रामनवमी व नवम्बर माह में दिवाली, यह भगवान् राम से जुड़े दो प्रमुख त्यौहार हैं। यह धूमधाम से मनाईं जातीं हैं। यदि आप इनमें सम्मिलित होने की इच्छा रखते हैं तो उत्सवों की तारीखें पहले से पता कर अग्रिम योजना बनाने का प्रयत्न करें।
- रहने की व्यवस्था प्रचुर मात्रा में नहीं है। ज्यादातर व्यवस्था धर्मशाला के रूप में विभिन्न मंदिरों व समाजों में उपलब्ध है। यदि आप सुखसुविधायें युक्त होटल चाहें तो आपको लखनऊ में यह व्यवस्था मिल जायेगी। आशा करती हूँ कि जल्द ही रहने की बेहतर और प्रचुर व्यवस्थाएं उपलब्ध होंगीं।
- भोजन यहाँ ज्यादातर सादा व शाकाहारी होता है। हमनें यहाँ जिस आश्रम में भोजन किया वहां सात्विक थाली परोसी गयी जो ना केवल शाकाहारी थी, बल्कि प्याज व लहसुन रहित भी थी।
- कृपया ध्यान रखिये अयोध्या एक पवित्र नगरी है। उसकी संस्कृति व लोकाचार का सम्मान करें।
जैसा कि अयोध्या में कहा जाता है- “ जय सिया राम ”
भारत के अन्य मंदिर
शिवसागर या सिबसागर – असम में मंदिरों की नगरी
तंजौर उर्फ तंजावुर का विराट बृहदीश्वर मंदिर – एक विश्व धरोहर
गोवा के प्राचीन सारस्वत मंदिर – अपनी विशिष्ट वास्तुकला के साथ
जागेश्वर धाम – कुमाऊं घाटी में बसे शिवालय
मोढेरा सूर्य मंदिर – अद्वितीय वास्तुशिल्प का उदाहरण
करणी माता मंदिर — बीकानेर, राजस्थान में मूषकों का अनोखा साम्राज्य
Thanks for the nice spiritual information.
धन्यवाद