जब मैं बंगलुरु से गुरुग्राम स्थलांतरित हो रही थी तब मुझे भय मिश्रित उल्हास का अनुभव हो रहा था। भय इसलिए कि ग्रीष्म ऋतु में गुरुग्राम का वातावरण कष्टदायक हो जाता है। उल्हास इसलिए कि दिल्ली में प्रत्येक ऋतु के अनुसार अनेक प्रकार के व्यंजनों एवं पेय पदार्थों की भरमार रहती है। मैं पुनः उसका आस्वाद लेने के लिए आतुर हो रही थी।
बंगलुरु में सामान्यतः वर्ष भर के वातावरण में अधिक परिवर्तन नहीं होता है। उसी प्रकार वहाँ खाने-पीने के पदार्थ भी वर्ष भर वही रहते हैं। किन्तु दिल्ली जैसे स्थानों में, जहां वर्ष भर जलवायु की स्थिति निरंतर परिवर्तित होती रहती है, व्यंजनों की सूची भी ऋतु के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
ग्रीष्म ऋतु में दिल्ली में सभी ओर शीतलता प्रदान करने वाले भारतीय शीतल पेय एवं रसीले व्यंजन उपलब्ध रहते हैं। वहीं शीत ऋतु में सूखे मेवे एवं शुद्ध घी से युक्त गरिष्ठ भोजन खाया जाता है जो शरीर को उष्मा प्रदान करते हैं। वर्षा ऋतु भी इनसे अछूता नहीं है। वर्षा ऋतु आते ही गर्म गर्म भजिये एवं भाप निकलती चाय का स्मरण होने लगता है।
ग्रीष्म ऋतु के शीतलता देते भारतीय शीतल पेय
गुरुग्राम आकर मैंने ग्रीष्म ऋतु के शीतलता प्रदायक पेय का आनंद पुनः प्राप्त किया। वह चाहे शरबत हो या फलों का रस, नींबू पानी हो या ठंडाई, आम का पन्ना हो या ठंडी चाय। मेरी शीतल स्मृतियाँ पुनः जीवित होने लगी थीं।
उन्ही स्मृतियों के पिटारे से मैं आपके लिए भी कुछ उत्तम शीतल पेय ढूंड कर लाई हूँ। आईये उन्ही भारतीय शीतल पेय के विषय में जाने, उन्हें बनाएं एवं उनका आनंद उठायें।
१. आम पन्ना
यह एक सर्वसामान्य भारतीय ग्रीष्मकालीन पेय है। इसे कच्चे आम से तैयार किया जाता है जिसे कैरी भी कहते हैं।
कच्चे आम को छिलके सहित पानी में उबला जाता है। कहीं कहीं कच्चे आम को छिलके सहित सिगड़ी की आंच में डालकर भूना जाता है। तत्पश्चात इसे धोकर प्रयोग में लाया जाता है। पकी हुई कैरी का गूदा निकालकर स्वादानुसार उसमें शक्कर अथवा गुड़, नमक, जीरे का चूर्ण या इलायची आदि डालकर ठंडा किया जाता है।
भिन्न भिन्न क्षेत्रों में पन्ने के स्वाद में किंचित भिन्नता हो सकती है किन्तु यह पेय सबको प्रिय होता है। आजकल आम पन्ने का बना-बनाया अर्क भी बाजार में उपलब्ध है। उसमें केवल पानी मिलाना पड़ता है। हल्दीराम एवं बीकानेरवाला जैसे कई पारंपरिक जलपानगृहों ने इसे अपनी व्यंजन सूची में सम्मिलित किया है।
इसे घर में कच्चे आम से स्वयं बनाना भी कम आनंददायक नहीं है। अपने हाथों से मसलकर इसका गूदा निकलना तथा अपने अनुसार इसके स्वाद में परिवर्तन करना एक उपलब्धि का अनुभव देता है।
२. आंवले का रस
यूँ तो इस पेय को मैं बालपन से नहीं जानती हूँ, किन्तु इस ग्रीष्म ऋतु में मैंने इस पेय का ही सर्वाधिक आनंद उठाया है। आप ताजे आंवलों से स्वयं ही यह पेय बना सकते हैं किन्तु मैंने बाजार में उपलब्ध आंवले के रस का प्रयोग किया है।
इस रस में पानी, नमक, चाहें तो थोडा हींग, चाट मसाला, काली मिर्च का चूर्ण आदि डालकर अपने स्वाद के अनुसार बनाएं। एक शीतल पेय तैयार है। यह ग्रीष्म ऋतु में आपके शरीर को शीतलता प्रदान तो करेगी ही, साथ ही यह आपके शरीर को स्वस्थ एवं रोगनिरोधक भी बनायेगी।
३. बेल शरबत
बेल एक ऐसा फल है जो बाहर से अत्यंत कड़क होता है तथा इसके भीतर नारंगी-पीले रंग का गूदा होता है। इसे तोड़कर इसका गूदा निकलना पड़ता है। गूदे में पानी एवं शक्कर डालकर पिया जाता है। इसे ऐसे ना पीना चाहें तो इसमें नींबू , संतरा, लीची आदि का रस डालकर भी इसका स्वाद बढ़ाया जा सकता है। मुझे यह नींबू के रस के साथ प्रिय है। यदि आपको इसमें तैरते कण ना भायें तो आप इसे मिक्सर में डालकर एकजीव कर सकते हैं।
एक फल से अनेक लोगों के लिए पेय तैयार किया जा सकता है। बेल फल तोड़ने के पश्चात बचे हुए गूदे को फ्रिज में जमा कर रख सकते हैं तथा आवश्यकतानुसार जितना चाहिए, बाहर निकाल सकते हैं। इसकी शीतलता प्रशंसनीय होती है। आप इसकी शीतलता को अपने शरीर में अनुभव कर सकते हैं। इसमें कदापि आश्चर्य नहीं कि शिवरात्रि के दिन इसे भगवान शिव को भी अर्पित किया जाता है।
४. जलजीरा – सर्वाधिक लोकप्रिय भारतीय शीतल पेय
यह भी उत्तर भारत का एक लोकप्रिय पेय है जिसका सेवन ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है। उत्तर भारत में ग्रीष्म ऋतु में अनेक विक्रेता सड़क के किनारे ठेले लगाकर जलजीरा की विक्री करते हैं। आप उन ठेलों को दूर से ही पहचान जायेंगे।
ठेलों में बड़े बड़े मटके रखे होते हैं जिन पर वे लाल रंग का कपड़ा पानी में भिगोकर लपेट देते हैं। इससे भीतर का पेय अधिक शीतल रहता है। ठेले में पुदीने के पत्तों तथा नींबू का ढेर भी रहता है। पूरा का पूरा ठेला एक शीतलता का आभास देता है। विक्रेता जलजीरे में आपकी आवश्यकतानुसार पानी या सोडा, नमक व मसाले आदि डालकर देते हैं।
घर में जलजीरा बनाना हो तो आप बाजार से जलजीरे का चूर्ण ले आईये। जलजीरे का चूर्ण घर पर भी बनाया जा सकता है। इस चूर्ण में स्वादानुसार पानी या सोडा, नमक, नींबू का रस आदि डालकर पुदीने के पत्तों से सजाकर एक शीतल पेय तैयार किया जा सकता है। इसमें अदरक का रस भी डाल सकते हैं। ऊपर से नमकीन बूंदी डालकर पीने से इसका आनंद दुगुना हो जाता है।
५. खस का शरबत
बाजार में आपने हरे रंग का शरबत देखा होगा जिस पर खस का शरबत लिखा होता है। खस एक सुगन्धित घास होती है जो ४ से ५ फीट ऊँची होती है। खस का शरबत इस पौधे की जड़ से तैयार किया जाता है।
इसमें अनेक औषधीय घटक उपस्थित हैं। यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है तथा तुरंत उर्जा प्रदान करता है। ग्रीष्म ऋतु की उष्मा भरी दुपहरी में यह तुरंत शीतलता प्रदान करता है। खस शरबत में पानी मिलाकर पिया जाता है। इससे तृष्णा शांत होती है।
६. लस्सी – भारतीय शीतल पेय
दही से बने इस पेय को पंजाब का राज्य पेय कहा जा सकता है। पंजाब में नमकीन एवं मीठी लस्सी अवश्य अत्यंत प्रचलित है तथा बड़ी मात्रा में इसका सेवन किया जाता है। किन्तु संचार माध्यमों, दूरदर्शन के धारावाहिकों, चित्रपटों आदि में पंजाब एवं लस्सी को लगभग पर्यायवाची शब्द मान लिया गया है।
एक चित्रपट में तो कपड़े धोने के विशाल यंत्र में लस्सी बनाते दिखाया गया है। यह कितना सत्य है, ज्ञात नहीं। सत्य ना हो तब भी यह दृश्य इस ओर संकेत करता है कि पंजाब में इतनी मात्रा में लस्सी पी जाती है कि सामान्य पात्र उसके लिए पर्याप्त नहीं होते हैं।
लस्सी के नमकीन एवं मीठा दोनों प्रकार प्रचलित हैं। नमकीन लस्सी में धनिया के पत्ते, पुदीने के पत्ते, अदरक या हींग डालकर उसे अधिक स्वादिष्ट किया जाता है। उसी प्रकार मीठी लस्सी में विभिन्न सुगन्धित तत्व तथा आम व केले जैसे फल डालकर उसके गंध व स्वाद में परिवर्तन किया।
लस्सी और छाछ दोनों को भारतीय थाली के साथ परोसा जाता है।
७. गुलाब का पेय या रूह-अफजा
यह एक प्राचीन पेय है। मुझे स्मरण है मेरे बालपन से मैं दूरदर्शन पर रूह-अफजा के विज्ञापन देखती आ रही हूँ।
इसे गुलाब की पंखुड़ियों से बनाया जाता है। बाजार में यह शरबत गहरे गुलाबी रंग के अर्क के रूप में उपलब्ध है। उसमें मिठास पहले से ही होती है। केवल पानी डालकर व ठंडा कर पिया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में यह अत्यंत शीतलता प्रदान करता है, विशेषतः यदि आप चिलचिलाती धूप झेलकर घर आये हों।
इसके द्वारा शीतल पेय के अनेक अन्य प्रयोग किये जा सकते हैं। इस शरबत में पानी के स्थान पर ठंडा दूध भी डाला जा सकता है। मुझे रूह-अफजा का यह रूप अधिक प्रिय है। यह दही की मीठी लस्सी में भी अत्यंत रुचिकर प्रतीत होता है। तरबूज के रस में नींबू एवं रूह-अफजा डालकर आप एक नवीन पेय तैयार कर सकते हैं।
८. सत्तू – एक स्फूर्तिदायक पेय
यद्यपि यह बिहार राज्य एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में एक लोकप्रिय स्फूर्तिदायक शीतल पेय के रूप में उपलब्ध है, तथापि इसके विषय में अब अन्य क्षेत्रों के वासियों में भी जागरूकता बढ़ रही है। अब यह देश के अन्य भागों में भी उपलब्ध होने लगा है तथा सभी चाव से इसका सेवन करते हैं। यह भारत के भीतर वैश्वीकरण का एक उत्तम उदहारण है जहां हमें देश के कोने कोने में भारत के विविधता से परिपूर्ण व्यंजनों का आस्वाद लेने का अवसर मिल रहा है।
सत्तू के दो प्रमुख प्रकार हैं, एक चने की दाल से बनाया जाता है तथा दूसरे में जौ का प्रयोग किया जाता है। सत्तू के अन्य प्रकार भी प्रचलन में हैं किन्तु मैंने उनका स्वाद चखा नहीं है। इसे आप घर पर आसानी से बना सकते हैं। खड़ी दालों को भूनकर चक्की में पीसा जाता है। आवश्यकतानुसार मात्रा पानी में डालकर शीतल पेय बनाया जाता है। यदि घर पर ना बनाना चाहें तो बाजार में बनाबनाया चूर्ण भी उपलब्ध होता है।
सत्तू के पेय को मीठा व नमकीन दोनों प्रकार से बनाया जाता है। नमकीन सत्तू में नमक व नींबू का रस डाला जाता है, वहीं मीठे सत्तू में गुड़ डाला जाता है। यह पौष्टिक होने के साथ साथ तुरंत शीतलता प्रदान करता है। ग्रीष्म ऋतु के लिए यह अत्यंत लाभकारी पेय है।
९. अन्य शरबत एवं फलों के रस
बाजार में अनेक स्वाद व सुगंध के शरबत के अर्क उपलब्ध हैं। साथ ही डिब्बे-बंद फलों के रस भी उपलब्ध हैं। उनमें संतरा, अनानास, सेब, लीची, आम आदि सामान्य हैं। ये भारत के स्थानीय स्वाद हैं।
भारत के वैश्वीकरण के चलते अब विदेशी स्वाद भी भारत के बाजार में उपलब्ध होने लगे हैं व लोकप्रिय होने लगे हैं। जैसे क्रैनबेरी, ब्लूबेरी, किवी आदि।
मुझे उपलब्ध शरबतों में लेमन बार्ली अत्यंत प्रिय है।
१०. शिकंजी – लोकप्रिय भारतीय शीतल पेय
उत्तर भारत में सामान्य नींबू पानी को शिकंजी कहा जाता है। इसे नमकीन तथा मीठा, दोनों स्वादों में बनाया जाता है। इसमें पानी के स्थान पर सोडा भी डाला जाता है जो जलपानगृहों में अत्यंत लोकप्रिय है। आप नींबू पानी अथवा नींबू सोडा में अपने मनपसंद मसाले डालकर घर पर ही अपना प्रिय पेय बना सकते हैं। जैसे चाट मसाला, भुने जीरे का चूर्ण, अमचूर का चूर्ण, अदरक, पुदीने व धनिये के पत्ते आदि। ग्रीष्म ऋतु में ऊष्मा के कारण हमारे शरीर से जल व लवणों की क्षति होती है। यह पेय जल एवं क्षय लवणों की आपूर्ती करता है।
दिल्ली से मेरठ की ओर जाते मार्ग पर मोदीनगर है जहाँ की मसाला शिकंजी प्रसिद्ध है। आप जब भी उस मार्ग पर जाएँ तो इसका आस्वाद अवश्य लें। यद्यपि शिकंजी घर में आसानी से बनाई जा सकती है, तथापि जलपान गृहों में नींबू पानी तथा नींबू सोडा में पुदीने व धनिये के पत्ते आदि डालकर इन्हें अनेक आधुनिक नाम दिए जाते हैं तथा ऊँचे दामों पर इनकी विक्री की जाती है।
११. बंटावाला सोडा
यह शिकंजी का ही सड़क पर विक्री किया जाने वाला प्रकार है। इसमें नींबू के रस में सोडा डाला जाता है। यह सोडा विशेष बोतल में उपलब्ध होता है जिसमें एक कंचे द्वारा बोतल का मुंह बंद रहता है। इस कांच के कंचे को बंटा भी कहते हैं। इसलिए इस सोड़ा का यह नाम पडा। इसी से इस पेय का भी नामकरण हुआ।
यह देश भर के मार्गों का सर्वव्यापी पेय है। पूर्व में इसे कांच के गिलास में डालकर दिया जाता है। अब इसका रूप किंचित आधुनिक हो गया है जिसमें इस पैय को प्लास्टिक के ग्लास में भरकर, उस पर प्लास्टिक का ढक्कन लगाकर पीने की नली के साथ दिया जाता है।
१२. ठंडाई
यह एक उर्जादायक शीतल पेय है जिसमें बादाम, अन्य सूखे मेवे एवं मसाले डाले जाते हैं। यह एक मीठा एवं किंचित गरिष्ठ पेय है जिसे दूध में बनाया जाता है। इसे आप घर पर बना सकते हैं। बाजार में भी इसका बनाबनाया चूर्ण उपलब्ध है जिसे दूध में मिलाया जाता है।
सामान्यतः इस पेय का संबंध होली से लगाया जाता है। किन्तु इसे सम्पूर्ण ग्रीष्म ऋतु में पिया जा सकता है। होली का पर्व भी तो ग्रीष्म ऋतु में ही आता है।
१३. ठंडी चाय
यद्यपि यह भारत का पारंपरिक ग्रीष्मकालीन पेय नहीं है तथापि आधुनिक जलपान गृहों अथवा कैफे आदि में उपलब्ध यह शीतल पेय का एक उत्तम विकल्प है। यह ठंडी काली मीठी चाय होती है। अन्य तत्वों द्वारा इसके स्वाद में परिवर्तन किया जाता है, जैसे नींबू, आडू आदि। इसे आप घर पर भी आसानी से बना सकते हैं। कम पत्ती एवं अधिक शक्कर डालकर काली चाय बनाएं। उसे ठंडाकर नींबू का रस डालकर परोसें।
१४. गन्ने का रस – भारतीय शीतल पेय
ग्रीष्म ऋतु में यदि आप बाहर जाएँ तो आपको नुक्कड़ नुक्कड़ पर गन्ने के रस के ठेले दृष्टिगोचर होंगे। गन्ने का रस ग्रीष्म ऋतु का एक अत्यंत लोकप्रिय पेय है। इसमें नमक, चाट मसाला, अदरक का रस, नींबू का रस आदि डालकर पिया जाता है। कुछ दिनों पूर्व मैंने गन्ने का रस पिया था उसमें हरी मिर्च भी गन्ने के साथ यन्त्र में डाली गयी थी। उसने गन्ने के रस को एक रोचक स्वाद प्रदान किया था। ग्रीष्म ऋतु में गन्ने का रस क्षय उर्जा की आपूर्ति करता है तथा हमें पुनः उर्जावान बनता है।
अन्य भारतीय शीतल पेय – हमारे पाठकों द्वारा सूचित
१५. मट्ठा, मसाला छाछ
लस्सी के विषय में लिखते समय मट्ठा या मसाला छाछ मुझसे छूट गया था। लस्सी का ही एक रूप है, छाछ या मट्ठा। यह लस्सी का पनियल रूप होता है जो भोजन को पचाने में सहायक होता है। इसे सामान्यतः भोजन के साथ परोसा जाता है, विशेषतः गुजरात तथा दक्षिण भारत में।
इसमें हरी मिर्च, धनिया के पत्ते एवं पुदीने के पत्ते रुचिकर प्रतीत होते हैं। दक्षिण भारत में इस पर राई, कढ़ी पत्ते, लाल सूखी मर्च, हिंग, अदरक आदि का बघार भी दिया जाता है।
१६. कच्चे नारियल का पानी
१७. कोकम शरबत
१८. सोल कढ़ी या कोकम की कढ़ी
कच्चे नारियल का पानी सर्वाधिक पौष्टिक प्राकृतिक शीतल पैय है। गोवा में ग्रीष्म ऋतु में कोकम शरबत तथा सोल कढ़ी का चलन अधिक है। कोकम या सोल या अमसूल लाल रंग का एक खट्टा फल होता है जो कोंकण क्षेत्र में पाया जाता है।
कोकम फल से बीज निकाल कर गूदे को छिलके सहित सुखाया जाता है। इस रूप में यह बाजार में उपलब्ध होता है। इसे पानी में भिगोकर इसका रस निकला जाता है। इस रस में शक्कर डालकर कोकम शरबत बनाया जाता है। यह शरबत बाजार में भी उपलब्ध है।
वहीं कोकम के रस में नारियल का दूध डालकर उसमें नमक, लहसुन, हींग, जीरा डालकर स्वादानुसार परिवर्तन किया जाता है। इसे ऐसे ही पी सकते हैं। गोवा में इसे चावल के साथ भी खाया जाता है। यह शीतलता प्रदान करता है। साथ ही यह पाचन शक्ति में भी वृद्धि करता है।
१९. सरासपरिला या नंनारी शरबत
२०. जिगरठंडा
२१. कुलकन्थु या गुलकंद द्वारा निर्मित गुलाब का दूध
२२. नीरा पेय
मैंने अब तक इन चार पेयों का आस्वाद नहीं लिया है। यूँ कहिये मुझे अवसर प्राप्त नहीं हुआ है। भारत के प्रत्येक राज्य में वहाँ उपलब्ध सामग्रियों के अनुसार शीतल पेय बनते हैं तथा उन्हें स्थानीय भाषा के अनुसार नाम दिए जाते हैं। कभी कभी सामान्य पेय भी स्थानीय भाषा के अनुसार भिन्न नाम से उपलब्ध होते हैं। आशा है मुझे इन पेयों का आस्वाद लेने का अवसर शीघ्र प्राप्त हो।
आप इन शीतल पेयों का आस्वाद इस ग्रीष्मकाल में अवश्य लें। जैसा कि मैंने पूर्व में कहा है, हो सकता है कि आपके क्षेत्र में ये पेय उपलब्ध हैं किन्तु भिन्न नाम से जाने जाते हैं। अथवा किंचित परिवर्तित रूप उपलब्ध हों।
जहां तक संभव हो, कृपया सोडा युक्त पेय का सेवन ना करें। सोडा युक्त पेय का अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। यदि आप को इन पेयों के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रीष्मकालीन शीतल पेय की जानकारी हो तो मुझे अवश्य सूचित करें। मैं उन्हें इस संस्करण में अवश्य सम्मिलित करूंगी ।
इनमें से आपका प्रिय पेय कौन सा है?