१५ सर्वोत्तम शाकाहारी भारतीय थाली भोजन का स्वाद चखें!

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भारतीय थाली अर्थात स्वाद व सुगंध का भव्य उत्सव। इसे चखना किसे प्रिय नहीं होगा?

यदि आप भारतीय हैं तो आप भलीभाँति जानते होंगे कि सम्पूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी संस्कृति को गौरवान्वित करती भिन्न भिन्न भोजन की थालियों की अद्भुत संकल्पना है। यदि आप पर्यटक हैं तो आपको यह जानना आवश्यक है कि भारतीय थाली नाम से कोई एक संकल्पना नहीं है। भारत के प्रत्येक क्षेत्र में थाली का अपना एक समर्पित प्रारूप है।

शाकाहारी भारतीय थाली
शाकाहारी भारतीय थाली

भात व अचार जैसे कुछ व्यंजन भारत के लगभग सभी प्रकार की थालियों में पाए जाते हैं। किन्तु कुछ पकवान ऐसे होते हैं जो उस क्षेत्र विशेष की थाली की विशेषता होते हैं। ये व्यंजन उस क्षेत्र की संस्कृति, सभ्यता एवं वातावरण की झाँकी होते हैं। आईए जानते हैं भारत के प्रत्येक प्रमुख क्षेत्र को समर्पित, उनकी संस्कृति की झलक, ये भोजन की थालियाँ।

स्वयं एक शाकाहारी होने के कारण मैं भारतीय थालियों के शाकाहारी संस्करणों की सीमा में रह कर ही यह प्रस्तुतीकरण कर रही हूँ क्योंकि मेरे स्वाद की सीमा यहीं समाप्त होती है।

भारतीय थाली क्या है?

भारत में रहने वालों के लिए थाली कोई नवीन शब्द नहीं है। किन्तु थाली शब्द से अनभिज्ञ पर्यटकों को मैं बताना चाहूँगी कि जिस भोजन थाली का स्वाद चखने का मैं अनुग्रह कर रही हूँ, वह थाली अंततः क्या है। थाली अथवा थाल शब्द की व्युत्पत्ति थल शब्द से हुई है। थल का अर्थ स्थल अथवा क्षेत्र है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में किसान अपने क्षेत्र की उपज तथा उत्पत्ति का सार एक पत्तल में भरकर राजाओं तथा जमींदारों को भेंट स्वरूप प्रदान करते थे। वह भोजन प्रांतीय पद्धति से निर्मित होता था। वही परंपरा अब भी जारी है। अंतर केवल इतना है कि अब हम मूल्य चुकाकर इन प्रांतीय व्यंजनों का स्वाद चखते हैं।

अधिकतर स्थानों में स्टील की गोलाकार थाली होती है जिस पर भोजन परोसा जाता है। कुछ स्थानों पर पीतल, तांबे तथा कुछ विशेष स्थानों पर चांदी की थालियों में भी भोजन परोसा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी-देवता, राजा तथा धनाड्य व्यक्ति सोने की थालियों में भोजन करते थे। कदाचित वे अब भी सोने की थालियों में ही खाते होंगे।

कुछ स्थानों में थाली में ही कटोरियाँ उत्कीर्णित होती हैं। अधिकतर स्थानों में थाली में अनेक कटोरियों की पंक्ति होती है। एक पूर्ण भरी हुई थाली देख ऐसा प्रतीत होता है मानो महाराज अर्थात रसोईये ने पाककला की ओर अपना सम्पूर्ण प्रेम इस थाली में उड़ेल दिया हो।

सामग्री

आयुर्वेद के अनुसार भारतीय भोजन में ६ रसों का समावेश आवश्यक है। जिव्हा पर स्थित स्वाद कलिकाओं को सक्रिय करते ये ६ रस हैं:

  • मधुर(मीठा)
  • लवण(नमकीन)
  • अम्ल(खट्टा)
  • कटु(कड़वा)
  • तिक्त(तीखा)
  • कषाय(कसैला)

एक उत्तम भारतीय थाली वह होती है जो इन ६ रसों के मध्य संतुलन रखती है। इन ६ रसों का केवल स्वाद ही नहीं, अपितु गंध व रंगों के साथ भी संतुलन आवश्यक है। एक सज्ज भारतीय थाली उसी प्रकार रंगों से ओतप्रोत होती है जैसे एक देश के रूप में भारत है। एक भारतीय थाली में लाल, हरा, भूरा, पीला, श्वेत इत्यादि अनेक रंगों का अद्भुत संगम आँखों में चमक उत्पन्न कर देता है। विभिन्न व्यंजनों से उठती सुगंध इन रसों व रंगों के मिश्रण को एक नवीन ऊंचाई प्रदान करती है। भारत में हाथों से ही भोजन खाने की प्रथा थी। अधिकतर भारतीयों को अब भी हाथों से ही खाने में आनंद आता है। उंगलियों के नीचे चूर होते पापड़ के स्वर कानों में रस घोल देते हैं। देखा जाए तो एक भारतीय थाली हमारी पांचों इंद्रियों को तृप्त करती है।

भारतीय थाली में अनेक प्रकार के अनाज होते हैं जो स्थानीय उत्पाद होते हैं। अतः भारतीय थाली के द्वारा आप किसी भी क्षेत्र के सर्वोत्तम स्थानीय व्यंजनों का आस्वाद ले सकते हैं। भात, रायता तथा कचालू या सलाद बहुधा सभी प्रकार की थालियों का अभिन्न अंग होते हैं।

विदेशी संस्कृति में भोजन को भागों में बांटकर एक के पश्चात एक परोसा जाता है। एक प्रकार से मुझे क्या खाना है तथा किस क्रम में खाना है, यह मैं नहीं अपितु अन्य व्यक्ति चयनित करते हैं। किन्तु जब एक थाली में भारतीय भोजन परोसा जाता है तब कितना खाना तथा किस क्रम में खाना है यह मैं स्वयं तय करती हूँ। कुछ आयुर्वेदिक जानकार कुछ खाद्य पदार्थों में एक विशेष क्रमवार पद्धति की सलाह भी देते हैं।

लस्सी अथवा छाछ अधिकतर भारतीय थाली का अभिन्न अंग होती है। वातावरण के अनुसार आप लस्सी अथवा छाछ में चुनाव कर सकते हैं।

आईए, भारत के विभिन्न क्षेत्रों की विशेषता लिए उनकी थालियों का आस्वाद लें।

राजस्थानी थाली

शाकाहारी राजस्थानी थाली
शाकाहारी राजस्थानी थाली

मेरे विशेष झुकाव के लिए क्षमा करें किन्तु राजस्थानी थाली मुझे सर्वाधिक प्रिय है। इसमें प्रचुर मात्रा में घी का प्रयोग किया जाता है। घी में बनी अनेक प्रकार की स्वादिष्ट मिठाइयां होती हैं। एक राजस्थानी थाली के कुछ विशिष्ट स्वादिष्ट अवयव इस प्रकार हैं:

  • दाल बाटी चूरमा – मरुभूमि का सर्वाधिक प्रसिद्ध भोजन
  • गट्टे की सब्जी – जब ताजी भाजियाँ आसानी से उपलब्ध ना हों तब बेसन से ही सब्जी बनाई जाती है।
  • केर साँगरी – यह एक प्रांतीय जंगली पौधा है जो मरुभूमि में उगता है। केर सांगरी से सब्जी तथा अचार दोनों बनाए जा सकते हैं।
  • बाजरे की रोटी – बाजरे की रोटी सामान्यतः गेहूं की रोटी से किंचित सूखी होती है। अतः प्रचुर मात्रा में घी चुपड़ा जाए तो यह अत्यंत स्वादिष्ट होती है।
  • लहसुन की चटनी
  • खिचड़ी – खिचड़ी दाल, चावल, गेहूं, बाजरा, जवार इत्यादि से बनाया जाता है।
  • कढ़ी – कढ़ी अनेक क्षेत्रों की थालियों का एक अभिन्न अंग होता है। कढ़ी की विशेषता यह है कि प्रत्येक क्षेत्र की कढ़ी की पाकविधी तथा उसका स्वाद भिन्न होता है।
  • सेका हुआ पापड़
  • घेवर – यह एक राजस्थानी पारंपरिक मिठाई है जो अधिकतर वर्षा ऋतु में उपलब्ध होती है।

शाकाहारी बंगाली थाली

शाकाहारी बंगाली थाली
शाकाहारी बंगाली थाली

बंगाली तथा शाकाहारी! आप भी कहेंगे कि बंगाली एवं शाकाहारी ये दो शब्द विरोधाभास दर्शाते हैं। किन्तु मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई थी कि बंगाली पाक शैली में भी शाकाहारी व्यंजनों के अनेक विकल्प हैं जो अत्यंत स्वादिष्ट भी हैं। बंगाल में सब कुछ मीठा है। फिर भोजन इससे अछूता कैसे रहेगा। अतः कदाचित भात छोड़ दें तो आपको यहाँ का प्रत्येक पक्वान्न किंचित मिठास लिए हुए प्रतीत होगा।

एक शाकाहारी बंगाली थाली में आप सामान्यतः इन व्यंजनों का समावेश पाएंगे:

  • मिष्टी दोई – मैंने पूर्व में ही उल्लेख किया है कि बंगालियों को प्रत्येक व्यंजन में थोड़ी मिठास भाती है। एक बंगाली थाली का सर्वाधिक प्रचलित तत्व है मिष्टी दोई अर्थात मीठा दही।
  • बेगुन भाजा – तेल में सेंके हुए बैंगन के मसालेदार कतले
  • आलू पोस्तो – पोस्त अर्थात खसखस के दानों के साथ पकाया हुआ आलू। यह मेल आप बंगाल में ही देखेंगे।
  • लूची – ये मैदे से बनी किंचित छोटे आकार की पूरियाँ हैं। इनका स्वाद भी किंचित भिन्न होता है।
  • रोशोगुल्ला या रसगुल्ला – कोलकाता की इस सुप्रसिद्ध मिष्टान्न के बिना कोई भी बंगाली थाली पूर्ण नहीं होती।
  • सरसों के तेल में पकी दाल, मौसमी भाजियाँ, भात इत्यादि भी भोजन की थाली को सम्पूर्ण बनाती हैं।

गोवा की शाकाहारी थाली

जी हाँ! आपने ठीक पढ़ा। गोवा में शाकाहारी थाली मिलना आसान नहीं हैं किन्तु असंभव भी नहीं है। अब अनेक स्थानों पर शाकाहारी थाली प्राप्त हो जाती है। यदि आप एक मांसाहारी थाली से सभी मांसाहार पृथक कर दें तो केवल भात सलाद एवं सोल कढ़ी ही बचेंगे।

गोवा की शाकाहारी थाली
गोवा की शाकाहारी थाली

एक शाकाहारी थाली में कच्चे केले, आलू, बैंगन, नीर-फनस जैसे स्थानीय भाजियों के कतलों को सूजी में लपेटकर तथा तेल में कुरकुरा सेंक कर मांसाहार के स्थान पर परोसा जाता है। इन्हे ‘फोड़ी’ कहा जाता है। ये कुरकुरे, मुंह में पानी लाने वाले कतले आप केवल गोवा में ही पाएंगे।

भाजियों को नारियल के दूध एवं मसालों के साथ पकाकर स्वादिष्ट रस्सा तैयार किया जाता है। यह शाकाहारी थाली में भात के संग परोसा जाता है। साथ ही मसालेदार उसल, पापड़, अचार भी होते हैं।

दाली तोय – यह आम दाल का एक कम घी तेल का विकल्प है जिसमे पानी की मात्रा अधिक होती है।

एक सूखी भाजी होती है जो स्थानीय उपलब्धता पर निर्भर होती है।

तो यह बन गई गोवा की शाकाहारी थाली।

गुजराती कठियावाड़ी थाली

गुजराती काठियावाड़ी थाली
गुजराती काठियावाड़ी थाली

जैसे भारतीय थालियों के अनेक प्रकार होते हैं, गुजराती थाली में भी अनेक प्रकार हैं। उनमें काठियावाड़ी थाली सर्वाधिक प्रसिद्ध है। बंगाली थाली के समान गुजराती थाली के व्यंजन भी किंचित मिठास लिए होते हैं। आश्चर्य होता है कि भारत का अत्यंत पश्चिमी भाग तथा अत्यंत पूर्वी भाग, दोनों को ही मीठे के प्रति अंधभक्ति है। उस पर गुजरात में लोगों को लहसुन से भी विशेष स्नेह है। उनके कई व्यंजन प्रमुखता से लहसुन प्रधान होते हैं जिनके नाम का आरंभ वे ‘लहसुनिया’ शब्द से करते हैं। असीमित प्रतीत होती थाली के कुछ व्यंजन हैं:

  • टमाटर सेव की सब्जी – मेरे लिए यही सब्जी एक थाली को प्रमुखता से गुजराती थाली बनाती है।
  • पापड़ की सब्जी – इसमें पापड़ से रसदार सब्जी बनायी जाती है।
  • उन्धियो – भिन्न भिन्न भाजियों व मुठिए से बनी अत्यंत गरिष्ट व स्वादिष्ट मिश्रित सब्जी।
  • कढ़ी-खिचड़ी
  • ढोकला, खाँडवी इत्यादी मुह में पानी लाने वाले चटपटे उपहार
  • छोटी छोटी रोटियाँ, बाजरे की रोटी या भाकरी, रोटला
  • देसी घी तथा गुड़ से भोजन की समाप्ति की जाती है।

पंजाबी थाली

मेरी प्रिय पंजाबी थाली
मेरी प्रिय पंजाबी थाली

पंजाबी थालियाँ भी अनेक प्रकार की होती हैं। यहाँ मैं जिस थाली का उल्लेख कर रही हूँ वह मुझे विशेष रूप से प्रिय है। इस थाली को चखने का सर्वोत्तम समय शीत ऋतु है जब ठंडे वातावरण में गुनगुनी धूप में बैठकर अथवा रात्रि में सिगड़ी की आंच में हाथ सेकते हुए इसका आनंद उठाया जा सकता है। इस थाली में गिने चुने व्यंजन होते हैं। पंजाब में कहावत है, ‘सवा लाख से एक लड़ाऊँ’ जिसका अर्थ यहाँ ऐसा निकलता है कि मेरा एक व्यंजन आपकी अनेक व्यंजनों से भरी थाली से भी श्रेयस्कर है। मेरी प्रिय पंजाबी थाली के अवयव हैं:

सरसों का साग – जिस पर घी की मोटी परत तैरती रहती है।

मक्की की रोटी -भट्टी से निकली ताजी गर्म मक्की की रोटी जिस पर उदारता से घी चुपड़ा गया हो।

सलाद -नींबू के रस या सिरके में डूबी मूली। साथ में कच्चा प्याज।

आम का आचार

गुड – इससे भोजन को विराम दिया जाता है। यह मिष्टान्न के रूप में खाया जाता है तथा खान पचाने में भी सहायक होता है।

इस थाली में भले ही व्यंजनों की संख्या कम हो किन्तु मेरा विश्वास हे कि यदि आप इसे एक बार खा लें तो लंबे समय तक आपको इसका इसका स्वाद स्मरण रहेगा।

मध्य प्रदेश की मालवा थाली

यह एक विशेष थाली है जिसके विषय में अधिक लोग नहीं जानते हैं। भारत के हृदयस्थल से आई यह थाली मैंने मांडू में चखी थी जो किसी समय मालवा की राजधानी थी। मालवा से अनभिज्ञ लोगों को यह थाली किंचित सादी प्रतीत होगी तथा इसके स्वाद से प्रेम करने के लिए कुछ समय तथा धीरज की आवश्यकता होगी। आरंभ में मुझे इसके मुख्य व्यंजन पानिया तथा बाफना नहीं भाए। शनैः शनैः इसके स्वाद ने कब मेरी जिव्हा से मित्रता कर ली, मुझे ज्ञात ही नहीं हुआ।

मालवा की थाली में पानिया एवं दाल बाफ्ने
मालवा की थाली में पानिया एवं दाल बाफ्ने

पानिया मक्के के आटे से निर्मित होता है वहीं बाफना तुअर दाल से बनाते हैं। ठेठ रूप से गाय के गोबर के कंडों को चूल्हे में अथवा खुले में जलाकर उसमें इन्हे सेंका जाता है। सेंकने से पूर्व इन्हे पत्तों में बांधा जाता है। वर्तमान में अधिकतर लोग इसे तंदूर में सेंकते हैं।

मालवा के इन दो विशेष व्यंजनों के साथ मालवा थाली में दाल, भात, मौसमी भाजियाँ, कढ़ी, सलाद तथा एक मिठाई होती हैं।

आंध्रा थाली

आंध्र की तीखी थाली
आंध्र की तीखी थाली

मेरे मत से आंध्रा थाली भारत की सर्वाधिक तीखी व मसालेदार पाक शैली के अंतर्गत आती है। इसके व्यंजनों पर गुन्टूर की तीखी लाल मिर्च की परत तैरती रहती है। विशेषतः सांभर तथा रसम अत्यंत तीखे व्यंजन हैं। भात के श्वेत चमचमाते ढेर पर रंगों से परिपूर्ण रसदार भाजी परोसी जाती है। आंध्रा थाली के प्रमुख व्यंजन हैं:

  • परिप्पु पोडी – यह दालों से बनी सूखी चटनी होती हैं। इसे तिल के तेल अथवा घी में घोलकर भी प्रयोग किया जाता है। यह चटनियाँ किसी भी व्यंजन का स्वाद बड़ा देती हैं।
  • गोन्गुरा – ये एक प्रकार के खट्टे पत्ते होते हैं जो आंध्र प्रदेश में उगते हैं। अतः ये केवल आंध्रा भोजन में ही देखने मिलता है। इससे चटनी बनाई जाती है, दाल में डाला जाता है तथा सब्जी के रूप में भी खायी जाती है। मेरे लिए यह आंध्रा भोजन का सर्वाधिक स्वादिष्ट भाग है।
  • बैंगन सब्जी – भारत के अनेक क्षेत्रों में बैंगन की सब्जी विशेष अवसरों के भोजन का प्रमुख भाग होता है। आंध्रा उनमें से एक है।
  • अवक्काई – यह आंध्रा शैली में बना आम का आचार है। यह आंध्रा शैली की सही पहचान है, तीखा व मसालों से भरा। यदि आप भी मेरे समान अधिक तीखा खाने के अभ्यस्त नहीं हैं तो खाने के साथ एक बड़ी कटोरी दही खा लें।

कश्मीरी थाली

वाज़वान या कश्मीरी थाली
वाज़वान या कश्मीरी थाली

कश्मीर के अधिकतर भागों में कश्मीरी शाकाहारी थाली निवेदन करने पर विशेष रूप से तैयार की जाती है। मेरी गुलमार्ग यात्रा के समय मुझे ऐसी ही एक कश्मीरी थाली खाने का अवसर प्राप्त हुआ था। उसमें मुझे ये व्यंजन परोसे गए थे:

  • नदरू – नदरू को कमल ककड़ी भी कहते हैं। उन्हे कुरकुरे तल कर खाया जाता है अथवा कबाब के रूप में भी तैयार किया जाता है।
  • कश्मीरी दम आलू – छोटे छोटे आलुओं को सबूत ही रस्से में डाला जाता है। उसमें कश्मीरी मसाले डाले जाते हैं। मुझ जैसे शाकाहारियों के लिए यही कश्मीरी पाक-शैली की पहचान है।
  • हाक – ताजी हरी सब्जियों को तेल में थोड़ा सा पकाया जाता है। यह व्यंजन किंचित कटु स्वाद लिए हुए होता है।
  • अखरोट की चटनी – अखरोट कश्मीर की ही उपज है। यहाँ आपको अखरोट की झलक सर्वत्र दृष्टिगोचर होगी। मेवे के रूप में तथा व्यंजनों की सामग्री के रूप में अखरोट, मेज-कुर्सी इत्यादि तथा स्मारिकाओं के निर्माण में अखरोट की लकड़ी इत्यादि। कश्मीरी थाली में यह अखरोट की खट्टी चटनी के रूप में अवतरित होती है।
  • कश्मीरी रोटी – सुगंधित मसाले डले तंदूरी रोटियाँ
  • फिरनी – दूध में पकी मीठी सेवइयाँ जिसमें भरपूर मेवे डले होते हैं। इसके लिए उदर में स्थान अवश्य छोड़ें।
  • लौकी का रायता – यह एक प्रसिद्ध कश्मीरी व्यंजन है।
  • काहवा – कश्मीर में आप कुछ भी खाएं, इसकी समाप्ति आप केसर से सुगंधित तथा मेवों से सज्जित कश्मीरी काहवा से अवश्य करें।

उत्तर कर्नाटक की थाली

इस थाली की स्मृति मेरे मस्तिष्क में मेरे इन्फोसिस के दिनों से है। केले के पत्तों पर वह भोजन परोसा जाता था। उसके लिए कभी कभी हमें प्रतीक्षारत लोगों की लंबी पंक्ति में खड़ा होना पड़ता था। उस थाली के लिए जितनी भी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़े अंततः हमें तृप्ति प्राप्त होती थी।

कर्णाटक की ज्वार रोटी वाली थाली
कर्णाटक की ज्वार रोटी वाली थाली

वह अपेक्षाकृत एक सादी थाली होती थी जिसमें जवार की रोटी तथा बैंगन की सब्जी होती थी। भोजन को सम्पूर्ण करने के लिए भात एवं सांभर दिया जाता था। साथ में मसाला छाछ भी होता था जिसका इस भोजन के संग सर्वोत्तम मेल होता है। अचार, सलाद एवं तले हुए पापड़ तो अनेक बार परोसे जाते थे।

मैंने इस प्रकार की थाली पुनः बीजापुर एवं धारवाड़ में वहाँ के स्थानीय ढाबे में खायी जिसे खानावल कहते हैं। जवार की रोटी का बैंगन की भाजी के संग अद्भुत मेल होता है।

इस थाली में भले ही अवयवों की संख्या सीमित हों, किन्तु इसका स्वाद अप्रतिम होता है।

महाराष्ट्र की थाली

महाराष्ट्र की शाकाहारी थाली
महाराष्ट्र की शाकाहारी थाली

महाराष्ट्र एक विशाल राज्य है। अतः इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भी मराठी थालियों में भिन्नता है। सामान्यतः मराठी थाली में दाल, भात, रोटी, मौसमी भाजियाँ तो होती ही हैं, साथ में अन्य अनेक स्वादिष्ट व्यंजन होते हैं, जैसे:

  • साबूदाना वड़ा – यह मुझे अत्यंत प्रिय है।
  • आमटी – साबुत दालों से बनी मसालेदार रसदार भाजी जिसमें खोबरा अथवा नारियल भी डाला जाता है।
  • पूरण पोली – प्रसिद्ध मराठी मिष्टान्न मीठे भरवां पराठे के समान होता है।
  • श्रीखंड – दही के अतिरिक्त जल को निथारकर उसे शक्कर के साथ फेंटकर श्रीखंड तैयार की जाती है। तत्पश्चात इलायची एवं जायफल के चूर्ण से उसके स्वाद को उन्नत किया जाता है। इसे इलायची श्रीखंड कहते हैं। जब इसमें पके आम का रस मिश्रित किया जाता है तब यह आम्रखंड कहलाता है। श्रीखंड अनेक स्वादों में उपलब्ध हैं जैसे, इलायची, आम, पिस्ता, बादाम इत्यादि।

लद्दाखी शाकाहारी थाली

लद्दाख भी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ शाकाहारी थाली मिलना असंभव नहीं किन्तु कठिन अवश्य है। इन भागों में शाकाहारी थुकपा प्रमुख भोजन है। यह सूप है जिसमें नूडल, कुछ भाजियाँ तथा प्रचुर मात्रा में लहसुन होता है। इन पहाड़ी ऊंचाइयों में प्राणवायु की कमी से होने वाले त्रास में लहसुन अत्यंत लाभकारी माना जाता है। लद्दाख के शाकाहारी भोजन पर हमारा संस्करण अवश्य पढ़ें।

लद्धाख का शाकाहारी भोजन
लद्धाख का शाकाहारी भोजन

लद्दाख की शाकाहारी थाली में थुकपा के अतिरिक्त अन्य व्यंजन हैं:

  • शाकाहारी नूडल सूप
  • अखरोट की चटनी के साथ शाकाहारी मोमो
  • खुबानी से बना मीठा
  • पनीर चीज यहाँ का स्थानीय भोजन ना होते हुए भी आसानी से उपलब्ध है
  • बटर चाय एक प्रकार की चाय है जिसमें मक्खन एवं नमक डाल जाता है।
  • चांग भी एक स्थानीय पेय है

कर्नाटक की थाली

आपके बैठते ही आपके समक्ष केले का बड़ा पत्ता रखा जाएगा जिस पर जल छिड़कर आपको धोना पड़ेगा। इसके पश्चात एक के पीछे एक स्वादिष्ट व्यंजन आते जाएंगे तथा आपके पत्तल की शोभा बढ़ाते जाएंगे। सर्वप्रथम नमक, अचार, पापड़ तथा मीठा अपना अपना स्थान ग्रहण करेंगे। तत्पश्चात पत्तल में सर्व व्यंजन आते तक स्वयं को किंचित थामकर बैठें। चटक हरे रंग के पत्तल पर विभिन्न रंगों को बिखेरते अनेक व्यंजन देखकर आपका चित्त प्रसन्न हो जाएगा।

केले के पत्ते पे कर्णाटक का स्वाद
केले के पत्ते पे कर्णाटक का स्वाद

सर्व व्यंजनों में मेरा सर्वाधिक प्रिय व्यंजन है कुरकुरा तला पापड़, भजिया तथा खट्टा सांभर जिसमें मूंगा डला होता है। यह मिश्रण भात के संग अत्यंत स्वादिष्ट होता है।

लखनऊ की थाली

लखनऊ की बेड़मी पूरी
लखनऊ की बेड़मी पूरी

लखनऊ अधिकांशतः कबाब तथा सड़क किनारे बिकते चटपटे नाश्ते के लिए प्रसिद्ध है। मेरे भीतर बैठी शाकाहारी आत्मा सड़क किनारे बिकते इन चटपटे नाश्ते से तृप्त हो गई थी। मुझे विशेषतः बेदमी पुरी का खाना अत्यंत भाया था। इस भोजन की थाली में भरवां पूरी, चना, रायता, चटनी तथा मौसमी भाजी थी। इसके साथ एक ग्लास भर लस्सी दी गई थी। इसे खाकर आपका रोम रोम प्रफुल्लित हो जाएगा।

नेपाली थाली

नेपाल की शाकाहारी थाली
नेपाल की शाकाहारी थाली

नेपाल का खाना भारत के खाने से भिन्न नहीं है। वहाँ भी भारत के समान दाल-भात प्रमुख भोजन है। साथ में मौसमी भाजियाँ खाई जाती हैं।

मंदिर एवं आश्रम की थाली

मैंने अपने जीवन में अनेक मंदिरों एवं आश्रमों में महाप्रसाद ग्रहण किया है। वह चाहे कांचीपुरम का कांची कामकोटी पीठम का अन्नछत्र हो या अयोध्या का आश्रम हो, कुम्भ मेले के भंडारे हों अथवा गोवा के स्थानीय मंदिर हों। आप किसी भी मंदिर अथवा आश्रम में खाना खाएं, तो आप पाएंगे कि वह मात्र भोजन से कहीं अधिक होता है। आध्यात्मिक वातावरण में महाप्रसाद का भोजन ग्रहण करना अत्यंत अनुष्ठानिक प्रतीत होता है। भगवान के प्रसाद रूपी इस  भोजन को अत्यंत श्रद्धा से परोसा जाता है। भोजन के प्रति आदर भाव का अनुभव प्राप्त करना हो तो आप किसी मंदिर अथवा आश्रम का भोजन अवश्य करें। यही आध्यात्म इस भोजन को अत्यंत विशेष बनाता है।

पत्तल पर प्रसाद रूपी थाली
पत्तल पर प्रसाद रूपी थाली

दक्षिण भारत में आश्रम का भोजन पत्तल पर परोसा जाता है। इसके लिए अधिकतर केले के पत्तों का प्रयोग होता है। आश्रमों में प्याज एवं लहसुन जैसे तामसिक पदार्थों के बिना, बड़ी श्रद्धा से सात्विक भोजन पकाया जाता है। भोजन भले ही सादा हो, किन्तु स्वादिष्ट व भरपूर भोजन हमें तृप्त कर देता है। भोजन शैली स्थानीय होती है तथा इनमें स्थानीय सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। जितनी श्रद्धा से यह पकाया जाता है, आप भी इसे उतनी ही श्रद्धा से ग्रहण करें।

यदि आप भारत के किसी भी क्षेत्र के भोजन का मूल स्वाद चखना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि आप वहाँ के किसी आश्रम अथवा मंदिर के अन्नछत्र में अवश्य जाएँ तथा वहाँ भोजन ग्रहण करें। उससे अधिक स्थानीय भोजन आप कहीं नहीं पाएंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

6 COMMENTS

  1. अनुराधा जी, भारतीय थालीयों से संबंधित आलेख पढ़ कर सही में मुंह में पानी आ गया ! जिस प्रकार हमारा देश विभिन्न धर्मों,संस्कृतियों,भाषाओं,लोगों के रहन सहन की भिन्न भिन्न शैलीयों को अपने में समाहीत किये हुए हैं ठीक उसी प्रकार भारत का हर क्षेत्र विशेष, जलवायुनुसार,खानपान की अपनी अलग विशेषता लिये हुए है । आपने अपने आलेख में भारत के राज्यों के स्वादिष्ट व्यंजनों,थालीयों की जानकारी को बहुत ही सुंदरता से प्रतिपादित किया हैं ।
    आलेख को चटपटा और माधुर्य से भरा हुआ कहें तो अतिशयोक्ती नहीं होगी !
    सुंदर जानकारी हेतू साधुवाद ।

  2. मीताजी
    आपने पुर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण भारत के व्यंजनोके बारेमे महत्वपुर्ण जानकारी दी.कहा जाता है भारत मे हर पांच किलोमीटर पर भाषा बदलती है वैसेही आपके लेख से लगता है व्यंजनोका भी ऐसाही हाल है.अलग अलग प्रदेशोंके व्यंजनों से भरी थालियोंके फोटो बहुत ही सुहावने लगे पर आपने जो कहा की मंदिरों के महा प्रसाद का स्वाद कुछ अलगही होता है वह सही है.
    लेखसे प्रतीत होता है की आपने पुरे भारतकी यात्रा का अनुभव बहुत ही बारिकी से किया है और विवीध व्यंजनो का आस्वाद लिया है. उनकी सुंदर जानकारी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.

  3. बहुत ही सुंदरता व स्वादिष्टता से भरपूर आपका यह आलेख भारत की विभिन्नताओं का समावेश, यह विभिन्न क्षेत्रों की विभिन्न स्वादों को दर्शाता है। मुँह में पानी लाने वाले अति स्वादिष्ट लेख के लिए साधुवाद????????

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