थार मरुस्थल का चूरू – रंगों की छटा बिखेरता शेखावाटी नगर

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चूरू राजस्थान का एक छोटा सा नगर है जो हरियाणा सीमा पर स्थित है। बीकानेर के निकट स्थित चूरू थार मरुभूमि में एक रमणीय मरूद्यान के समान है। लगभग १२वीं सदी में अस्तित्व में आये इस नगर का नाम इसके संस्थापक ठाकुर चूड़ामण पर रखा गया है। कुछ अभिलेखों के अनुसार यह नगर लगभग १७वीं सदी में निर्मित है तथा इसका नाम तात्कालिक नगर-प्रमुख चुर्रू पर रखा गया था। मैं जब शेखावाटी हवेलियों की खोज में भ्रमण कर रही थी तब मैं इस धरोहर स्थल पर आयी थी। यहाँ के अप्रतिम आकर्षणों का अवलोकन करते हुए मैंने एक सम्पूर्ण दिवस यहाँ व्यतीत किया था।

सेठानी का जोहड़ - चुरू
सेठानी का जोहड़ – चुरू

इस क्षेत्र के शेखावाटी नगरों में भ्रमण करते हुए तथा उनका अध्ययन करते हुए, अंतिम गंतव्य के रूप में मैं चूरू पहुँची थी। उस समय तक मैं रंगों की छटा से ओतप्रोत हवेलियों से पूर्ण रूप से अवगत हो गयी थी। एक शेखावटी हवेली की मूलभूत संरचना कैसी होती है, उसके प्रमुख अवयव कौन से होते हैं, उनमें साज-सज्जा कैसी होती है, इत्यादि की मुझे पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो चुकी थी। मुझे ज्ञात था कि शेखावाटी नगर में ये हवेलियाँ सामान्यतः एक स्थान पर समूह में होते है। किसी काल में ये हवेलियाँ संपन्न व्यापारियों की संपत्ति थी। चूरू में भी हवेलियाँ उसी प्रकार समूह में स्थित हैं। यहाँ हवेलियों पर मुझे अप्रतिम चित्रकारी देखने मिली। आसपास के मार्गों को भी चित्रकारी द्वारा सुन्दर रूप दिया गया है।

चूरू के दर्शनीय स्थल

चूरू नगर से मेरी जो स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं, उनमें प्रमुख हैं, वे कारीगर, जिनसे मैंने भेंट की थी तथा राजस्थान के अप्रतिम जल धरोहर, जिनके मैंने दर्शन किये थे। इनके अतिरिक्त चूरू की हवेलियाँ भी अत्यंत मनमोहक हैं। आईये आपको चूरू तथा महनसर के सुन्दर दर्शनीय धरोहरों का भ्रमण कराती हूँ।

सेठानी का जोहड़

राजस्थानी भाषा में ‘जोहड़’ एक प्रकार का जलाशय है। सेठानी का जोहड़ रतनगढ़ मार्ग पर स्थित है। इस जोहड़ का निर्माण २०वीं सदी के मध्य में सेठ भगवान दास बागला की पत्नी ने करवाया था। इसीलिए इसे सेठानी का जोहड़ कहते हैं।

मनोरम सेठानी का जोहाड़
मनोरम सेठानी का जोहाड़

यह जोहड़ इस क्षेत्र के उन दुर्लभ जलाशयों में से एक है जो नित्य जल से भरे रहते हैं। मैं यहाँ सितम्बर मास में आयी थी। श्वेत भित्तियों के मध्य इसका जल सतह झिलमिला रहा था। जलाशय का उत्तम रखरखाव किया गया था। जल भी अत्यंत निर्मल था। इनकी संरचना दर्शनीय है। इसके अग्रभाग में पक्षियों के सुन्दर चित्र हैं।

जल के समीप बैठने के लिए इसके चारों ओर गलियारे बने हुए हैं। मेरे गाइड ने मुझे बताया कि यहाँ ऐसे विशिष्ट व्यक्ति हैं जिन्हें कम्पन द्वारा भूमिगत जल की उपस्थिति का आभास होता है। उसी के अनुसार वे उचित स्थान का चुनाव कर वहाँ जलाशय का निर्माण करवाते हैं। भूमि एवं वहां की मिट्टी के रंग द्वारा भी वे सटीक स्थल की जानकारी देते हैं। यह एक अन्तर्निहित ज्ञान है जो एकाग्रता एवं अनुभव से ही प्राप्त होता है। यह ज्ञान अब लुप्त होता जा रहा है।

शीत ऋतु में यहाँ अनेक अप्रवासी पक्षियों का बसेरा होता है। शीत प्रदेशों से वे जल की खोज में यहाँ आते हैं। यदि आप इस क्षेत्र का भ्रमण कर रहे हैं तो सेठानी का जोहड़ अवश्य देखें।

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दिगंबर जैन मंदिर

चुरू का जैन मंदिर
चुरू का जैन मंदिर

जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ भगवान का यह जैन मंदिर दूसरा वह स्थान है जिसके दर्शन आप अवश्य करें। बाह्य दृष्टया यह मंदिर श्वेत रंग का एक सर्वसाधारण भवन प्रतीत होता है। किन्तु जैसे ही आप कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर के भीतर प्रवेश करेंगे, आप अवाक् रह जायेंगे। मंदिर का भीतरी अलंकरण एक सर्वाधिक भव्य महल को भी कड़ी स्पर्धा दे सकता है।

मंदिर की भित्तियाँ समृद्ध रंगों में चित्रित मनमोहक भित्तिचित्रों से भरी हुई हैं। विभिन्न रंगों के दर्पण उन छवियों के अनेक प्रतिबिम्ब प्रस्तुत कर उनकी भव्यता को कई गुना बढ़ा देते हैं।  एक भित्ति में साँप-सीढ़ी के खेल का प्राचीन रूप चित्रित है। विभिन्न रंगों के इस हुड़दंग के मध्य जैन तीर्थंकर की शान्ततम प्रतिमा स्थापित है।

नाथ जी की छत्री

नाथ जी की छत्री
नाथ जी की छत्री

छत्री सामान्यतः किसी क्षेत्र के राजपरिवार के सदस्यों के समाधि स्मारक होते हैं। मुख्यतः महाराजाओं एवं महारानियों के मरणोपरांत, उनकी स्मृति में स्थानीय स्थापत्य की दृष्टी से विशिष्ट स्मारक निर्मित किये जाते थे। भारत में अधिकतर छत्रियाँ राजस्थान राज्य में देखने मिलती हैं, जिनमें जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर इत्यादि प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश में भी शिवपुरी एवं ओरछा जैसे स्थानों में अप्रतिम छत्रियाँ हैं। नाथजी की छत्री अपेक्षाकृत एक विशाल व भव्य संरचना है। इसके भीतर एक शिवलिंग भी है जिसकी नियमित पूजा-अर्चना की जाती है। जब मैं इसके दर्शनार्थ यहाँ पहुँची थी, उस समय यह बंद होने के कारण मैं इसे भीतर से नहीं देख पायी थी।

छत्री के परिसर में विचरण करते हुए मेरी दृष्टी एक अद्वितीय जल प्रबंधन प्रणाली पर पड़ी। एक ढका हुआ कुआं था जिसके ऊपर एक चौकोर छोटा छिद्र था। इस छिद्र को अनेक जल नलिकाओं से जोड़ा हुआ था जो स्वतः जल को स्वच्छ कर रहे थे। वह एक अद्भुत प्रणाली थी। छत्री के साथ इस प्रणाली का अवलोकन भी अवश्य करिये।

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चूरू की हवेलियाँ

चूरू नगर के बाजार में भ्रमण करते समय आप स्वयं को अनेक भव्य एवं रंगों से ओतप्रोत हवेलियों से घिरा पायेंगे। ये हवेलियाँ ना केवल विभिन्न रंगों से चित्रित है, अपितु उनमें बेल्जियम के रंगबिरंगे कांच का भी विपुलता से प्रयोग किया गया है। इनके अतिरिक्त, मुझे विश्वास है कि उस समय लोग अत्यंत चटक व रंगबिरंगे वस्त्र भी धारण कर इस बाजार एवं हवेलियों में विचरण करते रहे होंगे। आप कल्पना कर सकते है कि उस काल में यहाँ रंगों का हुड़दंग मचा रहता होगा।

सहस्त्र गवाक्षों वाली सुराना हवेली
सहस्त्र गवाक्षों वाली सुराना हवेली

सुराना हवेली – सुराना हवेली चूरू के हवा महल के नाम से लोकप्रिय है। इसका कारण है, इसमें निर्मित एक सहस्त्र से अधिक द्वार एवं झरोखे। इसे दूर से देखते ही आप इसके नाम के औचित्य का अनुमान लगा सकते हैं। इसके निर्माता के दूरदर्शिता प्रशंसनीय है। इसका स्थापत्य परिवेश के अनुकूल है तथा इसकी रचनात्मकता अद्वितीय है। यह अत्यंत ही भव्य प्रतीत होती है।

कोठारी हवेली पे ढोला मारू का चित्रण
कोठारी हवेली पे ढोला मारू का चित्रण

कोठारी हवेली – प्रसिद्ध व्यापारी ओसवाल जैन कोठारी द्वारा निर्मित यह हवेली सुन्दर चित्रकारी के लिए जाना जाता है। इसमें स्थित मालजी का कक्ष अपनी कलात्मकता के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

बंगला हवेली – यह कन्हैया लाल बंगला द्वारा निर्मित एक सुन्दर हवेली है। इसकी भित्तियों पर ढोला मारू की गौरव गाथा का बखान करते अनेक भित्तिचित्र हैं।

चूरू के अधिकाँश हवेलियों के स्वामी अन्यत्र महानगरों में जा कर बस गए हैं। सभी हवेलियाँ अप्रयोग अथवा दुरुपयोग की स्थिति में पड़ी हुई हैं। यहाँ तक कि कुछ हवेलियों का प्रयोग गोदामों के रूप में किया जा रहा है।

हवेलियों के भित्तिचित्रों में ढोल मारू की कथाओं की प्राधान्यता है। उन्हें आप सड़कों पर चलते हुए भी देख सकते हैं।

एक जीवंत हवेली
एक जीवंत हवेली

एक हवेली मैंने देखी जो प्रयोग में थी। स्तंभ युक्त गलियारे में एक तख्त रखा था। भित्तियों पर चित्र लटके हुए थे। इस हवेली के भीतर झांकने पर मुझे शेखावाटी हवेलियों के जनजीवन की एक झलक प्राप्त हुई थी।

हवेलियाँ भले ही वर्षों से ताले में बंद हैं किन्तु उनके बंद प्रवेश द्वार भी हवेली के भीतर की कलात्मकता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। कुछ द्वार अप्रतिम कलाकारी की पराकाष्ठा हैं।

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चूरू दुर्ग

चूरू जिला मुख्यालय पर स्थित इस दुर्ग से एक रोचक सत्य कथा जुडी हुई है। सन् १७३९ में निर्मित इस दुर्ग की प्राचीर से शत्रुओं पर चाँदी के गोले बरसाए गए थे। १८५७ की क्रान्ति में चूरू के ठाकुरों ने अंग्रेजों से विद्रोह कर दिया था। अंग्रेजी सेना द्वारा गोलाबारी के उत्तर में दुर्ग से भी भारी गोलाबारी होने लगी थी। दुर्ग के गोले समाप्त होने पर लुहारों ने नवीन गोले बनाए। जब गोले बनाने के लिए इस्पात व अन्य सामाग्री भी समाप्त हो गयी तब चूरू के सेठों व जनता ने घरों से चाँदी लाकर दी। तब चाँदी के गोले बनाकर उनमें बारूद भर कर अंग्रेजों पर बरसाए थे। यह घटना इतिहास के पन्नों पर चाँदी के अक्षरों में अंकित हो गयी है।

राम मंदिर

चूरू नगर में गुलाबी रंग में यह प्राचीन राम मंदिर है। इसकी भित्तियाँ राम शब्द से गुदी हुई हैं।

चूरू के कलाकार

चन्दन काष्ठ लघुकला

चूरू नगर में मेरी भेंट श्री. पवन जांगिड से हुई जो चन्दन की लकड़ी पर लघु कलाकृतियाँ गढ़ने के लिए जाने जाते हैं। वे अपनी सूक्ष्म कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं। मैंने उनसे उनकी अनुवांशिक कला के विषय में जाना, उनके द्वारा गढ़ी गयी कलाकृतियों का संग्रह देखा तथा उनके पुरस्कार देखे। साथ ही उनके पिता द्वारा लकड़ी पर की जा रही उत्कीर्णन का एक विडियो भी बनाया। उसे अवश्य देखिये।

चूड़ियाँ बनाना

समूचे भारत के मेलों एवं उत्सवों में राजस्थान की लाक्षा(लाख) की चूड़ियाँ अत्यंत लोकप्रिय होती हैं। अनेक स्थानों पर आप उन्हें बनता हुआ भी देख सकते हैं। उन्हें देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि एक चूड़ी को बनाने में कितना परिश्रम करना पड़ता है। यहाँ लाख की चूड़ियों को बनाने की प्रक्रिया पर बनाया गया विडियो देखिये।

चूरू के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल

ताल छापर वन्यजीव अभयारण्य

मैंने इस अभयारण्य का भ्रमण नहीं किया है। किन्तु मेरे मित्र अरुण भट्ट ने इसकी सराहना करते हुए मुझे इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने मुझे बताया कि छायाचित्रीकरण ने इस अभयारण्य की कायापलट कर दी है तथा इसे एक प्रमुख पर्यटन आकर्षण बना दिया है। इसकी प्रशंसा में उनके कुछ शब्द यहाँ सुनिए।

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महनसर की सुनहरी हवेली

चूरू के समीप एक अन्य गाँव है, महनसर। महनसर की सुनहरी हवेली में आप छोटे-बड़े अनेक आकर्षण देखेंगे। किन्तु इसका सुनहरा कक्ष देखना ना भूलें। इसकी भित्तियों पर लाल एवं सुनहरे रंगों का प्रयोग कर अप्रतिम भित्तिचित्र बनाए गए हैं। इसकी छतों पर सम्पूर्ण रामायण एवं अन्य पुराणों की कथाओं के दृश्य चित्रित हैं।

इसका एक कक्ष ठेठ औपनिवेशिक शैली में सज्जित है। मुझे बताया गया कि इस कक्ष का निर्माण यूरोपीय अतिथियों के स्वागत सत्कार करने के लिए किया गया था। हवेली के अन्य निजी भागों में उन यूरोपीय अतिथियों का प्रवेश निषिद्ध होता था। अतः हवेली के इस भाग को अतिथिगृह के रूप में प्रयोग कर यहीं उनके स्वागत सत्कार एवं मनोरंजन की व्यवस्था की जाती थी।

महनसर की सुनहरी हवेली अब एक भव्य धरोहर अतिथिगृह /होटल है। राजस्थान के एक ठेठ कस्बे की जीवनशैली को समीप से निहारने एवं उसका आनंद लेने के लिए यहाँ अवश्य आईये। जब मैं वहां गयी थी, उस पर पुनरुद्धार का कार्य चल रहा था। अब वह अतिथियों के सत्कार हेतु सज्ज हो चुका होगा।

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चूरू के लिए यात्रा सुझाव

  • चूरू भ्रमण की सर्वोत्तम समयावधि शीत ऋतु है। ग्रीष्ण ऋतु में यहाँ की उष्णता असहनीय हो सकती है।
  • चूरू तक दिल्ली एवं जयपुर से रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग द्वारा सुगमता से पहुंचा जा सकता है।
  • इस धरोहर नगरी के भ्रमण के लिए कम से कम आधा दिवस आवश्यक है।

चूरू में ठहरने के लिए उपयुक्त विकल्प उपलब्ध हैं। आप चाहें तो समीप ही मंडावा, झुंझुनू अथवा नवलगढ़ जैसे किसी बड़े नगर में रुक सकते हैं तथा वहां से चूरू की एक दिवसीय यात्रा कर सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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