छतिया बट मंदिर स्वयं में एक अनूठा मंदिर है जो उत्कल (ओडिशा) प्रदेश के जाजपुर एवं कटक के मध्य स्थित छतिया ग्राम में स्थित है।
सतही रूप से देखा जाए तो यह जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा को समर्पित एक सामान्य मंदिर है। हमें ज्ञात है कि ऐसे मंदिर ओडिशा में चहुँ ओर स्थित हैं। जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा को समर्पित ऐसे मंदिर देश के अन्य स्थानों पर भी देखे जाते हैं जहाँ ओड़िया भाषी नागरिकों की बहुलता हो।
इस मंदिर में अनूठा क्या है? जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा के विग्रहों को स्थापित करने का क्रम। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी सुभद्रा को उनके दोनों भ्राताओं, जगन्नाथ एवं बलभद्र के मध्य स्थापित किया है। इनके लगभग सभी मंदिरों में इसी क्रम का पालन किया जाता है। किन्तु छतिया बट मंदिर में इन तीनों विग्रहों को स्थापित करने का क्रम है, बाएं से दाहिनी ओर जाते हुए जगन्नाथ, बलभद्र, तत्पश्चात सुभद्रा। क्या आपने कभी ध्यान दिया कि जब हम इन तीनों के नाम लेते हैं तो किस क्रम में लेते हैं? जी हाँ, इसी क्रम में लेते हैं। तो यह कहा जा सकता है कि यह मंदिर श्रुति परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। अर्थात् हम जैसे इन तीनों भाई-भगिनी को संबोधित करते हैं, यह मंदिर शब्दशः उसी संबोधन को आकार प्रदान करता है। आधुनिक बोलचाल पद्धति के अनुसार कह सकते हैं, जो आप कहते हैं, वही आप देखते हैं!
दार्शनिक रूप से कहें तो यह नई विश्व व्यवस्था को दर्शाता है।
कल्कि अवतार
छतिया बट मंदिर को एक भविष्यवादी मंदिर भी कह सकते हैं क्योंकि यह मंदिर भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को समर्पित है। हमें ज्ञात है कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार, कल्कि का अवतरित होना अभी शेष है। भारत में जहाँ कालचक्र को आधार माना जाता है, ऐसे मंदिर उसी मान्यता के द्योतक हैं।
छतिया बट मंदिर से जुड़ी दंतकथाएं
संत अच्युतानंद जी ने लिखा, जीबा जगता होइबा लीना – बैसी पहाचे खेलिबा मीना। कुछ का मानना है कि ये संत हाड़ीदास जी ने लिखा है। इसका अर्थ है, एक दिवस पुरी के जगन्नाथ मंदिर की २२ सीढ़ियों पर जगत के सभी जीव समाप्त हो जायेंगे, केवल जल में मीन तैरेगी।
यह प्रलय की स्थिति की ओर संकेत करता है जो सृष्टि के प्रत्येक चक्र के अंत में उपस्थित होता है तथा सभी जीवित एवं निर्जीव तत्वों को निगल जाता है। यह पंक्ति आगे कहती है कि केवल छतिया ही वह स्थान है जो जल में समाहित नहीं होगा, अपितु जल के ऊपर रहेगा।
जब संसार में अन्याय असहनीय स्तर को पार कर जायेगा तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार ग्रहण कर धरती पर अवतरित होंगे। अश्वारूढ़ कल्कि अवतार के हाथों में नंदक या नंदकी नामक एक लम्बी तलवार होगी। वे इस विश्व में न्याय व्यवस्था लायेंगे तथा सत्य युग को पुनः स्थापित करेंगे।
मान्यता यह है कि इस सत्य युग का आरंभ छतिया बट मंदिर से ही होगा।
बट एवं संत हाड़ीदास
बट या वट बरगद अथवा बड़ के वृक्ष को कहते हैं। भारत में बड़ के वृक्ष को पवित्र माना जाता है। जी हाँ, इस मंदिर को छतिया बट मंदिर इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके परिसर में एक प्राचीन वट वृक्ष है। यह वृक्ष इस मंदिर का अभिन्न अंग है।
इस मंदिर को महापुरुष हाड़ीदास का सिद्ध पीठ भी कहा जाता है। संत हाड़ीदास का जीवनकाल सन् १७७२ से सन् १८३० तक का माना जाता है। वे इसी मंदिर में अपनी साधना करते थे। यहीं उनकी समाधि पीठ भी स्थित है। ऐसी मान्यता है कि अपनी नश्वर देह का त्याग करने के पश्चात भी वे यहीं निवास करते हैं। उन्हें संत अच्युतानंद का बारहवाँ अवतार माना जाता है।
उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक भजन, कई मालिकायें एवं अनेक धर्म ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें शंखनावी, अनंत गुप्त गीता, हनुमान गीता, नील महादेव गीता, भाबाननबाड़ा, अनंतगोई आदि रचनाएँ सम्मिलित हैं। एक स्थानिक शिक्षा शास्त्री, प्रा. आर. साहू ने अपने शोध ग्रन्थ ‘हाड़ीदास रचनावली’ में संत हाड़ीदस की साहित्यिक उपलब्धियों एवं धार्मिक व साहित्यिक ग्रंथों के प्रति उनके योगदान का सविस्तार वर्णन किया है।
मंदिर दर्शन
कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर हम मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं। ऊँची अभेद्य भित्तियों से घिरा हुआ मंदिर का सम्पूर्ण परिसर किसी विशाल दुर्ग का स्मरण कराता है। परिसर के बाहर से मंदिर का लगभग लेश मात्र ही दिखाई देता है। अश्व पर आरूढ़ कल्कि अवतार का विग्रह ही भित्तियों के ऊपर दृष्टिगोचर होता है। प्रवेश द्वार के ऊपर देवी की एक विशाल प्रतिमा है। उनके दोनों ओर अनेक देवी-देवताओं एवं असुरों के विग्रह हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण १२वीं सदी में अनंतवर्मन देव के शासनकाल में किया गया था।
परिसर के भीतर अनेक छोटे-बड़े मंदिर हैं। उनमें कुछ हैं, माँ काली का मंदिर, यम का एक मंदिर जो सामान्यतः दृष्टिगोचर नहीं होते, गणेश का मंदिर आदि। मंदिर की भित्तियों पर रंगबिरंगी चित्रकारी की गयी थी।
जगन्नाथ मंदिर
परिसर में स्थित मुख्य मंदिर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा का है। इसे ओडिशा का द्वितीय श्री क्षेत्र भी कहते हैं। इस मंदिर में वे सभी दैनिक पूजा-अनुष्ठान किया जाते हैं जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर में किये जाते हैं। जी हाँ, उसका अर्थ है कि इस मंदिर में भी आपको महाप्रसाद प्राप्त हो सकता है।
इस मंदिर के अतिरिक्त इन तीनों के भिन्न भिन्न एकल मंदिर भी हैं। उनके भीतर उनकी विशाल प्रतिमाएं हैं। इन मंदिरों की एक विशेषता यह है कि इन तीनों मंदिरों में विग्रहों के मुख द्वारों के सम्मुख नहीं हैं अपितु एक ओर हैं। उनके सम्मुख दर्शन मंदिर के एक बाजू से ही होते हैं। बलभद्र की मूर्ति के सामने एक दर्पण रखा गया है जिससे आप उनके पीछे खड़े होकर भी उनके मुख का दर्शन कर सकते हैं।
बलभद्र एक श्वेत अश्व पर आरूढ़ हैं तो जगन्नाथ एक श्याम वर्ण अश्व पर सवार हैं। उनके हाथों में तलवारें हैं जो भविष्य में प्रकट होने वाले कल्कि अवतार की ओर संकेत करते हैं। ऐसी मान्यता है कि काल के साथ उनकी तलवारों की लम्बाई भी बढ़ रही है।
इस मंदिर में वार्षिक रथ यात्रा निकाली जाती है जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से भक्तगण यहाँ आते हैं।
छतिया का पेडा
भारत देश में पेडा लगभग सर्वसामान्य राष्ट्रीय मिष्टान्न माने जाते हैं। मंदिर के प्रसाद के रूप में उनका प्रयोग बहुतायत में किया जाता है। धारवाड़ पेडा , मथुरा पेडा आदि के समान ओडिशा के छतिया पेडा अत्यंत लोकप्रिय हैं।
छतिया पेडा खाना चाहें तो छतिया बट मंदिर के बाहर स्थित दुकानों से उत्तम स्थान अन्य नहीं है। मंदिर के बाहर विक्रेता अपनी दुकानों, गुमटियों यहाँ तक कि दुपहिया सायकलों पर भी पेडा विक्री करते हैं। उन स्वादिष्ट पेडा पर विक्रेताओं की मुद्राएँ भी अंकित रहती हैं।
छतिया बट मंदिर के दर्शन के लिए कुछ यात्रा सुझाव:
छतिया बट मंदिर जाजपुर एवं भुवनेश्वर दोनों से लगभग ५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप दोनों ओर से यहाँ पहुँच सकते हैं।
आप अपने ठहरने की व्यवस्था जाजपुर, चंडीखोल, कटक अथवा भुवनेश्वर में कर सकते हैं।
मंदिर के भीतर छायाचित्रीकरण करना निषिद्ध है तथा इस नियम का कठोरता से पालन किया जाता है।