११ विशेष मंदिर प्रसाद जो खाए बिना आप नहीं रह सकते

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सम्पूर्ण भारत के सभी मंदिरों में मिलने वाला प्रसाद एक दिव्य खाद्य है। सर्वप्रथम हम उस खाद्य पदार्थ को भगवान को अर्पित करते हैं। भगवान उस खाने को आशीष देते हैं, अभिमंत्रित करते हैं। जब हम किसी खाद्य पदार्थ को भगवान को समर्पित करते हैं, उसे नैवेद्यम कहते हैं। भगवान द्वारा अभिमंत्रित होने के पश्चात वह दिव्य प्रसाद बन जाता है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मंदिरों में भिन्न भिन्न नैवेद्य चढ़ाया जाता है जो प्रसाद के रूप में हमें प्राप्त होता है। भगवान को अर्पित किया गया खाद्य पदार्थ भगवान की रूचि के अनुरूप होता है। साथ ही उस पर उस क्षेत्र की संस्कृति एवं परंपराओं का भी प्रभाव होता है जिस क्षेत्र में वह मंदिर स्थित है। तो हम ऐसा कह सकते हैं कि भगवान को स्थानीय खाद्य पदार्थ अत्यंत प्रिय होते हैं।

भारत के मंदिरों के प्रसाद

भारत के विभिन्न मंदिरों में प्राप्त प्रसादों की दिव्यता का अनुभव लेने के लिए मेरे साथ आईये।

जगन्नाथ पुरी का महाप्रसाद

पुरी भगवान जगन्नाथ का अन्न क्षेत्र है। पुरी ऐसा स्थान है जहाँ भगवान स्वयं अन्न ग्रहण करने के लिए आते हैं। इसलिए इसमें आश्चर्य कदापि नहीं है कि जगन्नाथ पुरी का रसोईघर विश्व का सर्वाधिक विशाल रसोईघर है। यहाँ भोजन भी पारंपरिक रीति से पकाया जाता है। भोजन प्रतिदिन मिट्टी के शुभ्र पात्रों में बनाया जाता है तथा भोजन बनाने के लिए मंदिर परिसर में ही स्थित दो जलकूपों के जल का प्रयोग किया जाता है।

जगन्नाथ पुरी का प्रसिद्द खाजा
जगन्नाथ पुरी का प्रसिद्द खाजा

यहाँ बनाया जाने वाला भोजन एक सम्पूर्ण आहार होता है जिसे मंदिर के ब्राह्मण या सेवायत बनाते हैं। भक्तों की ऐसी मान्यता है कि भोजन बनाने के कार्य का निरीक्षण स्वयं महालक्ष्मी करती हैं जो जगन्नाथ की अर्धांगिनी हैं। भोजन सर्वप्रथम भगवान को अर्पित किया जाता है जिससे वह प्रसाद में रूपांतरित होता है। तत्पश्चात महालक्ष्मी को उसका अर्पण किया जाता है जिसके पश्चात वह महाप्रसाद बन जाता है।

यदि आपको प्रसाद बनाने की प्रक्रिया को देखने में रूचि हो तो आप प्रातः रसोईघर में जाकर देख सकते हैं। दोपहर में आप आनंद बाजार जाकर वहाँ से प्रसाद ले सकते हैं। इस प्रसाद में दाल, भात, भाजियां तथा अनेक प्रकार के मिष्ठान होते हैं। मुझे बताया गया कि पुरी एवं आसपास के क्षेत्रों के लोग अपने घर के कई उत्सवों के लिए मंदिर का प्रसाद भोजन स्वरूप ले जाते हैं।

यदि आप पुरी के आसपास नहीं रहते तो आप खाजा जैसे सूखे प्रसाद भी ले जा सकते हैं जिन्हें ताड़ के पत्तों से बनी सुन्दर मंजूषाओं में भर कर रखे जाते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रसाद – लड्डू

जिसने एक बार भी तिरुपति बालाजी मंदिर के स्वादिष्ट व सुगन्धित लड्डुओं के प्रसाद का आस्वाद लिया है, वे यह अवश्य कहेंगे कि यहाँ के बूंदी के लड्डुओं का कोई सानी नहीं। ये विशेष प्रकार के लाडू हैं जिन्हें अपने स्वाद के लिए अपने क्षेत्र का भौगोलिक संकेत भी प्राप्त है। बालाजी के भक्तों में यह अत्यंत लोकप्रिय एवं अभीष्ट माना जाता है। इन लड्डुओं को बनाने के लिए उसी सामग्री का प्रयोग किया जाता है जो अन्य बूंदी लड्डुओं में होता है। बेसन, घी, शक्कर, इलायची एवं सूखे मेवे। किन्तु इनका स्वाद एवं गंध अन्य लड्डुओं की तुलना में उत्कृष्ट होता है। कदाचित इसका कारण है, इसमें समाई हुई बालाजी की भक्ति। क्यों ना हो? इन्हें तिरुमाला पर्वतों के स्वामी, वेंकटेश्वर भगवान को अर्पण करने के लिए विशेष रूप से बनाया जाता है।

तिरुपति का प्रसिद्द लड्डू
तिरुपति का प्रसिद्द लड्डू

मंदिर परिसर में ही बनाए गए इन लड्डुओं की संख्या लाखों में होती है। प्रत्येक लड्डू का भार लगभग २०० ग्राम होता है। मंदिर में भगवान के दर्शनोपरांत भक्तगण यह प्रसाद पाते हैं। इसका स्वाद अतुलनीय व दिव्य होता है। भक्तगण ना केवल स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं, अपितु अपने सगे-संबंधियों के लिए भी ले जाते हैं।

कृष्ण मंदिर का माखन मिश्री

भगवान कृष्ण को माखन अत्यंत प्रिय है, यह आप सब जानते हैं। आपने कृष्ण भगवान के बालपन की अनेक लीलाएं सुनी होंगी। हमारे शास्त्रों में अनेक कथाएं एवं गीत हैं जिनमें उनके माखन प्रेम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। जैसे गोपियाँ यशोदा माँ को उलाहना देती हैं कि उनके लाडले कृष्ण ने किस प्रकार उनके घर आकर उनका माखन खा लिया, कृष्ण अपनी माता को मनाते हैं कि, “मैं नहीं माखन खायो” आदि। तो स्वाभाविक ही है कि कृष्ण मंदिर में मिश्री के साथ माखन अर्पित किया जाता है जो भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलता है।

ब्रज का मिश्री प्रसाद
ब्रज का मिश्री प्रसाद

यह प्रसाद बहुधा प्रातःकाल भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है क्योंकि उन्हें प्रातःकाल में माखन खाना भाता है। यद्यपि अनेक कृष्ण मदिरों में माखन मिश्री का भोग चढ़ाया जाता है, तथापि मैं दो मंदिरों का विशेष उल्लेख करना चाहूंगी जहाँ मैंने भाव-विभोर होकर यह प्रसाद ग्रहण किया था। पहला है, वृन्दावन का लोकप्रिय बाँके बिहारी मंदिर। वृन्दावन की पावन भूमि में भगवान कृष्ण ने अपने किशोरावस्था काल व्यतीत किया था। दूसरा मंदिर है, द्वारका का द्वारकाधीश मंदिर। भगवान कृष्ण ने भारत के पश्चिमी तट पर स्वयं द्वारका की स्वर्णिम नगरी बसाई थी।

मुझे स्मरण है, मुझे ताजे माखन के साथ मिश्री का स्वाद इतना भा गया था कि मैंने उनसे पुनः पुनः प्रसाद देने का आग्रह किया था। मैं आज भी उन दयालु माताजी का स्मरण करती हूँ जो उस दिन भक्तों में प्रसाद बाँट रहीं थी।

वैष्णव देवी मंदिर का प्रसिद्ध प्रसाद – सूखे सेब

वैष्णव देवी जम्मू के निकट स्थित त्रिकूट पर्वत पर विराजमान हैं। वैष्णव देवी मंदिर को उत्तर भारत का अत्यंत लोकप्रिय मंदिर माना जाता है जहाँ सर्वाधिक संख्या में भक्तगण जाते हैं। इस मंदिर के विषय में ऐसी मान्यता है कि जब तक स्वयं देवी का बुलावा ना आये, आप उनके दर्शन नहीं कर सकते। मैंने उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में अपने जीवन के महत्वपूर्ण काल व्यतीत किये हैं किन्तु मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। मुझे उनके बुलावे की प्रतीक्षा है। किन्तु मुझे उनके मंदिर के प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य अवश्य प्राप्त हुआ है।

वैष्णो देवी के सूखे सेब
वैष्णो देवी के सूखे सेब

उनको अर्पित किये गए नैवेद्य में मुरमुरा, इलायचीदाना या मीठी चिरौंजी, कुछ सूखे मेवे और धूप में सुखाये गए सेब के टुकड़े होते हैं। कदाचित माँ वैष्णव देवी का मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहाँ सूखे सेब के टुकड़ों का प्रसाद होता है। ये लम्बे समय तक टिकते हैं। इसलिए आप इन्हें अपने सगे-संबंधियों के लिए आसानी से ले जा सकते हैं। मंदिर के आसपास सेबों की खेती की जाती है। यह प्रसाद उस समृद्धि का प्रतीक है। मेरे लिए, इस प्रसाद से मेरे बालपन की अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं।

काशी के संकट मोचन मंदिर का प्रसाद – लाल पेडा

काशी के प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर का निर्माण गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया था। गोस्वामी तुलसीदासजी हिंदी साहित्य के महान संत कवि थे जिन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की है। उनमें रामचरितमानस एवं हनुमान चालीसा भी सम्मिलित हैं। हनुमान चालीसा पवन पुत्र हनुमान की स्तुति में गाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय स्तोत्र है। ऐसी मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने यहाँ साक्षात् हनुमान जी के दर्शन किये थे। कालांतर में उन्होंने यहाँ हनुमान मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर में वानरों का वर्चस्व स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

काशी के संकट मोचन मंदिर के लाल पेडे
काशी के संकट मोचन मंदिर के लाल पेडे

इस मंदिर में दो प्रकार के प्रसाद अत्यंत लोकप्रिय हैं, एक है बेसन के लड्डू और दूसरा है, लाल पेडा। मंदिर की ओर जाते मार्ग के दोनों ओर दुकानों की पंक्तियाँ हैं जहाँ से आप इन्हें क्रय कर सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरा सर्वाधिक प्रिय प्रसाद लाल पेडा है। इसमें भुने हुए खोए की सोंधी सोंधी सुगंध होती है। यही इसकी विशेषता भी है। वैसे भी पेडे मुझे अत्यंत प्रिय हैं। लाल पेडे के अतिरिक्त मुझे ब्रज के मथुरा पेडे तथा कर्णाटक के धारवाड़ पेडे भी अत्यंत प्रिय हैं।

गुरुद्वारों का कड़ा प्रसाद

मैं चंडीगढ़ एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में पली-बड़ी हूँ। गुरुद्वारा जाना हमारी नियमित दिनचर्या का एक भाग था। बालपन में हमारे गुरुद्वारे जाने का एक अन्य कारण भी था, वहाँ का कड़ा प्रसाद। हम उस प्रसाद की प्रतीक्षा किया करते थे। शुद्ध देशी घी में भून भून कर बना आटे का हलवा खाना हमारे लिए किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं होता था। हम पहले एक हाथ बढ़ाकर प्रसाद ग्रहण करते थे। उसी समय दूसरा हाथ भी आगे बढ़ा देते थे ताकि कुछ अधिक हलवा पा सकें।

गुरुद्वारों का स्वादिष्ट कढा प्रसाद
गुरुद्वारों का स्वादिष्ट कढा प्रसाद

यद्यपि अमृतसर के हरमंदिर साहिब के लंगर में मिलने वाला प्रसाद सर्वाधिक लोकप्रिय है तथापि अधिकतर गुरुद्वारों में मिलने वाला कड़ा प्रसाद आपको वही तृप्ति प्रदान करता है। देखा जाए तो आटे का हलवा बनाने में सिमित सामग्री का प्रयोग किया जाता है तथा बनाने की विधि भी आसान ही है। किन्तु हम घर पर जितने भी परिश्रम से आटे का हलवा बनाना चाहें, उसका स्वाद वैसा नहीं हो पाता जैसा कि गुरुद्वारों में मिलता है। कदाचित उसमें दिव्याषीश का स्वाद होता है।

हनुमान मंदिरों में मंगलवार का प्रसाद – मीठी बूंदी

उत्तर भारत में मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर के दर्शन की प्रथा अनेक परिवारों में प्रचलित है। हमारे बालपन में हम भी जाते थे। हनुमान मंदिर के बाहर नारंगी चमचमाती मीठी बूंदी के ढेरों का दर्शन मंगलवार के दिन एक सामान्य दृश्य होता है, विशेषतः संध्या के समय। यह एक साप्ताहिक आयोजन होता है। सप्ताह के अन्य छः दिवसों में आपको यही ढेर ढूंढे नहीं मिलेंगे। इनका स्वाद कुछ कुछ जलेबियों के समान होता है। दिखने में ये चाशनी से भरी छोटी छोटी बूंदों के आकार की गोलियां होती हैं जो जिव्हा में घुल जाती हैं। इनके कुछ प्रकार नर्म मुलायम होते हैं तो कुछ प्रकार कुरकुरे होते हैं। कई लोगों को नर्म बूंदी प्रिय होती है। मुझे कुरकुरी बूंदी अत्यंत भाती है।

हनुमान मंदिरों की रसीली बूंदी
हनुमान मंदिरों की रसीली बूंदी

बालपन में हम जब हनुमान मंदिर जाते थे तब बाहर स्थित दुकान से बूंदी का पुड़ा क्रय करते थे। मंदिर में वह पूड़ा पुजारीजी को देते थे। पुजारीजी उसमें से कुछ बूंदी निकालकर प्रसाद पात्र में रख लेते थे तथा शेष पूड़ा हमें वापिस कर देते थे। तत्पश्चात वे प्रसाद पात्र से हमें बूंदी का प्रसाद देते थे। हम अपने दोनों हाथों से अधिक से अधिक प्रसाद पाने की चेष्टा करते थे।

अब दक्षिण भारत में स्थायी होने के पश्चात मुझे इस सुख की कमी खटकती है। आज भी यदि मैं मंगलवार के दिन उत्तर भारत के किसी क्षेत्र में रहूँ तो मैं हनुमान मंदिर जाने का प्रयास अवश्य करती हूँ। उस समय मेरे भीतर का बालपन पुनः जागृत हो जाता है। मैं पुनः वही बूंदी के प्रसाद की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगती हूँ।

गणपतिपुले में मोदक का प्रसाद

गणपति पूजन का एक अभिन्न अंग हैं मोदक। गणपति उत्सव के अवसर पर मैंने अपने अनेक मराठी मित्रों के घरों में मोदक का प्रसाद खाया है। महाराष्ट्र के कोंकण तट पर स्थित गणपतिपुले के गणपति मंदिर में भी मैंने मोदक का प्रसाद देखा था। मंदिर अत्यंत लोकप्रिय होने के पश्चात भी भीतर भक्तों की अत्यधिक भीड़ नहीं होती है।

गणपति का मोदक
गणपति का मोदक

अतः आपको यहाँ का मोदक प्रसाद अवश्य प्राप्त होगा। मंदिर के आसपास स्थित घरेलु भोजनालयों में भी मोदक परोसा जाता है। गुड़ एवं नारियल के रसीले भरावन से भरे चावल के आटे के भपाये हुए ये मोदक अत्यंत स्वादिष्ट होते हैं।

कांचीपुरम के वरदराज पेरूमल मंदिर में कांचीपुरम इडली

कांचीपुरम एक दिव्य नगरी है जिसके केंद्र में कांची कामाक्षी मंदिर है। इस नगरी ने अपनी गोद में शिव कांची एवं विष्णु कांची को सहेज कर रखा हुआ है। यह नगरी कांचीपुरम रेशमी साड़ियों की दुकानों एवं मंदिरों से भरा हुआ है। इसकी एक अन्य विशेषता बहु-अनाज इडलियाँ भी हैं।

कांचीपुरम इडली
कांचीपुरम इडली

यद्यपि ये इडलियाँ यहाँ के लगभग सभी जलपान गृहों में उपलब्ध हैं तथापि ये इडलियाँ प्रसाद के रूप में विष्णु कांची के हृदय स्थल में स्थित वरदराज पेरूमल मंदिर में भी दी जाती हैं। मैंने इस मंदिर में लगभग एक दिवस व्यतीत किया था किन्तु मैं इसका आस्वाद नहीं ले पायी। किन्तु मैंने विभिन्न जलपान गृहों में इन्हें अवश्य चखा है।

नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में ठोर का प्रसाद

भारत के अधिकतर विष्णु मंदिरों में विस्तृत रसोईघर होते हैं जहाँ भगवान के लिए विभिन्न व्यंजन बनाए जाते हैं। नाथद्वारा के ठाकुर हवेली के विशाल पाकशाला में नन्हे श्रीनाथजी के लिए सम्पूर्ण दिवस विभिन्न आहार बनाए जाते हैं। उनमें स्थानीय भाजियों एवं फलों का प्रयोग किया जाता है। जैसे हम अपने घरों में मौसम के अनुसार आहार में परिवर्तन करते हैं, इस मंदिर में भी मौसम के अनुसार आहार में परिवर्तन लाया जाता है। ये विभिन्न आहार श्रीनाथजी को अर्पित किये जाते हैं।

श्रीनाथजी के दिनभर के प्रसाद
श्रीनाथजी के दिनभर के प्रसाद

इनमें अन्य व्यंजनों के साथ एक विशेष मिष्टान्न होता है जिसे ठोर कहते हैं। यह मीठी चाशनी में भीगी सूजी से बनी एक मिठाई होती है। ठोर नाथद्वारा का एक अतिविशेष मिष्टान्न है। आप इन्हें कुछ e-portals से भी मंगवा सकते हैं।

चूड़ियों का प्रसाद

लाल चूड़ियाँ - देवी मंदिर का प्रसाद
लाल चूड़ियाँ – देवी मंदिर का प्रसाद

देवी मंदिर में देवी के शृंगार की वस्तुएं भेंट में चढ़ाना सामान्य है। उनमें उनके लिए चुनरी, साड़ी जैसे वस्त्र, बिंदी, चूड़ियाँ, हल्दी, कुमकुम तथा आभूषण होते हैं। कुछ मंदिरों में इन शृंगार वस्तुओं में से कुछ वस्तुएं प्रसाद के रूप में स्त्रियों को दिया जाता है। मुझे स्मरण है कि मुझे वृन्दावन के निधि वन में तथा जगन्नाथ पुरी मंदिर के परिसर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर में लाल चूड़ियाँ प्रसाद के रूप में मिली थीं। ये चूड़ियाँ मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मैं विशेष अवसरों में उन्हें अवश्य धारण करती हूँ।

विभिन्न मंदिरों के सर्वव्यापी प्रसाद

पाषण पात्रों में चरणामृत -ओडिशा के मंदिरों में
पाषण पात्रों में चरणामृत -ओडिशा के मंदिरों में

मैंने उपरोक्त वर्णन में कुछ विशेष मंदिरों में मिलने वाले विशेष प्रसाद का उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त कुछ सर्वव्यापी प्रसाद हैं जो लगभग सभी मंदिरों में मिलते हैं। उनमें एक है, पंचामृत या चरणामृत। उसे तीर्थ भी कहते हैं। यह सभी मंदिरों में दिया जाता है। आप किसी भी समय मंदिर में जाएँ, आपको चरणामृत या तीर्थ दिया जाता है। उत्तर भारत के अधिकाँश मंदिरों में लड्डू या पेढा सर्वसामान्य प्रसाद होता है। मंदिर के बाहर आप मिठाई की दुकानों की अनेक पंक्तियाँ देख सकते हैं जहाँ ये प्रसाद उपलब्ध होते हैं। वहीं दक्षिण भारत के मंदिरों में महाप्रसाद के रूप में भोजन तथा पायसम की सभी को प्रतीक्षा रहती है। मुरमुरा एवं मीठी चिरौंजी का सूखा प्रसाद भी सभी मंदिरों के बाहर दुकानों में उपलब्ध होता है। यह सूखा प्रसाद होने के कारण आप इसे भगवान को अर्पण करने के पश्चात घर ले जा सकते हैं।

मंदिरों में मिलने वाला प्रसाद इतना विशेष क्यों होता है? इसका कारण है वह भक्ति जिसमें सराबोर होकर इसे बनाया जाता है, भगवान को अर्पित किया जाता है तथा भक्तों में वितरित किया जाता है। भक्तगण भी इसे श्रद्धा से स्वीकार करते हैं तथा उसी श्रद्धा से इसे ग्रहण करते हैं। भगवान को अर्पित करने के पश्चात इसमें दिव्या उर्जा का भी समावेश हो जाता है।

क्या मैंने इसमें किसी विशेष मंदिर के किसी विशेष प्रसाद का उल्लेख नहीं किया है? यदि ऐसा है तो मुझे अवश्य बताईये।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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